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Thursday, 21 November, 2024
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शी के मीडिया प्रचार से भ्रमित न हों, चीन की ‘ज़ीरो गरीबी’ जो दिखा रही उससे ज्यादा छिपा रही है

चीन दुनिया को यक़ीन दिलाना चाहता है, कि उसके ‘राज्य के नेतृत्व में विकास’ ने ग़रीबी को ख़त्म कर दिया है. लेकिन, जैसा कि हर चीनी चीज़ के साथ होता है, सच्चाई उससे कहीं ज़्यादा जटिल है, जितनी लगती है.

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सभी न्यूज़ मीडिया आउटलेट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर चीन के गरीबी उन्मूलन अभियान को लेकर चल रहे प्रचार ने, लाखों-करोड़ों लोगों को आकर्षित किया है. 25 फरवरी को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेशनल पॉवर्टी एलीविएशन समरी एंड कमेंडेशन कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया कि ‘मेरे देश को ग़रीबी उन्मूलन से लड़ाई में समग्र जीत हासिल हुई है’.

शी जिनपिंग ने कहा, ‘ग़रीबी को ख़त्म करना प्रयास का अंत नहीं है, बल्कि एक नए जीवन और एक नए प्रयास की शुरुआत है’.

चीन का दावा है कि उसने बाक़ी बचे 9.89 करोड़ लोगों को ग़रीबी से ऊपर उठा लिया है और पूरे देश में ‘ज़ीरो ग़रीबी’ का लक्ष्य हासिल कर लिया है. ये अभियान शी जिनपिंग के दिल के क़रीब है, क्योंकि 2012 में सत्ता संभालने के बाद उन्होंने ग़रीबी के ‘संपूर्ण’ उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया था.

सरकारी प्रसारक चाइना सेंट्रल टेलीवीज़न (सीसीटीवी) ने देश के ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वेबू पर एक हैशटैग ‘सभी 9.89 करोड़ लोग ग़रीबी से ऊपर उठाए गए’ का इस्तेमाल किया. इस हैशटैग को 1.88 करोड़ बार देखा गया. एक और हैशटैग -‘चीन ने ग़रीबी को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है’- 1.74 अरब बार देखा गया और उस पर 3,17,000 टिप्पणियां हुईं. सीसीटीवी ने एक डॉक्युमेंट्री भी बनाकर प्रसारित की है, जिसका शीर्षक है ‘चीन का गरीबी निवारण रहस्य’.

25 फरवरी को शी जिनपिंग ने ज़ांग गुइमे को पुरस्कृत किया, जो हुआपिंग सीनियर हाईस्कूल फॉर गर्ल्स के 63 वर्षीय विकलांग प्रिंसिपल और संस्थापक हैं. बीजिंग में आयोजन के दौरान शी ने पूरे चीन से आए इस तरह के लोगों को सम्मानित किया और ग़रीबी पर ‘मुकम्मल जीत’ का ऐलान किया.


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अच्छी लगने वाली कहानियों का प्रचार

चीन की ग़रीबी उन्मूलन रणनीति को ‘ड्रिप सिंचाई प्रभाव’ वाक्यांश से व्यक्त किया गया है, जो किसी विशेष घर परिवार को ऊपर उठाने के लिए एक लक्षित अभियान है. शिन्हुआ की एक रिपोर्ट में, पारंपरिक ट्रिकल-डाउन अर्थशास्त्र पर ये कहते हुए चोट की गई है, ‘लेकिन जब किसी सीमा तक ग़रीबी उन्मूलन को अंजाम दिया जाएगा, तो ‘ट्रिकल डाउन’ प्रभाव काफी हद तक कमज़ोर पड़ जाएगा, जिससे ग़रीबी की समस्या को पूरी तरह हल करना मुश्किल हो जाएगा.

ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम देखने में एक हितकारी सरकारी नीति लगती है, लेकिन क़रीब से जांच करने पर पता चलता है कि इसके अंदर दूसरे उलझाव हैं.

शिन्हुआ के अनुसार चीन ने पिछले पांच साल में, गांवों से 96 लाख से अधिक लोगों को लाकर नए बनाए गए शहरों में बसाया है. कम्युनिस्ट पार्टी अपनी इस मंशा को नहीं छिपाती कि ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत, लियांगशैन यी ऑटोनॉमस प्रीफेक्चर ऑफ चाइना के बच्चों को, मंदारिन (मैंडेरिन) पढ़ाई जाएगी. लियांगशैन यी ऑटोनॉमस प्रीफेक्चर में, परिवारों को उनके गांवों से लाकर, कंक्रीट के परिसरों में बसा दिया गया है और इस तरह राज्य के नेतृत्व में, विकास परियोजनाओं का रास्ता साफ हो गया है.

