scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतकोविड ने साबित किया है कि हमने लाइफ साइंस अनुसंधान पर पर्याप्त खर्च नहीं किया है, अब समय कुछ करने का है

कोविड ने साबित किया है कि हमने लाइफ साइंस अनुसंधान पर पर्याप्त खर्च नहीं किया है, अब समय कुछ करने का है

इस महामारी के कारण उभरे अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत को जैविक विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या बढ़ाने के साथ ही उद्योग जगत और सरकार के बीच और करीबी सहयोग को बढ़ावा देना होगा.

Text Size:

भारत में कोरोनावायरस से लड़ने में दवा उद्योग, डाइग्नोस्टिक्स, मेडिकल उपकरण, क्लीनिकल रिसर्च, और डिजिटल हेल्थ समेत जैविक विज्ञान क्षेत्र सबसे आगे रहे हैं. घरेलू दवा कंपनियां दवाएं और टीके तैयार कर रही हैं. कुछ कंपनियों ने टेस्ट विकसित किए हैं और टेस्टिंग की सेवाएं दे रही हैं. भारत की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दुनियाभर में निर्यात की जा रही है और कोरोना मरीजों के इलाज के लिए इसकी भारी मांग हो रही है. इस बीच, आरोग्य सेतु ऐप को 7.5 करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया है.

भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए हमें जैविक विज्ञान क्षेत्र को और मजबूत बनाना होगा. इसके लिए बहुआयामी पहल करने की जरूरत होगी.

जैविक विज्ञान क्षेत्र को मजबूत बनाना होगा

इस क्षेत्र के तेज विकास के लिए सबसे उद्योग जगत और सरकार के बीच करीबी सहयोग और नियमों को अनुकूल बनाने की जरूरत है.

दूसरे, जैविक विज्ञान क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ानी होगी ताकि स्वास्थ्य सेवाओं और जीव विज्ञान क्षेत्र के लिए हमारे पास पर्याप्त प्रतिभाशाली लोग उपलब्ध हों.

तीसरे, हमें यह भी देखना होगा कि इस क्षेत्र के विकास के लिए पर्याप्त वित्तीय समर्थन दिया जा रहा है या नहीं.
और अंत में, जैविक विज्ञान क्षेत्र में हो रही सभी गतिविधियों को भारत में तेजी से उभरते सुपरक्लाउड से जोड़ना बहुत जरूरी है.

जैविक विज्ञान क्षेत्र के हमारे कुछ उपक्रम आज दुनिया में अग्रणी हैं. मसलन सिपला, अरविंदो, ल्यूपिन, और डीआरएल. दुनिया के करीब 50 प्रतिशत टीकों का उत्पादन भारत में हो रहा है. हम दुनिया की 20 फीसदी जेनरिक दवाओं का भी उत्पादन कर रहे हैं. हमारा दवा उद्योग सालाना करीब 20 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात कर रहा है.

हमारे कुशल डॉक्टर, नर्सें, और जैविक विज्ञान क्षेत्र के प्रोफेशनल भारत और दुनियाभर में प्रमुख बड़े शोध कार्यक्रमों का नेतृत्व कर रहे हैं. लेकिन कोरोना महामारी ने साफ कर दिया है कि हम जैविक विज्ञान क्षेत्र और स्वास्थ्य सेवाओं पर पर्याप्त खर्च नहीं करते रहे हैं. दुनिया की आबादी की सुरक्षा के लिए संसाधनों और खर्चों में भारी बढ़ोतरी करने की जरूरत है. जैविक विज्ञान क्षेत्र की कंपनियों को अधिकार प्राप्त कार्यदलों के माध्यम से नियामकों और नीति निर्माताओं के साथ ज्यादा तालमेल से काम करने के जरूरत है ताकि इसमें निवेश, रोजगार बढ़े और इस क्षेत्र का ज्यादा विकास हो.

मिलकर नीतियां बनाएं

लाइफ साइंस का क्षेत्र काफी सख्त नियमन के तहत काम करता है. भारत में विभिन्न मंत्रालयों के तहत कई रेगुलेटर काम करते हैं, जो इस क्षेत्र पर नज़र रखते हैं. रसायन व उर्वरक मंत्रालय के तहत नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग ऑथरिटी (एनपीपीए) थोक दवाओं आदि की कीमतें तय करती है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन के माध्यम से इस बात पर नज़र रखता है कि दवाएं सुरक्षित, प्रभावी और उम्दा क्वालिटी की हों. इसी मंत्रालय का नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ इंडिया एलेक्ट्रोनिक हेल्थ रेकॉर्ड (ईएचआर) के मानक तय कर रहा है, जिसका निर्धारण एलेक्ट्रोनिक्स ऐंड इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी मंत्रालय पर्सनल डाटा प्रोटेक्सन बिल के जरिए कर रहा है.


यह भी पढ़ें: कोरोना से ग्रसित अमेरिका और चीन के विपरीत भारत के ऊपर एक अनूठा सुपरक्लाउड आकार ले रहा है


जैविक विज्ञान क्षेत्र में सारे अनुसंधान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) और साइंस ऐंड टेक्नोलोजी मंत्रालय के दिशानिर्देशों के तहत हो रहे हैं. आयुष मंत्रालय और नीति आयोग भी जैविक विज्ञान क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

हालांकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और हरेक राज्य इस क्षेत्र की मदद के लिए नीतियां बना सकते हैं लेकिन बेहतर यही होगा कि केंद्र और राज्यों के ये सभी रेगुलेटर और नीति निर्माता उद्योग जगत से तालमेल करके इस क्षेत्र के विकास की साझा कोशिश करें.

