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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतरक्षा निर्यातों में ऊंची छलांग लगाने के सरकारी दावों में अभी नारेबाजी ज्यादा दिखती है

रक्षा निर्यातों में ऊंची छलांग लगाने के सरकारी दावों में अभी नारेबाजी ज्यादा दिखती है

2008 में हमने इक्वाडोर को जो आठ आधुनिक लाइट हेलिकॉप्टर बेचे थे उनमें से सात कुछ ही वर्षों के अंदर गिर गए, भारत के रक्षा निर्यातों में गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है.

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भारत से रक्षा सामग्री के निर्यातों में पिछले छह साल में दस गुना वृद्धि हो गई है. वित्त वर्ष 2016-17 में यह 1,521 करोड़ रुपये मूल्य के बराबर था और 2022-23 में यह 15,921 रु. मूल्य के बराबर का हो गया है. चालू दरों के मुताबिक, इसका 0.22 अरब डॉलर से बढ़कर 1.94 अरब डॉलर का हो जाना काफी अच्छी बढ़ोतरी है. नरेंद्र मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ के तहत जो बुनियादी सुधार किए हैं और हथियारों के निर्यात में जो उदार नीति अपनाई है वही इस सफलता की वजह है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 फरवरी 2020 को रक्षा निर्यातों का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निश्चित किया था.

उन्होंने कहा था, ‘हमारा लक्ष्य है कि अगले पांच साल में हम इन निर्यातों को बढ़ाकर 5 अरब डॉलर के मूल्य के बराबर कर देंगे.’

दरअसल, इसके विश्व बाज़ार में भारत की मौजूदा 0.2 फीसदी की हिस्सेदारी को एक दशक के अंदर बढ़ाकर 2 फीसदी यानी निर्यातों को 10 अरब डॉलर मूल्य के बराबर कर लेना वास्तविकता में तब्दील होने के काबिल बन गया है. लेकिन इससे हमें एक दशक तक दुनिया में रक्षा सामग्री का सबसे बड़ा आयातक होने की बदनामी भी ढोनी पड़ रही है.

यहां मैं भारत के रक्षा आयातों की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करने के साथ-साथ यह भी बताने की कोशिश करूंगा कि भारत को दुनिया में दस बड़े रक्षा निर्यातकों की सूची में कैसे दाखिल कराया जा सकता है.


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रक्षा निर्यातों की रणनीति

भारत 1959 से कुछ चुनिंदा मित्र देशों से हथियारों का आयात करता रहा है. इनका निर्यात छिटपुट ही होता था, और टेक्नोलॉजी तो निरंतर पुरानी पड़ती जा रही थी. 2013-14 तक हम मात्र 11 करोड़ डॉलर (तत्कालीन विनिमय दर के हिसाब से) मूल्य के बराबर का ही रक्षा निर्यात करते थे. अगस्त 2014 तक रक्षा निर्यात की कोई रणनीति अस्तित्व में नहीं थी. निर्यात विदेश व्यापार नीति के तहत रक्षा मंत्रालय से ‘एनओसी’ हासिल करने के बाद किए जाते थे. सितंबर 2014 में, मोदी सरकार ने रक्षा निर्यात रणनीति तैयार की और उसे लागू किया. इसमें निर्यात को बढ़ावा देने और आसान बनाने, तथा नियमन पर ज़ोर दिया गया.

रक्षा उत्पादन विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक रक्षा निर्यात संचालन समिति का गठन किया गया जिसमें सेनाओं, डीआरडीओ, रक्षा मंत्रालय की प्लानिंग और इंटरनेशनल को-ऑपरेशन और अधिग्रहण शाखाओं, विदेश मंत्रालय और विदेश व्यापार के महानिदेशक को प्रतिनिधियों के रूप में शामिल किया गया. इस समिति का काम संवेदनशील साजोसामान के निर्यात के बारे में फैसला करने से लेकर रक्षा निर्यातों को बढ़ावा देने के उपायों या रणनीतियों के बारे में फैसले करना तक है.

