आजादी के पश्चात्, भारत सरकार के समक्ष शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती थी कि किस प्रकार स्कूल जाने वाले छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और मूलभूत सेवाएं दी जाए. इस चुनौती की समाधान के लिए सरकार ने 1968 और 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कुशल नेतृत्व में संविधान संशोधन के माध्यम से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बनाया गया और एन डी ए सरकार द्वारा सर्व शिक्षा अभियान का संचालन भी किया गया.
हालांकि, जैसे ही भारत 21वीं सदी में प्रवेश कर रहा है, निस्संदेह उसे आधुनिक दुनिया की जरूरतों में शिक्षा और रोज़गार को बढ़ावा देने वाली एक सकारात्मक और समग्रनीति की आवश्यकता है. शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण बदलाव हमारी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के 2014 के घोषणापत्र का भी महत्वपूर्ण हिस्सा थी. जनता द्वारा 2014 में ऐतिहासिक बहुमत मिलने के पश्चात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने के लिए एक परामर्श प्रक्रिया शुरू की जो लगभग 5 वर्षों तक चली और इसमें शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारक जैसे विद्यालय, शिक्षक, छात्र और गैरसरकारी संस्थाओं के विचारों को भी सुना गया जिसका परिणाम था की 2020 में एक व्यापक और समग्र राष्ट्रीय शिक्षा निति की संरचना की गई जिसका उद्देश्य है भारत को विश्व गुरु बनाना.
NEP 2020 और मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN)
हमारे प्रधानमंत्री के अथक प्रयासों से भारत में 34 वर्षों बाद एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन किया जा रहा है जिसका लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक प्राथमिक शिक्षा में 100% GER (सकल नामांकन अनुपात) और उच्च शिक्षा में 50% GER हासिल किया जाए. इस नीति के माध्यम से शिक्षा में मूलभूत सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए निवेश के प्रावधान भी किये गए हैं जिसके परिणाम स्वरूप भारत सरकार द्वारा सकल घरेलु उत्पाद का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा और छात्रों के विकास में उपयोग किया जायेगा.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मुख्य केंद्र बिंदु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना है, जो भारत जैसे देश में अत्यंत महत्वूर्ण है क्योंकि हम विश्व का सबसे युवा देश हैं और हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों इस देश के बच्चों और युवाओं पर निर्भर है जिन के सशक्तिकरण का एकमात्र साधन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है. 2014 से पहले प्राथमिक शिक्षा से सम्बंधित नीतियों का पूरा ध्यान सिर्फ बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने पर केंद्रित था. हालांकि, इन नीतियों में शिक्षा की गुणवत्ता और कक्षा के भीतर बुनियादी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया.
विश्व बैंक की रिपोर्ट ने, भारत में स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को मिल रही शिक्षा की वास्तविकता उजागर की है और बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल (एफ एल एन) की कमी की ओर भी इशारा किया है.
एफ एल एन का अर्थ है कि बच्चों को वो योग्यता हासिल हो जिसके जरिये छात्र पढ़ने – लिखने, बोलने और व्याख्या करने में सक्षम हो सके. इसके साथ ही दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने के लिए मूलभूत संख्यात्मक विधियों और विश्लेषण का उपयोग करने की क्षमता ग्रहण कर सके. इन कौशलों में आयु-उपयुक्त पाठ को समझने की क्षमता और आयु-उपयुक्त गणित करने की क्षमता शामिल है. इन कमियों की पहचान NEP 2020 द्वारा की गई थी और इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में 5 करोड़ से अधिक बच्चों ने एफ एल एन हासिल नहीं किया है और देश के सभी बच्चों द्वारा एफ एल एन कौशल की प्राप्ति को ‘सर्वोच्च प्राथमिकता’ भी दी गई है.
शुरुआत से ही एफ एल एन के महत्व पर जोर देते हुए इसमें कहा गया है, “हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता 2025 तक प्राथमिक और उसके आगे सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान प्राप्त करने की होनी चाहिए. यदि हम सबसे पहले एक महत्वपूर्ण मूलभूत शिक्षण को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो शेष नीति हमारे छात्रों की एक बड़ी संख्या के लिए मुख्य रूप से अप्रासंगिक हो जाएगी.”
राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा दिये तर्क मान्य है और वर्तमान में शिक्षा प्रणाली में बच्चों को प्रभावी ढंग से ‘सीखकर पढ़ने’ से पहले ‘पढ़कर सीखना’ आना जरूरी है. विभिन्न शोध में यह बात स्थापित की है कि एफ एल एन को आदर्श रूप से कक्षा 3 तक हासिल किया जाना चाहिए क्योंकि प्रारंभिक वर्षों के दौरान यह तार्किक सोच को विकसित करता है. कक्षा 3 तक पढ़ने और लिखने के बुनियादी सिद्धांतों और बुनियादी गणित को समझने में असफल होने के कारण, वे उच्च कक्षा में अधिक कठिन विषयों का सामना करने में असमर्थ हो जाते हैं, जिससे अंततः उन्हें शिक्षा छोड़नी पड़ती है.
