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Thursday, 25 April, 2024
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भारत को कोविड -19 जैसी महामारियों पर नज़र रखने के लिए सुपरक्लाउड बनाने की जरूरत है

कोविड-19 जैसी दूसरी महामारी को दरकिनार करने के लिए हमें छात्रों और उनके स्वास्थ्य रिकॉर्डों को परस्पर जोड़ देना चाहिए ताकि सारे टीके ले चुके छात्रों को ही संस्थानों में दाखिला दिया जा सके.

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महामारियों का दौर तो कई साल पहले ही शुरू हो गया था, लेकिन हमें इसका अहसास इस जनवरी में आकर हुआ. कोरोनवायरस वायरस महामारी पशुजन्य बीमारियों (एचआईवी/एड्स, इबोला, सार्स, मर्स, एच1एन1 आदि) की एक लंबी कतार में ही नवीनतम है, जो पिछले कुछ वर्षों से हमें परेशान करती आर रही हैं. कोवि़ड-19 की मानवीय और आर्थिक लागत अकल्पनीय होगी.

हम क्या करें कि आगे इसे होने से रोका जा सके? कई देशों द्वारा पहले से उठाए गए कदमों के आधार पर, ये प्रतीत होता है कि कम से कम चार प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं जिन पर कि हमें ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है: जोखिम प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाएं, बीमारियों की ट्रैकिंग और क्लाउड-आधारित सेवाएं.

मौजूदा महामारी के आर्थिक पक्ष की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पहले ही घोषित कर चुका है कि हम 2008 के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के बाद की, या उससे भी बुरी, वैश्विक मंदी का सामना करने जा रहे हैं. आर्थिक विकास का अनुमान लगाने वाली विभिन्न एजेंसियों ने 2020 के लिए वैश्विक जीडीपी में 1.5 से 2 फीसदी संकुचन की भविष्यवाणी की है, जो कि आईएमएफ के इस साल जनवरी में घोषित अनुमानों के अनुसार करीब 3.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने वाली थी. उल्लेखनीय है कि पूर्व अनुमानों के अनुसार 2020 में वैश्विक जीडीपी 90 खरब डॉलर से अधिक की रहने वाली थी; मतलब 5 प्रतिशत आर्थिक संकुचन के बाद केवल इस वर्ष ही दुनिया के स्तर पर आर्थिक उत्पादन में 4 से 5 खरब डॉलर की कमी आएगी. ये राशि भारत की कुल जीडीपी से भी अधिक है – और ये सब होगा मात्र एक वायरस के कारण.

सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की ओर

नीति-निर्माण और व्यावसाय से जुड़ी हमारी सभी रणनीतियों में जोखिम प्रबंधन को शामिल किया जाना चाहिए. हम अकल्पनीय की कल्पना करने से कतराते हैं और ऐसा मानकर चलते हैं मानो अनपेक्षित घटनाएं होंगी ही नहीं. प्रत्येक संगठन की अपनी खुद की आकस्मिक कार्य योजना होनी चाहिए जिसके परीक्षणों में सभी हितधारकों को शामिल किया जाए, ताकि ज़रूरत पड़ने पर आपात योजना को त्वरित गति से कार्यान्वित किया जा सके. तमाम संगठन अपना वार्षिक बजट तैयार करते हैं; उसी तर्ज पर उन्हें आकस्मिक योजनाएं भी तैयार करनी चाहिए, जिसमें तमाम अहम कर्मचारियों से बिल्कुल विपरीत परिस्थिति के लिए उन्हें सौंपे गए दायित्व का अभ्यास करने को कहा जाए.


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आगे चलकर स्वास्थ्य सेवाओं में भारी निवेश किए जाने की संभावना है और दुनिया संभवत: एक किस्म के सार्वभौम स्वास्थ्य सेवा की ओर कदम बढ़ाएगी. निश्चय ही इस पर बहुत धन खर्च होगा, लेकिन एक बार फिर महामारी का सामना करने की तुलना में अंतत: ये कम खर्चीला साबित होगा.

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इस तरह दुनिया भर में सबके लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं निवारण केंद्र जैसे संगठन बीमारियों के प्रकोप की पहचान और नियंत्रण के काम में अधिक दक्ष हो सकेंगे. प्रौद्योगिकियों, निधियों और विशेषज्ञता आदि के वैश्विक हस्तांततरण की एक व्यवस्था निर्मित करनी पड़ेगी ताकि गरीब देशों में भी कुशलता से काम करने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की मौजूदगी सुनिश्चित की जा सके.

