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Tuesday, 4 March, 2025
होममत-विमतनेपाल के साथ भारत की ‘सब कुछ या कुछ नहीं’ की नीति काम नहीं करेगी, सैन्य संबंध को मजबूत बनाना होगा

नेपाल के साथ भारत की ‘सब कुछ या कुछ नहीं’ की नीति काम नहीं करेगी, सैन्य संबंध को मजबूत बनाना होगा

नेपाल के प्रति अपना रुख तय करते वक़्त भारत को यह ख्याल रखना होगा: ऐसा कोई गहरा कदम न उठाए जिसे दखलंदाजी माना जाए, और न पूरी तरह से हाथ झटक लिया जाए.

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तीन दिशाओं से भारत और चौथी दिशा से चीन से घिरा नेपाल भारत की ‘पड़ोसी पहले’ वाली नीति का प्रमुख हिस्सा है. 1950 के दशक में तिब्बत पर चीनी कब्जे और 1962 में भारतचीन युद्ध के बाद, एक ‘बफर स्टेट’ (दो दुश्मन देशों के बीच स्थित देश) के रूप में नेपाल की भूमिका प्रमुख हो गई. इस देश की भौगोलिक स्थिति इसे व्यापार और सुरक्षा, खासकर बुनियादी जरूरत की चीजों और ईंधन के व्यापार के लिए भारत पर लगभग पूरी तरह निर्भर बना देती है. यह निर्भरता कभीकभी भारत के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर देती है और यह ‘भारत विरोधी’ भावनाओं को जन्म देती है, जिसका फायदा तीसरे पक्ष उठाते हैं.

जैसा कि साझा सीमारेखा वाले दो देशों के बीच होता है, भारत को भी नेपाल के साथ संबंध निभाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि नेपाल अपनी आज़ादी पर उग्र दावा करने वाले देश के रूप में जाना जाता है. नेपाल के प्रति अपना रुख तय करते वक़्त भारत को यह ख्याल रखना होगा: ऐसा कोई गहरा कदम न उठाए जिसे दखलअंदाजी माना जाए, और न पूरी तरह से हाथ झटक लिया जाए. हाथ झटकने पर मैदान दूसरे खिलाड़ियों, खासकर चीन के लिए उपलब्ध हो जाएगा और उन्हें अवांछित बढ़त मिल जाएगी और तब नाजुक संतुलन साध कर चलना निर्णायक हो जाएगा.

नेपाल चाहेगा कि उसे अपनी स्वतंत्र विदेश नीति चलाने दिया जाए, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होगा कि भारत पूरी तरह से पीछे हट जाए. बल्कि उसे नेपाल के साथ उसकी जरूरतों के हिसाब से काम करना चाहिए.


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भारत-नेपाल सैन्य संबंध

भारतनेपाल के बीच मजबूत सैन्य संबंध वाले पहलू की अक्सर अनदेखी की जाती है. इस रिश्ते की पूरी संभावना का दोहन नहीं किया गया है.

भारत और नेपाल एक अनूठी परंपरा को साझा करते हैं, जो गोरखा सूत्र से पैदा हुई है और दुनिया में शायद अपनी तरह की अकेली परंपरा है. दोनों देशों के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ अपनीअपनी सेना में मानद जनरल हैं. यह व्यवस्था ‘ट्रैक-2’ संवाद और विचारों के स्वतंत्र तथा खुले आदानप्रदान की छूट देती है, जो कूटनीतिक आग्रहों से बंधे नहीं होते.

नेपाल के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के निमंत्रण पर 25 फरवरी 2025 को इस लेखक समेत भारतीय सेना के छह पूर्व अध्यक्ष नेपाल गए और नेपाल के सेनाध्यक्ष के साथ औपचारिक तथा अनौपचारिक बातचीत भी की. वे पशुपतिनाथ और मुक्तिनाथ मंदिर भी गए और दोनों देशों तथा उनकी सेनाओं के बीच गहरे धार्मिक संबंध को भी रेखांकित किया. इस तरह काफी आपसी सद्भाव भी उभरा.

भारतनेपाल संबंध में एक बड़ी अड़चन कालापानी क्षेत्र में सीमा को लेकर जारी विवाद है. यह क्षेत्र चीन, भारत, और नेपाल, तीनों के मुहाने पर है और लीपुलेख दर्रे के करीब है. दोनों देश ऐतिहासिक दस्तावेजों और संधियों का हवाला देकर इस क्षेत्र पर अपनेअपने दावे करते रहे हैं.