भारत के रक्षा उत्पादों में भरोसा पैदा करने के लिए रक्षा उद्योग के सरकारी, निजी तथा संयुक्त क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने मित्र देशों के साथ बैठकें की. भारतीय दूतावासों ने भी रक्षा निर्यातों को को बढ़ावा देने के लिए सक्रियता दिखाई. विदेश मंत्रालय ने रक्षा उत्पादों के आयात के लिए विकासशील देशों को ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ भी उपलब्ध कराई. रक्षा आयातों के मामले में जो ‘ऑफसेट पॉलिसी’ थी उसकी समीक्षा की गई और उसे भारत में हथियारों और वेपन्स सिस्टम से जोड़ा गया. सरकार ने स्पष्ट ‘ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस’ (ओजेल) तय करके एक नीति भी घोषित कर दी.

रक्षा सामग्री अधिग्रहण प्रक्रिया को 2020 में बेहतर और औपचारिक रूप दिया गया, जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ पर ज़ोर दिया गया. सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत, आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यातों को बढ़ावा देना केंद्रीय नीतिगत लक्ष्य बन गया. 2020 के बाद से, रक्षा हथियारों और साजोसामान की कुल 411 चीजों के सकारात्मक देसीकरण की चार सूचियों को लागू किया गया है. रक्षा संबंदी पूंजीगत उगाही बजट के 75 फीसदी (करीब 1 लाख करोड़ रु. मूल्य के) हिस्से को वित्त वर्ष 2023-24 में घरेलू उद्योग के लिए अलग रख दिया गया है. यानी इसमें 2022-23 में 68 फीसदी की वृद्धि हुई है.

रक्षा एक्स्पो, एयरो इंडिया शो और सम्मेलनों/गोष्ठियों पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है, जिसका मकसद भारत के रक्षा उद्योग के आधार को जगजाहिर करना और निर्यातों को बढ़ावा देना है.

पूर्व ऑर्डिनेंस फ़ैक्टरी बोर्ड को सात नए रक्षा पीएसयू (डीपीएसयू) कॉर्पोरेट इकाइयों में बदल दिया गया है, और डीपीएसयू का आधुनिकीकरण करने की कोशिश निरंतर जारी है.


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निर्यात के लाभ

रक्षा निर्यातों को बढ़ावा देने की सरकारी नीति की लाभ मिलने भी भोपाल में अभी 1 अप्रैल को हुए कंबाइंड कमांडर कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री, दोनों ने ‘मेक इन इंडिया’ की उपलब्धियों और रक्षा निर्यातों में ऊंची छलांग को रेखांकित किया.

सरकार ने 1 अप्रैल को बताया कि भारत अब ‘डोर्नियर-228, 155 मिमी की एड्वांस्ड टॉड आर्टिलरी गन (एटीएजी), ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल सिस्टम, रडार, सिमुलेटर, माइन प्रोटेक्टेड वाहन, बख्तरबंद वाहन, पिनाक रॉकेट व लॉन्चर, गोला-बारूद, थर्मल इमेजर, कवच, जैसी बड़े प्लेटफॉर्म के अलावा सिस्टम्स, लाइन रिप्लेसेबल यूनिट, और एवीऑनिक्स तथा छोटे हथियार निर्यात कर रहा है.

अभी कसर बाकी है

भारत का अंतिम लक्ष्य रक्षा उत्पादन का केंद्र बनना और 10-15 अरब डॉलर मूल्य के रक्षा निर्यात करने वाले 10 शीर्ष देशों में शामिल होना चाहिए. लेकिन ‘सिपरी’ के मुताबिक विडंबना यह है कि भारत 2018-22 के बीच दुनिया में सबसे बड़ा रक्षा आयातक देश रहा, जबकि इसी अवधि में इसके आयातों में 11 फीसदी की कमी आई. ‘सिपरी’ की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक हथियारों के बाजार में भारत की हिस्सेदारी 0.2 फीसदी के बराबर होने के बावजूद वह ताजा रिपोर्ट में, जिसमें 2018-22 की अवधि को समेटा गया है, भारत टॉप 21 देशों की लिस्ट में शामिल नहीं है.