चाहिए कुशल वर्कफोर्स

सभी स्तरों पर उद्योग जगत और सरकार के बीच सहयोग के साथ ही हमें जैविक विज्ञान क्षेत्र के लिए अलग वर्कफोर्स तैयार करना चाहिए. आज भारत में 535 मेडिकल कॉलेज हैं जहां से हर साल 79,000 छात्र डॉक्टर बनकर निकलते हैं. अनुमान है कि हमारे यहां सालाना 3 लाख नर्सों को तैयार करने की व्यवस्था है. इसके अलावा हर साल बायोलॉजी, बायोटेक्नोलोजी, और केमिस्ट्री के लाखों ग्रेजुएट तैयार होते हैं जो जैविक विज्ञान के क्षेत्र में काम कर सकते हैं. इसके बावजूद अभी भी हमारे यहां प्रति 1000 की आबादी पर 0.7 डॉक्टर ही उपलब्ध हैं जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानदंड 1000 की आबादी पर 1.00 डॉक्टर का है.

नर्सों का हमारा यह औसत 1.7 का है जबकि 2.5 का होना चाहिए. हमें शिक्षण संस्थाओं को उच्चस्तरीय शोध के लिए ज्यादा कोश देना होगा ताकि दवाओं, उपकरणों, और उपचार के क्षेत्रों में बेहतर समाधान विकसित करने वाले ज्यादा युवा वैज्ञानिक और शोधकर्ता उपलब्ध हो सकें.

कोश की कमी दूर करें

भारत में शोध-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार को हजारों करोड़ रुपये आवंटित करने की जरूरत है. शोध के 10-15 क्षेत्र चुनने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल बनाया जा सकता है. ये क्षेत्र हो सकते हैं—जेनोमिक्स, कंप्युटेशनल बायोलॉजी, वाइरोलोजी, एपिडेमिओलोजी, न्यूरोसाइन्स, स्टेम सेल अनुसंधान, आदि. अपने शोध करने और ग्रेजुएट छात्रों को प्रशिक्षित करने के ली भारत में और विदेश में स्थित भारतीय वैज्ञानिकों को कई साल के शोध प्रोजेक्ट के लिए अनुदान दिए जा सकते हैं. अनुसंधानों के मामले में जवाबदेही और गुणवत्ता के आकलन के लिए निष्पक्ष वैश्विक मानकों (उच्चस्तरीय अनुलेखन, आला संस्थानों में ग्रेजुएट छात्रों के प्लेसमेंट, आदि) का उपयोग किया जा सकता है.


यह भी पढ़ें: भारत को कोविड -19 जैसी महामारियों पर नज़र रखने के लिए सुपरक्लाउड बनाने की जरूरत है


जैविक विज्ञान के क्षेत्र में नये उपक्रमों को वेंचर कैपिटल फंड से सहायता करने की जरूरत है. सरकार ने वेंचर कैपिटल फंड को सहायता करने के लिए 10,000 करोड़ रु. का विशाल कोश बनाया है. इसमें से कुछ हिस्सा केवल जैविक विज्ञान क्षेत्र के कोश के वास्ते आवंटित किया जा सकता है, ताकि वह इस क्षेत्र में स्टार्टअप को जरूरी वित्तीय मदद दे सके. इसके लिए ‘सिडबी’ के पास विशेषज्ञता की जरूरत होगी ताकि वह जैविक विज्ञान क्षेत्र के कोश की पहचान और वृद्धि कर सके.

सुपरक्लाउड का योगदान

भारत में तेजी से विकसित हो रहा सुपरक्लाउड जैविक विज्ञान क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. हाइस्पीड 5जी नेटवर्क, और लोकल डाटा सेंटरों की मदद से टेलीमेडिसिन, और रिमोट डाइग्नोस्टिक्स को संभव बनाया जा सकता है. नये पर्सनल डाटा प्रोटेक्सन बिल के कारण हर व्यक्ति के लिए सुरक्षित इलेक्ट्रोनिक हेल्थ रेकॉर्ड (ईएचआर) तैयार किया जा सकता है ताकि पता चल सके कि व्यक्ति को क्या हेल्थकेयर चाहिए और उससे संबन्धित डाटा क्या हैं, भुगतान/बीमा आदि की क्या स्थिति है. विशाल लोकल डाटा कोश के कारण एआइ और कंप्युटेशनल बायोलॉजी को भारतीय ‘जीनोम’ के लिहाज से उपचार विकसित करने में मदद मिलेगी.

महामारी आती-जाती रहेगी लेकिन हमारे यहां गैर-संचारी रोगों का बोझ बढ़ता रहेगा. दुनियाभर में कुशल मेडिकल प्रोफेशनलों और शोधकर्ताओं की कमी है. नये, कम ख़र्चीले उपचारों की भरी मांग है. भारत में जैविक विज्ञान का क्षेत्र इण हालात का लाभ उठा सकता है.

(जयंत सिन्हा हज़ारीबाग़, झारखंड से लोकसभा सांसद तथा संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

share & View comments