यह मसला तब उभरा जब भारत ने 2019 में अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद नया राजनीतिक नक्शा प्रकाशित किया और उसमें कालापानी क्षेत्र को भारत का हिस्सा बताया. इसके जवाब में नेपाल ने 2020 में अपना राजनीतिक नक्शा जारी किया और इस क्षेत्र को अपना हिस्सा बता दिया. 2023 में उसने एक कदम आगे बढ़कर अपने 100 रुपए के नोट पर लीपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी के विवादास्पद क्षेत्रों को अपने हिस्से के रूप में दिखा दिया.

गौरतलब है कि यह मसला आमतौर पर तभी उछाला जाता रहा है जब राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है या चुनाव होने वाला होता है और इसे अपने लिए जनसमर्थन जुटाने का मुद्दा बनाया जाता है. कालापानी नदी के पश्चिमी छोर तक जाने वाली सड़क भारत बना रहा है. इससे वहां रहने वालों को खूब फायदा होगा और उन्हें आनेजाने में काफी सुविधा होगी. वैसे, जमीन पर देखें तो इस नदी के दोनों किनारों पर रहने वाले लोगों के बीच कोई शत्रुता नहीं है और यह जीने के तरीके में शामिल है. जमीनी स्थिति के मद्देनजर ‘ट्रैक-2’ संवाद दोनों देशों को स्वीकार्य समाधान तक पहुंचा सकता है जिसे बाद में नियमित चैनल के जरिए पूरा किया जा सकता है.

दूसरी अड़चन भारतीय सेना में नेपाली गोरखों की मौजूदगी है. नेपालवासी गोरखे भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट के हिस्से रहे हैं और वे भारत की ओर से लड़ी गई सभी लड़ाइयों में पूरी बहादुरी से भाग लेते रहे हैं और सैन्य पुरस्कार तथा सम्मान भी हासिल किए हैं. भारतीय सेना में उन्हें सुरक्षित रोजगार और सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन पेंशन तथा दूसरी सुविधाएं मिलती रही हैं.

भारत सरकार ने 2022 में जो ‘अग्निपथ’ योजना घोषित की उससे इन लोगों को झटका लगा और नेपाल सरकार ने फैसला किया कि वह अपने लोगों को नयी शर्तों के तहत सेना में भर्ती होने के लिए नहीं भेजेगी. लेकिन सूचनाएं मिल रही हैं कि गोरखा युवक नई शर्तों के तहत भी, जो काफी उदार हैं, भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए तैयार हैं.

सब कुछ चाहिए, या कुछ भी नहीं’ वाली नीति से किसी को लाभ नहीं होने वाला है. नेपाली युवकों को भारतीय सेना में भर्ती होने की छूट दी जानी चाहिए और नेपाल की जायज चिंताओं को यथासंभव दूर किया जाना चाहिए. दोनों सेनाओं के बीच की मजबूत कड़ी इन दो देशों के करीबी रिश्ते का आधार रही है और इसे कमजोर नहीं होने दिया जाना चाहिए.

चीन वाला पहलू

जिस तरह भारत नेपाल की ओर एक पड़ोसी देश की तरह अपना हाथ बढ़ा रहा है, उसी तरह चीन भी हाथ बढ़ा रहा है. इसलिए नेपाल के साथ चीन के संबंधों को हमेशा शक की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए. चीन ने नेपाल में गहरी पैठ बना ली है, खासकर वाणिज्यव्यापार के क्षेत्र में. उदाहरण के लिए, नेपाल के ऑटोमोबील बाजार में अग्रणी महिंद्रा को अब बिजली वाले वाहनों के क्षेत्र में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और उसके पास अभी कोई प्रतिस्पर्द्धी विकल्प नहीं है. भारतीय कंपनियों को नये प्रोडक्ट लाकर या व्यापार के नये क्षेत्र चुनकर इस चुनौती का आगे बढ़कर मुक़ाबला करना होगा.

नेपाल ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि वह चीन और भारत, दोनों के साथ अच्छे संबंध चाहता है. अपनी राष्ट्रीय हित की सुरक्षा करते हुए उसे अपनी ‘बफर स्टेट’ वाली स्थिति के महत्व का पूरा एहसास है इसलिए वह किसी एक विशाल पड़ोसी देश की तरफ झुक कर खेल को बिगाड़ना नहीं चाहता. अंततः, भूरणनीति और अर्थनीति के कारण पलड़ा भारत की ओर ही झुकेगा.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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