निर्यातों में निजी क्षेत्र का योगदान मात्र 21 फीसदी है. निर्यात में 79 फीसदी योगदान रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों, पूर्व ऑर्डिनेंस फ़ैक्टरी बोर्ड और दूसरे पीएसयू और संयुक्त उपक्रमों का है.

रक्षा निर्यातों को बढ़ावा देने के लिए भारत को माध्यम तथा उच्च स्तर की मिलिटरी टेक्नोलॉजी वेपंस और इन साजोसामान पर ज़ोर देना पड़ेगा— पिनाका मल्टी बैनर रॉकेट लांचर, एड्वांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर, नेवल क्राफ्ट/शिप्स, तेजस फाइटर विमान, आकाश एअर डिफेंस सिस्टम, एस्ट्रा एअर-टु-एअर मिसाइल, रडार, आर्टिलरी गन. लेकिन इस क्षेत्र में हमारे निर्यात अभी सीमित हैं और प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हैं. हमारा बाजार कमजोर भुगतान क्षमता वाले देशों तक ही सीमित है जिन्हें हमारे क्रेडिट लाइन पर निर्भर रहना पड़ता है. यह स्थिति तब तक नहीं बदल सकती जब तक हमारे हथियार/साजोसामान गुणवत्ता के लिहाज से ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी नहीं बन जाते.

‘मेक इन इंडिया’ अभी प्रारंभिक अवस्था में है और जब तक सरकार घरेलू ऑर्डर्स, शोध और विकास में पैसा लगाकर मदद नहीं करती तब तक निजी क्षेत्र बड़ी भूमिका नहीं निभा पाएगा. इस बीच, हम निचले स्तर की टेक्नोलॉजी वाले हथियार/साजोसामान और गैर-घातक मिलिटरी साजोसामान के निर्यात पर ज़ोर दे सकते हैं. सभी विकासशील देशों की अपनी सेना और पुलिस है. अफ्रीका और मध्य-पूर्व के गरीब देश मैन्युफैक्चरिंग आधार के अभाव में पश्चिमी देशों, चीन, रूस से उन दरों पर रक्षा आयात करते हैं जो उनके बस में नहीं हैं. हमें छोटे हथियारों और गैर-घातक मिलिटरी साजोसामान के बाजारों पर ध्यान देना चाहिए, जो 5 अरब डॉलर के हमारे लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकते हैं.

हमारे वेपन सिस्टम का स्तर तब तक नहीं सुधरेगा जब तक हमारा निर्यात प्रतिस्पर्द्धी नहीं होगा. 2008 में हमने इक्वाडोर को जो आठ आधुनिक लाइट हेलिकॉप्टर बेचे थे उनमें से सात कुछ ही वर्षों के अंदर तेज प्रतिस्पर्धा में गिर गए, पहला तो इक्वाडोर की राष्ट्रीय दिवस परेड के दौरान ही गिर गया.

हमारे यहां अनुसंधान व विकास में फिलहाल अपर्याप्त निवेश किया जा रहा है. हमें ‘क्रिर्टिकल एंड इमरजिंग टेक्नोलॉजी को लेकर अमेरिका-भारत पहल (आईसीईटी) का भरपूर लाभ उठाना चाहिए और अपने रणनीतिक टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप तथा रक्षा उद्योग सहयोग का निजी तथा सरकारी क्षेत्र के लिए विस्तार करना चाहिए.

सार यह है कि सरकार रक्षा निर्यातों में ऊंची छ्लांग लगाने के लिए बधाई की हकदार है. लेकिन उसके दावों में अभी भी नारेबाजी ज्यादा और ठोस तत्व कम दिखता है. वह सही पटरी पर तो है मगर अभी रास्ता बहुत लंबा है.

(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटा.) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड थे. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्यूनल के सदस्य थे. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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