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Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमतचीन मामले पर राहुल ने तेज़ किया मोदी सरकार पर हमला - कांग्रेस की मोदी को गलत तरीके से घेरने की कोशिश

चीन मामले पर राहुल ने तेज़ किया मोदी सरकार पर हमला – कांग्रेस की मोदी को गलत तरीके से घेरने की कोशिश

भारत-चीन सीमा विवाद पर संसद में बहस कराने से सरकार इसलिए बचकर निकल रही है क्योंकि विपक्ष जिस ऐतिहासिक विवाद पर ज़ोर दे रहा है उसके लिए मोदी सरकार जिम्मेदार नहीं है.

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नरेंद्र मोदी सरकार चीन के साथ सीमा विवाद से जिस तरह निपट रही है उस पर राहुल गांधी ने हमला तेज कर दिया है. कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगा रही है कि चीन सीमा के सवाल पर जिस तरह सैन्यबल केंद्रित कूटनीति चला रहा है उसके लिए वे उसका नाम लेकर उसकी निंदा नहीं कर रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे राहुल, और उनकी पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत पी. चिदंबरम, मनीष तिवारी, जयराम रमेश और पावन खेड़ा जैसे मोदी और उनके मंत्रियों को उकसाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे चीन के साथ सीमा विवाद पर संसद के अंदर और बाहर बहस के लिए तैयार हो जाएं. यहां तक कि पार्टी की जूनियर प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत भी मोदी से कह रही हैं कि ‘डरिए मत, चीन के सामने बोलिए.’

लेकिन मोदी सरकार और भाजपा अब तक इस चुनौती को कबूल करने से कतराती रही है. चीन के साथ सीमा विवाद के मसले को वे बड़ी सावधानी से दरकिनार करते रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस मसले पर वे कांग्रेस के मुक़ाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं. भाजपा के एक शक्तिशाली नेता ने निजी बातचीत में मुझसे कहा कि ‘कांग्रेस इतनी आक्रामक हो रही है कि अब उसे जवाब भी मिलेगा.’

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में बयान दिए हैं, लेकिन कांग्रेस नेता जयराम रमेश सरकार से सवाल कर रहे हैं कि उसने कुछ खास कदम क्यों नहीं उठाए. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ‘संसद के इस सत्र में नेहरू की यादें ताजा हो गई हैं. मोदी सरकार चाइना पर चर्चा की इजाजत नहीं देने वाली है. मोदी नेहरू नहीं हैं.’

जवाहरलाल नेहरू ने 12 अक्तूबर 1962 को पत्रकारों से कहा था कि उन्होंने भारतीय सेना को निर्देश दे दिया है कि वह उत्तर-पूर्वी सीमा पर हमारी उस जमीन को आज़ाद कराए, इसे चीन ने अपनी मर्ज़ी से अर्थ निकाला कि भारत ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है. नेहरू ने सीमा विवाद पर बहस कारवाई और चीन ने इसका फायदा उठाकर 1962 के युद्ध में भारत को हरा दिया.


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अब बहस की गुंजाइश नहीं

एक यह भी सच है कि 1962 के बाद से ही जब भी सीमा पर पीएलए सैनिकों ने कुछ न कुछ गड़बड़ की है, नई दिल्ली की सरकार राजनीतिक रूप से कमजोर रही हैं. कांग्रेस को हमला करने का मसाला प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान से मिला है, जो उन्होंने 19 जून 2020 को सर्वदलीय बैठक में दिया था. उन्होंने कहा था, ‘ना कोई वहां हमारी सीमा में घुस आया है, ना ही कोई घुसा हुआ है, ना हमारी कोई पोस्ट दूसरे के कब्जे में है.’ यह बयान टेलीविज़न पर सीधे प्रसारित हुआ था. इसके बाद से कांग्रेस यह साबित करने की कोशिश में है कि चीन ने मोदी के इस बयान का फायदा उठाया है.

कांग्रेस का मानना है कि सीमा के अतिक्रमण के मामले में वार्ताओं में भारत की स्थिति इस बयान के कारण कमजोर हुई है. मोदी के इस बयान पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने बाद में स्पष्टीकरण जारी किया लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेहरू युग के चीनी अध्याय का हिसाब बराबर करने की धुन में है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जब कई कूटनीतिक चालें चली जा रही हैं, तब सरकार को वर्तमान दौर में सीमा विवाद पर बहस उपयोगी नज़र नहीं आ रहा है. बदलते वैश्विक समीकरण में जब रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है, चीन कोविड के नये हमले झेल रहा है, भारत रूस, चीन और अमेरिका के साथ समीकरणों को अपने फायदे के लिए साधने की कोशिश में लगा है, जब ताइवान मसला गरम है और दुनिया की तीखी नज़रें उस पर टिकी हैं, और जब पूरी दुनिया अर्थव्यवस्था को कोविड से लगे झटके से उबरने में जुटी है तब यह रूढ़िपंथी मोदी सरकार कांग्रेस की मांग को शायद ही मानने को तैयार होगी.

