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Saturday, 2 November, 2024
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ज़मीन खो रहे हैं इमरान खान, फिर छिनने जा रही है किसी की कुर्सी

पाकिस्तान में एक तमाशा चल रहा है. इमरान ख़ान का सूरज ढल रहा है, जबकि नवाज़ शरीफ एक मुर्दा तेंदुए पर रोना-पीटना मचाए हैं.

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एक ख़तरनाक प्रधानमंत्री, घटिया लोग और एक बनारसी ठग- पाकिस्तान में आजकल तमाशा चल रहा है. सब आपस में भिड़े हैं, लेकिन यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिरकार जीत किसकी होगी. इतिहास देखें तो पता चलता है पाकिस्तान की सियासी दौड़ में जीत हमेशा उसी ग़ैर-सियासी टीम की होती है, जो पदासीन पीएम के नीचे से कुर्सी खींच लेती है. और एकबार फिर किसी की कुर्सी खिंचने वाली है कम से कम पाकिस्तान की हलचलों से ऐसा ही आभास होता है.

अगर वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान का सूरज ढल रहा है, तो वहीं पूर्व पीएम नवाज़ शरीफ मायूसी के साथ पाकिस्तान में एक तेंदुए की बेरहमी से हत्या पर ट्वीट करने में व्यस्त हैं. ख़ान रविवार को टेलीविज़न पर धमकी दे रहे थे, कि अगर उन्हें हटाया गया तो वो और ज़्यादा ख़तरनाक हो जाएंगे, जबकि अभी तक वो सिर्फ ऑफिस में बैठे तमाशा देख रहे हैं. जिस इंसान के पास शब्द नहीं रहते, धमकियां उसका आख़िरी सहारा हो जाती हैं. पीएम के पास काफी शब्द हैं जिनसे वो अपनी सोच को सही से ज़ाहिर कर सकते हैं- इसीलिए लोगों को बताया जा रहा है कि वो ‘घटिया’ हैं और वो (इमरान) चोरों के नहीं, बल्कि डाकुओं यानी शरीफ परिवार के ख़िलाफ जिहाद कर रहे हैं.

 


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‘मुझे क्यों निकाला’ से ‘अगर मुझे निकाला’ तक

इमरान ख़ान ने पहली बार एक विपक्षी नेता के तौर पर ‘सिस्टम’ को धमकाया था, और अब वो फिर से लौटकर बतौर वज़ीरे आज़म उसे धमका रहे हैं. क्यों? इसका जवाब उनके सबसे बड़े एजेंडे की नाकामी में है- डाकुओं से पैसा वापस लेना, और नए पाकिस्तान को भ्रष्टाचार से निजात दिलाना. उस 50 रुपए के स्टांप पेपर के अलावा, जिस पर नवाज़ शरीफ ने 2019 में पाकिस्तान छोड़ते वक़्त दस्तख़त किए थे, पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) को धेला नहीं मिला है. पीएम की राष्ट्रीय डींग के एक दिन बाद, उनके अकाउंटेबिलिटी ज़ार की रवानगी, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में पाकिस्तान के 16 अंक फिसलने से, ज़ीरो-भ्रष्टाचार के दावों की क़लई खुल गई है. इन सब से ऊपर, इन अफवाहों ने ख़ान की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं, कि नवाज़ शऱीफ पाकिस्तान लौटने की तैयारी कर रहे हैं.

पहले हम सुनते थे ‘मैं ख़ुद नवाज़ शरीफ को वापस लेकर आऊंगा’ और दो साल बीत गए लेकिन कुछ नहीं हुआ. अब अचानक, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के एक नेता के एक बयान के बाद, कि ‘नवाज़ जल्द वापस आएंगे’ सरकार में हर शख़्स और उसके चचा शरीफ को वापस लाना चाहते हैं.

मज़ाहिया रणनीति पर चल रही सरकार कहती है, ‘वो नहीं आएंगे, हम उनको लाएंगे’. इस बीच पाकिस्तान के चुनाव आयोग की रिपोर्ट जिसमें  पीटीआई ने करोड़ों के विदेशी खातों पर पर्दा डाले रखा, पीएम को शरीफ के हाथों ‘बनारसी ठग’ का तमगा दिलवा दिया.

