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Wednesday, 8 May, 2024
होममत-विमतगोदी मीडिया, भाजपा और मोदी सरकार नागरिकों की हर राय को राजनीतिक तराज़ू पर तौलना चाहती है

गोदी मीडिया, भाजपा और मोदी सरकार नागरिकों की हर राय को राजनीतिक तराज़ू पर तौलना चाहती है

दुनिया भर के राजनीतिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि किसी भी सफल लोकतंत्र में नागरिक समाज और नागरिक अधिकारों का मजबूत होना सबसे ज्यादा जरूरी है.

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मोदी सरकार द्वारा लाये गए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) उस कहावत को चरितार्थ कर रहा है- ‘कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना.’ सीएए के नाम पर सरकार एक वोट बैंक तैयार कर रही है तथा संदेश देना के साथ उस वोट बैंक को मजबूती देना चाहती है जो भारत का बहुसंख्यक समाज है.

हिन्दू धर्म को मानने वाले, इस कानून में हिंदू-सिख-बौद्ध-जैन-पारसी-ईसाई को शामिल तो किया गया है लेकिन उसमें मुस्लिम को जिस प्रकार से छोड़ा गया है वह संदेश है बीजेपी की वोट बैंक की राजनीति की जिसे वो 1985 के बाद 35 सालों से मतदाताओं के बीच में खुलकर कर रही है. मंदिर मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद की राजनीति में अब बीजेपी हिंदू-मुस्लिम करने का एक नया मॉडल अगले 15-20 सालों के लिए तैयार करना चाहती है. मोदी सरकार का उद्देश्य नागरिकता देने के नाम पर एक बड़े हिन्दू मतदाता को प्रभावित करने का प्रयास करना है.

भारतीयो को संविधान से मिली नागरिकता और नागरिक अधिकारों को गोदी मीडिया, बीजेपी और मोदी सरकार मात्र मतदाता में तब्दील कर देना चाहती है और नागरिकों की हर राय और मत को राजनीतिक तराजू पर तौलने की कोशिश कर रही है. दीपिका पादुकोण का जेएनयू हिंसा के खिलाफ चल रहे विरोध अन्दोलन के पक्ष में खड़े होने को इसी संदर्भ में समझने का प्रयास कर सकते हैं कि एक नागरिक होने के नाते दीपिका पादुकोण को पूरा मौलिक अधिकार है कि किस विषय पर किस समय क्या राय व्यक्त करें और किस प्रकार से राय व्यक्त करें.

नागरिकता संशोधन अधिनियम के माध्यम से एक नई बहस भारत की राजनीति में शुरुआत हो रही है जिसके केंद्र में नागरिकता, नागरिक, नागरिक अधिकार, नागरिक समाज या सिविल सोसायटी जैसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक मूल्य और सिद्धांत हैं. देशभर के विरोध प्रदर्शनों में संविधान पुस्तिका की बात की जा रही है. संविधान की प्रस्तावना को पढ़ा जा रहा है. वंदे मातरम और राष्ट्रगान को गाया जा रहा है. यह सारे प्रतीक आज जेएनयू हिंसा के विरोध में और सीएए के विरोध प्रदर्शनों में प्रतीक के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं.


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केंद्र सरकार उन रिफ्यूजीस को नागरिकता देने जा रही है जो भारत में गैरकानूनी और प्रताड़ित अल्पसंख्यक के तौर पर पड़ोसी देशों से भारत आए हुए हैं लेकिन मुस्लिमों के साथ भेदभाव करते हुए. नागरिकता अपने आप में बहुत बड़ा लोकतांत्रिक सिद्धांत और मूल्य है जिसके लिए पूरी दुनिया में इंसानों ने एक देश या राज्य का नागरिक होने के लिए लड़ाइयां लड़ी हैं.

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किसी भी देश के इंसान को नागरिकता मिलने के बाद संविधान के द्वारा बहुत सारे अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते हैं जिसके द्वारा वह अपने जिंदगी के प्रत्येक क्षण पल को आजादी से व्यतीत कर सकता है. एक इंसान को नागरिकता के लिए अमेरिका मे ब्लैक्स तथा एशिया अफ्रीका लैटिन अमेरिका इन सभी देशों में आंदोलन तथा लंबे संघर्ष करने पड़े, उपनिवेशवादी शक्तियों से एशिया अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के गुलाम देशों के लोगों ने अपनी आजादी की लड़ाई लड़कर अपना संविधान और नागरिक होने का दर्जा प्राप्त किया.

देशभर में चल रहे आंदोलनों में भारत के नागरिक अपने नागरिक अधिकारों का प्रयोग करके सरकार के द्वारा पास किए गए कानून का विरोध कर रहे हैं. यह विरोध उनका मतदाता होने के नाते नहीं है. अपनी चुनी हुई सरकार के खिलाफ, एक नागरिक होने की हैसियत के कारण विरोध हो रहा है और एक नागरिक अपनी ही चुनी हुई सरकार के खिलाफ विरोध करने के लिए किसी भी समय भारत के संविधान के अनुसार पूरी तरह से आजाद है. केंद्र सरकार इस समय इसी संवैधानिक आजादी पर हमला कर रही है.

