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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतचीन की दीवार ढहा कर कैसे शेख हसीना भारत और भारत के बीच नए तार बुनने का काम कर रही हैं

चीन की दीवार ढहा कर कैसे शेख हसीना भारत और भारत के बीच नए तार बुनने का काम कर रही हैं

शेख हसीना को पता है कि चीन बेशक कहीं ज्यादा अमीर देश है और इसलिए बांग्लादेश उसके ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ में शामिल है, लेकिन भारत उसका कहीं अधिक करीबी पड़ोसी है.

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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना चार दिन के दौरे पर दिल्ली पधार चुकी हैं और इस बीच वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 13वीं बार मुलाक़ात करेंगी. इस मुलाकात में वो रक्षा और सुरक्षा के मसलों से लेकर नदी जल की हिस्सेदारी व आर्थिक सहयोग जैसे विषयों पर भारतीय नेतृत्व से बातचीत के बाद दिल्ली में सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया और अजमेर शरीफ में सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाहों पर सजदा कर दौरे का समापन करेंगी.

लेकिन अगर आप हकीकतों और हसीना के दौरे की असली अहमियत को नहीं समझते तो ये तमाम कूटनीतिक रस्में बेमानी नज़र आएंगी. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद पहली बार, किसी बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूरे उत्तर-पूर्वी हिस्से को फिर से आर्थिक रूप से जोड़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई है.

इसे आप दूसरा आर्थिक एकीकरण कह सकते हैं. 110 साल पहले ऐसा ही कुछ करने के लिए लॉर्ड कर्जन को मजबूर होना पड़ा था. हसीना आज जो कर रही हैं वह सिर्फ इसलिए उल्लेखनीय नहीं है कि पाकिस्तान से बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद के 50 वर्षों में यह कभी नहीं किया गया था, बल्कि इसलिए भी है कि उन्होंने पूरे उत्तर-पूर्व में स्थिति को सुधारने, रेलवे लाइनों को फिर से जोड़ने, सड़कें बनाने, नदी मार्गों और शुष्क बंदरगाहों को जोड़ने का जो फैसला किया है वह काफी महत्वपूर्ण है. ये सब 1965 के युद्ध के बाद, जिसमें पाकिस्तान भारत से मात खा गया था, इस्तेमाल से बाहर हो गए थे. हसीना दरअसल चीन की उस मजबूत दीवार को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं, जो दोनों पड़ोसी देशों के बीच इन 57 वर्षों में उग आई है.

हसीना इससे भी ज्यादा बहुत कुछ कर रही हैं. वे भारत और भारत के बीच बिलकुल नया संपर्क सूत्र बुनने का रास्ता बना रही हैं.


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फंदे में ‘चिकेन्स नेक’

उत्तर-पूर्व भारत की आठ बहनें— असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, सिक्किम और मिज़ोरम— भारत से महज 22 किलोमीटर चौड़े भूभाग से जुड़ी हैं, जिसे ‘चिकेन्स नेक’ (मुर्गे की गर्दन) कहा जाता है. इसकी वजह से उस क्षेत्र तक माल पहुंचाने की लागत बहुत बढ़ जाती है. भारत की हर सरकार बांग्लादेश से अनुरोध करती रही है कि वह उसे अपने इलाके से होकर आने-जाने और व्यापार करने का रास्ता दे, लेकिन उसके अनुरोध को अब तक ठुकराया ही जाता रहा है.

लेकिन हसीना ने कुछ समय पहले यह रणनीतिक फैसला किया कि बांग्लादेश की नियति भारत के साथ ही जुड़ी है, बावजूद इसके कि वे भारत में मुसलमानों के साथ मोदी सरकार के बर्ताव से नाखुश हैं; कि दिल्ली की सरकार ने बांग्लादेश में प्रताड़ित हिंदू अल्पसंख्यकों की वापसी और उन्हें भारत आने के लिए वीजा देने की पेशकश करके उनकी धर्मनिरपेक्षता को बदनाम किया; कि चीन भारत के मुक़ाबले बेहतर आर्थिक विकल्प की पेशकश कर रहा है.

भारत दौरे से पहले एएनआई को दिए इंटरव्यू में हसीना ने कहा कि बांग्लादेश की विदेश नीति ‘सबसे दोस्ती और न काहू से बैर’ के सिद्धांत पर आधारित है. उन्हें भारत और चीन के मामलों को लेकर विचारों में मौजूदा अलगाव की जानकारी है लेकिन वे उसमें अपनी ‘नाक नहीं घुसाना चाहतीं’. जाहिर है, हसीना को पता है कि चीन बेशक कहीं ज्यादा अमीर देश है और इसलिए बांग्लादेश उसके ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ में शामिल है, लेकिन भारत उसका कहीं अधिक करीबी पड़ोसी है.

