दिल्ली के मीडिया में इस खबर की खूब चर्चा है कि गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दलों को लेकर एक संभावित तीसरा मोर्चा तैयार हो रहा है- जाहिर तौर पर भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले के लिए. ये कोई पहला मौका नहीं है जब इस तरह का प्रयास किया जा रहा हो और न ही ये आखिरी होगा.
इस बार देखा जा रहा है कि महाराष्ट्र से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार गठबंधन तैयार करने के प्रयासों में सबसे आगे हैं और उन्हें इस काम में तृणमूल कांग्रेस के यशवंत सिन्हा का सहयोग और समर्थन प्राप्त है. साफ तौर पर हाल के बंगाल विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार और कांग्रेस पार्टी के सफाए के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को टक्कर देने के लिए गैर-कांग्रेसी गठबंधन की चर्चा में तेजी आई है.
इस विषय को व्यापक संदर्भ में देखें तो 543 लोकसभा सीटों में से एक तिहाई से भी कम पर भाजपा बनाम कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है. भारत दुनिया का सर्वाधिक चुनावी विविधता वाला लोकतंत्र है, जहां 18 राजनीतिक दलों की कम से कम एक राज्य में मजबूत उपस्थिति है. इस अर्थ में देखा जाए तो भारत में वास्तव में एक ‘राष्ट्रीय’ चुनाव नहीं होता है बल्कि इसे एक साथ कराए जाने वाले राज्यों के चुनावों की एक सीरीज़ के रूप में देखा जा सकता है.
साथ ही, अब ये भी स्पष्ट है कि भारत में चुनाव कहीं अधिक नेता-केंद्रित हो गए हैं. नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया है कि भारत की विशाल राजनीतिक विविधता के बावजूद किसी ‘राष्ट्रीय’ नेता के लिए देश भर में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करना संभव है. यहां दिल्ली के मीडिया में बारंबार दोहराए जाने वाले इस कथन का भी उल्लेख किया जा सकता है कि भारतीय चुनाव ‘राष्ट्रपतीय‘ शैली का हो गया है, हालांकि देखा जाए तो ये कोई अभिनव प्रवृति नहीं है जैसा कि इसे साबित किया जा रहा है.
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भारत के अगले प्रधानमंत्री का चुनाव
भारतीय राजनीति के भविष्य पर कोई भी चर्चा आज ‘मोदी नहीं तो कौन?’ की चर्चा में बदल जाती है. प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को चुनौती देने के उद्देश्य से किसी स्थापित नेता की अगुआई में तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास इसी पृष्ठभूमि में किया जा रहा है. भारत के ‘राष्ट्रीय’ मीडिया (दिल्ली स्थित मीडिया) के कुछ लोग और बौद्धिक वर्ग नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए किसी क्षेत्रीय पार्टी के मजबूत नेता को विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित करने के विचार को हवा दे रहे हैं.
क्या भारत के लोग भी ऐसा ही महसूस करते हैं? क्या कोई क्षेत्रीय नेता राज्य की सीमाओं से परे अगले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार्य विकल्प हो सकता है? प्रश्नम ने इसका पता लगाने का फैसला किया.
प्रश्नम ने 12 बड़े राज्यों— उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, केरल, तेलंगाना और झारखंड में लगभग 20,000 मतदाताओं के बीच बड़ा राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया, जिसमें 397 लोकसभा क्षेत्र और 2,309 विधानसभा क्षेत्र शामिल थे.
लोगों से उनकी स्थानीय भाषा में एक आसान सा सवाल पूछा गया— ‘आपके विचार से भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए?’
इस सर्वे को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि प्रतिक्रियाओं का विकल्प खुला और विस्तृत रहे. सर्वे में शामिल होने वाले अपनी पसंद के किसी भी राज्यस्तरीय या राष्ट्रीय नेता का नाम ले सकते थे. यह रायशुमारी हाल के दिनों में हुए इस तरह के सबसे बड़े और भौगोलिक दृष्टि से सर्वाधिक वर्गीकृत सर्वेक्षणों में से एक है.
मोदी नंबर वन हैं, राहुल गांधी पसंदीदा विकल्प पर बहुत पीछे
प्रधानमंत्री मोदी सबसे लोकप्रिय विकल्प के रूप में उभरकर सामने आए- लगभग 33 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने उन्हें अपने अगले प्रधानमंत्री के रूप में चुना.
राहुल गांधी दूसरी सबसे लोकप्रिय पसंद थे- 17 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कांग्रेस नेता को भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में चुना.
यहां ये उल्लेखनीय है कि तमाम गैर-कांग्रेसी और गैर-भाजपाई नेताओं को मिलाकर भी दूसरे नंबर पर रहे राहुल गांधी के बराबर मत नहीं मिले.
जैसी कि उम्मीद थी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगले प्रधानमंत्री की पसंद के रूप में सबसे लोकप्रिय क्षेत्रीय नेता के रूप में उभरीं लेकिन केवल 7 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने उन्हें चुना. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन 3 फीसदी समर्थन के साथ क्षेत्रीय नेताओं में दूसरे स्थान पर रहे, जबकि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को 2.2 फीसदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 1.4 फीसदी उत्तरदाताओं ने चुना.
तीसरे मोर्चे के संयोजक शरद पवार 1 प्रतिशत से भी कम समर्थन के साथ, अगले प्रधानमंत्री के विकल्पों में बहुत पीछे हैं. तमिलनाडु और केरल जैसे कुछ राज्यों में राहुल गांधी भारत के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की तुलना में अधिक पसंदीदा विकल्प हैं. समय के साथ ये प्राथमिकताएं कैसे बदलती हैं, इसे मापने के लिए प्रश्नम तिमाही अंतराल पर इस सर्वेक्षण को दोहराएगा.
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तस्वीर साफ है
प्रश्नम के पहले सवाल में नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य का विकल्प दिया गया था. ‘अन्य’ को चुनने वालों से एक अनुवर्ती सवाल पूछा गया था जिसमें चार अतिरिक्त नाम थे- ममता बनर्जी, शरद पवार, योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव. कुल संख्या तय करने के लिए इसके बाद जवाबों को राज्य की आबादी के अनुपात में समायोजित किया गया. इसका विवरण अपरिष्कृत डेटा के अलग-अलग वर्कशीट में संलग्न है.
नि:संदेह, ये सर्वे राष्ट्रीय चुनाव में भारतीय जनता के वोटिंग के इरादे का प्रतिबिंब नहीं है. यह इस वक्त अगले प्रधानमंत्री की पसंद के बारे में भारतीय मतदाताओं की राय मात्र है, जो कि अंततः 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके वोटिंग पैटर्न से बिल्कुल अलग हो सकता है.
बहरहाल, इससे एक स्पष्ट तस्वीर बनती है कि अधिकांश भारतीय मतदाताओं के लिए नरेंद्र मोदी अभी भी देश के सबसे बड़े नेता हैं, जबकि राहुल गांधी उनके लिए सबसे पसंदीदा विकल्प हैं. भारत के अगले प्रधानमंत्री की पसंद बनने के मामले में कोई अन्य राजनीतिक नेता इन दोनों के करीब भी नहीं आता है.
बौद्धिक ईमानदारी के अपने सिद्धांतों के अनुरूप प्रश्नम ने सत्यापन और अतिरिक्त विश्लेषण के लिए इस सर्वेक्षण की प्रक्रिया, राज्य आधारित परिणाम और संपूर्ण अपरिष्कृत डेटा का पूरा ब्योरा यहां पर उपलब्ध कराया है.
(राजेश जैन एआई टेक्नोलॉजी स्टार्टअप प्रश्नम के संस्थापक हैं, जिसका उद्देश्य रायशुमारी को अधिक वैज्ञानिक, आसान, तेज और किफायती बनाना है. व्यक्त विचार निजी हैं)
(यह लेख दिप्रिंट-प्रश्नम वॉक्सपॉप सिरीज़ का हिस्सा है)
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