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Friday, 29 March, 2024
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नये IAS अधिकारियों के लिए मोदी के ‘आरंभ’ कोर्स में पटेल की प्रतिमा की अहमियत

पटेल ने 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलय करवा के एक मजबूत, स्वतंत्र, योग्यता पर आधारित सिविल सेवा का ढांचा खड़ा किया था इसलिए, यह उचित ही है कि सभी नवनियुक्त अधिकारी सरदार पटेल के जीवन तथा कार्यों से प्रेरणा लें.

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कोविड की वजह से दो साल की छुट्टी के बाद ‘आरंभ’ का चौथा आयोजन गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर केवड़िया में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के साये में होने जा रहा है. 28 से 31 अक्टूबर तक होने वाले इस सम्मेलन में लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के 97वें फाउंडेशन कोर्स के 443 अधिकारी शामिल होंगे जिनमें रॉयल भूटान सिविल, पुलिस, और फॉरेस्ट सर्विसेज के 11 अधिकारी भी शामिल हैं.

आप सबको तो याद ही होगा कि सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर की यह प्रतिमा दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है. उनकी जीवनी लिखने वाले हिंडोल सेनगुप्त मानते हैं कि 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलय करवा के और एक मजबूत, स्वतंत्र, योग्यता पर आधारित सिविल सेवा का ढांचा खड़ा करके पटेल ने ने भारत को बचा लिया था. उनकी जीवनी का शीर्षक भी है—‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’.

जो परंपरा उभर रही है उससे तो लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार पटेल के जन्म दिवस 31 अक्टूबर (कथित तौर पर) को इस सम्मेलन में भाग लेने वालों को संबोधित करेंगे. पटेल के प्रयासों से ही भारत के ‘इस्पाती ढांचे’ (स्टील फ्रेम) को देश के इतिहास के सबसे निर्णायक समय में बेहद जरूरी ढांचागत आधार मिला. दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद यह साफ हो चुका था कि भारत को आज़ादी मिलने ही वाली है लेकिन ब्रिटिश सत्तातंत्र का एक ताकतवर खेमा आसानी से सत्ता परिवर्तन के रास्ते में रोड़े अटका रहा था. इसलिए, जब सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया और पूर्व बर्मा लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस ने सितंबर 1946 में अंतरिम सरकार को बताए बिना इंडियन सिविल सर्विस और आईपी में नयी नियुक्तियां बंद कर दी तो अंतरिम सरकार में गृह मंत्री सरदार पटेल ने 11 सूबों के प्रधानमंत्रियों की एक बैठक बुलाई. उनसे अखिल भारतीय सेवा को जारी रखने की जरूरत के बारे में सलाह ली गई.

इन 11 सूबों में से सात—बंबई, बिहार, प्रोविन्सेस (सीपी), उड़ीसा, मद्रास, यूपी, नॉर्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रोविन्स (एनडब्लूएफपी)—ने सुझाव का समर्थन किया. पंजाब, बंगाल, और सिंध ने प्रांतीयता को बढ़ावा देने की बात की, और असम अनिर्णय में रहा. वह चाहता था कि केंद्र नियुक्तियां और प्रशिक्षण तो करे, लेकिन काडर पर नियंत्रण राज्यों का ही रहे. पटेल ने बैठक के बारे में कहा, ‘आम भावना अखिल भारतीय सेवा के गठन के पक्ष में थी, और यह उम्मीद की गई कि जब योजना तैयार हो जाएगी तब जो लोग फिलहाल इसके पक्ष में नहीं हैं और मानते हैं कि नियंत्रण के बारे में राज्यों की भावनाओं का पर्याप्त ध्यान रखा जाएगा, वे भी इसमें शामिल होने के लिए तैयार हो जाएंगे.’


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ढांचे को मजबूती

जिस समय पटेल सिविल सेवा के ढांचे को मजबूत कर रहे थे, महात्मा गांधी आईसीएस सेवा की जगह अपने ‘हिंद स्वराज’ मॉडल के मुताबिक ‘ग्राम पंचायतों को आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र बनाना’ चाहते थे. जवाहरलाल नेहरू की मुख्य चिंता यह थी कि विदेश सेवा के लिए चुने जाने वाले अफसर तहजीब और लहजे के पक्के हों. एन.एन. वोहरा समेत सिविल सेवा के अधिकारियों के कई संस्मरणों में यह दर्ज मिलेगा कि विदेश सेवा के अफसरों का नेहरू खुद इंटरव्यू लिया करते थे. इसके अलावा शाही परिवारों या सत्तातंत्र से जुड़े उम्मीदवारों के लिए अलग से नियुक्ति की व्यवस्था थी. सेनगुप्त ने ऐतिहासिक दस्तावेजों की पड़ताल करके यह दिखाया है कि पटेल के अधीन गृह मंत्रालय ने यह व्यवस्था की कि विदेश सेवा समेत सिविल सेवा के सभी उच्च पदों पर नियुक्तियां एक निष्पक्ष संस्था के तहत संचालित प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर ही हो.

