क्या भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत अपने कानूनी दायित्वों का उल्लंघन किए बिना अपने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वैध गारंटी दे सकता है? क्या हैं समर्थन मूल्य और कृषि सब्सिडी से संबंधित ये कानून और भारत की प्रतिबद्धताएं क्या हैं?
अब तक, एमएसपी जैसे किसान समर्थक उपायों को लागू करने के लिए भारत एक तरफ खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा और दूसरी तरफ डब्ल्यूटीओ कानून में ‘व्यापार विरूपणकारी’ करार दी गई नीतियों के बीच बहुत सावधानी से संतुलन बनाकर चलता रहा है. भारत डब्ल्यूटीओ का संस्थापक सदस्य है और उसने इसके तहत बहुपक्षीय कृषि समझौते (एओए) पर हस्ताक्षर कर रखे हैं, जो अन्य बातों के अलावा, कृषि क्षेत्र में सरकारों द्वारा दी जाने वाली घरेलू सब्सिडी को विनियमित करता है. कृषि सब्सिडी पर ‘नियंत्रण’ का उद्देश्य व्यापार विरूपणकारी रियायतों पर रोक लगाना है, जो घरेलू स्तर पर दिए जाने के बावजूद वैश्विक बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पर बुरा असर डालती हैं.
इस समझौते के तहत, रियायतों को उनकी व्यापार विरूपण प्रकृति के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा गया है. पहली श्रेणी ग्रीन बॉक्स रियायतों की हैं. इस तरह की सब्सिडी मान्य है क्योंकि इनका व्यापार विरूपणकारी प्रभाव या तो नहीं है या फिर नहीं के बराबर है. विकसित देशों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी, इस श्रेणी के अंतर्गत आती हैं (और व्यापार वार्ताओं के दौरान संबंधित पक्षों ने इसका निर्धारण किया था). ग्रीन बॉक्स सब्सिडी की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है.
दूसरी श्रेणी एम्बर बॉक्स सब्सिडी की है, जिसे एओए के अनुच्छेद 6 के तहत परिभाषित किया गया है. इन रियायतों के व्यापार पर हानिकारक प्रभाव पड़ने की आशंका होती है और ये संबंधित बाजारों में विरूपण लाती हैं. वैश्विक मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें धीरे-धीरे कम करने की आवश्यकता है. विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश पहली बार वार्ताओं के उरुग्वे दौर (1986 से 1993) में इन प्रतिबद्धताओं पर सहमत हुए थे और इन प्रतिबद्धताओं से उत्पन्न मुद्दों पर बाद के मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों और डब्ल्यूटीओ की समिति स्तर की बैठकों में चर्चा होती रही है.
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डब्ल्यूटीओ में भारत का पक्ष
वर्तमान मुद्दे की बात करें तो एमएसपी का प्रावधान एम्बर बॉक्स श्रेणी की रियायतों में आता है और इसलिए एओए के तहत इसे संबंधित उत्पादों के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत की सीमा (डी मिनिमिस स्तर) के भीतर रखने की ज़रूरत है. यदि भारत द्वारा अपने यहां दी जा रही रियायत का स्तर तय सीमा से अधिक होता है, तो उसे समझौते के उल्लंघन के रूप में देखा जाएगा. इस साल, भारत को बाली शांति अनुच्छेद का सहारा लेना पड़ा— जो डब्ल्यूटीओ के सदस्यों को कतिपय दायित्वों के अनुपालन के संबंध में एक विकासशील सदस्य देश के खिलाफ शिकायतें शुरू करने से रोकता है— क्योंकि भारत ने ‘विपणन वर्ष 2018-19 के लिए धान की पैदावार पर किसानों को दी जाने वाली रियायतों की तय सीमा को पार कर लिया था’. यह पहला मौका था जब किसी देश ने इस सुरक्षा प्रावधान का सहारा लिया.
खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा, विशेष रूप से भारत का सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम और एमएसपी, विश्व व्यापार संगठन में विकसित और विकासशील देशों के गुटों के बीच तीखी बहस का मुद्दा रहा है. अमेरिका और कनाडा भारत के खाद्य सुरक्षा और घरेलू सब्सिडी कार्यक्रमों के विरोधी रहे हैं और उन्होंने डब्ल्यूटीओ में 2018 में एक प्रतिवाद दर्ज कराया था जिसमें आरोप था कि भारत ने पांच किस्म की दालों के लिए ‘अपने समर्थन मूल्य की मात्रा को काफी कम कर दिखाया है’. कनाडा ने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम और न्यूनतम समर्थन मूल्य संबंधी नीतियों पर भारत से कई सवाल भी पूछे हैं.
हालांकि भारत के खिलाफ कोई मामला नहीं है लेकिन 2019 में अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ में चीन के खिलाफ एक मामले में जीत हासिल की थी, जो 2012 से 2015 के बीच चीन द्वारा गेहूं, इंडिका चावल, जैपोनिका चावल और मक्के की पैदावर के लिए समर्थन मूल्य (एमपीएस) घोषित किए जाने से संबंधित था. अमेरिका ने ‘सफलतापूर्वक यह दलील दी कि सरकार द्वारा गारंटीशुदा मूल्यों पर खरीद के कारण पूरे बाजार में कीमतें बढ़ गईं’ और यह प्रमाणित किया कि चीन की समर्थन मूल्य संबंधी रियायतें डब्ल्यूटीओ की तय छूट सीमा से अधिक थीं.
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भारत का सफल प्रतिवाद
हालांकि, भारत ने इस मुद्दे पर लगातार अपनी स्थिति का बचाव किया है और अपनी आबादी की खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर जोर दिया है. डब्ल्यूटीओ में चीन और भारत ने एक संयुक्त प्रस्ताव में अमेरिका, यूरोपीय संघ और कनाडा जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं द्वारा दी जाने वाली रियायतों के मूल्य में व्यापक अंतर के तथ्य को उजागर किया. प्रस्ताव में तर्क दिया गया कि ‘विकसित देश अपने किसानों को लगातार विकासशील देशों के लिए तय सीलिंग के मुकाबले कहीं अधिक व्यापार विरूपण सब्सिडी दे रहे हैं. विकसित देश उपलब्ध वैश्विक एएमएस (सकल सहायता उपाय) के 90% से अधिक का उपभोग करते हैं, जो लगभग 160 बिलियन डॉलर के बराबर है.’
प्रस्ताव में दलील दी गई कि ‘सुधारों का आरंभिक बिंदु एएमएस का उन्मूलन होना चाहिए, न कि विकासशील देशों द्वारा दी जाने वाली रियायतों में कमी जिनके तहत कई देश प्रति किसान (भारत में) सालाना लगभग 260 डॉलर की निर्वाह राशि ही प्रदान करते हैं जबकि कुछ विकसित देश इसकी तुलना में 100 गुना से भी अधिक सब्सिडी देते हैं.
भारत ने एएमएस जैसी ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने के लिए निरंतर आवाज़ उठाई है, जो 32 देशों के एक समूह को अपने कृषि क्षेत्र को भारी सब्सिडी देने की अनुमति देता है, जबकि विकासशील देशों द्वारा दी गई अपेक्षाकृत छोटी सब्सिडी को गलत तरीके से लक्षित करता है.
इस साल भी, भारत ने मई 2020 में कोविड-19 से संबंधित व्यापार उपायों पर महापरिषद की वर्चुअल बैठक में इस मुद्दे पर अपने रुख पर ज़ोर दिया था. भारत ने कहा कि ‘सर्वाधिक कमज़ोर लोगों की खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा टिकाऊ कृषि व्यापार को बढ़ावा देने का कहीं अधिक प्रभावी और स्थाई तरीका है कृषि समझौते में प्रदत्त एएमएस अधिकारों की ऐतिहासिक विषमताओं को समाप्त करना और प्रभावी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के ज़रिए बढ़ती भुखमरी की समस्या से निपटना’.
कृषि सब्सिडी पर भारत के ‘प्रति-किसान-समर्थन’ के दृष्टिकोण और एएमएस को समाप्त करके प्रतिस्पर्धा को संतुलित करने की मांग को 47 सदस्यीय जी-33 गठबंधन का समर्थन प्राप्त है.
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अवैध नहीं है एमएसपी
वैसे तो कई विकसित देश कृषि सब्सिडी पर भारत की प्रतिबद्धताओं की आलोचना करते रहेंगे लेकिन डब्ल्यूटीओ कानून के तहत एमएसपी प्रावधान अवैध नहीं है और इसे भारत के कृषि कानूनों का हिस्सा बनाया जा सकता है. एमएसपी के रूप में किसानों को रियायत प्रदान करना पूरी तरह से भारत के अधिकार क्षेत्र में है, बशर्ते यह समर्थन डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते में तय सीमा के भीतर हो. इसे कानून में शामिल करने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार का संकोच संभवत: भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को उदार बनाने की सरकार की वास्तविक इच्छा के कारण है.
हालांकि लंबी अवधि में पर्याप्त एमएसपी तथा कृषि सब्सिडी के माध्यम से खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने की लड़ाई राष्ट्र स्तर की नहीं रह जाएगी. डब्ल्यूटीओ कानूनों और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का अनुपालन, एक जिम्मेदार हितधारक के रूप में नई दिल्ली की नीतियों का हिस्सा होना चाहिए लेकिन अंतर्निहित असमानताओं और एएमएस प्रणाली के शोषक ढांचे— जो कि दुर्भाग्य से विश्व व्यापार संगठन के कानून का हिस्सा है— को बदलना भविष्य के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य होने चाहिए.
(अमेय प्रताप सिंह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र हैं. उर्वी टेम्बे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मामलों की वकील हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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