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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतबाढ़ पर मोदी का ट्वीट, जयशंकर का बयान भारत-पाकिस्तान के बीच खड़ी दीवार को ढहाने का काम कर सकती है

बाढ़ पर मोदी का ट्वीट, जयशंकर का बयान भारत-पाकिस्तान के बीच खड़ी दीवार को ढहाने का काम कर सकती है

पर्दे के पीछे के चैनल बेशक सक्रिय हैं. वैसे भी, आत्मसम्मान से भरे परमाणु शक्ति संपन्न देश, खासकर पड़ोसी देश दिखावे के लिए भले आपसी संपर्क से इनकार करें मगर वे एक-दूसरे से बात करने से मना नहीं कर सकते.

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पाकिस्तान में कई वर्षों बाद आई भीषण बाढ़ शायद भारत के साथ उसके संबंधों के बीच खड़ी दीवार को ढहाने का काम कर सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मानवीय आपदा पर अपनी सहानुभूति प्रकट करते हुए ट्वीट किया है, तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बयान दिया है कि भारत को क्षेत्रवाद के विचार को आगे बढ़ाने के लिए ‘अधिक उदार और ज्यादा एकतरफा’ पहल करनी चाहिए.

मोदी ने सोमवार की शाम ट्वीट किया— ‘पाकिस्तान में बाढ़ से आई तबाही को देखकर दुख हुआ है. इस प्राकृतिक आपदा के शिकार हुए मृतकों के परिवारों, घायलों और प्रभावित लोगों के प्रति हम हार्दिक संवेदनाएं प्रकट करते हैं और उम्मीद करते हैं कि सामान्य स्थिति जल्द ही बहाल होगी.’ इस ट्वीट को 1 लाख ‘लाइक्स’ मिले और 11,000 से ज्यादा बार रीट्वीट किया गया, जिससे संकेत मिलता है कि ‘सामान्य रिश्ते’ की पक्षधर जमात सचमुच वजूद में है.

इससे अलग, थिंक टैंक ‘एशिया सोसाइटी’ के एक कार्यक्रम में जयशंकर ने क्षेत्रवाद पर अपने विचार रखे. उन्होंने भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंद मोरागोडा के एक सवाल के जवाब में कहा, ‘मैं तो क्षेत्रवाद को और मजबूत बनाने की वकालत करूंगा, और चाहूंगा कि जो निर्मित हो रहा है उसमें भारत वास्तव में और अधिक उदार तथा ज्यादा एकतरफा एवं प्रभावी पहल करे.’

ऐसे अल्फ़ाज बेशक पहले भी बोले जा चुके हैं, करीब 25 साल पहले 1997 में, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल की दक्षिण एशिया को लेकर एकतरफा नीति इस मान्यता पर आधारित थी कि भारत अपने बड़े आकार, विशाल आबादी और ऊंची जीडीपी के बूते अपने पड़ोसियों के प्रति ज्यादा उदारता बरत सकता है. यह ‘गुजराल सिद्धांत’ के नाम से मशहूर हुआ था.

इसलिए, जयशंकर आज कोई नयी बात नहीं कह रहे हैं. इसका अर्थ हुआ कि तब कई कई सवाल खड़े होते हैं. पहला यह कि विदेश मंत्री आज पाकिस्तान के प्रति नरमी क्यों दिखा रहे हैं, जबकि भाजपा सरकार बार-बार कह चुकी है कि वह तब तक कोई वार्ता नहीं करेगी जब तक सीमा पर से आतंकवाद बंद नहीं होता? अब क्या बदल गया है?

दूसरा सवाल यह कि पाकिस्तान की ओर मदद का हाथ बढ़ाने के लिए क्या भारत मानवीय आपदा का इंतजार कर रहा था? और तीसरा सवाल, खुले तौर पर एक-दूसरे से नाराज दोनों देशों के बीच पर्दे के पीछे क्या कोई चैनल अभी भी सक्रिय है, जिसके चलते फरवरी 2021 में सीमा (एलओसी) पर अमन-चैन रखने का समझौता हुआ? और दोनों देश इस पहल के लिए क्या किसी माकूल मौके का इंतजार कर रहे थे?

पर्दे के पीछे सक्रिय चैनल

संशयवादी लोग कहेंगे कि ये तमाम बातें सच हैं. पाकिस्तान में अचानक आई बाढ़ में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं और उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की गुहार की है. योजना मंत्री एहसान इकबाल कहते हैं कि मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए कम-से-कम 10 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी.


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उसके वाणिज्य मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल ने भी कहा है कि देश भारत के साथ व्यापार पर रोक आंशिक तौर पर खत्म कर सकता है और बाढ़ में फंसे लोगों को सब्जियां मुहैया कराने के लिए वाघा बॉर्डर को सीमित व्यापार के लिए खोला जा सकता है. व्यापार पर रोक तब लगाई गई थी जब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था.

