भारत का विकलांग समुदाय केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 टीकाकरण में उन्हें प्राथमिकता नहीं दिए जाने पर हैरान है. पिछले दो महीने से देश भर के विकलांग लोगों के लिए भयावह रहे हैं. मेरे कॉलेज की एक सीनियर ने ट्वीट के ज़रिए सरकार से अपनी विकलांगता के कारण टीके की गुहार लगाने के एक महीने बाद दम तोड़ दिया.
महामारी की दूसरी लहर के दौरान केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य मरीजों की देखभाल में बाकियों से आगे रहे हैं. ऐसा रोगियों के उपचार हेतु लक्षित ट्राएज प्रणाली अपनाने और सर्वाधिक गंभीर मामलों को प्राथमिकता देने के कारण संभव हुआ. अन्य जगहों पर इस सुविधा का अभाव था.
मिसाल के तौर पर 40 वर्षीय शिशिर भटनागर को ही लीजिए. वह नोएडा स्थित समुद्री मामलों के सलाहकार हैं. रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण उनकी छाती की मांसपेशियां कमजोर हो गई हैं, जिसका असर उनके फेफड़े पर पड़ा है और इस तरह वह कोविड-19 की जोखिम वाले वर्ग में आते हैं. डर के मारे उन्होंने पिछले एक साल से खुद को घर में बंद कर रखा था. पहली मई से भारत में 45 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू होने से कुछ दिन पूर्व शिशिर बुखार, गले में खराश और अत्यधिक कमजोरी से पीड़ित हुए. उनको कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया, लेकिन उनके लिए आइसोलेशन संभव नहीं था क्योंकि अपनी शारीरिक स्थिति के कारण वह दूसरों पर निर्भर थे. अगले दो सप्ताह न केवल उनके लिए, बल्कि उनके परिचारक और 70 वर्ष से ऊपर के माता-पिता के लिए भी मुश्किल थे, जिनके घर में वह रहने आए थे. अपनी नियमित जरूरतों के अलावा, उन्हें न सिर्फ खांसने के लिए बल्कि अपनी मुड़ी उंगलियों में पल्स मीटर लगाने के लिए भी दूसरे की मदद की जरूरत थी. कम इम्युनिटी और कैथेटर उपयोगकर्ता होने के कारण कोविड से उबरने के बाद अब वह यूरिनरी ट्रैक्ट के संक्रमण से पीड़ित हैं.
मुंबई स्थित एक्सेसिबिलिटी कंसल्टेंट निखिल अग्रवाल (परिवर्तित नाम) को सेरेब्रल पाल्सी क्वाड्रिप्लेजिया है. वह 15 अप्रैल को कोविड पॉजिटिव पाए गए. अगले कुछ दिनों में बुखार के कारण उनकी स्थिति बिगड़ती गई और उनका तापमान 105 डिग्री तक पहुंच गया. डॉक्टरों द्वारा सीटी स्कैन कराने की सलाह दिए जाने और अपने पूरे परिवार के कोविड पीड़ित होने के कारण उनके लिए एम्बुलेंस बुक करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उनकी परिस्थिति का फायदा उठाते हुए एम्बुलेंस सेवा ने उनसे 15,000 रुपये वसूले.
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सतत संघर्ष
मैं चलने फिरने की विकलांगता (लोकोमीटर) के साथ पैदा हुआ था जिसे आर्थ्रोग्रिपोसिस कहा जाता है. उसके कारण मैं अपनी बुनियादी जरूरतों जैसे बिस्तर से उठना, स्नान करना, कपड़े पहनना आदि के लिए भी पूर्णतया अटेंडेंट पर निर्भर हूं.
पिछले एक साल से मेरे जैसे कई लोग अपनी अपार्टमेंट बिल्डिंग या हाउसिंग सोसाइटी को कंटेनमेंट ज़ोन घोषित किए जाने और अपने नौकरों या अटेंडेंट को घर में प्रवेश की अनुमति नहीं दिए जाने के निरंतर भय में जी रहे हैं. कोविड-19 प्रोटोकॉल मंत्र – ‘सतहों को छूने से बचें‘ – दृष्टिबाधित विकलांगों के काम करने और सार्वजनिक स्थलों से होकर गुजरने की प्रक्रिया के बिल्कुल विपरीत है.
