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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतमत भूलिए सावरकर ने 'हिन्दुस्तान' कहा था, 'भारत' तो टैगोर, कैलेंडर और मंदिरों से लोकप्रिय हुआ

मत भूलिए सावरकर ने ‘हिन्दुस्तान’ कहा था, ‘भारत’ तो टैगोर, कैलेंडर और मंदिरों से लोकप्रिय हुआ

'हिन्दुस्तान' कैसे बन गया 'इंडिया'? यह मुगल बनाम ब्रिटिश जितना सरल नहीं है.

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जब मैंने अगस्त 2022 में अपनी किताब का शीर्षक ‘वी द पीपल ऑफ द स्टेट्स ऑफ भारत: द मेकिंग एंड रीमेकिंग ऑफ इंडियाज इंटरनल बाउंड्रीज’ दिया था, तो क्या मैंने इंडिया का नाम बदलकर भारत करने पर बहस का अनुमान लगाया था? यह जानने के लिए मेरे पाठकों की उत्सुकता बढ़ गई है. हालांकि मैं इस तरह की ‘अंतर्दृष्टि’ का श्रेय अपने आप को देना चाहूंगा, लेकिन मुझे स्पष्ट करना होगा कि भविष्य की भविष्यवाणी करना मेरी समझ से परे है. सौभाग्य से मेरे लिए G20 के दौरान ‘भारत’ को दी गई प्रमुखता मेरी किताब के पेपरबैक रिलीज़ के साथ मेल खाती है, जिससे बिक्री अचानक से बढ़ गई. मुझे अपनी किताब पर चर्चा करने के लिए देश भर के कई विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों – और यहां तक की संयुक्त अरब अमीरात – से भी निमंत्रण मिला है.

हालांकि, इससे पहले कि हम भारत और इंडिया पर चर्चा करें, दोनों का संदर्भ संविधान के अनुच्छेद 1 में मिलता है- जिसमें लिखा गया है “इंडिया, जो भारत है, राज्यों का एक संघ है”. हमें एक ऐतिहासिक वास्तविकता को देखने की जरूरत है: वह भौगोलिक क्षेत्र कैसा है अब इसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश शामिल हैं, जिसे ‘हिंदुस्तान’ के बजाय ‘इंडिया’ के नाम से जाना जाने लगा. यह नाम यूरोपीय लोगों के आगमन से पहले प्रचलित था. यह भारतीय इतिहास के विविध आख्यानों के निर्माण के लिए एक सुविधाजनक बिंदु के रूप में काम करता है.

एक सांस्कृतिक, राजनीतिक और स्थानिक इकाई के रूप में हिंदुस्तान का एक उचित विचार समकालीन इतिहास में अरबी, फ़ारसी, संस्कृत, प्राकृत के रूपों और बाद में उर्दू सहित कई भाषाओं में मुख्य रूप से 15 वीं और 19 वीं शताब्दी के बीच व्यक्त किया गया था. पसंदीदा नाम के रूप में भारत को तब लोकप्रियता मिली जब ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) ने अपने सूबो के लिए क्षेत्र का अधिग्रहण करना शुरू किया. सबसे पहले 1640 में मद्रास में स्थापित किया गया था, उसके बाद 1687 में बॉम्बे में स्थापित किया गया था, जो सूरत कारखाने को द्वीपों में स्थानांतरित करने के साथ मेल खाता था, और अंततः 1690 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में फोर्ट विलियम में स्थापित किया गया था.

यह बंगाल था जब EIC ने 1757 में प्लासी की लड़ाई और 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद ‘संप्रभु’ शक्ति का प्रयोग शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप 1765 में बंगाल प्रेसीडेंसी का गठन हुआ. इसके बाद, ब्रिटिश मानचित्रों ने जीते हुए क्षेत्रों को दिखाना शुरू कर दिया गया. इसके लिए छल, असमान संधियां और “भारतीय संपत्ति” के रूप में विषम व्यापार संबंध जैसे तरीको का इस्तेमाल किया गया था. शायद आखिरी बार हिंदुस्तान का उपयोग EIC अधिकारी द्वारा 1768 में किया गया था जब EIC की बंगाल की सेना के एक पैदल सेना अधिकारी अलेक्जेंडर डॉव ने द हिस्ट्री ऑफ हिंदोस्तान नामक पुस्तक लिखी थी.

जब से वॉरेन हेस्टिंग्स ने EIC संचालन की कमान संभाली, ब्रिटिश इस उपमहाद्वीप को इंडिया के रूप में बताने और संदर्भित करते थे. लेकिन एक सदी से भी अधिक समय तक, यानि 1857 के विद्रोह तक, विद्रोही नेताओं के इश्तहार (विज्ञापन) और बातचीत में हमेशा देश का नाम हिंदुस्तान लिया जाता था. वे इस भूमि को फिरंगी (विदेशी) शासन से मुक्त कराने की बात करते थे. इससे पुष्टि होती है कि प्लासी में रॉबर्ट क्लाइव की ऐतिहासिक जीत के सौ साल बाद भी, एक राजनीतिक और भौगोलिक इकाई के रूप में हिंदुस्तान का विचार ख़त्म नहीं हुआ था.