2018 में, सीना वेबो ने ऐलान किया कि कंपनी ग़रीबी उन्मूलन अभियान के लिए 2 अरब युआन का निवेश करेगी. चीन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से, ग्रामीणों की ‘भावनात्मक कहानियां’ सुनाकर, जो इस कार्यक्रम की वजह से अब बेहतर जीविका कमा रहे हैं, एक आम राय बनाने की कोशिश की है.

ग़रीबी उन्मूलन का एक पहलू, चीन के अपेक्षाकृत ग़रीब प्रांतों में टेक्नोलॉजी साक्षरता को सुधारना था. सरकारी मीडिया ने एक 71 वर्षीय किसान की ख़बर दिखाई, जिसने कृषि उपज बेचने के लिए चीन के प्रमुख वीडियो शेयरिंग प्लेटफर्म्स कुएशू और डूईन का इस्तेमाल किया था. लेकिन टेक्नोलॉजी के इतने अधिक विस्तार से चीन को देश के दूरगामी क्षेत्रों में, आबादी की निगरानी पर एक मज़बूत पकड़ मिल सकती है.

विविध लक्ष्य, तिब्बत से भारत तक

चीन के ग़रीबी उन्मूलन अभियान को विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग तरह से लागू किया गया है, ताकि कई तरह के नीतिगत लक्ष्य हासिल किए जा सकें.

तिब्बत में, ग़रीबी उन्मूलन अभियान के तहत ख़ानाबदोशों और किसानों को लक्ष्य बनाकर, शिंजियांग की तर्ज़ का पुनर्शिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य ‘धर्म के नकारात्मक असर को ख़त्म करना है’.

तिब्बत पर शोध करने वाले विशेषज्ञों ने पता लगाया है कि ग़रीबी उन्मूलन अभियान में एकीकृत भाषा है, जो ‘वैचारिक शिक्षा’ और ‘तिब्बत में स्थिरता’ को बढ़ावा देती है.

सितंबर 2020 में एक जर्मन रिसर्चर एड्रियन ज़ेंज़ को तिब्बत में एक सामूहिक श्रम कार्यक्रम की मौजूदगी का पता चला, जिसे ग़रीबी निवारण पहल के तहत स्थापित किया गया था. उनकी रिपोर्ट में पता चला कि 500,000 तिब्बती लोग इस प्रशिक्षण कार्यक्रम से गुज़र चुके हैं. ज़ेंज़ के हाथ लगे एक सरकारी दस्तावेज़ में तिब्बती लोगों को अपनी ज़मीनें, राज्य द्वारा संचालित सहकारी समितियों को ट्रांसफर करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तिब्बत प्रमुख वू इंगजी ने कहा, ‘तिब्बत के ग़रीब लोगों की सालाना औसत आमदनी, 2015 में 1,499 युआन (क़रीब 220.44 अमेरिकी डॉलर्स) से बढ़कर, 2019 में 9,328 युआन हो गई’.

हाल के दिनों में हमने भारत की सीमा से लगे इलाक़ों में, लोगों को बसाए जाने की तस्वीरें देखी हैं. चीन ने तिब्बती किसानों के लिए, भारत, चीन और भूटान के तिराहे पर एक गांव बना दिया है. तिब्बती क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा, अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्त्ती क्षेत्रों में भी इसी तरह से बनाए गए तीन गांवों का पता चला. चीन का दावा है कि ख़ाली पड़े सीमावर्त्ती क्षेत्रों को सुरक्षित करने की बजाय, उसका इरादा गांव वासियों को नए उप नगरों में बसाने का है.

बीबीसी द्वारा वास्तविकता की जांच करने पर पुष्टि हुई कि चीन पिछले 30 सालों में ग़रीबी को, काफी हद तक कम करने में सफल रहा है- जिसकी पुष्टि विश्व बैंक के आंकड़ों से भी होती है. लेकिन चीनी प्रधानमंत्री ने इस बात को माना है कि असमानता बढ़ रही है और क़रीब 60 करोड़ लोग हर महीने केवल 1,000 युआन (154 डॉलर) ही कमा पाते हैं.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इस साल अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाएगी, जिसकी वजह से इस अभियान पर मीडिया की तवज्जो बढ़ गई है. चीन दुनिया को बताना चाहता है कि ‘राज्य के नेतृत्व में विकास’ से, वो ग़रीबी दूर करने में कामयाब रहा है, लेकिन जैसा कि चीन की हर चीज़ के साथ होता है कि वास्तविकता उससे कहीं अधिक जटिल है, जितनी सतह पर दिखाई पड़ती है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक एक स्तंभकार और फ्रीलांस पत्रकार हैं. वो पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में, एक चीनी मीडिया पत्रकार थे. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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