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Wednesday, 24 April, 2024
होममत-विमतनैतिक रूप से भी केजरीवाल खुद को निर्दोष नहीं कह सकते, उनकी आबकारी नीति ने शराब के सेवन को बढ़ावा दिया

नैतिक रूप से भी केजरीवाल खुद को निर्दोष नहीं कह सकते, उनकी आबकारी नीति ने शराब के सेवन को बढ़ावा दिया

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार वाली आबकारी नीति बनाकर संविधान के नीति निदेशक तत्त्वों का का अपमान किया है.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली सरकार की शराब नीति से संबंधित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया था. इसके बाद, सीएम को दिल्ली हाई कोर्ट सहित किसी भी न्यायिक कार्यालय से राहत नहीं मिली और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जिन कारणों से अपना आवेदन वापस लेने का फैसला किया, वह उन्हें ही पता है.

हालांकि, कांग्रेस पहले भी केजरीवाल के कथित भ्रष्टाचार की आलोचना करती रही है, लेकिन अब पार्टी ने उनकी गिरफ्तारी को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए उनका समर्थन करने का फैसला किया है. चूंकि, लोकसभा चुनाव नज़दीक हैं, केजरीवाल एक महत्वपूर्ण नेता हैं और उनकी पार्टी दो महत्वपूर्ण राज्यों में सत्ता में है, इसलिए उनकी गिरफ्तारी विशेष राजनीतिक महत्व रखती है. कुछ लोग उनकी गिरफ्तारी को अनुचित मान सकते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि इसका असर वर्तमान केंद्र सरकार पर पड़ सकता है. केजरीवाल लोगों की सहानुभूति तो बटोर सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी गिरफ्तारी वैध है?

दूसरा, यह कौन सी शराब नीति है जिसके कारण केजरीवाल और उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया दोनों को जेल जाना पड़ा?

तीसरा, आबकारी नीति और उसको लागू करने को लेकर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप क्या हैं? चौथा, केजरीवाल को अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं के भारी विरोध के बावजूद आम जनता से कोई सहानुभूति क्यों नहीं मिल रही है?

यह लेख दिल्ली की आबकारी नीति 2021-2022 और उसके उन बिंदुओं पर रोशनी डालनी की कोशिश करता है जिन पर आपत्ति दर्ज की जा रही है. सबसे पहले, यह बताना दिलचस्प होगा कि इस पॉलिसी को न्यायपालिका या किसी केंद्रीय एजेंसी द्वारा नहीं बल्कि केजरीवाल सरकार द्वारा अपने अस्तित्व के एक वर्ष के भीतर वापस ले लिया गया था. तब से, इस पॉलिसी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाए जाते रहे हैं.

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क्या है एक्साइज पॉलिसी?

एक्साइज पॉलिसी आने से पहले, दिल्ली में सरकार द्वारा संचालित और प्राइवेट दोनों तरह की दुकानों के जरिए शराब बेची जाती थी. बेची गई शराब पर उत्पाद शुल्क और मूल्य वर्धित कर (वैट) लिया जाता था. गौरतलब है कि शराब पर उत्पाद शुल्क और वैट राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है और दिल्ली में केजरीवाल की सरकार थी.

इस नीति के तहत, दिल्ली के क्षेत्रों को 32 क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया था, जिनमें से प्रत्येक में आठ से 10 वॉर्ड शामिल थे, प्रत्येक वॉर्ड में लगभग 27 आउटलेट (ठेके) अपेक्षित थे. इसका मतलब है कि प्रत्येक नगर निगम वार्ड में दो से तीन शराब विक्रेताओं का प्रावधान था. नई आबकारी नीति के तहत शहर के 32 क्षेत्रों में समान रूप से वितरित 849 बड़ी और वातानुकूलित शराब की दुकानों को खोला जाना था.