जरा गौर कीजिए कि हाल के वर्षों में भारत की मुख्य भूमि, उसके उत्तर-पूर्वी हिस्से और बांग्लादेश के बीच किस तरह रेलवे, सड़कों और नौकाओं का जाल बिछ गया है. इस उपमहादेश में कोविड ने जब सब कुछ ठप कर दिया था तब जुलाई 2020 में भारतीय सामान से भरे पोत ने पश्चिम बंगाल के कोलकाता से बांग्लादेश के चटगांव से होते हुए त्रिपुरा के अगरतला तक की परीक्षण यात्रा की. पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से ढाका के बीच चलने वाली मिताली एक्सप्रेस ट्रेन को 1965 के बाद पहली बार फिर चालू कर दिया गया. बांग्लादेश के नदी मार्गों की गाद की सफाई शुरू कर दी गई है ताकि भारतीय माल ढोने वाली नौकाएं आसानी से आ-जा सकें. अगरतला और अखौरा (बांग्लादेश ) को जोड़ने वाले रेल मार्ग का संयुक्त रूप से निर्माण किया जा रहा है और भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन का निर्माण भी जारी है.

भारत-बांग्लादेश रिश्ते को मजबूती

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एनर्जी उत्पादों को आपसी सहयोग से बांग्लादेश के हिस्से से दूसरे हिस्से तक पहुंचाने का काम हाल में शुरू हो गया है, और यह हसीना के आदेश के बाद ही हुआ है.

इस तरह, द्विपक्षीय परिवहन प्रोटोकॉल के तहत एक पखवाड़े पहले बांग्लादेश ने ईंधन तेल से भरे 10 भारतीय टैंकरों को मेघालय से अपने देश से होकर त्रिपुरा जाने की इजाजत दी. 25 अगस्त की दोपहर भारतीय टैंकर मेघालय के जमीनी बंदरगाह डौकी से रवाना हुए और सिलहट के तामबिल बंदरगाह पहुंचे. वहां सीमा शुल्क और इमिग्रेशन की जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शाम 4.30 बजे रवाना हुए और रात 9.30 बजे बांग्लादेश के मौलवी बाज़ार में चलतापुर कस्टम स्टेशन पहुंचे. वहां निकासी की कार्रवाई पूरी करने के बाद सीमा पार कर रात 10.30 बजे भारत में त्रिपुरा के कैलाश नगर स्थित मानु कस्टम स्टेशन में दाखिल हो गए.

यह ऐतिहासिक यात्रा बेरोकटोक पूरी हुई. 10 में से तीन टैंकरों में 21.19 मीट्रिक टन एलपीजी भरी थी, बाकी सात में 83 मीट्रिक टन पेट्रोल भरा था.

ईंधन तेलों की इस ढुलाई का कम महत्व नहीं है, खासकर मौजूदा संकटपूर्ण स्थितियों में. जब यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में एनर्जी बाजार को अस्थिर कर दिया है वैसे में भारत से भारत के ही एक हिस्से तक जरूरी चीजों की ढुलाई में वित्तीय बचत एक अविश्वसनीय बात ही है.

इसलिए शेख हसीना भारत के साथ अपने रिश्ते को मजबूती देकर गहरी सांसें भर रही हैं. वे अच्छी तरह जानती-समझती हैं कि यह मजबूती दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगी, उनके यहां जब 2023 के अंत में चुनाव होंगे और वे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपीए) और पाकिस्तान समर्थक अपने अनौपचारिक सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को और नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगी तब उन्हें भारत की ओर से समझदारी की जरूरत पड़ेगी.

अगर वे जीत गईं तो अभूतपूर्व रूप से पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनेंगी, चाहे बीएनपीए चुनाव में भाग लें या नहीं, जैसे पिछले दो बार से वह इनकार करती रही हैं.

भारतीय नेतृत्व को भी शेख हसीना के महत्व का एहसास है. बांग्लादेश के सबसे ताकतवर नेता उसकी पहल का अनुकूल जवाब दे भी रही हैं. भारत-बांग्लादेश दोस्ती दोनों के लिए दोनों हाथों में लड्डू हासिल करने के समान है.

लेखक एक कंसल्टेंट एडीटर हैं. वह @jomalhotra ट्वीट करती हैं. यहां विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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