शरीफ के ‘मुझे क्यों निकाला’ से ख़ान के ‘अगर मुझे निकाला’ तक के सफर में, हम लौटकर फिर उसी जगह आ गए हैं. नए पाकिस्तान की राह अब एक धमकी बन गई है कि ‘मैं सड़क पर उतर आऊंगा’ और विरोध प्रदर्शन करूंगा. सड़क पर उतरने का ये ख़याल कहां से आ रहा है? याद है ख़ान को ये कहते हुए सुना गया था, कि पाकिस्तानी जनरल इतने बुज़दिल हैं कि अगर आप 20,000 लोगों को सड़क पर उतर जाएं तो उनकी पैंट गीली होने लग जाती है. बस ऐसे ही कह रही हूं. हालांकि एक चीज़ तय है कि बरसों तक, ख़ान की सियासी रैलियों के लिए जो भीड़ जुटाई जाती थी, वो अब नज़र नहीं आएगी. लेकिन मंत्री लोग हर रोज़ अंपायरों से यही दोहरा रहे हैं कि कैसे सब कुछ ठीक है.


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पहले नींद गई, अब सांस फूली

2022 के पहले हफ्ते में, पाकिस्तानियों से कहा गया कि कहीं कोई महंगाई नहीं है, लेकिन जनवरी के ख़त्म होने से पहले ही हमें बताया गया, कि महंगाई की वजह से पीएम इमरान ख़ान की रातों की नींद उड़ गई है. हमें क्या मालूम, हो सकता है कि दोनों ही बातें सही हों? ये नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत से बेहतर कर रही है- ये भी सांस फूलने के लिए काफी है. अफवाह ये है कि बेचैनी दूर करने वाली गोली लेक्सोटेनिल की राजधानी में सप्लाई कम हो गई है, क्योंकि ‘सियासी बदलाव होने जा रहा है’. महंगाई हो या न हो, विपक्ष पीएम की रातों की नींद उड़ने का सेहरा अपने सर बांधना चाहता है.

महंगाई अब एक बहुत संवेदनशील मुद्दा बन गई है- मीडिया द्वारा महंगाई के बारे में पूछने पर, नेता लोग आंटी गॉरमिंट की तरह रिएक्शंस देते हैं. एक मिसाल है अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जिन्हें इसी हफ्ते फॉक्स न्यूज़ के एक रिपोर्टर को बुरा भला कहते देखा गया. यहां पीएम इमरान ख़ान महंगाई और ग़रीबी की कवरेज और टॉक शोज़ पर मेहमानों के फॉरमैट को लेकर मीडिया से नाख़ुश हैं. उन्हें ये पसंद नहीं आ रहा है कि कैसे तीन लोग, जिनमें एक मेहमान पीटीआई से होता है और दो विपक्ष से, और वो सब सरकार के ख़िलाफ लामबंद हो जाते हैं जिसमें एंकर भी शामिल होता है. इसलिए उन्हें लगता है कि सरकार का रुख़ कहीं पीछे छूट जाता है. सरकार ने नवजात शिशुओं के फार्मूले और बेबी फूड पर 17 फीसद सेल्स टैक्स बढ़ा दिया, उसके पास लोगों को कनाडा और इंग्लैण्ड की महंगाई के आंकड़े देने के अलावा कोई जवाब नहीं है. चलिए इसके लिए टॉक शोज़ के 1:3 अनुपात को ज़िम्मेवार ठहरा देते हैं.

बदलाव की कभी ख़त्म न होने वाली अटकलें, नवाज़ शरीफ की पार्टी और सिस्टम के बीच पिछले दरवाज़े से सौदे, कुशासन का बढ़ता दबाव और ख़राब प्रदर्शन ने अब पीएम इमरान ख़ान को हताश कर दिया है. उनके मुख़ालिफों को अब अपनी जीत नज़र आ रही है, और उनके आलोचक फिर से उत्साहित हैं. उनके कुछ होशियार हितैषी सुझाव दे रहे हैं कि उन्हें एक हफ्ते की छुट्टी लेकर, अपने पसंदीदा नाथियागली रिजॉर्ट चले जाना चाहिए. वहां उन्हें बर्फबारी का मज़ा लेना चाहिए, नेटफ्लिक्स पर एर्तुग़्रुल को फिर से देखना चाहिए, और ख़ुद को रीसेट करना चाहिए. और भी बेहतर ये है कि पीएम ख़ान को यूक्रेन और रूस के बीच मध्यस्थता की पेशकश करनी चाहिए.

चूंकि ‘पश्चिमी नेता’ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, ईरान और सऊदी अरब, चीन, अमेरिका और तालिबान तथा बाक़ी दुनिया के बीच सफल मध्यस्थता की कहानियों में एक नई पसंद बन गए हैं. इसलिए कौन जाने, हो सकता है कि ये रीसेट काम ही कर जाए.

(लेखिका पाकिस्तान में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @nailainayat. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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