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निपुण भारत: एक परिवर्तनकारी हस्तक्षेप
हमारी सरकार ने समावेशी विकास की विचारधारा के अधीन इस गंभीर समस्या को चिन्हित किया और इसका समाधान करने हेतु 5 जुलाई 2021 को निपुण भारत मिशन (नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एंड न्यूमेरेसी) की शुरुआत की. इस मिशन के अंतर्गत सरकार का लक्ष्य है कि 2026-27 तक प्रत्येक बच्चे को तीसरी कक्षा के अंत तक पढ़ने, लिखने एवं अंक गणित को सीखने की क्षमता प्रदान की जाएगी और इसके लिए सरकारी व गैरसरकारी विद्यालयों के छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाएगा. इस मिशन को समग्र शिक्षा अभियान के अधीन संचालित किया गया है और इसके कार्यान्वन हेतु 13,000 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान भी किया गया है.
निपुण भारत मिशन प्राथमिक स्तर पर शिक्षा प्रदान करने के लिए एक अभिन व दृष्टिकोण अपनाता है. यह एफ एल एन कौशल को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मिशन अधिगम के पांच क्षेत्रों पर ध्यान देगा. पहला बच्चों को उनकी स्कूली शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों में पहुंच प्रदान कराना और उनको स्कूलों में बनाए रखना. दूसरा, शिक्षक क्षमता निर्माण, तीसरा, उच्च गुणवत्ता एवं विविधता पूर्ण छात्र एवं शिक्षण संसाधनों/ अधिगम सामग्री का विकास, अधिगम परिणाम उपलब्धि में प्रत्येक छात्र की प्रगति को ट्रैक करना तथा बच्चों का पोषण और स्वास्थ्य (मानसिक स्वास्थ्य सहित) पहलुओं के समाधान पर ध्यान देना. इसका उद्देश्य हमारे बच्चों को समग्र, आनंददायक और उत्पादक शिक्षण अनुभव के माध्यम से सीखने और बढ़ने के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करना है.
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राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका
यह योजना सहकारी संघवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है क्योंकि शिक्षा भारतीय संविधान के अंतर्गत सातवीं अनुसूची के समवर्ती सूचि के अधीन आता है जिसमे केंद्र और राज्य सरकार को इस विषय पर कानून और नीति निर्धारित करने का समान अधिकार है. इस मिशन के माध्यम से केंद्र सरकार ने विस्तृत दिशा निर्देश बनाए हैं और इस योजना के कार्यान्वयन के लिए सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 5 स्त्रीय तंत्र स्थापित किया जाएगा.
एक प्रभावी राज्य- एफ एल एन मिशन के लिए, राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सर्व प्रथम, एफ एल एन के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए, दूसरा, एफ एल एन के लिए समर्पित बजट का आवंटन किया जाए, तीसरा एफ एल एन के आसपास सार्वजनिक व्यवस्थाओं का निर्माण किया जाए और चौथा, एफ एल एन के प्रभाव का आंकलन करने हेतु एक सुदृढ़ प्रणाली का निर्माण.
मध्यप्रदेश राज्य ने शिक्षा के क्षेत्र में एक अग्रणी भूमिका निभाई है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी के नेतृत्व में मिशन अंकुर के माध्यम से एफ एल एन क्रांति का नेतृत्व किया है. मध्यप्रदेश सरकार ने इस मिशन के अंतर्गत सराहनीय कार्य किया है जिसकी प्रशंसा पूरे देशभर में की जा रही है और निपुण भारत द्वारा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यापक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है जिसमे प्रमुख तौर पर 90,000 से अधिक शिक्षकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण किया गया है.
युवाओं की प्रशासन और शिक्षा सुधार प्रणाली में भागीदारी बढ़ाने के लिए भी मध्यप्रदेश सरकार ने निपुण प्रोफेशनल्स प्रोग्राम शुरू किया है जिसमें शिक्षित और अनुभवी युवा प्रशासनिक अधिकारीयों के साथ निपुण भारत के कार्यान्वन का आंकलन करेंगे और अपने नवीन विचारों और सुझावों से इस योजना को बेहतर बनाएंगे. भाजपा शासित प्रदेश जैसे, उत्तर प्रदेश (निपुण उत्तर प्रदेश), हरियाणा (निपुण हरियाणा) और असम (निपुण एक्सेस) ने भी इस योजना में व्यापक प्रगति की है और निपुण भारत के प्रारंभ होने के साथ अपने संबंधित एफ एल एन शुरू किये है.
निपुण भारत मिशन की सफलता हमारी भावी पीढ़ियों और हमारे बच्चों के लिए उनकी असीमित क्षमता हासिल करने का मार्ग प्रशस्त करेगी. यह परिकल्पना केन्या, ब्राजील और फिलीपींस जैसे अन्य देशों द्वारा भी लागू की गई और इसके परिणाम भी इन देशों की शिक्षा व्यवस्था पर देखा गया है जो साबित करती है कि एफ एल एन का कार्यान्वयन शिक्षा के क्षेत्र में ‘गेम-चेंजर’ हो सकता है. 2047 तक वैश्विक कार्यालय का 25% से अधिक भारतीय लोग होंगे और एक जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारा दायित्व है कि हमारा भविष्य निर्धारित करने वाले बच्चों की क्षमताओं का निर्माण करने के लिए निपुण भारत द्वारा निर्धारित लक्ष्य को एक समय सीमा के अंदर पूरा किया जाए और दो वर्ष में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का जो काम इस अभियान द्वारा किया गया है, उसको भविष्य में और भी प्रभावशाली बनाया जाए.
डॉक्टर कृष्णपाल सिंह यादव मध्यप्रदेश के गुना से लोकसभा सांसद हैं. वे पेशे से डॉक्टर और स्वास्थ्य संबंधित संसदीय स्थाई समिति के सदस्य भी है. उनका ट्विटर हैंडल @DrKPSinghYadav है. व्यक्त विचार निजी हैं.
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