नीति को बनाने का एक महत्वपूर्ण तर्क यह था कि लाइन में लगकर शराब लेने के बजाय इस तरह की बड़ी और वातानुकूलित दुकानों में शराब खरीदना आसान होगा और ग्राहकों का अनुभव काफी अच्छा रहेगा.

आबकारी नीति में 32 जोन के लाइसेंसों की नीलामी से कुल लगभग 10,000 करोड़ रुपये के राजस्व की उम्मीद थी. यह पिछले तीन साल के 5,500 करोड़ रुपये के औसत राजस्व का लगभग दोगुना था. एक्साइज पॉलिसी से पहले दिल्ली में औसतन 12 से 13 लाख बोतल शराब बिकती थी. जब नई नीति लागू की गई, तो उत्पाद शुल्क और वैट को घटाकर 1 प्रतिशत कर दिया गया और लाइसेंसों की नीलामी की गई. दिल्ली सरकार ने शराब की खुदरा बिक्री के व्यवसाय से बाहर निकलने का फैसला किया, जिससे लाइसेंस प्राप्त विक्रेताओं को अधिकतम लाभ के लिए कितनी भी संख्या में बोतलें बेचने की अनुमति मिल गई. परिणामस्वरूप, लाइसेंस प्राप्त कंपनियों ने 50 प्रतिशत तक की भारी छूट देना शुरू कर दिया और यहां तक कि एक खरीदो-एक मुफ्त पाओ योजनाओं के साथ ‘‘बिक्री’’ भी की. मॉल में और अधिक दुकानें खुलने से शराब की बिक्री तेज़ी से बढ़ने लगी.


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थोक विक्रेताओं को विवादास्पद लाइसेंस, कमीशन

नई शराब नीति में थोक विक्रेताओं को 5 प्रतिशत की पुरानी दर के बजाय 12 प्रतिशत कमीशन की अनुमति दी गई, जिससे खुदरा विक्रेताओं का मुनाफा कम हो गया, जिसने खुदरा विक्रेताओं को अपने लाइसेंस सरेंडर करने, अपना व्यवसाय बंद करने और सरकार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अपील करने के लिए मजबूर किया. शायद, थोक विक्रेताओं के लिए बढ़े हुए कमीशन के कारण यह नीति विफल हो गई, जिसके परिणामस्वरूप अंततः सिसोदिया और केजरीवाल को जेल जाना पड़ा.

आलोचकों का आरोप है कि शराब के पूरे बाजार पर एकाधिकार स्थापित करने के एकमात्र इरादे से नई आबकारी नीति का मसौदा तैयार और लागू किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि इसे कुछ चुनिंदा थोक विक्रेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था, क्योंकि थोक विक्रेता के लाइसेंस के लिए बोली लगाने की पात्रता शर्तों में से एक यह था कि पिछले तीन साल के दौरान न्यूनतम 150 करोड़ रुपये की वार्षिक शराब बिक्री हुई हो. ऐसा करने की वजह से छोटे खिलाड़ी जिनके पास पहले लाइसेंस था, वे बोली प्रक्रिया में भाग नहीं ले पाए. नई नीति ने मुट्ठी भर थोक विक्रेताओं को, जो ‘‘पर्नोड रिकॉर्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’’ और ‘‘डियाजियो इंडिया’’ ब्रांडों की पेशकश कर रहे थे, के हाथ में खुदरा बिक्रेताओं की आपूर्ति और दी जाने वाली छूट पर कंट्रोल दे दिया. इसके अतिरिक्त, 12 प्रतिशत के उच्च निश्चित लाभ मार्जिन ने थोक विक्रेताओं के हितों की रक्षा की लेकिन खुदरा विक्रेताओं को इससे वंचित रखा.

थोक विक्रेताओं को मिलने वाला इस अतार्किक और आश्चर्यजनक मार्जिन इस एक्साइज़ पॉलिसी की सबसे बड़ी खामी बन गई और केजरीवाल और इससे केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी (आप) को एक बड़ा राजनीतिक झटका लगा.

