वीडियो कांफ्रेंसिंग से हो रही सुनवाई के सीधे प्रसारण की संभावना की राह में हैं कुछ रोड़े हैं. भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों में कोरोनावायरस महामारी फैलने और इस संक्रमण से बचाव के लिये सामाजिक और शारीरिक दूरी बनाये रखने के प्रयास हमारे देश की न्यायपालिका के लिये वरदान बन गये हैं. कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के सरकार के प्रयासों के तहत देश में लॉकडाउन के दौरान जब न्यायपालिका में सामान्य कामकाज ठहरा तो शीर्ष अदालत ने अपने यहां और उच्च न्यायालयों में सिर्फ ‘अत्यावश्यक महत्व के मुकदमों’ की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से करने का निश्चय किया.
प्रत्येक राज्य की जिला अदालतों में भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की व्यवस्था सुनिश्चित करने के प्रयास किये जा रहे हैं. इस प्रक्रिया को अपनाने का मकसद न्यायालय कक्ष और न्यायालय परिसर में वकीलों और वादकारियों की उपस्थिति न्यूनतम करना रहा है.
कोरोनावायरस महामारी की वजह से भले ही उच्चतम न्यायालय और कई उच्च न्यायालयों में ‘अत्यावश्यक मुकदमों’ की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से होने लगी है, लेकिन वर्तमान व्यवस्था के तहत हो रही सुनवाई या राष्ट्रीय महत्व के अन्य मुकदमों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण अभी भी मृगतृष्णा ही (दूर की कौड़ी साबित हो रहा) है.
ऑडियो रिकॉर्डिंग मिल सकती है वेबसाइट पर
सितंबर 2018 के बाद से उम्मीद की जा रही थी कि देशवासियों को महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का सीधा प्रसारण देखने और सुनने का मौका मिलेगा. लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका, लेकिन निकट भविष्य में उन्हें अदालत की कार्यवाही की रिकार्डिंग अगले दिन न्यायालय की वेबसाइटों पर सुनने और पढ़ने के लिये मिल सकती हैं.
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इसका संकेत उच्चतम न्यायालय की ई-समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से उच्च न्यायालयों की ई-समितियों के अध्यक्ष न्यायाधीशों के साथ बैठक में हुई चर्चा से मिलता है.
बहरहाल, कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप के दौरान जब उच्चतम न्यायालय ने ‘अत्यावश्यक महत्व के मुकदमों’ की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से करने का निश्चय किया तो एक बार फिर महत्वपूर्ण न्यायिक कार्यवाही का सीधा प्रसारण देखने की उम्मीद उमंगे भरने लगीं थीं.
उच्चतम न्यायालय ने कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर देश में लागू लॉकडाउन की वजह से शहरों से बड़े पैमाने पर कामगारों का गांवों की ओर पलायन, इन कामगारों के लिये खाना-पानी और ठहरने की व्यवस्था के साथ ही रोजगार गंवाने वाले श्रमिकों को उनके पारिश्रमिक का भुगतान, कोरोना महामारी पर जीत हासिल करने में जुटे डाक्टरों, नर्स, मेडिकल स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों के पास वैयक्तिक सुरक्षा सामग्री (पीपीई) की कमी, कोरोनावायरस संक्रमण की जांच के लिये निजी प्रयोगशालाओं को अधिकतम 4,500 रुपए लेने संबंधी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की अनुमति, बाजार से मास्क और सैनेटाइज़र गायब होने जैसे मुद्दों पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की और कई महत्वपूर्ण आदेश दिये.
शीर्ष अदालत के इस कदम से यह उम्मीद बढ़ी थी कि शायद निकट भविष्य में मुकदमों की सुनवाई का सीधा प्रसारण संभव हो सकेगा. परंतु फिलहाल तो ऐसा लगता है कि महत्वपूर्ण मुकदमे तो दूर की बात वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हो रही सुनवाई का सीधा प्रसारण भी नहीं होने जा रहा है.
शीर्ष अदालत की ई-समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डा धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से हो रही कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने के हिमायती हैं लेकिन बैंडिविड्थ और सिर्फ न्यायिक कार्यों के लिये निमित्त सर्वरों की उपलब्धता जैसे तकनीकी मुद्दे इसमें बाधक बन रहे हैं.
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न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने इस संबंध में चार अप्रैल को सभी 23 उच्च न्यायालयों में ई-समीति के न्यायाधीशों के साथ लंबी बैठक की थी और यह स्पष्ट किया था कि मुकदमों की सुनवाई के लिये अपनायी जा रही यह आधुनिक तकनीक का अब ज्यादा इस्तेमाल होगा. उन्होंने यहां तक कहा था कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होता रहेगा.