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इसलिए, यह उचित ही है कि सभी नवनियुक्त अधिकारी सरदार पटेल के जीवन और कार्यों से प्रेरणा लें. 1980 के दशक में पटेल के बारे में किताबें और मोनोग्राफ वगैरह कम ही थे, जिनमें राजमोहन गांधी द्वारा लिखी जीवनी ‘पटेल : अ लाइफ’ और ‘द एडमिनिस्ट्रेटर’ का विशेष संस्करण भी शामिल है. ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के साथ बने संग्रहालय में पूर्व गृह मंत्री के जीवन और समय को बहुत अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है. किस तरह वे एक अच्छी कमाई करने वाले वकील से 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के सूत्रधार बने, आज़ादी के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई, और सबसे महत्वपूर्ण यह कि तमाम रियासतों को एकजुट किया.

संग्रहालय में कुछ ऐसी दुर्लभ तस्वीरें हैं जिनमें वे आभूषणों से लदे महाराजाओं और नवाबों से अपने सादे-से खादी कपड़ों में गृहमंत्री के रूप में बातें करते देखे जा सकते हैं. आज माना जा सकता है कि उनका मंत्रालय भारत का सबसे कार्यकुशल और प्रभावी मंत्रालय था. जुलाई 1947 से मार्च 1951 तक की छोटी-सी अवधि में पटेल और उनके बेहद योग्य सेक्रेटरी वी.पी. मेनन ने हर एक राज्य का विलय करवाया जिनमें 21 तोपों की सलामी लेने वाले जम्मू-कश्मीर, मैसूर, हैदराबाद और बरोदा जैसे राज्य और वे लघु राज्य भी शामिल थे जो 100 वर्गमील से भी कम क्षेत्रफल और सालाना एक लाख से भी कम राजस्व वाले थे. इतिहास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में रुचि रखने वाले प्रशिक्षु अधिकारियों को यह प्रदर्शनी काफी ज्ञानवर्धक लगेगी.

‘आरंभ’ किस तरह ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के साथ जुड़े 31 अक्टूबर के आयोजन का हिस्सा बना यह भी देखें. गृह मंत्रालय पटेल के जन्म दिवस को 2014 से राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मना रहा है ताकि ‘देश की एकता, अखंडता, और संप्रभुता के सामने जो वास्तविक और संभावित खतरे हैं उनका सामना करने के लिए देश की आंतरिक शक्ति और जुझारूपन को मजबूत किया जाए’.

पीएम मोदी ने ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण 31 अगस्त 2018 को किया था और उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन को सिविल सेवाओं की परीक्षा पास करके सरकार में शामिल होने वाले नये अधिकारियों के लिए पहला ‘आरंभ’ कार्यक्रम करने का आदेश दिया गया. गौरतलब है कि दो दशक से ज्यादा समय से नये अधिकारी अपना फाउंडेशन कोर्स मसूरी की लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, हैदराबाद की डॉ. एमसीआर एचआरडी इंस्टीट्यूट ऑफ तेलंगाना और भोपाल की आरसीवीपी नोरोन्हा एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन में करते रहे हैं.

पीएम मोदी ने 2017 में एकेडमी के अपने पहले दौरे में, नये अधिकारियों के करियर के शुरू में ही बनाए गए अलग-अलग दायरों पर चिंता जताई थी और निर्देश दिया कि प्रशिक्षण तथा आवासीय इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार किया जाए ताकि सभी प्रशिक्षुओं को एक ही संस्थान में प्रशिक्षण दिया जा सके. वे यह भी चाहते थे कि सबसे युवा अधिकारी न केवल वरिष्ठतम अधिकारियों से बल्कि कॉर्पोरेट प्रमुखों और सिविल सोसाइटी के नेताओं व ग्लोबल थिंक टैंक और द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय फंडिंग एजेंसियों से भी मिलें.

2019 के शुरू में, कार्म्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने एकेडमी को स्पष्ट निर्देश दिया कि ‘आरंभ’ नामक एक गहन, संवादी कार्यक्रम चलाए. इस कार्यक्रम और बाद के इसके आयोजनों की खास बात यह रही कि प्रशिक्षु अधिकारियों और प्रधानमंत्री के बीच मुक्त और खुली बातचीत होती है. आपसी संवाद का यह सिलसिला 2020, 2021 में ऑनलाइन जारी रहा. इस साल, अधिकारियों को प्रधानमंत्री से सीधे यह सुनने का मौका मिलेगा कि भारत के लिए उनके सपने क्या हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(यह लेख ‘स्टेट ऑफ दि स्टेट‘ सीरीज का हिस्सा है जो भारत में नीति, सिविल सेवाओं और गवर्नेंस का विश्लेषण करता है.)


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