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Friday, 29 March, 2024
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मोदी सरकार में बदली ED की पब्लिक प्रोफाइल, एजेंसी के पास है चार गुना ज्यादा स्टाफ और बजट

नई दिल्ली और सभी राज्य राजधानियों में यही कायदा था कि ‘शीशे के घरों में रहने वाले पत्थर नहीं फेंकते.’ मोदी सरकार ने उसे बदल दिया.

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भारत में इन दिनों विपक्ष के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) गरमागरम राजनैतिक मुद्दा बन गया है. और वजहें भी वाजिब हैं. जो भी इन जांच एजेंसियों के आका रहे हैं, वे बखूबी वाकिफ हैं कि सत्तारूढ़ सरकार के लिए राजनैतिक बदला भंजाने में वे काफी काम आ सकती हैं.

हालांकि राजनैतिक दायरे में ईडी की सख्त कार्रवाइयों पर काफी गरमी है, जिस पर उसके पीड़ित ‘आतंक राज’ फैलाने का आरेाप लगा रहे हैं, लेकिन अनुभवी आंखें गौर करें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने राजनैतिक हितों, कारोबारी तथा उद्योग जगत के हितों के बीच तगड़ी साठगांठ और इन दोनों ताकतवर ताकतों के लिए जोड़तोड़ करने को तत्पर अफसरशाही की रीढ़ तोड़ दी है.

नई दिल्ली और सभी भारतीय राज्यों में कायदा यही था कि ‘शीशे के घरों में रहने वाले कभी पत्थर नहीं फेंका करते.’ लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष को कमजोर करने के लिए वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के पास उपलब्ध कानूनों के इस्तेमाल करके बर्र के छत्ते को छेड़ दिया है, जो जन समर्थन से ताकत पाते हैं और अपनी पार्टी बीजेपी पर भी निर्भर नहीं हैं.

एक ईडी अफसर दो-टूक कहते हैं, ‘अब फर्क यह है कि हम सूचनाओं पर सक्रिय हो उठते हैं.’

अब ईडी के दांत ज्यादा तीखे, सीबीआई हैरान

विवादास्पद धन शोधन निषेध कानून (पीएमएलए) के नियम 1 जुलाई 2005 को अधिसूचित किए गए, जब मनमोहन सिंह की अगुआई में यूपीए सरकार सत्ता में थी. इससे जाहिर होता है कि सभी सरकारों को सख्त कानून पसंद हैं, सिर्फ मोदी सरकार को नहीं. शीशे के घर वाला कायदा एक गुपचुप व्यवस्था थी. इसलिए, 2005 से 2014 तक पीएमएल और उसकी मारक क्षमता तो थी, मगर उसका वैसा इस्तेमाल नहीं हुआ, जैसा अब हो रहा है. पीएमएलए की सख्त धाराओं को जायज ठहराने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ईडी की कार्रवाइयों को मजबूती मिली है, बल्कि तय हो गया कि यह कानून बिना बदले कायम रहने वाला है.

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ईडी की कार्रवाइयों के खिलाफ विपक्षी पार्टियों का संयुक्त बयान कहता है, ‘हम मोदी सरकार की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ अपना संघर्ष तेज करेंगे.’ हालांकि ईडी के ‘चुनिंदा रवैए’ की आलोचना के अलावा और भी बहुत कुछ है. विपक्ष के इस आरोप की सच्चाई अपनी जगह बिलकुल सही है कि सरकार ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडे के लिए कर रही है, लेकिन यह भी सही है कि इन दिनों एजेंसियों के उठाए सभी मामले कमजोर नहीं हैं. तृणमूल कांग्रेस के नेता पार्थ चटर्जी की सहयोगी के कोलकाता के घर में मिली नकद रकम से ईडी की कार्रवाई को ‘जन-विरोधी’ नहीं माना गया. इसके बदले हैरानी और सदमे जैसा असर हुआ. एक बंगाली खोमचे वाले ने एक टीवी रिपोर्टर से मासूमियत से पूछा, ‘यह जनता का पैसा है. लेकिन उसने (अर्पिता मुखर्जी) क्यों खर्च नहीं किया?’

