चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के दौरे के बाद सीधे नेपाल गए. यह 24 साल बाद किसी चीनी राष्ट्रपति की नेपाल यात्रा हुई है. इससे पता चलता है कि चीन के लिए नेपाल का अब तक ज्यादा महत्व नहीं रहा था, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. चीन की 70 से ज्यादा देशों को सड़क और आवागमन के अन्य साधनों से जोड़ने की वन बेल्ट वन रोड योजना में शामिल होने से भारत के इंकार के बाद नेपाल को साथ लेना चीन की आवश्यकता है.
चीन के राष्ट्रपति का नेपाल में भव्य स्वागत किया गया. चीन के साथ नेपाल के आधारभूत संरचना, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रो में 18 समझौते हुए. इसके अतिरिक्त चीन के शान्शी और शियान नगर को काठमांडू और बुटवल की सिस्टर सिटी बनाने की भी घोषणा हुई. नेपाल-चीन साझा परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए चीन ने नेपाल को बड़ी रकम (लगभग 56 अरब नेपाली रुपए) देने की भी घोषणा की है. इसके अलावा, नेपाल और चीन के बीच रेलवे लिंक बनाने के लिए सर्वे की भी घोषणा हुई.
नेपाल और भारत के संबंधो में खटास और चीन
नेपाल, भारत और चीन के बीच स्थित एक छोटा देश है. 2015 में मधेश निवासियों के अधिकारों के संदर्भ में हुए आंदोलन के दौरान ये आरोप लगाए गए कि भारत ने अपने रास्ते से नेपाल को आवश्यक समान की आपूर्ति पर रोक लगा दी है, जिसके कारण नेपाल में संकट की स्थिति पैदा हो गयी थी. हालांकि, भारत ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया था. इसके बाद से ही नेपाल गम्भीरतापूर्वक चीनी विकल्प पर विचार कर रहा था लेकिन नेपाल से चीन की मुख्य भूमि की दूरी भारत के मुकाबले ज्यादा है. इस वजह से दोनों देशों के बीच माल आवाजाही में ज्यादा समय और ईंधन खर्च होगा. नेपाल और चीन के व्यापारिक संबंधों में ये एक बड़ी बाधा थी.
ऐसे में चीन का वन बेल्ट वन रोड प्रोग्राम नेपाल के लिए काफी मददगार साबित होगा. यह नेपाल के लिए व्यापार के नए रास्ते खोलने का बेहतर मौका है. लेकिन नेपाल को चीन के इस उपकार का बदला चुकाना होगा और ये कैसे होगा, इस बारे में फिलहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं.
चीन और नेपाल व्यापार मार्ग के विकल्प
नेपाल से तिब्बत/चीन होते हुए कई रास्ते जाते हैं. अभी भी रसुआ के रास्ते नेपाल का चीन से व्यापार होता है और नेपाली नागरिकों को चीन के अंदर कुछ दूरी तक जाने की छूट भी है. नेपाल को चीन से जोड़ने वाला ऐतिहासिक मार्ग भी है, जिसका हजारों साल से इस्तेमाल हो रहा है. उसी मार्ग के ऊपर चीन एक हाइवे बना रहा है. इस हाइवे का नाम अरनिको के नाम पर रखा गया है. अरनिको एक नेपाली चित्रकार थे, जिसे 12वीं शताब्दी में चीन के राजा कुबलाई खान ने अपने दरबार में काम करने के लिए बुलाया था. वह नेपाल-चीन मैत्री के एक महत्वपूर्ण प्रतीक हैं.
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अभी यह हाइवे बन रहा है और यहां अनेक चीनी भी कार्यरत हैं. 2015 तक इसी रास्ते पर स्थित ततोपानी सीमा से चीन और नेपाल के बीच खूब व्यापार होता था. लेकिन 2015 के भूकंप के बाद यहां व्यापार एकदम बंद हो गया है. इस सीमा के जरिए व्यापार करने वाले ज्यादातर तिब्बती थे. माना जाता है कि इसीलिए चीन ने यहां व्यापार बंद कर दिया है.
एक और महत्वपूर्ण रास्ता, जो तिब्बत/चीन को नेपाल से जोड़ता है, वह नेपाल के मुस्टांग जिले में स्थित है. इसी रास्ते से चीन द्वारा बंधक बनाए गए तिब्बती बौद्ध गुरु करमापा लामा भाग कर नेपाल होते हुए भारत आ गए थे. मुस्टांग जिले को आधार बना कर अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने 50 के दशक में तिब्बती गुरिल्ला योद्धाओं को चीन के विरुद्ध छापामार युद्ध की ट्रेनिंग दी थी. मुस्टांग जिले से होते हुए तिब्बत तक चीन ने सड़क बना ली है. ये इलाके बहुत दुर्गम हैं और यहां सड़क निर्माण पर बहुत खर्च होता है. चीन इन रास्तों को व्यापार के अलावा रणनीतिक उद्देश्य से विकसित कर रहा है. यह चीन के वन बेल्ट वन रोड का ही हिस्सा हैं.
नेपाल के रास्ते भारत सामान भेजेगा चीन
इन्हीं रास्तों से चीन अपना माल भारत के बाजारों में भेजेगा. नेपाली पत्रकार रमेश पोखरेल का कहना है ‘चीन का मकसद नेपाल की नि:स्वार्थ सहायता करना नहीं, बल्कि अपने बाजार के लिए रास्ता खोलना है और सड़क और अन्य निर्माण कार्यों के बहाने नेपाल में दखल बढ़ाना है’. चीन ने पिछले दिनों नेपाल में चीनी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए चीनी भाषा शिक्षकों का वेतन खुद देने का कार्यक्रम भी शुरू किया है. इसकी वजह से नेपाल के कई स्कूलों में चीनी भाषा सीखना अनिवार्य कर दिया गया है
चीन नेपाल के पोखरा शहर में हवाई अड्डा बना रहा है. यहां से भारतीय सीमा पास है. नेपाल-चीन के गहरे सैन्य सम्बन्ध होने पर नि:स्संदेह भारत को नुकसान होगा. हालांकि अभी ऐसा कुछ गंभीर नहीं हुआ है, लेकिन भविष्य में इससे इंकार नहीं किया जा सकता.
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चीन, फिलहाल अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध लड़ रहा है. इसके अलावा हांगकांग में होने वाले लोकतान्त्रिक प्रदर्शनों और उइघुर मुसलमानों को कैम्प में बंद किए जाने की चर्चाओं से चीन की दुनिया भर में बदनामी हो रही है. अमेरिका इन मुद्दों को भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है. तीन हफ्ते पहले ही अमेरिका ने चीन की 28 कंपनियों को प्रतिबंधित कर दिया था. लेकिन इस बीच चीन अपनी विदेश नीति पर लगातार काम कर रहा है.
तिब्बती आंदोलनकारी नेपाली भूमि का चीन के खिलाफ माहौल बनाने में इस्तेमाल करते रहे हैं. नेपाल में भी हजारों निर्वासित तिब्बती रहते हैं, जिन्हें नेपाली बौद्धों का भी समर्थन मिलता रहता है. इसलिए नेपाल में चीन विरोधी प्रदर्शन भी होते हैं. नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा औली ने वादा किया कि नेपाली भूमि पर चीन के विरुद्ध होने वाले आंदोलनों को बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
ऐसे में भारत को भी तय करना होगा कि अपने इस महत्वपूर्ण पड़ोसी देश को कैसे चीन के पाले में जाने से रोके.
(लेखक समाज और कला विषयों के जानकार हैं)