सरकार को भी इसकी वजह से भारी राजस्व हानि हुई और अंततः यह पॉलिसी वापस ले ली गई, जिसकी वजह से इस नीति की काफी आलोचना हुई.

उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा विवादास्पद नीति की जांच का आदेश देने के बाद, ऐसा पाया गया कि थोक विक्रेताओं ने फैसले लेने वालों यानी की आम आदमी पार्टी को अपने मुनाफे की ‘‘वापसी’’ की. ईडी की जांच के मुताबिक, आम आदमी पार्टी को करीब 100 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. यही वो बिंदु है जिस पर ईडी का मामला आधारित है और जिसकी वजह से दिल्ली के डिप्टी सीएम और बाद में केजरीवाल की हिरासत मांगी गई है.

नैतिक प्रश्न

भ्रष्टाचार को लेकर जांच एजेंसियां पहले से ही मामले की जांच कर रही हैं. हालांकि, यह नैतिकता से जुड़े प्रश्नों पर भी केजरीवाल शायद खुद को दोषमुक्त न सिद्ध कर पाएं. उनके गुरु, गांधीवादी नेता अन्ना हज़ारे पहले ही उनकी आबकारी नीति की आलोचना कर चुके हैं और उनकी गिरफ्तारी को उचित ठहरा चुके हैं. उनकी शिकायत है कि उनके शिष्य के रूप में केजरीवाल ने शराब के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, लेकिन अब उन्हें शराब नीति लागू करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है, जो हज़ारे के मुताबिक उचित है.

नशीले पेय पदार्थों का निषेध हमारे संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में से एक है. कुछ राज्यों ने तो पूर्ण प्रतिबंध भी लगा दिया है, जिनमें गुजरात और बिहार भी शामिल हैं. सीएम नीतीश कुमार ने बिहार में अच्छी ख्याति अर्जित की है क्योंकि इस कदम से परिवारों, विशेषकर महिलाओं को शराब के अभिशाप से मुक्ति मिली है.

यहां तक कि दूसरे राज्यों में भी शराब पर ऊंची एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है और इसका मकसद कभी भी बड़ा राजस्व पैदा करना नहीं होता. इसके बजाय, इसका उद्देश्य शराब की खपत को हतोत्साहित करना है. दिल्ली सरकार की ‘‘शराब माफिया को खत्म करने और नई दुकानों पर जाकर उपभोक्ताओं के अनुभव को बेहतर बनाने’’ की नीति से पहले, हमने शायद ही कभी ऐसी पहल देखी हो. कुछ खास दिनों में शराब की खपत को हतोत्साहित करने के लिए कई ‘‘ड्राई डेज़’’ की भी घोषणा की जाती है.

हालांकि, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की परवाह न करते हुए, केजरीवाल ने एक शराब नीति की घोषणा की, जिसने न केवल शराब की खरीद की सुविधा दी, बल्कि शराब की दुकानों के खुले रहने के समय को सुबह 3 बजे तक बढ़ा दिया और कई मामलों में होम डिलीवरी सेवाएं भी शुरू कीं. इसके अलावा, भारी छूट की पेशकश की गई और ‘‘एक खरीदो-एक मुफ्त पाओ’’ जैसी योजनाओं ने खपत को और प्रोत्साहित किया.

इस कृत्य से न केवल केजरीवाल के गुरु और मार्गदर्शक हजारे को ठेस पहुंची है, बल्कि यह नीति-निदेशक सिद्धांतों के भी खिलाफ गया है. इसने शराब की खपत को भी बढ़ावा दिया है, जिससे गरीब महिलाओं का जीवन कठिन हो गया, जिनके हिस्से का खाना शराब कंपनियां खा जाती थीं. इससे भी ज्यादा दुर्भाग्य की बात यह है कि यह आधुनिकीकरण और सरकारी राजस्व बढ़ाने के नाम पर किया गया है, जो अंततः भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है.

(अश्वनी महाजन दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज में प्रोफेसर हैं. उनका एक्स हैंडल @ashvani_mahajan है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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