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Saturday, 21 December, 2024
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‘कोविड, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा’- मोदी सरकार की ‘विफलताओं’ का व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कैसे बचाव कर रही है

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फॉर्वर्ड मैसेज सुबह और शाम मोबाइल स्क्रीन पर लोगों को फील गुड कराती रहती है.

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मोदी सरकार के केंद्र में सात वर्ष पूरे हो गए हैं. इन सात वर्षों के कार्यकाल का जश्न माने के लिए भले ही सरकार और भाजपा के पास कुछ खास न हो लेकिन ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ‘ के फॉर्वर्ड मैसेज विदेश नीति, आर्थिक नीति से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा और कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त करने जैसी उपलब्धियां सुबह और शाम मोबाइल स्क्रीन पर लोगों को फील गुड कराती रहती है.

व्हाट्सएप पर निम्नलिखित उपलब्धियों को गिनाया जा रहा है:

उपलब्धि 1: कोरोना महामारी में केन्या जैसे गरीब देशों समेत पूरी दुनिया द्वारा की गयी मदद को भी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में उपलब्धि के तौर पर बताया जा रहा है. यह बताया जा रहा है कि यदि मोदी जी  ने दूसरे देशों को वैक्सीन नहीं भेजी होती तो आज दुनिया हमारी मदद नहीं करती.

ये मालूम होना चाहिए कि मनमोहन सिंह सरकार ने आपदा के समय विदेशी मदद लेने की परिपाटी को रोक दिया था. आज इस महामारी में देश के लोगों ने न सिर्फ अपनी जान गवाईं बल्कि विदेशी मदद ने उनके ‘आत्मसामान को भी ठेस पहुंचाया’ है. लेकिन फॉर्वर्ड संदेशों में इसे तो मोदी का मास्टरस्ट्रोक ही बताया जा रहा है.

उपलब्धि 2: केंद्र सरकार का दावा लाखों कोविड बेड बनाने का था लेकिन जनता तो बगैर ऑक्सीजन और अस्पताल के ही तड़पकर मर गयी. इस बदइंतजामी को लेकर जब सरकार पर सवाल उठाए गए तो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में एनडीए और यूपीए के द्वारा किए एम्स निर्माण का तुलनात्मक डेटा वाला मैसेज तेज गति से फॉर्वर्ड होने लगा.

एक तरफ मनमोहन सिंह के द्वारा मात्र एक एम्स बनाने की बात तो दूसरी तरफ पूर्व की वाजपेयी और वर्तमान सरकार द्वारा 21 एम्स की बात व्हाट्सएप पर घूमने लगी. जबकि सच्चाई यह है कि वाजपेयी के समय में जिन 6 एम्स की घोषणा की गयी थी उनका निर्माण कार्य मनमोहन सरकार के कार्यकाल में पूरा किया गया.

वर्तमान की मोदी सरकार ने 15 एम्स के निर्माण की घोषणा की थी. इनमें भी वर्ष 2015 में मंजूरी मिलने वाले एम्स छह वर्ष बीतने के बाद भी पूरी तरह से चालू नहीं हो सके हैं. दूसरी तरफ 2016 और 2017 में जिन एम्स को मंज़ूरी मिली वहां भी काम 80% ही पूरा हो सका है.

बाद के वर्षों में मंजूरी पाने वाले एम्स के चालू होने की उम्मीद करना ही बेमानी है. इन सारे तथ्यों की जानकारी खुद सरकार ने ही संसद में दी है. सबसे हैरान कर देनी वाली बात यह है कि ऐसे भ्रामक मैसेज बिहार के पूर्व पथ निर्माण मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंद किशोर यादव के हवाले से ट्वीट किया गया.


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उपलब्धि 3: देश के आर्थिक हालात बेहद खराब हैं. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) -7.3 % पर आ गयी है. प्रति व्यक्ति आय मामले में भारत अपने पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से भी पिछड़ गया है. देश में भीषण बेरोज़गारी ( बेरोज़गारी दर – 11.9 %) है. नोटबंदी और जीएसटी के कारण बर्बाद हुई खुदरा व्यापार अभी तक ठीक से खड़ी नहीं हो सकी है. स्थिति ऐसी है कि सरकार भी आर्थिक मुद्दों पर बात करने से बचना चाहती है.

