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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतनाम में क्या रखा है? जॉनी डेप, ट्रंप के मामलों से कुछ सबक लीजिए

नाम में क्या रखा है? जॉनी डेप, ट्रंप के मामलों से कुछ सबक लीजिए

कहा जाता है कि कंपनी की ख्याति उसकी सबसे बड़ी थाती होती है लेकिन लगातार गड़बड़ियां करने के बाद भी कितनी कंपनियों को गंभीर नुकसान भुगतना पड़ता है?

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जॉनी डेप-अंबर हर्ड मामले पर आए फैसले के बाद, गद्दीनशीन से बागी बने शख्स की अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी पर मजबूत पकड़ देखने के बाद, ब्रिटेन में बिखरे बालों वाले झूठे और संधि तोड़क शख्स को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कायम देखने के बाद यह सवाल मौजूं लगता है कि क्या नामचीन होना काम देता है? या कंपनियों को ही देख लीजिए. 17 जून के ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के ‘वर्ल्ड’ पेज ये खबरें थीं—गूगल पर जुर्माना ठोका गया; टैक्स के मामले में मैक्डोनल्ड 1.3 अरब डॉलर का भुगतान करेगी; गिरोहबंदी के मामले में तोशिबा और सोनी मुकदमा हार गईं और एपल पर आइफोन के यूजरों को धोखा देने का आरोप लगाया गया. इनके अलावा यह भी- मेटा, गूगल, ट्वीटर ने फर्जी खबर या रिस्क पेनल्टी के मामले में लड़ने की ‘कसम’ खाई.

मेटा का नाम उस खबर में भी आया कि उसने ऑनलाइन विज्ञापनों के मामले में फ्रेंच एंटी-ट्रस्ट सरोकारों को पूरा करने का ‘संकल्प’ लिया है. कहा जाता है कि कंपनी की ख्याति इसके सबसे कीमती थाती होती है. लेकिन लगातार गड़बड़ियां करने के बाद भी कितनी कंपनियों को कोई गंभीर नुकसान होता है? आखिर, नकदी की खातिर खबरें बेचने वाले अखबारों के पाठक लाखों की संख्या में बने रहते हैं. बड़ी एकाउंटिंग फ़र्में हितों के खुले टकराव के बावजूद एसोसिएटेड बिजनेस बनाती रहती हैं. ‘ब्लड डायमंड्स’ के अपने इतिहास के बावजूद डी बीयर्स का वर्चस्व कायम है. कभी कभार किसी खुलासे के बाद कोई एनरॉन दिवालिया हो जाती है लेकिन मैकिन्से के बड़े लोग घोटाला प्रभावित कई कंपनियों से बेशक जुड़े रहे मगर उसे अभी भी कंसल्टिंग बिजनेस में सोने जैसा खरा माना जाता है.

कॉर्पोरेट गड़बड़ियों का इतिहास घोटाले से शुरू होता है और लोक कथाओं में शामिल हो जाता है, चाहे यह अमेरिकी लुटेरे व्यवसायियों की हरकतें हों (एक ने तो रेलवे लाइन मंजूर कराने के लिए पेंसिल्वेनिया राज्य के विधायकों को खरीद लिया था) या धीरूभाई अंबानी की शुरुआती उपलब्धियां हों या आज गौतम अडाणी का दबदबा. भारत में गैस की कीमतों को लेकर लड़ाइयों से लेकर टेलिकॉम घोटाला तक कई मामलों पर किताबें लिखी जा चुकी हैं. लेकिन हमारे घोटालों में कोई दोषी नहीं पाया जाता. यह वैसा ही है जैसे अमेरिका में जानबूझकर धोखा देकर बिक्री करने और वित्तीय गिरावट करवाने के लिए वित्तीय क्षेत्र के किसी अगुआ को जेल नहीं भेजा गया. न्यू यॉर्क और दूसरी जगहों पर मझोले स्तर के बॉण्ड ट्रेडरों को जरूर जेल हुई.


