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Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतसंशोधित मिजरी इंडेक्स पर भारत का प्रदर्शन कैसा रहेगा? US और UK से बेहतर, बाकी अधिकतर से खराब

संशोधित मिजरी इंडेक्स पर भारत का प्रदर्शन कैसा रहेगा? US और UK से बेहतर, बाकी अधिकतर से खराब

अर्थव्यवस्थाएं जब नीची वृद्ध दर और ऊंची मुद्रास्फीति का सामना कर रही हैं तब गतिरोध शब्द फिर चर्चा में है और बदहाली सूचकांक (मिज़री इंडेक्स) बताता है कि इस गतिरोध की स्थिति में लोग किस अनुभव से गुजरते हैं.

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1970 के दशक में विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ‘मैक्रो’ आर्थिक प्रबंधन के सामने एक नयी चुनौती आ खड़ी हो गई थी. व्यवसाय चक्र की उथल-पुथल के बीच मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के आंकड़े एक-दूसरे की विपरीत दिशा में न जाकर एक ही दिशा में बढ़ रहे थे.

बेरोजगारी की ऊंची दर सुस्त आर्थिक वृद्धि यानी गतिरोध (स्टैगफ्लेशन) को दर्शा रही थी. इस स्थिति के लिए एक मिश्रित शब्द ईजाद किया गया— ‘स्टैगफ्लेशन’. 50 साल बाद जब अर्थव्यवस्थाओं को नीचे से लेकर शून्य तक आर्थिक वृद्धि और इसके साथ ही ऊंची मुद्रास्फीति का सामना करने की नौबत आती दिख रही है तब यह शब्द फिर चर्चा में है.
‘स्टैगफ्लेशन’ की स्थिति में लोग क्या भुगत रहे हैं यह बताने के लिए अर्थशास्त्रियों ने 1970 के दशक में ‘मिज़री इंडेक्स’ (बदहाली सूचकांक) ईजाद की. इसके अंतर्गत उपभोक्ता महंगाई दर और बेरोजगारी दर को जोड़ा गया. आज अगर ऐसा सूचकांक बनाया गया तो वह क्या दर्शाएगा?

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जिन देशों को आर्थिक कुप्रबंधन और/या मूल समस्याओं के लिए जाना जाता है उनमें ‘बदहाली’ उच्चतम है, जैसे तुर्की, अर्जेन्टीना, दक्षिण अफ्रीका. इनके बाद ‘ब्रिक्स’ के दो देश आते हैं (युद्ध से प्रभावित रूस और ब्राज़ील), जिनका साथ पाकिस्तान और मिस्र दे रहे हैं. इसके बाद भारत आता है. बेशक यह कोई खुश होने वाली बात नहीं है लेकिन प्रमुख यूरोपीय देश और अमेरिका भी बहुत पीछे नहीं हैं.

मिज़री इंडेक्स में दो सुधार किए गए. पहला, इसमें चालू ब्याज दर को जोड़ा गया. इसने खराब स्थिति वाले तुर्की, ब्राज़ील, रूस, पाकिस्तान जैसे देशों की तस्वीर और खराब कर दी, क्योंकि ऊंची मुद्रास्फीति के कारण ब्याज दरों में आम तौर पर वृद्धि हो जाती है. लेकिन यह भारत और अमीर देशों के बीच बदहाली वाली खाई को और खोल देता है क्योंकि अमीर देशों में ब्याज दरें प्रायः काफी नीची होती हैं, जो उनकी मुद्रास्फीति की पारंपरिक रूप से नीची दरों के अनुरूप होती हैं.
अब तक, भारत के लिए स्थिति कोई अच्छी नहीं है, जो उन 20 देशों की सूची में आधे से ज्यादा देशों के नीचे है जिन्हें हर एक क्षेत्र की प्रमुख अर्थव्यवस्था के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है.

दूसरा सुधार यह किया गया कि प्रति व्यक्ति आय वृद्धि की दरों को भी शामिल कर दिया गया क्योंकि इनसे आर्थिक कठिनाई कम होती है. इससे भारत (जिसके बारे में उम्मीद है कि वह 2022 में सबसे तेज वृद्धि दर्ज करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था रहेगी) को अपना स्कोर सुधारने में मदद मिली लेकिन उसका दर्जा नहीं ऊपर हुआ. लेकिन इससे विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बरक्स बराबरी करने में मदद मिली, जिनमें वृद्धि दरें प्रायः नीची होती हैं, जबकि इनकी स्थिर या घटती जनसंख्या के आंकड़ों का हिसाब भी लगाया जाता है. मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, ब्याज दरें, आय में वृद्धि— इन चारों का हिसाब रखने के बाद भारत 20 देशों की हमारी सूची में 12वें नंबर पर है.

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लोगों की हालत का अंदाजा देने वाले संशोधित ‘मिज़री इंडेक्स’ का पूरक वह सूचकांक हो सकता है जो आज जैसे उथल-पुथल समय में अर्थव्यवस्थाओं की स्थिरता का अंदाजा दे. 2013 में, भारत मे वित्तीय घाटा और चालू खाता घाटा में बेकाबू वृद्धि ने उसे ‘कमजोर पांच’ अर्थव्यवस्थाओं में शुमार कर दिया था.

आज भारत कैसा प्रदर्शन कर रहा है? बड़े आश्चर्य की बात यह है कि वह अमेरिका और ब्रिटेन दोनों से बेहतर कर रहा है. दूसरी ओर, वह पाकिस्तान और मिस्र को छोड़ बाकी सबके मुक़ाबले बुरा कर रहा है. जहां तक लड़ाकू रूस की बात है, वह बड़े व्यापार सरप्लस के कारण आश्चर्यजनक रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. इसी वजह से जर्मनी और नीदरलैंड भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं.

दुनिया की सबसे बड़ी दूसरी और तीसरी अर्थव्यवस्थाओं, चीन और जापान का क्या हाल है? उनके स्कोर बताते हैं कि दोनों देश आर्थिक प्रबंधन के मॉडल नज़र आ रहे हैं. मिज़री सूचकांक के मूल और संशोधित रूपों में उनका स्कोर सबसे अच्छा है, और दोनों तरह के घाटाओं के मामले में वे औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. वैसे, चीन की वृद्धि दर गिरकर ‘सामान्य’ स्तर (करीब 5 फीसदी) पर पहुंच गई है जबकि उसका वित्तीय घाटा बढ़ गया है. दबाव के लक्षण उभरने लगे हैं.

इस तरह की नाप-तौल अनुभूत आर्थिक स्थिति की पूरी वास्तविकता का एक हिस्सा ही होती हैं. इसलिए उनमें दूसरी नाप-तौल भी जोड़ी जा सकती है, जैसे पूर्ण आय स्तर और गरीबी (क्योंकि वह मुश्किल वक़्त झेलने की व्यक्ति की क्षमता का आकलन करती है), और विषमता भी.

विषमता जितनी ज्यादा होगी, विभिन्न स्तरों के बीच गतिशीलता का मौका कम होगा, जिसे एक और तरह से नापा जा सकता है. इसे ‘ग्रेट गैट्सबी कर्व’ कहा जाता है, जिसका विचार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की टीम के एक अर्थशास्त्री की देन है. उस लिहाज से भारत इन कसौटियों पर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रहा है. इसलिए, जब वह विदेशी शासन से आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है, उसके लिए सोचने के मसले कई हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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