अब जबकि लॉकडाउन में ढील दी गई है, तो भी दृष्टिबाधित विकलांगों ने घरों के भीतर ही रहने का विकल्प चुना है क्योंकि उनके लिए बाहर निकलने का मतलब है चीज़ों को छूना – और छूने का मतलब है वायरस के संपर्क में आने की बढ़ी संभावना.
मानसिक रूप से विकलांग बहुत से लोग जहां आवश्यक है वहां भी मास्क पहनने से इनकार करते हैं, जिससे उनकी देखभाल करने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. कोविड-19 महामारी से जुड़ी खबरों और सूचनाओं की अधिकता के इस दौर में, बधिरों की किसी को परवाह नहीं है, और शायद ही किसी सरकारी घोषणा का भारतीय साइन लैंग्वेज में अनुवाद किया गया हो. इसी तरह थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के लिए नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना संभव नहीं हो पा रहा है. पुराने दर्द और नियमित फिजियोथेरेपी और उपचार की आवश्यकता वाली अन्य विकलांगता से पीड़ित अन्य लोगों ने अपनी शारीरिक स्थिति में वर्षों में हुए सुधार को गंवा दिया है.
विकलांगों का साथ नहीं छोड़ें
हाशिए पर पड़े विकलांग लोगों के टीकाकरण के लिए विशेष रणनीति की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, कनाडा के शहरों में विकलांगता से जुड़े विशेषज्ञों की भागीदारी वाले एक्सेसिबिलिटी टास्क फोर्स स्थापित किए गए हैं जिन्हें, जरूरत पड़ने पर घर पर टीकाकरण के विकल्प के साथ, विकलांग लोगों को चिन्हित करने, उनसे जुड़ने और उनके टीकाकरण की ज़िम्मेदारी दी गई है. संयुक्त अरब अमीरात में विकलांग लोग घर पर टीकाकरण के विकल्प के लिए एक विशेष हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं. लैटिन अमेरिका में, चिली में एक विशाल टीकाकरण अभियान चल रहा है, जहां प्रत्येक दिन एक विशेष समूह के लिए आरक्षित रहता है. गंभीर विकलांगता से पीड़ित लोगों को उनके घर पर टीका लगाया जाता है.
भारत को 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब वाहवाही मिली थी, जब अरुणाचल प्रदेश के अंजाव जिले के मालोगाम गांव में मात्र एक मतदाता के लिए मतदान केंद्र बनाने के लिए चुनावकर्मियों ने चार दिनों में लगभग 500 किमी की यात्रा की थी. भारत के आकार वाले देश के लिए ये प्रशंसनीय है कि जनगणना अधिकारी हर दस साल में अपने कार्य को अंजाम देने के लिए प्रत्येक घर तक पहुंचते हैं. मुझे उम्मीद है कि केंद्र सरकार विकलांग व्यक्तियों के टीकाकरण के लिए वही उत्साह दिखाएगी. हम युद्ध जैसी स्थिति में हैं और यदि आवश्यक हो, तो हमें विकलांग व्यक्तियों के टीकाकरण के लिए आंगनवाड़ी कार्मिकों, सेना और शायद चुनाव आयोग की मशीनरी को भी सक्रिय करना चाहिए.
भारत ने 31 दिसंबर 2021 तक अपनी पूरी वयस्क आबादी के टीकाकरण का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. यदि वर्तमान नीतियां जारी रहीं, तो मुझे आशंका है कि विकलांग व्यक्ति बहुत पीछे छूट जाएंगे. और ये बात भारत को कोविडमुक्त बनाने में आड़े आएगी.
(लेखक व्हीलचेयर उपयोगकर्ता, निपमैन फाउंडेशन के सीईओ और व्हील्सफॉरलाइफ (www.wheelsforlife.in) के संस्थापक हैं. उन्हें @nipunmalhotra के ज़रिए ट्विटर पर फॉलो किया जा सकता है. ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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