लेकिन, ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री’ ने इस मोर्चे पर भी सरकार को अव्वल करार दिया है. आए दिन फॉर्वर्ड मैसेज में देश आर्थिक रूप से तरक्की कर रहा है. ऐसा विश्वास दिलाने के लिए ये बताया जा रहा है कि अब देश के पास फॉरेन रिज़र्व (विदेशी पूंजी) अधिक है. विदेशी कर्ज़ कम हो गया है. जबकि सच्चाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार भारत का ऋण अनुपात सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले 74 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है.

उपलब्धि 4: पेट्रोल, रसोई गैस, सरसों तेल जैसी चीजों के दाम आसमान छू रहा है. लेकिन व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ‘प्रोफेसरों ‘ का मानना है कि देश के सामने महंगाई कोई अहम मुद्दा नहीं है इसलिए इस विषय पर कोई पढ़ाई ही नहीं होगी.

बावजूद इसके कभी-कभी कुछ छात्र अपने मन से रिसर्च पेपर को व्हाट्सएप पर फॉर्वर्ड करते हुए यह बताने की कोशिश करते हैं कि मोदी को हमने तेल-साबुन के दाम कम करने के लिए नहीं चुना है. राम मंदिर और अनुच्छेद-370 जैसे ‘बड़े मुद्दे’ के समक्ष महंगाई तो कुछ भी नहीं.

हालांकि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में यदा-कदा सेमिनार का आयोजन कर महंगाई के कारणों की पड़ताल भी की जाती है और इसके लिए कभी पूर्व की कांग्रेस सरकार को ज़िम्मेदार बताया जाता है तो कभी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार के कीमतों को.


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उपलब्धि 5: विदेश नीति के मोर्चे पर भी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी सरकार को डिस्टिंक्शन मार्क्स देता है. देश के नागरिकों की जान भले ही समय पर वैक्सीन न लगने के कारण नहीं बच सकी परंतु व्हाट्सएप का नैरेटिव वैक्सीन को देश के लिए नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मैत्री की कूटनीति के रूप में देखता है. और इस प्रकार अपने नागरिकों के जीवन का बलिदान देकर मोदी के नेतृत्व में भारत ‘विश्वगुरू ’ बनता है.

लेकिन, यदि विदेश नीति की समीक्षा की जाए तो आज भारत के संबंध न सिर्फ पाकिस्तान और चीन के साथ खराब हैं बल्कि नेपाल जैसे पड़ोसी मुल्क से भी हमारा संबंध बहुत अच्छा नहीं है.

अमेरिकी चुनाव के समय ‘अबकी बार ट्रंप सरकार ‘ का नारा लगाकर मोदी ने जो बाइडन की सरकार के साथ पहले ही संबंध खराब कर लिया है. कई जानकारों का मानना है कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान वैक्सीन के रॉ मैटिरीयल को लेकर बाइडन सरकार की ना-नूकुर मोदी सरकार की कूटनीतिक असफलता को ही दर्शाता है.

उपलब्धि 6: सबसे ज़्यादा उत्साह राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर रहा है. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद तो नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी मे आसमान पर थी. लेकिन यदि तथ्यों पर गौर करें तो हम देखते हैं कि आज देश अनेकों चुनौतियों से एक साथ घिरा हुआ है.

चीन के साथ सीमा विवाद अपने चरम पर है. कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर भारत के क्षेत्रों पर कब्ज़ा जमाए हुए है.

वर्तमान सरकार चीन को यह बात कहने की स्थिति में भी नहीं है कि अप्रैल 2020 के पूर्व की स्थिति बहाल की जाए. चीन के साथ हमारी बातचीत का दायरा मात्र सेनाओं के वापसी (डिसइंगेजमेंट ) तक ही सीमित है. इसका मतलब क्या मोदी सरकार ने चीन द्वारा हड़पे गए हमारे क्षेत्र को यथार्थ मान लिया है?

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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