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Friday, 10 May, 2024
होममत-विमतBRICS का विस्तार हो चुका है, अब यह अमेरिका विरोधी गुट नहीं बन सकता. संतुलन बनाना भारत पर निर्भर है

BRICS का विस्तार हो चुका है, अब यह अमेरिका विरोधी गुट नहीं बन सकता. संतुलन बनाना भारत पर निर्भर है

BRICS को हमेशा पश्चिम को संतुलित करने के लिए स्थापित एक गुट के रूप में माना जाता था. लेकिन अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और यूएई के जुड़ने के बाद खेल बिल्कुल बदल गया है.

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दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित पांच सदस्यीय BRICS के शिखर सम्मेलन में, जिसमें दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्था, भारत और चीन के नेतृत्व में BRICS उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ एक अजेय ग्रुप के रूप में विस्तार और विकसित होने के लिए तैयार है. BRICS को हमेशा पश्चिम को संतुलित करने के लिए स्थापित एक गुट के रूप में माना जाता था, खासकर 2008-2009 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद. BRICS का पश्चिम-विरोधी, या यूं कहें कि अमेरिका-विरोधी झुकाव, इसकी शुरुआत से ही स्पष्ट था. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रभुत्व और पश्चिम में चीन की आर्थिक चुनौती ने BRICS के पूरे कामकाज में एक नया आयाम जोड़ा.

भारत, ब्राज़ील, रूस और चीन की उच्च-स्तरीय बैठकों की एक श्रृंखला के कारण 2009 में BRIC का गठन हुआ, जिसे बाद में न्यूयॉर्क में एक बैठक के दौरान 2010 में दक्षिण अफ्रीका को शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया. विडंबना यह है कि तेरह वर्षों के बाद, दक्षिण अफ्रीका और पश्चिमी दुनिया के बीच संबंधों में थोड़ी खटास आ गई है. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा उस “शांति दल” का हिस्सा थे जो यूक्रेन और फिर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने के लिए मास्को गए थे, जिन्हें उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) द्वारा जारी वारंट के बाद गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने महिलाओं के हाशिए पर जाने और खराब आर्थिक विकास के लिए उपनिवेशवाद और रंगभेद को भी जिम्मेदार ठहराया था.

उन्होंने कहा था, “हम अफ्रीका में जैसे-जैसे आगे बढ़ना और विकास करना चाहते हैं, हम अपने महाद्वीप की महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिन्हें उपनिवेशवाद के वर्षों के दौरान पीछे रखा गया है. हमें अपने महाद्वीप की महिलाओं को फ्री छोड़ने की जरूरत है ताकि वे व्यापार कर सकें, व्यवसाय कर सकें और हमारे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को विकसित कर सकें.”

चीन ने अपनी ओर से BRICS व्यापार मंच से अमेरिका पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ा. संयोग से, जब शी बैठक में शामिल नहीं हुए, तो उनके वाणिज्य मंत्री वांग वेन्ताओ ने ‘वर्चस्ववादी’ अमेरिका पर कटाक्षों से भरा एक पहले से तैयार बयान पढ़ा. अमेरिका का नाम लिए बिना, बयान में विश्व नेताओं को सलाह दी गई कि वे “नए शीत युद्ध की खाई में न जाएं.”

कड़े शब्दों में दिए गए बयान में अमेरिका को एक ऐसा देश करार दिया गया, जो उभरते बाजारों और विकासशील देशों को पंगु बनाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर रहा है. बयान में कहा गया, “जो कोई भी तेजी से विकास कर रहा है, अमेरिका उसे अपने नियंत्रण में लेना चाहता है. जो भी गति के साथ आगे बढ़ना चाहता है वह उसमें रुकावट पैदा करने की कोशिश करता है और अपना निशाना बना लेता है.”

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विवादों से दूर रहें

पश्चिम/अमेरिका की इस आलोचना के बीच यह है कि BRICS 2023 शिखर सम्मेलन में दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए: नए सदस्यों को स्वीकार करना और डी-डॉलरीकरण. हालांकि, दोनों ही कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है. नए सदस्यों को शामिल करने के लिए सभी पांच सदस्यों की सहमति और एक विस्तृत प्रक्रियात्मक ढांचे की आवश्यकता होगी. वर्तमान में, छह देशों – अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात – को उस ब्लॉक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है जिसकी सदस्यता जनवरी 2024 से प्रभावी होगी. भारत और चीन दोनों ने नए सदस्यों को आमंत्रित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने BRICS सदस्यता के विस्तार का पूर्ण समर्थन करने के भारत के रुख को दोहराया और सर्वसम्मति से आगे बढ़ने का स्वागत किया. उन्होंने बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में सुधार की भी वकालत की. भारत के आह्वान का समर्थन करते हुए शी ने कहा, “हमें BRICS के विस्तार प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है. वैश्विक शासन को अधिक न्यायसंगत बनाने के लिए अपनी ताकत और अपनी बुद्धि को एकजुट करने की जरूरत है.”

हालांकि, चीन ने सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति स्थापित की और अब दोनों BRICS के सदस्य होंगे, लेकिन विस्तार करने के बाद भी इस संगठन के लिए अमेरिका से निपटना पहले की तरह आसान नहीं होगा. सऊदी अरब नहीं चाहेगा कि अरब जगत के मामलों में ईरान कोई भूमिका निभाए. ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध ईरान में विकास परियोजनाओं के लिए BRICS के न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) से धन बढ़ाने में एक गंभीर बाधा होगी. भारत और चीन दोनों चाबहार बंदरगाह के विकास को लेकर संशय में हैं और उन्हें एनडीबी से फंडिंग की आवश्यकता होगी.

भले ही सदस्यों और गैर-सदस्यों को आर्थिक सहायता प्रदान करने पर सहमति हो, लेकिन राजनीतिक, रणनीतिक और क्षेत्रीय संघर्षों के संबंध में संभावित मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, 2011 में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) ने संयुक्त राष्ट्र से फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देने के लिए कहा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के अस्थायी सदस्यों के रूप में ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका इस प्रस्ताव के लिए मतदान में स्थायी सदस्यों रूस और चीन के साथ शामिल हुए. इसके बावजूद, इज़राइल ने अपनी वैश्विक पहुंच में विविधता लाने के उद्देश्य से भारत, रूस और चीन के साथ अपने आर्थिक और सुरक्षा संबंधों का विस्तार किया है.

मॉस्को को ड्रोन की आपूर्ति करने के अलावा (कथित तौर पर रूस-यूक्रेन संघर्ष से पहले), ईरानी रक्षा और सशस्त्र बल रसद मंत्रालय ने इजराइल में लक्ष्य पर हमला करने में सक्षम मोहजेर -10 ड्रोन का अनावरण किया. नव विस्तारित BRICS को इज़राइल-हिज़बुल्लाह तनाव से उत्पन्न होने वाले संभावित संघर्ष की गोलीबारी से बचने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

ऐसा दिख रहा है कि भारत वर्तमान टीम को नाराज किए बिना BRICS के नए अवतार के बीच संतुलन लाने के लिए काफी अच्छी स्थिति में है और साथ ही अपने पश्चिम-विरोधी, अमेरिका-विरोधी, आक्रोश से भी दूर है. यह एक कठिन काम हो सकता है लेकिन नई दिल्ली इस महत्वपूर्ण मोड़ पर नहीं लड़खड़ा सकती क्योंकि उसका लक्ष्य वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक गतिशीलता में केंद्र स्तर पर अपने आप को प्रस्थापित करना है.

 

(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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