scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतभारत का रक्षा संबंधी कारोबार अच्छी खबर है भी और नहीं भी लेकिन हालात बेहतर हो रहे हैं

भारत का रक्षा संबंधी कारोबार अच्छी खबर है भी और नहीं भी लेकिन हालात बेहतर हो रहे हैं

सरकार ने इस क्षेत्र को निजी उत्पादन के लिए खोल दिया है. वित्त मंत्री ने पिछले बजट भाषण में कहा था कि सरकार रक्षा मामलों के आर एंड डी पर जो खर्च करेगी उसका एक चौथाई हिस्सा निजी उद्योग और गैर-सरकारी संस्थानों को जाएगा लेकिन अब तक यह महज बयान ही है.

Text Size:

भारत के रक्षा मामलों से जुड़े व्यवसाय के बारे में ज़्यादातर लोगों को यही मालूम है कि सरकार हथियारों के विकास और उत्पादन (मुख्यतः सरकारी कंपनियों के द्वारा) के मामलों में आत्मनिर्भर होने का दशकों से प्रयास कर रही है लेकिन हकीकत यही है कि भारत रक्षा संबंधी साजोसामान का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. यह विरोधाभासी स्थिति इसलिए नहीं है कि प्रयास नहीं किए गए हैं, बल्कि इसलिए है कि शायद सही प्रयास नहीं किए गए हैं.

कम लोगों को ही मालूम होगा कि रक्षा संबंधी अनुसंधान और विकास (अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा के मामलों को रक्षा मामलों में जोड़ें तो) का भारत का बजट दुनिया में तीसरा या चौथा सबसे बड़ा बजट है. अमेरिका या चीन जितना खर्च कर रहा है उससे भारत कम ही खर्च कर रहा है लेकिन रक्षा संबंधी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) के ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के बजट से भारत का यह बजट बड़ा है. लेकिन ये तीनों देश जिस तरह से हथियार बना रहे हैं वैसे भारत नहीं बना रहा.

वास्तव में, एरोस्पेस और इलेक्ट्रॉनिक्स की सार्वजनिक क्षेत्र की अग्रणी डिफेंस कंपनियों में आर एंड डी पर खर्च का हिस्सा इसके अंतरराष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है.

विरोधाभास यहीं खत्म नहीं होता. एक ओर यह स्पष्ट है कि देश में बने हथियार मजबूत हो रहे हैं. उदाहरण के लिए, तेजस और ब्रह्मोस आदि मिसाइलें और जहाजरानी में प्रभावशाली क्षमता का निर्माण. दूसरी ओर, अधिकारीगण ये बातें तो कर रहे हैं कि देसी डिफेंस यूनिटों की बिक्री बढ़ी है, निजी क्षेत्र का हिस्सा बढ़ा है, आयातित साजोसामान पर निर्भरता घाटी है, लेकिन उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि डॉलर के लिहाज से देखें तो रक्षा उत्पादन और निर्यात वास्तव में स्थिर है. इसलिए, यह अच्छी खबर है या इसके उलट है? शायद दोनों बातें है.


यह भी पढ़ें: महंगाई चिंता की वजह बनी हुई है लेकिन आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं बेहतर हैं


वैसे, इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की हाल की बातचीत से साफ है कि बदलाव की हवा चल पड़ी है. सरकार ने इस क्षेत्र को निजी उत्पादन के लिए खोल दिया है. वित्त मंत्री ने अपने पिछले बजट भाषण में कहा था कि सरकार रक्षा मामलों के आर एंड डी पर जो खर्च करेगी उसका एक चौथाई हिस्सा निजी उद्योग और गैर-सरकारी संस्थानों को जाएगा. लेकिन अब तक यह मकसद एक बयान ही है, लेकिन सी-295 ट्रांसपोर्ट विमान टाटा-एयरबस के संयुक्त उपक्रम के तहत बनाया जाएगा. तोपें लार्सन एंड टूब्रो और भारत फोर्ज मिलकर बनाएंगी. इतने बड़े उपक्रम अब इस क्षेत्र में मौजूद 1000 लघु और मझोले उपक्रमों के साथ मिलकर काम करेंगे.

आर एंड डी के मोर्चे पर भी सरकार ने चार साल पहले ‘डिफेंस इनोवेशन ऑर्गेनाइज़ेशन’ का गठन किया, जिसकी कार्यकारी शाखा (रक्षा क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए आविष्कार, आइडेक्स) ने ड्रोन, रोबो, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, आधुनिक सामग्री आदि के क्षेत्रों में आर एंड डी की सौ से ज्यादा परियोजनाओं को कोश उपलब्ध कराया है. इसके अलावा कुछ स्टार्ट-अप कंपनियां छवि पहचान, पोशाक की तकनीक आदि दोहरे उपयोग के उत्पादों का उत्पादन कर रही हैं. इस सेक्टर के लोग यह जागरूकता फैलाने की बात कर रहे हैं कि चीजें बदल रही हैं.

इसका मतलब यह नहीं है कि समस्याएं नहीं हैं. रक्षा खरीद व्यवस्था कई मामलों में अटकल बनती है. सेना घरेलू आर एंड डी से बनी चीजों को मंजूर करने में काफी समय लेती हैं. सबसे कम पर बोली लगाने वाले को चुनने की आम प्रथा सरकारी कोश के बूते तकनीक विकसित करने वालों को शायद ही प्रोत्साहित करती है. आइडेक्स फंडिंग ने खासकर ड्रोन टेक्नोलॉजी की मदद की है लेकिन वास्तविक सौदे कम ही हुए हैं. ड्रोन और उसके पुर्जे बनाने वालों के उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन स्कीम की अभी-अभी घोषणा की गई है, जिससे फर्क पड़ेगा.

निर्यातों में भी वृद्धि हो सकती है. मसलन, टेस्ला ने तेजी से चार्ज होने वाली बैटरियों के लिए स्थानीय स्तर पर विकसित तकनीक में रुची दिखाई है. दो कंपनियों को ‘पिनाक’ रॉकेट फायरिंग सिस्टम के निर्यात के लिए ऑर्डर मिले हैं. इस साल के शुरू में मलेशिया ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स से तेजस लड़ाकू विमान के लिए मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर दस्तखत किया है लेकिन अंततः चीन शायद ठेका हासिल कर ले.

शायद अभी अलग-अलग सौदा करने का समय नहीं आया है और देसी आर एंड डी अभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा है कि बड़े आंकड़ों को प्रभावित कर सके. लेकिन जिन उपायों ने मदद की है उनमें एक यह भी है कि सरकार अब सरकारी पैसे से हुए शोध से बनी बौद्धिक संपदा पर दावा नहीं करती, इसलिए कंपनियां अब उत्पादन के चरण में आने के लिए पूंजी जुटाने की अच्छी स्थिति मैं हैं. किस्मत साथ देगी तो रक्षा अनुसंधान और उत्पादन वाकई अच्छी खबर बन सकती है.

(अनुवाद: अशोक | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मंडल कमीशन और राजनीति में पिछड़ा उभार की सवर्ण प्रतिक्रिया में आया कोलिजियम सिस्टम


 

share & View comments