सदी के अंत में, 1904 में मुहम्मद इकबाल ने अपना प्रसिद्ध देशभक्ति गीत सारे जहां से अच्छा उर्दू में लिखा और ‘हिंदुस्तान’ और उसके लोगों की विविधता के बारे में गर्व के साथ बात की.

1909 में, एमके गांधी ने विद्यापीठों में हिंदुस्तानी भाषाओं में ग्राम गणराज्यों और राष्ट्रीय शिक्षा के बारे में अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए हिंद स्वराज लिखा था, जिनमें से सबसे प्रमुख काशी विद्यापीठ थी, जो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मातृ संस्था थी. जब सावरकर ने उसी साल ‘द वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857’ लिखा, तो उन्होंने 1857 के विद्रोह के बारे में हो रही चर्चा को पूरी तरह से बदल दिया, जिसे भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में पहचाना जाने लगा. 1937 में, उन्होंने अहमदाबाद में एक भाषण दिया, जहां उन्होंने कहा: ‘हिंदुस्तान को हमेशा एक और अविभाज्य रहना चाहिए.’ क्रांतिकारी भगत सिंह ने 1928 में अपने युवा संगठन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रखा और 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने अपनी सेना के नाम के रूप में आज़ाद हिंद फ़ौज को चुना.


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भारत का परिवर्तनकाल

भारतीय इतिहास के मेरे अध्ययन से पता चलता है कि ‘भारत’ रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन गण मन से प्रमुखता में आया, जो अब हमारा राष्ट्रगान है. कवि ने स्वयं इसे 27 दिसंबर 1911 को कोलकाता में कांग्रेस अधिवेशन में गाया था. अगले दो दशकों में, ‘भारत’ ने लोकप्रिय धारणा को पकड़ लिया और वाराणसी और हरिद्वार में कई भारत माता मंदिर सामने आए. ‘भारत माता’ को चित्रित करने वाले कैलेंडर और कई व्यावसायिक प्रतिष्ठान राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ इस विचार को बढ़ावा दे रहे थे.

नेहरू ने अपनी जेल के सालों (1942-1945) के दौरान अहमदनगर किले में द डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखी और उल्लेख किया: “अक्सर, जब मैं एक बैठक से दूसरी बैठक में जाता था, तो मैं अपने दर्शकों से हमारे इंडिया, हिंदुस्तान और भारत के बारे में बात करता था. भारत- एक पुराना संस्कृत नाम जो जाति के पौराणिक संस्थापकों से लिया गया है.” इस प्रकार, स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर सभी तीन नाम – हिंदुस्तान, भारत और इंडिया – उपमहाद्वीप में सह-अस्तित्व में थे. जय हिंद में भी लगातार हिंद का उपयोग किया जाता था, जिसका उपयोग नेहरू, वल्लभभाई पटेल और बोस अपने भाषणों के अंत में करते थे.


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हिंदुस्तान बनाम पाकिस्तान

भारत से वापस जाने से पूर्व संध्या पर, ब्रिटिश प्रतिष्ठान का एक शक्तिशाली वर्ग चाहता था कि दोनों देश का नाम हिंदुस्तान और पाकिस्तान कहा जाए. अंग्रेजों को लगा कि भारत उनके द्वारा निर्माण किया गया, जो हिंदुस्तान के क्षेत्र पर बनाया गया था, जिसमें वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल थे. इस तर्क को मनन अहमद आसिफ की पुस्तक द लॉस ऑफ हिंदुस्तान: द इन्वेंशन ऑफ इंडिया में विश्वसनीयता मिलती है. दरअसल, जिस शख्स ने सबसे पहले हिंदुस्तान को खारिज कर देश का नाम इंडिया ही रखने पर जोर दिया था, वह वीपी मेनन थे. भारत सरकार के पूर्व सचिव के अनुसार, इस नामकरण को अपनाने से पाकिस्तान भारत का अलग हिस्सा बन गया, जिससे भारत ब्रिटिश भारत का उत्तराधिकारी राज्य बन गया.

इस तर्क को नेहरू और पटेल दोनों के साथ-साथ बीआर अंबेडकर का भी समर्थन मिला, जिन्होंने कॉन्टिनेंट असेंबली की बहस के दौरान कहा था, “इंडिया को पूरे इतिहास में और पिछले कई सालों से इंडिया के रूप में जाना जाता है”. उनका तर्क था कि संयुक्त राष्ट्र में देश का नाम ‘इंडिया’ था और सभी समझौतों पर इसी नाम से हस्ताक्षर किये गये थे. परिणामस्वरूप, संविधान सभा के सदस्यों में “इंडिया, दैट इज भारत” पर आम सहमति बनी.

जबकि हिंदुस्तान संविधान में शामिल नहीं है, इसे देश के कुछ शीर्ष सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) और कॉरपोरेट्स को इस नाम से जोड़ा गया है – हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL), हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड (HLL) हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड और बेहद सफल हिंदुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड (HCL) आदि.

अब अंत में यही कहूंगा कि भारत, इंडिया और हिंदुस्तान तीनों की जय हो.

(संजीव चोपड़ा पूर्व आईएएस अधिकारी और वैली ऑफ वर्ड्स के फेस्टिवल डायरेक्टर हैं. हाल तक वे लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के डारेक्टर थे. उनका एक्स हैंडल @ChopraSanjeev. है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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