यह तब और भी नामुमकिन है जब राहुल यह कह रहे हों कि चीनी सैनिक ‘पीट रहे हैं’ और इसके साथ यह नहीं कह रहे कि भारतीय सैनिक डटे रहे और उन्होंने चीनियों को पीछे लौटने पर मजबूर कर दिया. और खड़गे प्रधानमंत्री मोदी की तुलना ‘चूहे’ से कर रहे है. इसलिए सरकार को कांग्रेस की मांग खारिज करने का बहाना मिल गया. सच यह है कि राहुल ने भूल न की होती तब भी सरकार इतनी ताकतवर है कि वह कांग्रेस को संसद में एजेंडा तय करने की छूट नहीं दे सकती है और बहस के लिए राजी नहीं हो सकती है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से जब पूछा गया कि मंत्री लोग कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं से परदे के पीछे मिलकर उन्हें हालात के बारे में क्यों नहीं बताते, तो उनका जवाब था कि ‘वो ज़माना गया.’ यूपीए सरकार के एक पूर्व मंत्री ने संसद में बहस कराने के मसले पर बात करते हुए कहा कि ‘यूपीए सरकार में हम ‘मैच फिक्सिंग’ किया करते थे और संवेदनशील मसलों पर संसद में चर्चा से कई दिन पहले से ही विपक्षी नेताओं से मिलते थे और उन्हें शांत किया करते थे.’

नेहरू के जमाने में बहस सदन में होती थी, सोशल मीडिया पर नहीं. आज दोनों पक्ष मीमे, शॉर्ट वीडियो, ट्वीट, तीखी टिप्पणियों को संदर्भ से काट कर संपादित किया जा सकता है और उन्हें कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों की किसी अपेक्षित मुलाक़ात से पहले वाइरल कर दिया जाता है. अगर बहस एक-दूसरे को नीचा दिखाने का बहाना बन गया तो सोशल मीडिया पर सेना अनजाने में शिकार बना दी जाती है.

नई दिल्ली की बेलगाम राजनीति पर अब किसी को भरोसा नहीं रह गया है. औपचारिक रिश्ते में टूट कांग्रेस और सरकार के बीच ज्यादा हुई है. दूसरी महत्वपूर्ण पार्टियों का सरकार के साथ खुला या गुप्त संवाद जारी है. कांग्रेस इस मसले को इसलिए भी ज्यादा उछाल रही है क्योंकि वह चाहती है कि मोदी को जी-20 का नेतृत्व संभालने का जो मौका मिला है उसका इस्तेमाल दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए करने से पहले वे हकीकत को समझ लें.

संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2015 में चीनी सेना पीएलए ने 400 बार सीमा अतिक्रमण किए. 2019 में 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा के अतिक्रमण की संख्या बढ़कर 600 हो गई. इस मसले पर संसद में तुरंत बहस कराने की मांग अगर कांग्रेस कर रही है तो वह जायज और गंभीर है क्योंकि लोकतंत्र में लोगों को जानकारी पाने का अधिकार है. लेकिन इस मसले के साथ कई ऐतिहासिक संदर्भ जुड़े हुए हैं.

कौन नहीं जानता कि इस खेल में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा महारत हासिल है? इस सबसे पुराने और विवादित सीमा विवाद पर कांग्रेस का 1947 से 1977 तक, 1989 से 1989 तक, 1991 से 1996 और 2004 से 2014 तक संपूर्ण और निरंतर नियंत्रण रहा. शिवशंकर मेनन और कई दूसरी हस्तियों को 54 साल का वह पूरा इतिहास मालूम है कि कांग्रेस
की सरकारें चीन के साथ किस तरह निबटती रही. चीन के साथ संबंधों के संस्थागत संदर्भों की जानकारी उसे इस मसले में वह बढ़त प्रदान करती है जो किसी दूसरी पार्टी को नहीं हासिल है. कांग्रेस नेताओं सब कुछ किया और देखा है सीमा पर 2013 में कांग्रेस राज में जो समस्याएं थीं और आज 2022 में जो हैं उनमें ज्यादा फर्क नहीं है.

कांग्रेस का गलत हमला

हिमालय में सीमावर्ती क्षेत्र छोटे-छोटे प्रहासनों का मंच बनता रहा है जिसमें खून-खराबा नहीं हुआ लेकिन वह सब खबरों में प्रमुखता पाता रहा और तब-तब घरेलू राजनीति का मसाला बनता रहा जब-जब सीमा पर सामान्य या गंभीर हरकतों की खबरें लीक होती रहीं. इस मसले से जुड़े किसी दावेदार ने अपने फायदे के लिए उन्हें सार्वजनिक किया.

