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Saturday, 12 October, 2024
होममत-विमतकोरोनावायरस: मोदी सरकार की शह में छद्म विज्ञान से हो रहा है विज्ञान का कत्ल

कोरोनावायरस: मोदी सरकार की शह में छद्म विज्ञान से हो रहा है विज्ञान का कत्ल

सत्ता पक्ष कि शह कि वजह से आज भारत में तार्किकता और वैज्ञानिकता का स्पेस कम होता जा रहा है और छद्म विज्ञान और अंधविश्वास ने उसकी जगह ले ली है.

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भारत में विज्ञान का क़त्ल होना आम बात है. आये दिन हम विज्ञान का बेरहमी से क़त्ल होता देखते रहते हैं. भारत के प्राचीन इतिहास पर नज़र उठाकर देखें तो इस देश में ये नया नहीं है. सदियों से इस देश ने वैज्ञानिक चिंतन और विमर्श को समुचित स्थान नहीं दिया है. यही वजह है कि आज भी बारिश नहीं होने पर मेढक और मेढकी की शादी कराने जैसा अंधविश्वास कायम हैं. पर हाल के वर्षों में अवैज्ञानिक विचारधारा को सत्ता का संरक्षण मिलना नई प्रवृति है. सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि अवैज्ञानिकता को ऐसे पेश किया जाता है जैसे ये विज्ञान पे टिकी हो.

छद्म विज्ञान एक ऐसे दावे, आस्था या प्रथा को कहते हैं जिसे विज्ञान की तरह प्रस्तुत किया जाता है, पर जो वैज्ञानिक विधि का पालन नहीं करता है. अध्ययन के किसी विषय को अगर वैज्ञानिक विधि के मानदण्डों के संगत प्रस्तुत किया जाए, पर वो इन मानदण्डों का पालन नहीं करे तो उसे छद्म विज्ञान कहा जा सकता है. छद्म विज्ञान के ये लक्षण हैं: अस्पष्ट, असंगत, अतिरंजित या अप्रमाण्य दावों का प्रयोग; दावे का खंडन करने के कठोर प्रयास की जगह पुष्टि पूर्वाग्रह रखना, विषय के विशेषज्ञों द्वारा जांच का विरोध; और सिद्धांत विकसित करते समय व्यवस्थित कार्यविधि का अभाव.

छद्म विज्ञान शब्द को अपमानजनक माना जाता है, क्योंकि ये सुझाव देता है किसी चीज को गलत या भ्रामक ढंग से विज्ञान दर्शाया जा रहा है. इसलिए, जिन्हें छद्म विज्ञान का प्रचार या वकालत करते चित्रित किया जाता है, वे इस चित्रण का विरोध करते हैं. विज्ञान एम्पिरिकल अनुसंधान से प्राकृतिक जगत में अंतर्दृष्टि देता है, इसलिए ये देव श्रुति, धर्मशास्त्र और अध्यात्म से बिलकुल अलग है.

आजकल भारत में भी सत्ता पक्ष द्वारा छद्म विज्ञान के सहारे जनता को भ्रमित करने कि कोशिश हो रही है. देश के प्रधानमंत्री का वो बयान मीडिया कि सुर्ख़ियों में आया था जब उन्होंने कहा था कि गणेश का सर काटने के बाद उसकी जगह हाथी का सर लगा देना दुनिया कि पहली सर्जरी थी, अगर ऐसा था तो जब एकलव्य का अंगूठा कटा तो उसकी सर्जरी क्यूं नहीं हो पायी? त्रिपुरा के सीएम विप्लव देव ने कहा था कि महाभारत काल में इंटरनेट और सेटेलाइट था.

पूर्व मानव संसाधन मंत्री के उस बयान ने भी मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी जब उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक डार्विन के सिद्धांत को ही नकार दिया था. वर्तमान भाजपा सरकार और इनसे जुड़े लोगों द्वारा ऐसे बयान अब आम हो गए हैं. अभी कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री ने कोरोनावायरस से लड़ने वाले लोगों को धन्यवाद देने के लिए थाली बजाने और ताली बजाने कि बात कि तो उसको छद्म विज्ञान के सहारे वैज्ञानिकता से जोड़ा जाने लगा और कहने लगे कि उत्पन्न ध्वनि से बीमारी भाग जाएगी.

हद तो तब हो गयी जब पीएम मोदी के ताज़ा आग्रह, जिसमें उन्होंने लोगों से दीया जलाने का आग्रह किया है, उसके बारे में भारत सरकार ने कहा कि दीया जलाना एक यौगिक क्रिया है. बाद में जब इसकी आलोचना होने लगी तो उस ट्वीट को हटा लिया गया.

