पाकिस्तान के धार्मिक संगठन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पर ईशनिंदा का आरोप लगा रहे हैं क्योंकि उन्होंने बजट के बाद अपने भाषण में कथित रूप से जंग-ए-बदर में पैगंबर के सहयोगियों की वीरता पर सवाल उठाया था. ख़ान की इतिहास की सीमित जानकारी और ऐसे विषयों पर आधे-अधूरे भाषणों को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं, पर विपक्षी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी द्वारा अल्पकालिक सियासी फायदे के लिए इस मामले को ईशनिंदा से जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण है.
पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल सरकार अपने विरोधियों को चुप कराने के लिए करती है, नेता इसके सहारे ओछी राजनीति करते हैं, धार्मिक माफिया अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए इसे काम में लेता है, जबकि आम जनता इसके ज़रिए उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपनी जाती दुश्मनी निकालती है. हर कोई इससे बराबर का फायदा उठा रहा है.
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इमरान ख़ान और उनकी पार्टी पीटीआई का पाखंड
दशकों से, पाकिस्तान में ईशनिंदा के मुद्दे का इस्तेमाल वोट जुटाने, धार्मिक लॉबी को प्रश्रय देने और पहले से ही विभाजित समाज में नफरत को हवा देने के लिए किया जाता रहा है. 2018 का आम चुनाव इसका हालिया सबूत था.
चुनाव के दौरान, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) समेत विभिन्न राजनीतिक दलों ने तब आग उगलने वाले मौलवी खादिम हुसैन रिज़वी का समर्थन किया था, जब रिज़वी ने चुनावी शपथ पत्र में ‘मैं सत्यनिष्ठा से शपथ लेता हूं’ को बदलकर ‘मैं समझता हूं’ किए जाने को लेकर पीएमएल-एन सरकार पर ईशनिंदा करने का आरोप लगाया था. हालांकि शब्दों में बदलाव को शीघ्रता से ठीक कर दिया गया, पर इस्लामी संगठनों के तीन सप्ताह तक चले विरोध प्रदर्शन को खत्म कराने के लिए कानून मंत्री ज़ाहिद हमीद के इस्तीफे की उनकी मांग को पूरा किया गया. विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसक झड़पों में कम से कम छह लोग मारे गए थे.
तत्कालीन नवाज़ शरीफ़ सरकार पर ईशनिंदा के आरोपों को सही ठहराने के लिए इमरान ख़ान 2018 के अपने पूरे चुनाव अभियान में पैगंबर की अंतिम सत्ता के विषय को उठाते रहे थे. ख़ान और उनके राजनीतिक सहयोगियों ने न सिर्फ ईशनिंदा कानून की तरफदारी की थी, बल्कि अपनी बयानबाज़ी के परिणामों से बेपरवाह रहते हुए अहमदिया समुदाय के खिलाफ अपमानजक भाषा का भी इस्तेमाल किया था.
पश्चिमी देशों को नसीहत
ब्रिटिश शासन निर्मित ईशनिंदा कानून में शुरू में अधिकतम दो वर्षों की कैद की सजा का ही प्रावधान था. सैनिक तानाशाह ज़ियाउल हक़ ने 1980 के दशक के मध्य में इस्लामीकरण के अपने अभियान के तहत ईशनिंदा से जुड़े कई अपराधों के लिए पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-बी और 295-सी के तहत कड़ी सजाओं का प्रावधान किया था, इनमें क़ुरान को अपवित्र करने का अपराध भी सम्मिलित था. यह कानून धर्म के नाम पर लोगों को प्रताड़ित करने का साधन बन गया, और इसकी सर्वाधिक मार धार्मिक अल्पसंख्यकों पर पड़ी.
धारा 298-ए (अपमानजनक टिप्पणी करना), 298-बी (उपाधियों, पदवियों और विवरणों का दुरुपयोग) और 298-सी (खुद को मुसलमान बताना या अपने धर्म का प्रचार करना) जैसे प्रावधानों का उपयोग यों तो मुख्यत: अहमदियों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है, पर अन्य समुदायों के सैंकड़ो लोग भी इनके आधार पर जेलों में डाले जा चुके हैं.
अपने यहां ईशनिंदा के मुद्दे को संभालने में नाकाम पाकिस्तानी नेता इस्लाम के खिलाफ ईशनिंदा को लेकर पश्चिमी देशों को सतर्कता बरतने की नसीहत दे रहे हैं. वे चाहते हैं कि पाकिस्तान के आंतरिक ईशनिंदा कानूनों का शेष विश्व में पालन किया जाए.
मक्का में इस्लामी देशों के संगठन (ओआईसी) के 14वें शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा कि पश्चिमी जगत में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदात्मक घटनाएं दरअसल ओआईसी की नाकामी है क्योंकि वह दुनिया को समझा नहीं पा रहा है कि पैगंबर के प्रति मुसलमानों की कितनी श्रद्धा है.
ख़ान ने कहा, ‘इस मंच से मैं कहना चाहूंगा कि संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ जैसे संगठनों के स्तर पर जाकर हमें उनको समझाना होगा कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में 1.3 अरब लोगों की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते.’
इसी तरह 2012 में, तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में विवादित फिल्म ‘इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स’ के संदर्भ में एक अंतर्राष्ट्रीय ईशनिंदा कानून बनाए जाने की मांग उठाई थी.
ज़रदारी ने कहा था, ‘अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मूकदर्शक नहीं बना रहे, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर दुनिया की शांति भंग करने और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाली इन गतिविधियों को अपराध घोषित करे.’ तत्कालीन प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ़ ने भी दावा किया था कि ईशनिंदा का अंतर्राष्ट्रीय कानून बनने तक उनकी सरकार चुप नहीं बैठेगी.
हालांकि दुनिया भर में ईशनिंदा की घटनाओं को लेकर पाकिस्तान के नेताओं की बयानबाज़ी पश्चिमी देशों के बजाय अपने देशवासियों पर केंद्रित होती है. फिर भी, पाकिस्तान को कठोर ईशनिंदा कानूनों के लिए दुनिया पर दबाव डालने का अधिकार किसने दिया, जब वो खुद अपने यहां ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग नहीं रोक पा रहा हो?
निशाना बनाने की निंदात्मक कार्रवाई
लाहौर स्थित मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के अनुसार 1987 से 2017 के बीच पाकिस्तान में 1,500 से अधिक लोगों पर ईशनिंदा का मुकदमा चलाया गया, जबकि इस अवधि में इन्हीं आरोपों में 75 लोगों को गैरकानूनी रूप से मार डाला गया.
ईशनिंदा के मामले में कानूनन किसी को मौत के घाट नहीं उतारा गया है, हालांकि इस वक्त 40 लोग या तो सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहे हैं या फिर उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. इनमें इसाई दंपति शुगफ्ता और शफकत भी शामिल हैं जिन्हें ईशनिंदात्मक टेक्स्ट मैसेज भेजने के आरोप में 2014 में मौत की सजा सुनाई गई थी. 2014 में ही सावन मसीह को भी पैंगबर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में सज़ा-ए-मौत सुनाई गई थी.
मुकदमा शुरू होने के इंतजार में जेल में सड़ रहे लोगों में शामिल हैं: प्रोफेस जुनैद हफीज़ जिन्हें 295-सी के तहत हिरासत में लिया गया था क्योंकि उन्होंने फेसबुक पर कथित रूप से क़ुरान को लेकर अपमानजक टिप्पणी की थी; नबील मसीह पर कथित रूप से फेसबुक पर काबा की अपमानजनक तस्वीर को लाइक करने का आरोप है; मसीह बंधुओं, पतरस और साजिद को कथित ईशनिंदात्मक टेक्स्ट मैसेज फॉरवर्ड करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
गत माह, सिंध के मीरपुर खास जिले में एक हिंदू पशु-चिकित्सक डॉ. रमेश कुमार को ईशनिंदा के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उनके बारे में एक मौलवी ने क़ुरान के पन्ने में लपेट कर दवाइयां देने की शिकायत की थी. इस आरोप के बाद उस इलाके में दंगे भड़क उठे और विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने हिंदुओं की कई दुकानें जला दीं.
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ईशनिंदा कानून को खत्म करने की दलीलों को सुनने वाला कोई नहीं है. इस कानून को निरस्त करना तो दूर, कोई भी सरकार इसमें संशोधन करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाती है. सत्तारूढ़ पार्टी पीटीआई ईशनिंदा के झूठे आरोप लगाने वालों के लिए सजा अधिक सख्त करने के प्रावधान वाला विधेयक सीनेट से वापस ले चुकी है. कानूनी मामलों के मंत्री नूरुल हक़ क़ादरी ने कहा है कि इमरान ख़ान सरकार धारा 295-सी की ‘मूल आत्मा’ के अनुरूप बदलाव कर विधेयक को दोबारा पेश करेगी.
ईशनिंदा के आरोपों से आसिया बीबी को बरी किए जाने और उनके देश छोड़ने का घटनाक्रम पाकिस्तान के भेदभाव वाले कानूनों और देश की न्याय व्यवस्था को उजागर करता है. क्या पाकिस्तान के नेताओं की पहली प्राथमिकता वहां ईशनिंदा कानून से जुड़ी चिंताओं को दूर करना नहीं होनी चाहिए, बजाय इसके कि वे दुनिया को ईशनिंदा रोकने के उपायों पर उपदेश दें?
(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. प्रस्तुत विचार उनके अपने हैं.)
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