नवाज़ शरीफ के साथ दोस्ती करने के लिए सरकार के एक के बाद एक प्रयासों का सूर्य अब अंततः अस्त हो सकता है|
नवाज़ शरीफ चौसर (महाभारतकालीन एक खेल) में एक और दांव खेलने के लिए शुक्रवार को लंदन से इस्लामाबाद के लिए उड़ान भरेंगे ताकि वह अपनी बेटी और सह-आरोपी मरियम को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के लिए पर्याप्त लंबे समय तक जीवित रह सकें|
लेकिन नवाज़ की स्वदेश यात्रा एक दूसरी वजह से भी महत्वपूर्ण है। यह भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक महत्वपूर्ण अध्याय को खत्म करती है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मुख्य भूमिका निभाई है।
इसलिए इस्लामाबाद हवाई अड्डे पर पहुँचकर जैसे ही नवाज़ शरीफ हथकड़ी पहनने के लिए अपने हाथों की पेशकश करेंगे, डोभाल और उनके पूर्व समकक्ष नासिर जंजुआ द्वारा पर्दे के पीछे की भारत-पाकिस्तान की कहानी का अब खुलकर ज़िक्र किया जा सकता है।
दशकों पुरानी दुश्मनी को ख़त्म करने की कोशिश
पठानकोट और उरी में हमलों और 2016 में हाने वाली सर्जिकल स्ट्राइक के साथ-साथ कुलभूषण जाधव जासूस प्रकरण के बावजूद भी, दिल्ली और रावलपिंडी में दोनों सुरक्षा संस्थान संपर्क में बने रहे थे।
लेकिन दिसंबर 2015 में लाहौर में नवाज़ शरीफ से हाथ मिलाने के बाद उन पर विश्वासघात और धोखे का आरोप लगाते हुए मोदी ने, 2016 की सार्वजनिक रैलियों में, पाकिस्तान के खिलाफ बार-बार अपना गुस्सा जाहिर किया है।
मोदी सही थे। इस तथ्य, कि 25 दिसंबर 2015 को नवाज़ के जन्मदिन पर उनको बधाई देने के लिए मोदी “अचानक” पाकिस्तान गए थे और फिर पाकिस्तानी वायुसेना के एक हेलीकॉप्टर से लाहौर की सीमा पर स्थित राइविंद के लिए एक छोटी उड़ान भरी थी, जहाँ पारिवारिक रियासत मे नवाज़ शरीफ की पोती का निकाह हो रहा था, को दोनों देशों के मध्य बहुत ही बारीकी से कोरियाग्राफ किया गया था।
जैसा कि उस समय विदेश कार्यालय द्वारा बताया गया कि मोदी की लाहौर यात्रा में “अचानक” जैसा कुछ भी नहीं था. तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री और डोभाल पाकिस्तान के सैन्य हेलीकॉप्टर में बैठते हुए स्वयं पाकिस्तानी सैन्य संस्थान के हांथों में पहुँच गए थे।
मोदी अपना विश्वास दिखा रहे थे। वह नवाज़ शरीफ में अपना विश्वास दिखाना चाहते थे। वह पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के मुख्यालय, रावलपिंडी के साथ समझौता करना चाहते थे।
दक्षिण एशिया के सबसे बड़े देश के प्रधानमंत्री के रूप में, तथाकथित दुश्मन पाकिस्तान के साथ भी कनेक्टिविटी और दोस्ती को बढ़ावा देकर मोदी दुनिया को यह दिखाना चाहते थे कि वह वाजपेई की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।
जब मोदी की पाकिस्तान यात्रा के एक हफ्ते के भीतर ही पठानकोट में हमला हुआ तब डोभाल ने फैसला लिया कि भारत का लाहौर के प्रति नज़रिया बदलना नहीं चाहिए। इसलिए जब पाकिस्तानी टीम पठानकोट सेना शिविर, जहां हमला हुआ था, का निरीक्षण करने आई तब डोभाल ने आईएसआई के खुफिया व्यक्ति को टीम का हिस्सा बनने की अनुमति देने का एक अभूतपूर्व कदम उठाया।
पठानकोट हमलों के बाद उरी में हमला हुआ, जिसके बदले में नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक हुई। मोदी क्रोध और रोष प्रकट कर रहे थे जैसा कि उन्होंने अपनी सार्वजनिक रैलियों में बार-बार पाकिस्तान पर एक अविश्वसनीय पड़ोसी होने का आरोप लगाया था
“ईट का जवाब पथर से” मोदी कि प्रतिक्रियाओं मे बार बार नजर आने लगा|
और फिर भी, जब जनवरी 2017 में नवाज़ शरीफ दावोस गए, सर्जिकल स्ट्राइक के सिर्फ तीन महीने बाद, तब उनके पास एक असाधारण आगंतुक सज्जन जिंदल पहुंचे, जो कोलकाता के एक व्यापारी हैं और जेएसडब्ल्यू स्टील के मालिक भी हैं।
जिंदल, जो नवाज़ शरीफ के पुराने दोस्त हैं, को कथित तौर पर शरीफ के बेटों में से एक हमजा के माध्यम से, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की भारत के साथ फिर से संबंधों में विश्वसनीयता की जांच के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।
जाहिर है, मोदी ने पाकिस्तान के साथ शांति बनाने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी। निश्चित रुप से, यहाँ पर विरासत और अंतरराष्ट्रीय पहचान की कामना थी लेकिन मोदी जो एक तेज और चतुर राजनेता हैं, ने स्वीकार किया कि उनके पास वास्तव में दशकों की शत्रुता को बदलने का मौका था।
डोभाल ने इस बार फिर से एक नई चाल चली। वह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री तक पहुँचने के लिए वरिंदर बब्बर से मिले, जो इटली में रहने वाले एक पंजाबी व्यवसायी है और जिनको नवाज़ शरीफ परिवार का मित्र माना जाता है।
तो बब्बर और अप्रैल 2017 के अंत में पाकिस्तान गये। वहां से वे इस्लामाबाद से कुछ ही दूर स्थित एक हिल स्टेशन मुरी गए, जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आराम और मनोरंजन के लिए गए थे।
इतनी सारी शांति पहलों के चलते, पाकिस्तानी सैन्य संस्थान महसूस कर रहा था वह इस चीज को आगे बढ़ने नहीं दे सकता। नवाज़ शरीफ को दिखाया जाना जरूरी था कि पाकिस्तान का मास्टर कौन था।
तो पाकिस्तानी सेना ने जिंदल और बब्बर के आगमन की खबर को पाकिस्तानी मीडिया में लीक कर दिया।
पाकिस्तानी प्रेस यथोचित रूप से अपाहिज था। उन्होंने पूछा कि, जिंदल और बब्बर कौन हैं और उनको मुर्री वीजा के बिना मुर्री जाने की अनुमति कैसे दी गई? (भारत-पाकिस्तान वीजा के संबंध में, वीजा सिर्फ देश के लिए नहीं, बल्कि शहरों के लिए दिया जाता है।)
उतार चढ़ाव
एक के बाद एक अजीत डोभाल की कोशिशें नाकाम की जा रही थीं। अब तक कुलभूषण जाधव मामला जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में तूल पकड़ रहा था – और भारत ने पाकिस्तान की एक सैन्य जेल में बन्द जाधव को वकील दिलवाने के लिए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे सहित अपने सभी दिग्गजों को साथ ले लिया।
कुछ महीनों बाद, जुलाई में, नवाज़ शरीफ स्वयं परेशानी में थे। सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि वे ‘सादिक’ या ‘अमीन’ (ईमानदार और सत्यवादी) नहीं थे क्योंकि उन्होंने अपनी आय पूर्णतया स्पष्ट नहीं की थी, और न केवल उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य घोषित किया बल्कि राजनीति में भाग लेने पर आजीवन प्रतिबन्ध भी लगा दिया। (यह अलग बात थी कि शरीफ को अपने बैंक अकाउंट्स में वह आय प्राप्त नहीं हुई थी।)
यहाँ मच्छर को मारने के लिए रॉकेट-लॉन्चर का उपयोग किया गया।
निश्चित रूप से, पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान अपनी बुद्धिमानी का प्रयोग कर रहा था। नवाज़ शरीफ पाकिस्तान के नियंत्रित लोकतंत्र को बहुत अधिक नुकसान पहुँचा रहे थे। वह वास्तव में मानते थे कि नागरिक सर्वोच्चता जैसी कोई चीज होती है!
विडंबना यह थी कि ‘सादिक’ और ‘अमीन’ वाक्यांश संविधान में ज़िया-युग के संशोधन थे। ज़िया-उल-हक ही थे, जिन्होंने 1980 के दशक में, जब नवाज़ शरीफ कुछ भी नहीं थे और उन्हें कोई नहीं पूछता था, तब उन्हें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की बेनजीर भुट्टो के खिलाफ योग्य प्रतिद्वंद्वी के रुप में ही नहीं बल्कि एक समृद्ध और प्रभावशाली व्यवसायी के रूप में भी बदल दिया।
यहाँ दिल्ली में, डोभाल निश्चित रूप से हार मानने वाले नहीं थे। नवाज़ के उत्तराधिकारी शाहिद खाकान अब्बासी के साथ उनके संपर्क कायम रहे। एनएसए जांजुआ संपर्क में बने रहे। दिसंबर 2017 में दोनों लोग बैंकाक में मिले थे।
अब जहाँ नवाज़ शरीफ दस साल के लिए और उनकी राजनीतिक विरासत पाने वाली मरियम दो साल के लिए जेल जाने को तैयार हैं वहीं पाकिस्तान एक दिलचस्प चरण में प्रवेश कर रहा है। नवाज सहानुभूति मत के लिए निश्चित रूप से प्रयास करेंगे। वे 25 जुलाई के चुनाव अभियान से पहले के शेष दिनों में से कुछ दिनों तक जनता बनाम सेना आंदोलन को स्थापित करने की कोशिश करेंगे।
सेना के पसंदीदा इमरान खान, या यहां तक कि नवाज़ शरीफ के छोटे भाई शाहबाज के लिए सेना की दिलचस्पी में बहुत देर हो सकती है। कम से कम इस समय के लिए, नवाज़ शरीफ एक इतिहास हैं।
दिल्ली, जो नजर जमाये हुए है, के लिए सभी विकल्प अभी भी खुले हैं। अपने अंतिम वर्ष में, मोदी सरकार चुनाव में आने से पहले कोइ दांव खेल सकती है। सार्क शिखर सम्मेलन इसके लिए एक अवसर हो सकता है जिसकी वर्ष 2018 के अंत से पहले इस्लामाबाद में आयोजित होने की उम्मीद है।
हालाँकि हो सकता है कि ऐसा संभव ना हो। कश्मीर में अस्थिरता और पूरे देश में भीड़ द्वारा मुसलमानों की हत्या का विषय बहुत अधिक अनिश्चितताओं भरा है।
कम से कम यह अवश्य कह सकते हैं कि महाभारत के ‘चौपड़’ खेल के उत्साही खिलाड़ी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में आज भी हैं।
Read in English : Despite Uri and surgical strikes, Modi-Doval kept in touch with Pakistan