पिछली सरकार में शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी की वह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुयी थी जिसमें वो एक ज्योतिषी को हाथ दिखा रही हैं. जब सरकार का मुखिया ही अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहा हो तो देश का भगवान ही मालिक है. तभी तो सोशल डिस्टेन्स वाले दौर में लोग थाली बजाकर जुलूस निकालने लगते हैं.

भाजपा सरकार के 2014 सत्ता में आने के बाद देश कि स्वास्थ्य सेवाएं भी बदहाल हुयी हैं. नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड ऑफ़ हॉस्पिटल ने अस्पतालों के लिए जो शर्तें निर्धारित की हैं उनसे बड़े अस्पताल तो पनपे मगर छोटे शहरों में छोटे अस्पताल मुश्किल में आ गए. नतीजा स्वास्थ्य सेवाओं का जो विस्तार होना था वो नहीं हो पाया.

यही वजह है कि आज जब कोरोनावायरस से लड़ने के लिए पीपीई और वेंटिलेटर जैसी आवश्यक चीज़ें हर जगह उपलब्ध नहीं है. 2020 के बजट को ही देखें तो एम्स के बजट से 109 करोड़ कम कर दिए गए. केन्द्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नाईक ने कहा कि ब्रिटेन के प्रिंस चाल्स आयुर्वेदिक दवाओं से ठीक हुए. जाहिर सी बात है कि यह सरकार वैज्ञानिकता के खिलाफ है.

अभी पूरी दुनिया कोरोनावायरस महामारी से जूझ रही है. दुनिया के सभी देशों के वैज्ञानिक इस बीमारी की दवा के लिए रिसर्च में लगे हैं. लेकिन भारत में सत्ता पक्ष से जुड़े लोग इस बीमारी के इलाज के लिए अजीब तरह कि बात कह रहे हैं केन्द्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि धूप में बैठने से कोरोनावायरस नहीं होता.

संक्रमण के शुरुआती दौर में अजीब तरह कि बातें की गईं मसलन गोबर लेपने से कोरोना दूर होगा, गाय का पेशाब पीने से कोरोनावायरस भागेगा, कहीं किसी पेड़ से लिपटकर, कहीं किसी बाबा जी का तावीज़ से कोई कोरोना का उपचार निकालने लगा. सोशल मीडिया पर इससे जुड़े काफी वीडियो भी वायरल हुए. और तो और इसे लोग वैज्ञानिकता से जुड़ा हुआ भी बताने लगे.

सबसे दिलचस्प पहलू तो ये है कि इस छद्म विज्ञान कि आलोचना करने वालों का ही उलटे मज़ाक उड़ाया जाता है. सत्ता पक्ष की शह कि वजह से आज भारत में तार्किकता और वैज्ञानिकता का स्पेस कम होता जा रहा है और छद्म विज्ञान और अंधविश्वास ने उसकी जगह ले ली है. ऐसा होना लाज़िमी भी है क्यूंकि जब देश के प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और चीफ मिनिस्टर ही अंधविश्वास के पक्ष में खड़े हों तो छद्म विज्ञान को ही विज्ञान माना जायेगा.

आज जब कोरोनावायरस के खिलाफ पूरी दुनिया में जंग तेज़ हो गयी है और धर्म बनाम विज्ञान कि बहस चल पड़ी है. तो उम्मीद कि जानी चाहिए कि भारत को ‘छद्म विज्ञान’ और ‘छद्म वैज्ञानिकों’ से मुक्ति मिलेगी.

(लेखक डॉ उदित राज, पूर्व लोकसभा सदस्य एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

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4 टिप्पणी

  1. Ek congresi Hamesa desh droh wali hi bat karega. Jise Puri duniya se tarife mil rahi hai use hi Burbank kahta hai ye. To Soch lo kon hai Burbank. Inke sasan me Hindustan me hinduwo Ka Katla hota tha to wo thik tha. Abhi Hindu has rahe hai to bhaisahab ko mirchi lag rahi hai

  2. All these steps are being taken by PM to unite the Indians to fight against CORONA by following guidelines given by govt deptt. Research on vaccine and testing kits is going on full swing alongwith govt monitored production of masks, PPE and ventilators.

  3. dr udit raj you can only say and understand what you have learned but you need to know more about indian heritage and our culture so please gather proper knowledge before writing such articles.
    I do not deny science it is based on facts but it is developed by humans only and it cannot be perfect

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