इसमें शक नहीं है कि पर्दे के पीछे के चैनल सक्रिय हैं. वैसे भी, आत्मसम्मान से भरे परमाणु शक्ति संपन्न देश, खासकर पड़ोसी देश दिखावे के लिए भले आपसी संपर्क से इनकार करें मगर वे एक-दूसरे से बात करने से मना नहीं कर सकते. भारतीय वायुसेना के कुछ अफसरों ने मार्च में जब गलती से पाकिस्तान की ओर मिसाइल दाग दिया था तब उन्हें हाल में बरखास्त कर दिया गया और पाकिस्तान ने भी शायद ही कोई शोर मचाया. इससे जानकारों ने यही निष्कर्ष निकाला कि दोनों देशों के बीच संपर्क कायम है.

इसके अलावा, एलओसी पर शांति कायम रखने के पीछे भारत की यह चिंता भी काम कर रही थी कि एक तो चीनी सेना 2020 से एलएसी पर जमी है, दूसरे पाकिस्तानी सेना पश्चिमी सीमा पर जम गई तो उसे दो मोर्चों पर दबाव झेलना पड़ेगा.

फरवरी 2021 में कश्मीर में एलओसी पर युद्धविराम परोक्ष चैनल के प्रयासों के बिना संभव नहीं था. संयुक्त घोषणा में दोनों देशों के ‘डीजीएमओ’ ने ‘एक-दूसरे के प्रमुख मसलों और चिंताओं को दूर करने पर सहमति जताई जिनके कारण शांति भंग होती है और हिंसा होती है’ ताकि ‘सीमा पर एक-दूसरे के लिए लाभकारी तथा टिकाऊ शांति कायम हो’.

भारत यह उम्मीद लगाए था कि सीमा पर शांति से एक नयी शुरुआत होगी, कि अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान का गुस्सा ठंडा होगा, लेकिन यह उम्मीद तब टूट गई जब इमरान खान ने कपास और चीनी का आपसी व्यापार फिर से शुरू करने के अपने वाणिज्य मंत्री का प्रस्ताव यह कहकर खारिज कर दिया कि भारत पहले कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने की पहल करे.

भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अनुच्छेद 370 को तो अब वापस नहीं लाया जा सकता. जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए मतदाता सूची के मोर्चे पर कुछ पहल की गई है, लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मामला इन सूचियों को तैयार करने में निष्पक्षता के सवाल पर अटक गया है.

इसके अलावा, प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ ने तो इमरान खान की इसलिए आलोचना की थी कि वे भारत के साथ व्यापार शुरू करने जा रहे थे जबकि भारत ने कश्मीर के मामले में कदम वापस लेने की कोई पहल नहीं की थी. अब शरीफ अगर कश्मीर के मामले में नरमी बरतते पाए जाएंगे तो उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. शरीफ को मालूम है कि आज अगर पाकिस्तान में चुनाव हुए तो इमरान फिर सत्ता में वापस आ सकते हैं.

बाजवा क्या चाहते हैं?

लेकिन इस खेल के सबसे अहम खिलाड़ी, पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल क़मर बाजवा क्या सोच रहे हैं इस पर भी तो विचार करना पड़ेगा. दो महीने बाद रिटायर होकर क्या वे संन्यास ही ले लेंगे? या वे भारत और पाकिस्तान के बीच कोई सौदा करवाएंगे?

वैसे, बाजवा काफी सक्रिय रहे हैं. सीमा पर युद्धबंदी से कुछ सप्ताह पहले वे ‘आपसी सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ की बातें कर रहे थे. यह 2019 के बालाकोट हमले के बाद की उनकी पहली प्रतिक्रिया थी. काबुल में अल-क़ायदा नेता अल-जवाहिरी के मारे जाने से एक महीना पहले, जुलाई में बाजवा ने अमेरिका के आला अधिकारियों से अनुरोध किया था कि वे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए आइएमएफ से सहायता दिलवाने में मदद करें.

रिटायर होने से दो महीना पहले बाजवा क्या भारत-पाकिस्तान के बीच अमन करवाने में दिलचस्पी रखने लगे हैं?
मोदी तो जरूर चाहेंगे कि पाकिस्तान के साथ सामान्य रिश्ते की कोई सूरत बने. दोनों देशों के बीच वार्ता छह साल पहले बंद हुए थे, जब पठानकोट पर हमला हुआ था और फिर अनुच्छेद 370 तथा बालाकोट हमले ने माहौल को और बिगाड़ा. पड़ोसी पाकिस्तान के साथ भारत भला कितने लंबे समय तक तनातनी की स्थिति में रह सकता है?

इस लिहाज से, मोदी का मानवीय ट्वीट, और क्षेत्रवाद पर जयशंकर का बयान इतना मौजूं हो गया है. एक ओर, ये सब अपनी मौत मर सकते हैं, या दूसरी ओर वे एक कठिन पड़ोसी के साथ रिश्ता सामान्य बनाने की संभावनाओं से भरे दिख सकते हैं.

भारत के कई प्रधानमंत्री इस स्थिति में रह चुके हैं, उनमें सबसे उल्लेखनीय रहे अटल बिहारी वाजपेयी. क्या मोदी में वह जादू और दूरदर्शिता है कि वे गुलाब और कांटे को अलग-अलग कर सकें, एक लंबी अंधी सुरंग में उम्मीद की किरण खोज सकें?

लेखक एक कंसल्टेंट एडीटर हैं. वह @jomalhotra ट्वीट करती हैं. यहां विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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