फिलहाल जिस देश की बात हो रही है वह ‘दीमकों’ का निर्यात करता है. वह देश है बांग्लादेश. 1990 के दशक में मैं वहां दो बार गया था. पहली बार, मैं दिल्ली से सीधे ढाका जाने वाली फ्लाइट बीमान बांग्लादेश एअरलाइंस से गया था, जो लंदन से आई थी. बिजनेस क्लास का टॉइलेट तालाबंद था, उसके दरवाजे पर प्लास्टिक के पेनेल पर लिखा था- ‘वीआइपी के लिए रिजर्व्ड’. बिजनेस क्लास में सफर कर रहे जो लोग वीआइपी नहीं थे. उन्हें विमान के पिछले हिस्से के टॉइलेट में जाना पड़ता था. ढाका शहर में दो अच्छे होटल थे, साइकिल रिक्शों का रेला था, जापानी मॉडल वाली पुरानी कारें दिखती थीं. वे सस्ते में मिल जाती थीं क्योंकि जापानी नियमों के कारण कारों को एक निश्चित अवधि के बाद पूरी तरह दुरुस्त करवाना पड़ता था इसलिए इसके बदले लोग नयी कार ही लेना पसंद करते थे. ‘इस्तेमालशुदा’ कारों को बिना दुरुस्त किए एशिया के गरीब देशों को निर्यात कर दिया जाता था.
कुछ भारतीय व्यापारियों ने गारमेंट का कारोबार शुरू किया था. वे भारत से कच्चा माल लाते थे और बांग्लादेश के निर्यात कोटे का इस्तेमाल करके उसे यूरोप आदि देशों में बेचा करते थे. विदेशी पैसे से चलने वाले सर्वव्यापी एनजीओ, और मैक्रो अर्थव्यवस्था की कहानी भारत की इस कहानी से मिलती-जुलती थी. बांग्लादेश के वित्त मंत्री सैफुर रहमान से एसेम्बली की लुइस कान द्वारा डिजाइन की गई थोड़ी आकर्षक, आधुनिक किस्म की इमारत में मिला जा सकता था. वे मनमोहन सिंह मार्का आर्थिक सुधारक थे और दोनों एक ही साल कुछ दिनों का अंतर से जनमे थे, और लगभग एक समय वित्त मंत्री थे. खालिदा ज़िया के नेतृत्व में रहमान ने निजीकरन का ऐसा कार्यक्रम लागू किया था, जो भारत के अनमने ‘विनिवेश’ प्रयासों से ज्यादा विश्वसनीय था, और उनका देश आर्थिक वृद्धि को छोड़ बाकी मानकों पर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा था. भारत आर्थिक वृद्धि के मामले में उससे आगे निकल गया था.
वहां ग्रामीण क्षेत्रों में घूमने पर साफ दिखता था कि वहां रेलों की हालत भारत जैसे ही खस्ता थी. भारत से सीमा पार करके आने वाली सड़क पर शायद वध के लिए जानवरों से भरे ट्रकों का रेला था. पत्र-पत्रिकाओं के स्टॉल भारत से आए प्रकाशनों से भरे थे. लेकिन देश के नेशनल डे समारोहों में इस बात का कोई जिक्र नहीं किया गया कि उन्हें आज़ादी दिलाने में भारतीय सेना ने क्या भूमिका निभाई थी. इससे भारतीय राजनयिक चिढ़े हुए थे. भारतीय ले.जनरल अरोरा के
आगे पाकिस्तानी ले.जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण वाला मशहूर चित्र एक ही जगह दिखा, भारतीय उच्चायोग में. द्विपक्षीय व्यापार का पलड़ा बुरी तरह भारत के पक्ष में झुका था, लेकिन भारत के व्यापार वार्ताकार कोई रियायत करने को राजी नहीं थे. फिर भी, ऐसा लगता था कि वह मुल्क किसी लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा रहा है.
अमर्त्य सेन उन अग्रणी लोगों में थे जिन्होंने यह गौर किया था कि बांग्लादेश स्वास्थ्य के मानकों पर भारत से बेहतर काम कर रहा था. लेकिन बच्चों के स्कूल में पढ़ने की अवधि के मामले में भारत उससे कुछ आगे था. 1971 के बाद से बांग्लादेश की आबादी भारत की तरह ढाई गुना बढ़ गई, और पाकिस्तान की साढ़े तीन गुना. भारत के सीमावर्ती जिलों में बांग्लादेशियों का आना जारी न रहता तो उसकी आबादी ज्यादा तेजी से बढ़ती.
सामाजिक संकेतकों के मामले में बांग्लादेश का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा क्योंकि उस समय उसकी प्रति व्यक्ति आय (क्रय शक्ति के पैमाने से) का आंकड़ा भारत के इस आंकड़े का आधा था. इसमें 80 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है जबकि, आइएमएफ के ताज़ा अनुमान के मुताबिक, नॉमिनल डॉलर के हिसाब से इस साल उसकी प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भारत के इस आंकड़े से थोड़ा बेहतर रहने की उम्मीद है. भविष्यदर्शी शंकर आचार्य ने पांच साल पहले ही इसकी भविष्यवाणी कर दी थी. उस समय भारत की तेज वृद्धि दर को देखते हुए इस पर किसी को विश्वास नहीं हुआ था. लेकिन भारत सुस्त पद गया और बांग्लादेश ने कोविड के हमले तक तेज रफ्तार राखी. कोविड ने दोनों देशों को अलग-अलग तरह से प्रभावित किया मगर इसने दोनों के बीच की खाई को पाट दिया. महत्वपूर्ण बात यह है कि 2008 के आर्थिक संकट के बाद से बांग्लादेश के टाका का मूल्य रुपये के मूल्य से एक तिहाई ज्यादा बढ़ गया. इसने डॉलर के हिसाब से उसके जीडीपी को उछाल दे दिया. आइएमएफ इसी पर नज़र रखता है.
लेकिन मजबूत टाका का मतलब यह नहीं है कि जींसों के व्यापार में उसका प्रदर्शन बेहतर है, बावजूद इसके कि गारमेंट निर्यात में उसका प्रदर्शन बढ़िया रहा है. जहां तक भारत की बात है, जींसों का उसका आयात निर्यात से 50 प्रतिशत अधिक है. लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से बांग्लादेश को ‘रेमिटेन्स’ यानी बाहर से आने वाली ऊंची कमाई (जीडीपी के करीब 6 प्रतिशत के बराबर, भारत की इस कमाई से दोगुनी) का लाभ मिलता है. भारत की अर्थव्यवस्था और व्यापार कहीं ज्यादा विविधतापूर्ण है; विभिन्न ‘रेमिटेन्स’ की आवक, पोर्टफोलियो पूंजी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बेहतर संतुलन है. इसलिए बांग्लादेश को एशिया का आर्थिक चैंपियन मान कर उस पर दांव न लगाइए, बशर्ते आप यह न मानते हों कि भारत हमेशा कमतर प्रदर्शन ही करता रहेगा.
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