चीन ज्यादा फायदे में इसलिए रहता है क्योंकि इस मसले पर चीन की जनता से ज्यादा भारत के लोग संवेदनशील हैं और भारत के शासकों के लिए भी यह ज्यादा संवेदनशील मसला है. चीन इसका जिस तरह से इस्तेमाल करता और फायदा उठाता रहा है उस मनोवैज्ञानिक बढ़त को मोदी सरकार कमजोर करने की कोशिश कर रही है.

चीन अपने फायदे के लिए चाहता है कि यह तनाव कम तापमान पर सुलगता रहे. कई सेवानिवृत्त वरिष्ठ सेना अधिकारी बताएंगे कि उन्हें दशकों तक भारत-चीन सीमा पर स्थानीय किस्म के सैकड़ों झगड़ों और टकरावों की दो तरह की खबरें मिलती रहती थीं. एक तरह की खबरें वे होती थीं जो

औपचारिक सूत्रों से मिलती थीं और दूसरी तरह की खबरें अनौपचारिक सूत्रों से मिलती थीं. सीमा क्षेत्र पर तैनात जी-ओ-सी इन कमांड ऐसे झगड़े पसंद नहीं करता क्योंकि सेना मुख्यालय इनके लिए उसे जिम्मेदार मानेगा. करीब दो दशकों तक दोनों पक्षों का राजनीतिक लक्ष्य यही रहा कि सीमा पर ‘अमन-चैन’ बनाए रखा जाए. एलएसी पर अमन-चैन के लिए जो समझौते हुए उन्होंने ऑपरेशनों की मानक प्रक्रियाएं तय कर दीं और वे कारगर रहीं लेकिन चीन ने इस समय का इस्तेमाल करके अपने सीमा क्षेत्र में सामरिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास भारत के मुक़ाबले तेजी से कर लिया.

भाजपा इस मामले को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना रही है कि कांग्रेस की सरकार सीमा क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर का तब तेजी से विकास नहीं किया जब चीन की इच्छा के अनुसार सीमा पर शांति थी. भाजपा और कांग्रेस के बीच झगड़े का यही मूल मुद्दा है. सीमा विवाद से निबटने के मामले में कांग्रेस को कमजोर करने वाली कड़ी है 2013 में पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी का संसद में दिया बयान. उन्होंने स्वीकार किया था कि पिछली सरकारों का मानना था कि सीमा क्षेत्रों में कोई विकास न करना ही चीन से हमें ज्यादा सुरक्षा प्रदान करेगा.

भाजपा का मानना है कि कांग्रेस ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए चीन के प्रति जो ‘नरम रुख’ अपनाया उसका चीन ने फायदा उठाकर सीमा पर अपने इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास कर लिया. वैसे, यह बहस का मुद्दा है. कांग्रेस की रणनीति उस समय के वैश्विक वातावरण की मांग के मुताबिक थी, और इससे उस समय भारत की प्राथमिकताओं का पता चलता था.

चीन के साथ सीमा विवाद को उभारते हुए मोदी की बुनियादी पहचान को चुनौती देकर कांग्रेस ने अपना लक्ष्य ऊंचा रखा है. मोदी ने अपना पूरा जीवन एक राष्ट्रवादी के रूप में अपनी छवि बनाने पर खपाया है. गलवान और तवांग में हुईं झड़पों को निश्चित ही सामान्य घटनाएं नहीं कहा जा सकता, और इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है और मोदी को इस सबके बारे जवाब देना है. लेकिन कांग्रेस ने ‘चीन की घुसपैठ” की जगह राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर बहस की मांग होती तो बेहतर होता. सरकार इसलिए बचकर निकल रही क्योंकि विपक्ष भारत-चीन सीमा विवाद पर ज़ोर दे रहा है, जिस ऐतिहासिक विवाद के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार नहीं है.

सीमा विवाद सुलझाने के जो प्रयास अतीत में किए गए वे विफल रहे. दोनों पक्ष ने पूरी सीमा पर अपने अधिकृत दावे नहीं पेश किए हैं, न ही सरकारी नक्शों का आदान-प्रदान किया गया है. सरकार और कांग्रेस के बीच का झगड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जैसा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद को बताया, ‘आज चीनी सीमा पर जितनी भारतीय फौज तैनात है उतनी पहले कभी नहीं रही. यह 2020 के बाद चीनी सेना की तैनाती में भारी इजाफे का मुक़ाबला करने के लिए किया गया है.’

चीन जब जमीन पर अपने दावों पर ज़ोर देने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल बढ़ाता जा रहा है, तब भारत को विकास के अपने लक्ष्यों की कीमत पर अपनी सुरक्षा पर अरबों डॉलर के खर्च में वृद्धि करनी पड़ेगी. इसलिए, मोदी को घेरने के लिए संसद में बहस का अभी और इंतजार किया जा सकता है.

(शीला भट्ट दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sheela2010 हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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