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Sunday, 13 October, 2024
होममत-विमतप्रिय उदयनिधि, सनातन धर्म कोई राजनीतिक पंथ नहीं है जिसे चुनाव में हराया जा सके

प्रिय उदयनिधि, सनातन धर्म कोई राजनीतिक पंथ नहीं है जिसे चुनाव में हराया जा सके

सोशल इंजीनियरिंग में किसी गैर-इकाई से मुश्किल अवधारणाओं को समझने की उम्मीद नहीं की जा सकती. ये बयान डीएमके के खिसकते वोट बैंक को मजबूत करने के लिए दिए जा रहे हैं.

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने “सनातन धर्म को ख़त्म करने” के अपने इरादे की घोषणा करके पूरे देश में खलबली मचा दी है, चाहे इसका कोई भी मतलब हो. उन्होंने 2 सितंबर को चेन्नई में तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा आयोजित सनातन उन्मूलन कॉन्क्लेव को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की. सम्मेलन, जिसमें हिंदू धर्म को खत्म करने के एजेंडे पर बातचीत होनी थी, में कम्युनिस्ट नेताओं और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के सदस्यों ने भी भाग लिया था.

डीएमके नेता के गैर-जिम्मेदाराना और बेहद आपत्तिजनक बयान ने विपक्षी गठबंधन में दरार पैदा कर दी है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और आम आदमी पार्टी (आप) ने पहले ही डीएमके नेता के बयान से खुद को दूर कर लिया है. हालांकि, अब बाकी विपक्षी दल कुछ भी कहें, लेकिन भारी नुकसान हो चुका है. तथाकथित द्रविड़ पार्टियां अतीत में केंद्र सरकार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए), दोनों गठबंधन का हिस्सा रही हैं.

इन पार्टियों ने 2014 में अपनी राजनीतिक उपयोगिता और प्रभाव खो दिया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने दम पर सरकार बनाने वाली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. तमिलनाडु में जमीनी स्तर पर बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व और पार्टी संगठन की कमी ने द्रमुक के राजनीतिक बर्तन को अब तक उबाल कर रखा है. कांग्रेस की स्थिति और भी खराब है, क्योंकि वह वहां पांच दशकों से अधिक समय से वापसी करने में असमर्थ रही है.

तमिलनाडु में राजनीतिक स्तर पर विपक्ष की पूरी तरह से अनुपस्थिति के चलते द्रमुक काफी उत्साहित दिख रही है. लेकिन पार्टी को यह समझना चाहिए कि सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर राज्य शेष भारत से अलग नहीं है. देश में हिंदू समर्थक भावना का प्रबल प्रवाह है, जो राज्यों में हिंदुत्व विरोधी संगठनों और पार्टियों के खिलाफ आक्रोश में बदल सकता है. द्रमुक वंशज और उनके साथी यात्रियों को पता होना चाहिए कि सनातन धर्म कोई राजनीतिक पंथ नहीं है जिसे चुनाव में हराया जा सके.

सनातन धर्म कोई ‘धर्म’ नहीं है

दरअसल, डीएमके और बचे हुए वामपंथी जिस सनातन धर्म को नष्ट करना चाह रहे हैं, वह कोई धर्म ही नहीं है. यह एक व्यापक शब्द है जो हिंदू धर्म के ताने-बाने में बुने हुए विभिन्न दर्शनों, रूपों और पूजा के तरीकों के समूह को दर्शाता है. ‘सनातन’ शब्द किसी ऐसी चीज़ की ओर इशारा करता है जो शाश्वत है और जो हमेशा अपरिवर्तित और अप्रभावित रहती है. फिर, ‘धर्म’ शब्द का अर्थ धर्म नहीं है और इसे किसी भी प्रकार की पूजा के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए.

धर्म एक बहुत व्यापक अवधारणा है जिसका अंग्रेजी में कोई समकक्ष शब्द नहीं है. एक जटिल घटना होने के कारण, धर्म परिभाषा में असमर्थ हो जाता है. हालांकि, इसकी निकटतम व्याख्या यह है कि यह सत्य की खोज में विद्वानों द्वारा प्राचीन साहित्य और टिप्पणियों की एक विशाल श्रृंखला का आसुत रूप है.