सीबीआई के मुख्यालय में कई पुराने लोग अफसोस जाहिर कर रहे हैं कि पार्थ चटर्जी के भ्रष्टाचार मामले में ईडी ने जो 50 करोड़ रु. से ज्यादा की नकद, जेवरात, जायदाद और बैंक खाते जब्त किए, वह तो असलियत में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग में शिक्षक नियुक्ति में अनियमितताओं से सिलसिले में सीबीआई के दर्ज मामले पर आधारित है. यह सिर्फ संस्थागत प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि उन्हें कार्रवाइयों और निष्क्रियताओं का सिलसिला परेशान कर रहा है. कोलकाता हाइकोर्ट की खंड पीठ ने सीबीआई को शिक्षक नियुक्ति में अनियमितताओं पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था.

एफआईआर दर्ज हुई और जांच शुरू हुई. जब उसमें पार्थ चटर्जी के लिप्त होने की बात उभरी तो उनसे सीबीआई ने तीन बार पूछताछ की. हर पूछताछ के बाद उन्हें जाने दिया गया. हमेशा तो नहीं, लेकिन अमूमन एफआईआर दर्ज करने के फौरन बाद सीबीआई घरों और दफ्तरों की तलाशी करती है. लेकिन इस मामले में नहीं किया गया. सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या कोई गफलत हुई.

साथ ही, कोर्ट की नियुक्त कमेटी ने जिसमें भारी गड़बडिय़ां पाई थी, ऐसे महत्वपूर्ण मामले की जांच के दौरान ही अचानक कोलकाता में सीबीआई के डीआईजी अखिलेश कुमार सिंह का तबादला 29 जून 2022 को दिल्ली में रिसर्च डेस्क पर कर दिया गया. लेकिन 22 जुलाई को ईडी ने अर्पिता मुखर्जी के अपार्टमेंट से नोटों की गड्डियों की जब्ती की तस्वीरों से देश हिल उठा. इससे पश्चिम बंगाल की राजनीति हिल उठी और ईडी का डर ऐसा उठा, जैसा पहले कभी नहीं था.

‘अपराध की रकम’

इसमें शक नहीं है कि पीएमएलए डरावना कानून है, जिसमें बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर है. फिर, ईडी के पास सीबीआई के मुकाबले ज्यादा सख्त अधिकार हैं. वह सिर्फ वित्तीय अनियमितता में शामिल संदिग्ध की ही संपत्ति जब्त नहीं कर सकती, बल्कि अपराध की रकम हासिल करने वाले संदिग्ध पर भी छापे डाल सकती है.

फिलहाल सबसे ज्यादा इस्तेमाल और दुरुपयोग की जाने वाली पीएमएलए की धारा 2 (1) (यू) के मुताबिक, ‘अपराध की रकम’ मतलब ‘दर्ज अपराध से जुड़ी आपराधिक गतिविधि के नतीजतन किसी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से पाई गई या हासिल की गई कोई संपत्ति या ऐसी किसी संपत्ति का मूल्य’ है. इसका मतलब यह हुआ कि मान लीजिए, अगर कोई हत्या की वारदात होती है, और जांंच के दौरान पैसे के लेनदेन का पता चलता है, तो उस मामले में ईडी भी आ सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में कहा कि पीएमएलए के तहत मुकदमा झेल रहे व्यक्ति के खिलाफ औपचारिक मामला शुरू करने के पहले इन्फोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआइआर) भी दर्ज करने की जरूरत नहीं है. ईडी ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है, जो उसके मुताबिक ‘अपराध की रकम’ से जुड़ा है.