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इसे इस तरह कहा जा सकता है—अगर आप तेजतर्रार व्यवसायी माने जाते हैं तो तेजी दिखाने वाले आपके मामलों का खुलासा होने के बाद आपको कोई नुकसान नहीं होगा. यह वैसा ही जैसे हिंदुत्ववाद को बढ़ावा देने के लिए ख्यात पार्टी दूसरे धर्म के प्रति कठोरता दिखाती है तो उसे कोई खतरा नहीं होगा. लेकिन अगर आपकी फर्म की छवि जनता में ऊंची है तो कोई घोटाला आपको नुकसान पहुंचा सकता है, हालांकि उसे कुछ कीमत देकर दुरुस्त किया जा सकता है, जैसे फॉक्सवैगन, टोयोटा आदि ने किया. लेकिन अगर आपकी फर्म का आधार डांवाडोल है तो कोई घोटाला उपसंहार का कारण बन सकता है. इसलिए प्रमुख सवाल यह है कि किसी घोटाले के कारण किसी कंपनी, किसी व्यक्ति किसी राजनीतिक दल के बारे में ‘जनता’ का नजरिया बुनियादी तौर पर बदल जाता है? अगर नहीं बदलता तो उसे डोनाल्ड ट्रंप और बोरिस जॉन्सन की तरह ‘लंबी उम्र’ मिल जाती है.

जनता भी बेशक कई तरह की है इसलिए ‘ख्याति’ भी बहुरंगी चीज है. निवेशक, उपभोक्ता, कर्मचारी, वेंडर, वितरक, हर तरह के दावेदार एक ही कंपनी को कई तरह से देखते हैं. क्या यह अच्छा नियोक्ता है? क्या यह बिलों का समय पर भुगतान करती है? क्या इसके स्टोर सुविधाजनक जगह पर हैं? क्या यह आपकी यूनिवर्सिटी के शोध कार्यक्रम के लिए पैसे देती है? क्या इसका क्रॉसवर्ड सबसे अच्छा है? इसलिए, ‘ख्याति’ बहुत जटिल चीज है, उस चीज से भी जटिल जो तब धूमिल हो जाती है जब राल्फ नादर के मुताबिक कारें “किसी भी स्पीड पर चलें, असुरक्षित होती हैं”, या जब राशेल कारसन की साइलेंट स्प्रिंग कीटनाशक उद्योग की निंदा की या जब खबरों को बिक्री के लिए पेश किया गया.

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इसके अलावा, अगर यह देखना आपके हित में नहीं है कि कोई उद्योग किसी दलदली क्षेत्र को बरबाद कर रहा है, तो आप यह नहीं देखेंगे. ड्यूशे बैंक के मार्केट वैल्यू का 7/8 हिस्सा तब गिरा जब वह एक दशक तक गड़बड़ियां करता रहा और जब उसने मनी लाउंडरिंग का भी एक घोटाला कर दिया. अगर गूगल के पास सबसे बढ़िया सर्च एलॉगरिदम है, जो कि कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, तो यह नहीं देखा जाएगा कि वह उसका इस्तेमाल समाचार व्यवसाय को खत्म करने के लिए कर रहा है या नहीं.

उपयोगितावादी नजरिए से देखें, तो किसी कंपनी ने टैक्स चोरी की या आदिवासियों का जीवन बरबाद किया इसकी चिंता करने का काम किसी और का है. यही वजह है कि ‘ईएसजी’ (पर्यावरण, सामाजिक मसले, शासकीय मसले) के आधार पर निवेश करने का जो चलन थोड़े समय चला वह अब सवालों के घेरे में है. व्यावहारिकता पर ज़ोर देने वाले ऐसे दौर में, अगर कोई देश आपकी गैस या तेल का बड़ा ग्राहक है और वह आपकी धार्मिक संवेदनाओं को चोट भी पहुंचाता हो तो उसकी अनदेखी की जा सकती है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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