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Thursday, 25 April, 2024
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भारत की आधी से ज्यादा आबादी को क्या नाम दें- पिछड़ी जाति, नीच जाति, ओबीसी, या शोषित जाति

शूद्र शब्द का वेद, मनुस्मृति और रामचरितमानस में निम्न श्रेणी के लिए उपयोग किया गया है इसलिए यह अपमानजनक भी है. बोलचाल में भी शूद्र या नीच को गाली या अपमानजनक शब्द के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है.

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समाचार वेबसाइट द न्यूज मिनट की हाल की एक रिपोर्ट में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को शूद्र और फिर नीचे धकेल दी गई (Lowered Caste, शोषित जाति) का बताकर संबोधित किया गया. ये दोनों मुख्यमंत्री केरल के प्रसिद्ध जाति विरोधी आंदोलन की सालगिरह के मौके पर मौजूद थे.

ये दोनों नेता ओबीसी वर्ग से आते हैं और इन्हें शूद्र और फिर नीचे कर दी गई जाति का बताए जाने का कई लोगों ने विरोध किया. विरोध के पीछे प्रमुख तर्क ये था कि ये संबोधन अपमानजनक हैं, खासकर तब जबकि इनका इस्तेमाल मुख्यमंत्रियों के लिए किया गया हो.

ओबीसी वर्ग के लिए ऐसे संबोधन संविधान या कानून की किताबों में नहीं हैं. लेकिन भाषा कानून की किताबों के बाहर लोक यानी जनमानस में भी होती है. अगर संदर्भों में देखें तो ये संबोधन आपत्तिजनक भी नहीं है. भाषा में ये बात महत्वपूर्ण होती है कि उसे कब, कहां और किसने किससे तथा किस तेवर में कहा है. इस मामले में जातिवाद विरोधी सम्मेलन में भाग लेने वाले दोनों नेताओं को उस आंदोलन से जोड़ा गया था. मुझे नहीं लगता कि वेबसाइट का मकसद इन नेताओं को अपमानित करना रहा होगा.

मिसाल के तौर पर, डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने 1946 की अपनी किताब “शूद्र कौन थे” को ज्योतिबा फुले को समर्पित करते हुए उन्हें “आधुनिक भारत का महानतम शूद्र” कहा. यहां शूद्र सम्मान के अर्थ में हैं. वे इसी पुस्तक-समर्पण में फुले के बारे में लिखते हैं कि – उन्होंने हिंदुओं की निचली जातियों को ये एहसास दिलाया कि वे ऊंची जातियों के गुलाम हैं और ये उन्हें ये शिक्षा दी कि विदेशी शासन से मुक्ति से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है सामाजिक लोकतंत्र.”

जबकि यही शूद्र शब्द वेद, गीता, मनुस्मृति और रामचरितमानस में निम्न श्रेणी के लिए प्रयुक्त हुआ है और इस नाते अपमानजनक भी है. बोलचाल में भी शूद्र या नीच को गाली या अपमानजनक शब्द के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है.

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ओबीसी को संबोधित करने के लिए उचित शब्द क्या है?

भारत में वर्ण और जाति का विभाजन पुराना है, हालांकि ये कितना पुराना है और ये कैसे अस्तित्व में आया ये एक और बहस है, और इसे यहां रहने देते हैं. जाति की मोटे तौर पर ये सर्वमान्य परिभाषा ये हो सकती है, कि ये समाज के विभाजन की एक ऐसी व्यवस्था है, जो जन्म आधारित है, जो स्थिर है, जिसमें जाति के अंदर शादी होती है, जिसमें ऊँच और नीच है, जिसमें श्रमिकों का विभाजन है तथा जिसे धर्म ग्रंथों की मान्यता है. इसमें से सभी तत्व पूर्ण मात्रा में हर दौर में पाए जाएं ये जरूरी नहीं है. यहां ये ध्यान रखना जरूरी है कि ओबीसी कोई जाति नहीं है. बल्कि जातियों का समूह है.

दरअसल संविधान सभा में इस बात पर तो प्रारंभ में ही सहमति बन गई कि पूर्ववर्ती अस्पृश्य यानी अनुसूचित जाति और आदिवासी यानी जनजाति को आरक्षण समेत विशेष संरक्षण देना है. लेकिन इसके अलावा जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं, उनकी कैसे पहचान हो और उनका संरक्षण कैसे हो ये काम अनुच्छेद 340 के तहत पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंप दिया गया. दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग यानी मंडल आयोग ने ये काम किया और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी नाम निर्धारित किया गया, तथा इनके विकास के लिए आरक्षण समेत कई सिफारिशें कीं. राज्यों में इन वर्गों को पिछड़ा वर्ग या बैकवर्ड कास्ट कहा जाता है. मंडल कमीशन ने इन वर्गों की आबादी देश में 52 प्रतिशत मानी.

वर्तमान कानूनी स्थिति ये है कि जो भी व्यक्ति एससी और एसटी नहीं है और जिन जातियों का ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट नहीं बन सकता, वे ओबीसी कैटेगरी में आते हैं. अब सरकारी कागज, संसदीय प्रपत्र, अदालतों में सब जगह ओबीसी नाम ही चलता है और यही शब्द इन वर्गों के लिए मेरी पहली पसंद है.

लेकिन शूद्र शब्द के बारे में जैसा हमने पहले बाबा साहब और ज्योतिबा फुले के मामले में देखा, कि अगर संदर्भ उचित हो तो ये अपमानजनक शब्द नहीं है. कांचा इलैया को ये शब्द पसंद है और इस नाम से उन्होंने एक किताब भी संपादित की है. ज्योतिबा फुले भी शूद्र शब्द का इस्तेमाल, किसान, पशुपालक, कारीगर और अन्य उत्पादक जातियों के लिए करते हैं. न्यूज मिनट के कार्यकारी संपादक सुदीप्तो मोंडल का तर्क है इस शब्द का विरोध वही करते हैं जो जाति व्यवस्था की सच्चाई को झुठलाते हैं.

हालांकि तमिलनाडु समेत कई समाजों में शूद्र शब्द को पसंद नहीं किया जाता. तमिलनाडु में फिल्म कथा लेखक, प्रमुख द्रविड़ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने பிற்படுத்தப்பட்டோர் शब्द का प्रयोग इन जातियों के लिए किया, जिसका मतलब है कि वे नीचे नहीं है, बल्कि उन्हें नीचे किया गया है. यानी ये किसी की कोशिशों और साजिशों की वजह से नीचे हैं. इनका पिछड़ापन उनकी अपनी करनी से नहीं हुआ है.

इस मायने में Lowered Caste या शोषित जाति का प्रयोग सही है, क्योंकि इसमें भी ये ध्वनि है कि इन जातियों को पिछड़ा बनाया गया है. Lower यानी नीच जाति के मुकाबले तो ये निस्संदेह सही शब्द है. इसके पीछे मैं कई कारण देखता हूं.

किसी समाज व्यवस्था को समझने या उसकी बारीकियों को जानने के लिए भाषा एक महत्वपूर्ण उपकरण है. नीच जाति या शूद्र बोलने से ऐसा लगता है कि ये जातियां सिस्टम में नीचे हैं, लेकिन ये नहीं पता चलता है कि वे नीच या शूद्र क्यों हैं. कोई इसे ईश्वरीय या प्राकृतिक या नस्लीय व्याख्या के जरिए समझ सकता है. लेकिन Lowered Caste या शोषित जाति से साफ पता चलता है कि उनकी ये दशा अपने आप नहीं हुई है, किसी ने उनके साथ ये किया है, कोई तो जिम्मेदार है. इस तरह ये शब्द शोषक जमात की जिम्मेदारी निर्धारित करता है. साथ ही इससे नजरें वंचितों पर नहीं, शोषकों पर जाती है. ये शब्द व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है और उसे चुनौती देता है. ये जाति व्यवस्था को स्वाभाविक या प्राकृतिक नहीं मानता और इसे बदलने की संभावना जताता है.

इसके अलावा, Lowered Caste या शोषित जाति बोलने से जाति व्यवस्था की ऐतिहासिकता का भी पता चलता है और इसमें मानवीय तत्वों की भूमिका निर्धारित होती है. जबकि शूद्र शब्द की जड़ें तलाशता हुआ कोई आदमी वैदिक और पौराणिक जटिलताओं में फंस सकता है और धार्मिक मीमांसा के चक्कर में जाति की भयावहता पीछे चली जा सकती है.

इस तरह स्पष्ट है कि जाति को शब्द जाल में उलझाने से बेहतर है कि उस शब्द का इस्तेमाल किया जाए, जिसमें जाति से लड़ने में जाति के उन्मूलन में सहकारी बनने की संभावना हो.

इस मामले में न्यूज मिनट के कार्यकारी संपादक सुदीप्तो मोंडल का ये कहना बेहद महत्वपूर्ण है कि हमारी भाषा लगातार बन और विकसित हो रही है और जो भी लोग जाति, लिंग, धर्म, यौनिकता आदि विचारधाराओं के शिकार है, उनके अरमानों को पूरा करने के लिए तैयार हो रही है.

(दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व प्रबंध संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Profdilipmandal है.  यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)


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