टीकों के रिकॉर्ड पहले ही देशों में प्रवेश (जैसे अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों की यात्रा के लिए येलो फ़ीवर के टीके लगवाने की अनुशंसा) और स्कूल में दाखिले जैसे क्रिया-कलापों के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं. संभव है कि इस संबंध में क्लाउड-आधारित एक मानक अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल तैयार किया जाए, जिसका कि अंतरराष्ट्रीय यात्राओं और बड़े सार्वजनिक आयोजनों में उपस्थिति के संदर्भ में उपयोग किया जा सकेगा. रोग परीक्षण व्यवस्था का और भी विस्तार होगा, जो ये सुनिश्चित करने के काम आ सकेगा कि कतिपय सुविधाओं का लाभ सिर्फ बीमारी रहित लोग ही उठा सकें. नागरिक के स्तर पर बीमारियों की निगरानी का तंत्र बहुत फैला सकता है – चीन ने पहले ही हरे, पीले और लाल रंग के संकेतकों वाली क्यूआर ट्रैकिंग व्यवस्था लागू कर रखी है.

सुपर क्लाउड की ज़रूरत

हमारी वर्तमान क्लाउड-आधारित सेवाएं – मीडिया कंटेंट स्ट्रीमिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, मैसेजिंग, ई-कॉमर्स, गेमिंग आदि – एक सुपरक्लाउड का रूप धारण करने जा रही हैं. वैश्विक लॉकडाउन ने इन क्लाउड-आधारित सेवाओं के महत्व को उजागर किया है; अब हमारी वर्चुअल ज़िंदगी एक मायने में वास्तविक जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है. सर्वप्रथम, क्लाउड तंत्र और भी अधिक अधिक सुदृढ़, शक्तिशाली और व्यापक होता जाएगा. दुनिया भर में डेटा केंद्र स्थापित किए जाएंगे जो उच्च-बैंडविड्थ वाले विशाल डेटा चैनल से परस्पर जुड़े होंगे. त्वरित प्रतिक्रिया और उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कंटेंट और एप्लिकेशंस इनके बीच सुचारू रूप से गतिमान रहेंगे.

दूसरी बात, कई अन्य सेक्टर क्लाउड-केंद्रित होने जा रहे हैं, उदाहरण के लिए शिक्षा क्षेत्र पहले से ही निरंतर उपलब्धता वाले दूरस्थ शिक्षा माध्यम की ओर बढ़ता दिख रहा है. जल्दी ही छात्रों की ट्रैकिंग और परीक्षाओं की क्लाउड-आधारित प्रणाली से हमारा सामना होगा. वित्तीय प्रणालियां अधिकाधिक प्रौद्योगिकी-चालित होती जाएंगी और संभव है कि हम जल्दी ही हम लगभग पूरी तरह से डिजिटल लेनदेन कर रहे होंगे – यहां तक कि ठेले वाले से भी.

और आखिर में, सुविधा के लिए विभिन्न एप्लिकेशन परस्पर जुड़ते जाएंगे. जैसे छात्रों और उनके स्वास्थ्य रिकॉर्डों को परस्पर जोड़ दिया जाएगा ताकि सारे टीके ले चुके छात्रों को ही संस्थानों में दाखिला दिया जा सके. भावी परिदृश्य में भारत की अहम भूमिका हो सकती है.

स्वास्थ्य सेवा पर नज़र

हमारा आयुष्मान भारत कार्यक्रम पहले ही स्वास्थ्य सेवा का दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम बन चुका है. हम और भी अधिक परिष्कृत परीक्षण तंत्र और स्वास्थ्य क्षमताओं का निर्माण कर सकते हैं. आवश्यक गोपनीयता संबंधी सुरक्षा उपायों के साथ हम आधार-संबद्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के सहारे टीकाकरण और रोगों के संबंध में और भी अच्छी ट्रैकिंग सुनिश्चित कर सकते हैं. व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा की हमारी व्यवस्था, जैसा कि हमने डिजिटल पहचान और भुगतान के क्षेत्र में किया है, वैश्विक मानदंड बन सकती है, और इससे सुपरक्लाउड के भारत में विकसित होने की परिस्थितियां बन सकती है.

संकट को यों ही गंवा देने को सही नहीं माना जाता है. आइए हम सब मिलकर न सिर्फ महामारी के इस दौर को जल्दी समाप्त करने में योगदान दें, बल्कि भविष्य के लिए मजबूत तंत्रों का भी निर्माण करें.

(जयंत सिन्हा हज़ारीबाग़, झारखंड से लोकसभा सांसद तथा संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

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