सीएए और जेएनयू हिंसा के खिलाफ चल रहे विरोध को देखें तो हम पाएंगे कि इसमें नागरिक समाज या सिविल सोसायटी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. चाहे हम पिछले 26 दिनों से शाहीन बाग मे चल रहे आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी एक जीता जागता उदाहरण है जिसमें किसी भी राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन के द्वारा सुनियोजित या योजनाबद्ध तरीके से विरोध का फैसला नही किया जा रहा है. यह विरोध एक नागरिक समाज या सिविल सोसायटी के द्वारा ही किया जा रहा है.

सीएए पर देशभर में हुए आंदोलन भारत के नागरिक समाज के मजबूत होने का संकेत भी देता है. दुनिया भर के राजनीतिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि किसी भी सफल लोकतंत्र में नागरिक समाज और नागरिक अधिकारों का मजबूत होना सबसे ज्यादा जरूरी है.

आज केंद्र सरकार और भारत का गोदी मीडिया इस विरोध को एक मतदाता के विरोध के तौर पर देख रहा है, इसीलिए देश के प्रधानमंत्री और देश के गृह मंत्री तथा बीजेपी के प्रमुख लीडर्स के द्वारा इस विरोध को जिस प्रकार से प्रदर्शित किया जा रहा है तथा वह इन विरोध में शामिल होने वाले समूहों को नागरिक समाज और नागरिक मानने से साफ तौर पर इंकार कर रहा है वहीं विरोधियों के साथ वोटर के तौर पर व्यवहार कर रहा है जो भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे ज्यादा घातक साबित हो सकता है. आम नागरिकों के विरोध को मात्र राजनीतिक रंग देना या किसी धार्मिक रंग में उनको डाल देना नागरिक समाज के विचार की हत्या करने के समान हो सकता है.

सरकार इस समय नागरिकों के दो मौलिक अधिकारों पर सबसे ज्यादा हमला कर रही है. समानता का अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार. मूल अधिकारों का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा समाज के सभी सदस्यों की समानता पर आधारित लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा करना है.


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सीएए के माध्यम से सरकार अनुच्छेद 15 (केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव) पर रोक लगाता है उसी पर हमला कर रही है.

संविधान के निर्माताओं द्वारा महत्वपूर्ण माने गए व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी देने की दृष्टि से स्वतंत्रता के अधिकार को अनुच्छेद 19-22 में शामिल किया गया है. अनुच्छेद 19 नागरिक समाज में नागरिकों को सशक्त और मजबूती प्रदान करने वाला अनुच्छेद रहा है. नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करता है और अनुच्छेद 19 का प्रयोग करके ही आज सारे विरोध प्रदर्शन नागरिकों और नागरिक समाज के द्वारा किए जा रहे हैं.

आज अनुच्छेद 19 की व्याख्या या उसकी चर्चा करने का समय भी आ गया है, देश के नागरिकों को यह बताने की आवश्यकता भी है कि उनको संविधान से किस प्रकार के मौलिक अधिकार अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, अपनी समानता के लिए, अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए, हमारे संविधान निर्माताओं के द्वारा और संविधान के द्वारा दिए गए हैं.

अनुच्छेद 19 नागरिक अधिकारों के रूप में छह प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है जो केवल भारतीय नागरिकों को ही उपलब्ध हैं. इनमें शामिल हैं- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,  शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता, भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता, भारत के किसी भी भाग में बसने की आजादी, निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता.

केंद्र सरकार सीएए और जेएनयू हिंसा के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों को कुचलने या दबाने का प्रयास कर रही है वह सीधा-सीधा अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता अधिकार के ऊपर हमला या कमजोर करने की साजिश के रूप में हम देख सकते हैं. वर्तमान केंद्र सरकार इन विरोध प्रदर्शन को मात्र मोदी सरकार के विरोध प्रदर्शन के तौर पर यदि चिन्हित करना चाहती है तो यह नागरिक समाज या सिविल सोसाइटी के द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों को बहुत ही छोटा करने का एक निंदनीय प्रयास है.


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बीजेपी और मोदी सरकार को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इसी प्रकार का विरोध प्रदर्शन देशभर में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ भी सिविल सोसायटी, छात्रों और शिक्षकों द्वारा यूनिवर्सिटी परिसरों मे चलाए गए थे. गौरतलब है कि वर्तमान केंद्र और राज्य सरकार में उसी से उपजे हुए नेता देश और सरकारों को चला रहे हैं .

(डॉ संजय कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज इवनिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

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