इसी बैठक में न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने न्यायाधीशों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा हो रही कार्यवाही के सीधे प्रसारण की संभावना पर भी चर्चा की लेकिन बैंडविड्थ और पूरी तरह समर्पित सर्वर की उपलब्धता जैसे तकनीकी बिन्दुओं कर आकलन करने पर यह महसूस किया गया कि इसकी बजाये अदालत की कार्यवाही की रिकार्डिंग अगले दिन न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड की जाये ताकि लोग इसे देख-सुन सकें.
विदित हो कि न्यायपालिका के कामकाज मे पारदर्शिता लाने के इरादे से उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल (अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष) और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने 14 अगस्त 2017 को देश की सभी जिला अदालतों की कार्यवाही की रिकार्डिंग की सुविधा के लिये चरणबद्ध तरीके से ऑडियो सुविधायुक्त सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था. न्यायालय ने इस संबंध मे निजता का हनन होने की दलील अस्वीकार करते हुये सवाल किया था कि दूसरे देशों में ऑडियो वीडियो रिकार्डिंग होती है, क्योंकि यह न्यायाधीशों की निजता का मामला नहीं है.
शीर्ष अदालत का यही मत रहा है कि अदालतों में सीसीटीवी के माध्यम से न्यायिक कार्यवाही की रिकार्डिंग के दूरगामी परिणाम होंगे. पहले तो मुकदमों की सुनवाई के दौरान सभी पक्ष और वकील संयमित एव सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करेंगे और दूसरा व्यवस्था से आपराधिक मामलों में गवाहों को डराने धमकाने की घटनाओं पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है.
बहरहाल, मुकदमों की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने या फिर ऑडियो रिकार्डिंग अगले दिन अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध कराने जैसे मसले अभी अधर में ही लटके थे कि बीच में करोनावायरस के संक्रमण ने न्याय प्रदान करने की सारी व्यवस्था के समीकरण ही बदल दिये.
कोरोनावायरस संक्रमण से उत्पन्न परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुये प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने छह अप्रैल 2020 को अपने आदेशों के साथ पूर्ण न्याय करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल किया. शीर्ष अदालत ने इस आदेश में कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के परिसर में सभी हितधारकों की उपस्थिति कम करने और सामाजिक दूरी बनाये रखने के दिशानिर्देश का पालन करते हुये अदालतों का कामकाज सुनिश्चित करने के लिये उठाये गये सारे कदमों को कानून सम्मत माना जायेगा.
यही नहीं, शीर्ष अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों के न्याय प्रणाली के कामकाज को सुदृढ़ बनाये रखने के लिये जरूरी उपाये करने के लिये भी अधिकृत किया. न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को अपने-अपने राज्य की न्याय प्रणाली और जन स्वास्थ की बदलती हुई स्थिति के अनुरूप वीडियो कांफ्रेंसिंग की तकनीक से मुकदमों की सुनवाई का तरीका अपनाने के लिये भी अधिकृत कर दिया.
कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से अधीनस्थ अदालतों की कार्यवाही भी प्रभावित होने के तथ्य को देखते हुये न्यायालय ने इस आदेश में कहा था कि प्रत्येक राज्य में जिला अदालतें संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा बताये गये वीडियो कांफ्रेंसिंग
के तरीके को अपनाएंगी और इस सुविधा की उपलब्धता के बारे में ऐसे वादकारियों को सूचित करेंगी जिनके पास वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा तक पहुंचने के तरीके नहीं है.
न्यायालय ने यह भी कहा था कि निचली अदालतो में संबंधित पक्षों की परस्पर सहमति के बगैर वीडियो कांफ्रेंसिंग
द्वारा साक्ष्य दर्ज नहीं किये जायेंगे और अगर अदालत में ही साक्ष्य दर्ज करना करना जरूरी हो तो पीठासीन अधिकारी अदालत में किन्हीं भी दो व्यक्तियों के बीच उचित दूरी सुनिश्चित करेंगे.
वैसे तो न्यायालय ने कोरोनावायरस महामारी की वजह से उत्पन्न विचित्र चुनौती का न्यायपालिका द्वारा सामना करने के लिये ये निर्देश दिये हैं जो अगले आदेश तक प्रभावी रहेंगे. परंतु, मौजूदा हालात को देखते हुये लगता है कि उच्चतम न्यायालय से लेकर निचली अदलतों तक मुकदमों की सुनवाई के लिये वीडियो कांफ्रेंसिंग सर्वोत्तम विकल्प है. हां, पश्चिम बंगाल सरीखे कुछ राज्यों में वकीलों और वादकारियों का एक वर्ग इस आधुनिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में पारंगत नहीं हैं.
इन राज्यों में संभव है कि शुरू में कुछ दिक्कतें आयें लेकिन उम्मीद है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग से मुकदमों की सुनवाई और ऑडियो रिकार्डिंग वेबसाइट पर अपलोड करने की व्यवस्था के मूर्तरूप लेने से देश की न्याय प्रणाली में क्रांतिकारी सुधार लाना संभव हो सकेगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं)