महाराष्ट्र और हरियाणा, यहां तक कि उत्तर प्रदेश विधानसभा की ग्यारह सीटों के उपचुनाव में भी भाजपा के ‘भव्य’ जीत हासिल न कर पाने के बावजूद उसकी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अयोध्या में अपने तीसरे दीपोत्सव को ‘भव्य’ बनाने के खुमार में डूबी है. इस कदर कि उसके तनिक भी आगे-पीछे देखना गवारा नहीं कर रही. यह तब है जब अयोध्या में उसके दीपोत्सव को लेकर सवालों व एतराजों की कोई कमी नहीं है.
दीपोत्सव को राज्यस्तरीय सरकारी मेले का दर्जा देने और उसके लिए एक करोड़ तैंतीस लाख की धनराशि का प्रावधान करने के साथ ही उसने पर्यावरणवादियों की इस मांग को हवा में उड़ा दिया है कि इस दीपोत्सव के कारण अयोध्या में हो रहे वायु व ध्वनि प्रदूषणों का मापन कराया जाये और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के मद्देनजर दीपोत्सव का स्वरूप परिवर्तित किया जाये.
अयोध्या में सामाजिक सरोकारों को लेकर प्रायः संघर्ष करते रहने वाले डाॅ. महेन्द्र सिंह याद दिलाते हैं कि 2018 के सरकारी दीपोत्सव के दौरान हुई भारी आतिशबाजी ने धर्मनगरी के पर्यावरण का बहुत बुरा हाल किया था. उम्मीद थी कि प्रदेश सरकार उक्त बुरे हाल का अध्ययन कराकर उससे सबक लेगी और इस बार के दीपोत्सव में संयम बरतेगी. लेकिन वह जिस तरह उसे गिनीज बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में फिर से जगह दिलाने के लिए पहले से ज्यादा ‘भव्य’ बनाने को बेकरार है, उससे इस तरह की उम्मीदें सर्वथा नाउम्मीद होकर रह गई हैं.
डाॅ. महेन्द्र सिंह बताते हैं कि उनके साथ अयोध्या के कई नागरिकों ने गत 14 अक्टूबर को भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ई-मेल भेजकर मांग की थी कि वह और कुछ नहीं तो 20 से 30 अक्टूबर, 2019 के बीच अयोध्या के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न समयों पर वायु व ध्वनि प्रदूषणों का मापन करा ले, ताकि 26 अक्टूबर के दीपोत्सव के पहले और उसके बाद की प्रदूषण की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन मुहैया हो सके. उनके अनुसार, ‘यह उन नागरिकों की कातर पुकार थी, जो चाहते थे कि उनके साथ देश भी इस उत्सव के दौरान होने वाले वायु व ध्वनि प्रदूषणों की वास्तविक स्थिति से वाकिफ हो जाये और आगे उसकी रौशनी में प्रदूषण से बचाव के प्रति सतर्कता बरती जा सके.’
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उनके इस ई-मेल पर गत 17 अक्टूबर को बोर्ड के अतिरिक्त निदेशक (एयर लैब) गुरनाम सिंह ने लखनऊ के उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लिखा कि वह उक्त तिथियों में अयोध्या में वायु की गुणवत्ता की मानीटरिंग की माकूल व्यवस्था करे और केन्द्रीय बोर्ड के साथ शिकायतकर्ताओं को भी उसके नतीजे बताये. उन्होंने यह भी लिखा था कि शहर के पर्यावरण को बचाने के लिए उपयुक्त कदमों के लिए इस व्यवस्था को जरूरी समझा जाये.
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इससे पहले शिकायतकर्ताओं के ऐसे ही एक पत्र का संज्ञान लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस इन्वायरान्मेंट प्रोग्राम) ने भी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिखा था.
लेकिन उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस सिलसिले में अब तक क्या व्यवस्था की, यह शिकायतकर्ताओं समेत किसी की भी जानकारी में नहीं है. अतएव इसे लेकर स्वाभाविक ही उनमें उद्वेलन है, लेकिन सरकारी दीपोत्सव को लेकर सिर्फ उन्हीं का स्वर विसंवादी नहीं है.
अयोध्या की हेलाल कमेटी के संयोजक खालिक अहमद खां कहते हैं कि दीपोत्सव के खुल्लमखुल्ला सरकारीकरण से आशंका होती है कि इसे अयोध्यावासियों की धार्मिक मान्यताओं की पहचान और उनमें भेदभाव का माध्यम बनाया जा रहा है. खालिक के अनुसार ‘ऐसे में उन नागरिकों की स्वतंत्रता को अन्देशे हो रहे हैं, जो इस उत्सव को नहीं मनाना चाहते. प्रदेश सरकार को उनकी स्वतंत्रता के बारे में अपना दृष्टिकोण भी सामने लाना चाहिए.’
अयोध्या और उससे जुड़े मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह इस दीपोत्सव को लेकर दूसरे कई एतराज जताते हैं. उनके अनुसार, ‘यह दीपोत्सव दीपावली के एक दिन पहले छोटी दीवाली पर मनाया जाता है, जबकि भगवान राम दीपावली के दिन लंका से अयोध्या वापस लौटे थे. तिस पर इस सवाल का जवाब भी नहीं दिया जाता कि ऐसा करने के पीछे कौन-सा तर्क है?’
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शीतला सिंह कहते हैं कि उन्हें नहीं मालूम कि योगी सरकार भगवान राम के अयोध्या लौटने के पहले ही दीपोत्सव की जो नई परम्परा डाल रही है, वह किस नये राम को समर्पित है? वे याद दिलाते हैं कि ‘दशरथपुत्र राम गुणों और मर्यादाओं के प्रतीक तो हैं ही, हिन्दुओं द्वारा ही नहीं, अन्य धर्मों के अनुयायियों द्वारा भी स्वीकार किये जाते हैं.
उनकी इसी विशेषता के फलस्वरूप रामकथा संसार के 23 देशों में पहुंची है और ये 23 देश हिन्दू राज्य या हिन्दूबहुल नहीं हैं. उनके निवासी धर्मावलम्बी फिर भी राम को अपना मानते और सम्मान देते हैं.’ वे पूछते हैं कि क्या योगी सरकार का दीपोत्सव राम और रामकथा की इस परम्परा को तनिक भी समृद्ध कर रहा है?
(लेखक जनमोर्चा अख़बार के स्थानीय संपादक हैं, यह लेख उनका निजी विचार है)