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जो लोग सनातन धर्म को नष्ट करना चाहते हैं, उन्हें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि ये दोनों शब्द एक-दूसरे से जुड़कर एक धर्म की ओर संकेत करते प्रतीत होते हैं. कोई भी औसत दर्जे के राजनीतिक नौसिखिए और सामाजिक इंजीनियरिंग में एक गैर-विशेषज्ञ से उन जटिल अवधारणाओं को समझने की उम्मीद नहीं कर सकता है जिन्हें वह और उनकी पार्टी नष्ट करना चाहते हैं. ये बयान पार्टी के वोट बैंक को मजबूत करने के लिए दिए जा रहे हैं, जो खिसकता नजर आ रहा है.

DMK सत्ता में कैसे आई?

द्रमुक की उत्पत्ति द्रविड़ कड़गम में हुई थी, जो 1944 में ईवी रामासामी नाइकर (ईवीआर) द्वारा स्थापित एक सामाजिक आंदोलन था. इससे पहले, वह 1925 में शुरू किए गए आत्म-सम्मान आंदोलन का हिस्सा थे और उन्होंने जस्टिस पार्टी के साथ भी काम किया था, जो रूस में 1917 अक्टूबर क्रांति के तुरंत बाद स्थापित किया गया था. इन सभी संगठनों का विलय होकर द्रविड़ कड़गम का निर्माण हुआ. हिंदुओं के बीच जाति संरचना का विरोध करने के अलावा, संगठन ने “अलग तमिलनाडु” आंदोलन का भी नेतृत्व किया.

अपनी ओर से, अंग्रेजों ने द्रविड़ कड़गम और उसके नेतृत्व को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस को चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित किया था. आत्म-सम्मान आंदोलन के रूप में जो शुरू हुआ था वह जल्द ही ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन में बदल गया. बाद में द्रविड़ कड़गम के मेंबर्स ने मंदिरों को नष्ट करना और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ना शुरू कर दिया. द्रविड़ कड़गम ने भी अंग्रेजों का समर्थन किया और इसके नेता ने स्वतंत्रता की निंदा करने के लिए स्वतंत्रता दिवस को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने का आह्वान किया था.

हिंदू धर्म विरोधी गतिविधियों के अलावा, द्रविड़ कड़गम ने ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन किया, जो बाद में समर्थन और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बड़ी संख्या में कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़ गए. 1947 के बाद कांग्रेस को काफी लोकप्रियता मिली और वह राज्य में सत्ता में आई. 1952 से 1954 तक मद्रास राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री सी राजगोपालाचारी या राजाजी ने 1959 में कांग्रेस छोड़ दी और डीएमके के दिग्गज सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व में एक संयुक्त कांग्रेस विरोधी विपक्षी मंच के साथ जुड़ गए. राजाजी, जो हिंदू धर्म, रामायण और महाभारत के एक महान लेखक भी हैं, ने स्कूलों में हिंदी का अनिवार्य अध्ययन और प्राथमिक शिक्षा के लिए मद्रास योजना की शुरुआत की थी. साथ ही उन्होंने पारंपरिक वंशानुगत काम को बढ़ावा देने की भी वकालत करती थी, जिससे जाति पदानुक्रम को बढ़ावा मिलता था.

विडंबना यह है कि 1967 में नास्तिक द्रविड़ पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए एक ब्राह्मण और अनुभवी कांग्रेस नेता अकेले जिम्मेदार थे. लगभग 56 साल बाद, यह द्रमुक मुख्यमंत्री का बेटा है जो सनातन धर्म को खत्म करना चाहता है.

तमिलनाडु कांग्रेस में अब ऐसे दिग्गज नहीं हैं जो पार्टी को ऐसे संदिग्ध तत्वों से दूर रख सकें जिनका इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया जाना तय है. बीजेपी, अपनी ओर से बढ़त हासिल करती दिख रही है और चुनावी अंकगणित में उसकी स्थिति में सुधार होने की संभावना है. यदि कांग्रेस अपने गले में पड़े संकट को दूर करने के लिए पर्याप्त साहस जुटा ले, तो वह राज्य में जीवित रह सकती है और तमिलनाडु की राजनीति में वापसी करने में भी सक्षम हो सकती है. हालांकि, इसके शीर्ष नेतृत्व की खोखली प्रकृति को देखते हुए यह मुश्किल लगता है.

(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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