इस कानून की ताकत का एक बार अनुभव पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम अपने कार्यकाल (2012-14) में कर चुके हैं. ईडी के अधिकारी राजेश्वर सिंह ने उनके बेटे कार्ति चिदंबरम का आयकर रिटर्न तलब किया. मांग कानूनी थी और सिंह ने उसे हासिल किया. अभी तक, राहुल गांधी पांच दिनों में 50 घंटे और सोनिया गांधी तीन दिनों में 12 घंटे ईडी दफ्तर में नेशनल हेराल्ड के मामले में पूछताछ में बिता चुके हैं. यह नई ईडी है

ईडी अब थोड़े-मोड़े स्टाफ के साथ काम नहीं करती. अब उसके पास चार गुना ज्यादा अधिकारी और ज्यादा बड़ा बजट है. काफी पहले ईडी डिजिटल भी हो चुकी है. नई दिल्ली में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम रोड पर नवनिर्मित प्रवर्तन निदेशालय में कई डोमेन एक्सपर्ट बैठते हैं. वे हजारों डेटा और फाइलों को खंगालते हैं और सिर्फ कागज पर मौजूद शेल कंपनियों को खोजते हैं. आला ईडी टीम वित्तीय अनियमितताओं से अर्जित पैसे को खोज निकालने में महारत रखते हैं. परवर्तन भवन एकदम आधुनिक उनकरणों से लैस है. अभी तक ईडी के मामलों से सजा दर इतना खराब है कि उसे माफ नहीं किया जा सकता, लेकिन ‘राजनैतिक हस्तक्षेप’ अगर आड़े न आए तो यह दर सुधर सकती है. फिलहाल ईडी के मुखिया भारतीय राजस्व सेवा के संजय कुमार मिश्रा हैं, जो अंतरराष्ट्रीय वित्त और कराधान के मामले में अपनी विशेष पकड़ के लिए जाने जाते हैं. वे वित्त मंत्रालय में विदेशी कराधान विभाग को संभाल चुके हैं. वे आयकर नियमों के उल्लंघन के मामलों में बारीक पकड़ के लिए जाने जाते है. वे काम के मामले में सख्त हैं और मामलों के गहराई में जाते हैं.

नवंबर 2021 में मोदी सरकार ने उन्हें साल भर का विस्तार देने के लिए अध्यादेश ले कर आई तो विभाग को आश्चर्य नहीं हुआ. उनका दूसरा विस्तार राजनैतिक तौर पर इतना खास था कि उसे आठ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
विवेक वाडेकर (1991 बैच) ईडी के विशेष निदेशक हैं. वे भी कराधान विशेषज्ञ हैं.

एक रिटायर ईडी अफसर बताते हैं कि पिछने दो दशक से कानून-निर्माताओं और कानून तोडऩे वालों को पीएमएलए और उसके असर की ताकत का पता था. लेकिन मोदी सरकार के तहत ईडी की पब्लिक प्रोफाइल बदल गई. अब ईडी का मतलब यह नहीं है कि ‘वह सिर्फ विदेशी मुद्रा उल्लंघन के मामलों की तहकीकात करती है.’

जब भी सीबीआई कोई एफआईआर दर्ज करती है, तो सीबीआई के उन सभी मामलों में ईडी घुस सकती है, जिनमें पैसे का लेनदेन हुआ है. पार्थ चटर्जी और संजय राउत पर (देश के भीतर) पैसे के लेनदेन का आरोप है, जिसमें विदेश मुद्रा कानून के उल् लंघन का मामला हो सकता है या नहीं हो सकता, लेकिन पीएमएलए के तहत ये मामले ईडी के तहत आते हैं. ऐसे 32 कानून और उससे भी ज्यादा धाराएं हैं, जिन्हें सीबीआई अपनी एफआईआर में इस्तेमाल करती है तो स्वाभाविक रूप से ईडी संज्ञान ले सकती है और मामले को हाथ में ले सकती है. जैसा कि उसने पार्थ चटर्जी के मामले में किया.

कोलकाता में ईडी के मुखिया सुभाष अग्रवाल के स्थानीय कार्यालय के पास अपना खुफिया तंत्र है, जिसने रकम का पता लगाया और बड़ी मछली पकड़ी. अब आधार कार्ड, पैन कार्ड, आयकर रिटर्न और जायदाद तथा शेयरों की खरीद-बिक्री सी एक-दूसरे से जुड़े हैं और पहले से कम पेचीदा मामला हैं.

इस बीच, यह देखना है कि सीबीआई कब पार्थ चटर्जी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज करती है. याद करें कि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले ने कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार को 2008 में बचा लिया था?

शीला भट्ट दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार निजी हैं

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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