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Friday, 13 December, 2024
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कांग्रेस पार्टी एक परिवार का व्हाट्सएप ग्रुप है, इसके नए सदस्य जॉर्ज सोरोस हैं

लोकतंत्र को पटरी से उतारने का सबक नेहरू वंश की राजनीति के स्कूल में सिखाया जाता है. अब राहुल के पास ऐसे भाई-बहन हैं, जो लोकसभा में उनके साथ खड़े होंगे, जब वह अपने लोकतंत्र-विरोधी भाषण की शुरुआत करेंगे.

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कैसे पता चलेगा कि आप एक वंशवादी हैं? अगर आपके परिवार के तीन सदस्यों तक पहुंचने के लिए आपके पास 15 फोन नंबरों की लिस्ट है. या गांधी परिवार में, आपके पास एक व्हाट्सएप ग्रुप है जिसमें परिवार की मुखिया और दोनों भाई-बहन शामिल हैं. और इस व्हाट्सएप ग्रुप का उपयोग नए और अनोखे तरीकों से भारतीय संसदीय लोकतंत्र को गिराने और बदनाम करने के लिए किया जा रहा है. वंशवादी ब्रिगेड का नया टारगेट संसद का शीतकालीन सत्र है. लोकतंत्र को पटरी से उतारने का सबक नेहरू वंश की राजनीति के स्कूल में सिखाया जाता है. अब राहुल के पास ऐसे भाई-बहन हैं, जो लोकसभा में उनके साथ खड़े होंगे, जब वह अपने लोकतंत्र-विरोधी भाषण की शुरुआत करेंगे.

भेड़िया आया-भेड़िया आया

राहुल गांधी को बचपन की कहानी “भेड़िया आया-भेड़िया आया” याद रखनी चाहिए — आखिर में भेड़िया उसी लड़के को खा गया था. 2023 में कैंब्रिज में दिए गए एक भाषण में उन्होंने कहा, “भारतीय लोकतंत्र दबाव में है, हमले का शिकार है.” उसी साल यूके संसद की यात्रा के दौरान उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की संरचनाओं पर क्रूर हमला हो रहा है — जो भारत-विरोधी गुटों के हाथ मजबूत करने जैसा था और 2022 में अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान, उन्होंने भारत-विरोधी राजनेताओं के साथ मिलकर भारत की आलोचना में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

‘गूंगी गुड़िया’

यह तथ्य कि कांग्रेस ने लोकतांत्रिक चुनावों के माध्यम से भले ही गठबंधन के हिस्से के रूप में, तीन राज्यों में सत्ता हासिल की है, इस बात का प्रमाण है कि भारत में लोकतंत्र जीवंत और मजबूत है. ऐसे में राहुल गांधी जैसी विरासत वाले नेता, खासतौर से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के निर्वाचित नेता और विपक्ष के नेता से, यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह विदेशी धरती पर इतने गैर-जिम्मेदाराना बयान देंगे.

भारतीय मतदाताओं के प्रति यह बेहद अपमानजनक है और भारतीय गणराज्य के मतदाताओं की बुद्धिमत्ता, धैर्य और विवेक पर हमला है कि यह सिद्धांत पेश किया जाए कि वे लोकतंत्र की हत्या पर आंख मूंद लेंगे. वर्तमान सरकार लोकतंत्र पर हमला करती है तो भारतीय जनता कोई “गूंगी गुड़िया” नहीं है, जो चुपचाप खड़ी रहेगी. 

और गांधी परिवार की याददाश्त भी कमज़ोर है — यह राहुल की दादी थीं, जिन्होंने 1975 में लोकतंत्र पर हमला किया और लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए. इस देश की जनता ने इसका करारा जवाब दिया.

भारत-विरोधी एजेंडा

सितंबर 2024 में राहुल गांधी की तीन दिन की अमेरिका यात्रा भारत-विरोधी बयानों से विवादों में रही. उन्होंने कहा कि भारत में सिख खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, लेकिन 1984 में सिखों के खिलाफ हुई हिंसा में उनकी अपनी पार्टी की भूमिका को बड़ी आसानी से नज़रअंदाज़ कर दिया. 1984 के दंगों को लेकर यह लापरवाह रवैया नया नहीं है. राहुल के करीबी सहयोगी सैम पित्रोदा ने भी इन दंगों पर अपने ‘हुआ तो हुआ’ वाले बयान से यही असंवेदनशीलता दिखाई. खुद राजीव गांधी ने भी सिख समुदाय के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई, जिनके प्रति अब राहुल दिखावटी अपनापन जता रहे हैं.

राहुल गांधी के सिखों पर गैर-जिम्मेदाराना बयान को सिख उग्रवादी गुरपतवंत पन्नू ने भारत गणराज्य के खिलाफ आतंकी कृत्यों को सही ठहराने और खालिस्तान के अलगाववादी आंदोलन को फिर से भड़काने के लिए इस्तेमाल किया. राहुल की भारत-विरोधी लॉबिस्टों के साथ तस्वीरें भी चिंता का कारण हैं. इनमें से एक हैं डेमोक्रेट कांग्रेसमैन रो खन्ना, जो वॉशिंगटन के पाकिस्तान कॉकस के सदस्य हैं और भारत-विरोधी बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं. कम लोग जानते हैं कि खन्ना का गांधी परिवार से संबंध इमरजेंसी के समय से है, जब खन्ना के दादा इंदिरा गांधी की इमरजेंसी कैबिनेट में एक भरोसेमंद मंत्री थे. ऐसे में खन्ना और गांधी का भारत में तथाकथित लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन करना दोहरे मापदंड और पाखंड का उदाहरण है.

गांधी ने इल्हान ओमार से मुलाकात की, जो मिनेसोटा की एक भारत-विरोधी डेमोक्रेट हैं और जिनकी भारत-विरोधी टिप्पणियां सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं. वह धारा 370 के निरस्तीकरण के खिलाफ सक्रिय रूप से अभियान चला रही हैं, और 2022 में पाकिस्तान द्वारा उन्हें कब्जे वाले कश्मीर की यात्रा के लिए आमंत्रित किया गया था. हाल के समय में, वह अमेरिकी संसद में निज्जर के मुद्दे को उठा रही हैं और ट्रूडो के भारत-विरोधी रुख का समर्थन भी कर रही हैं.

बारबरा ली, जो इस बैठक में भी मौजूद थीं, एक और डेमोक्रेट कांग्रेसवुमन हैं जो अपनी भारत-विरोधी स्थिति के लिए जानी जाती हैं.


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गहरे राज्य या गहरी मुसीबत

अरबपति जॉर्ज सोरोस का ओपन सोसाइटी फाउंडेशन भारत सरकार की निगरानी सूची में है, जो गहरे राज्य से जुड़े होने का आरोप झेल रहा है. मीरियम-वेबस्टर शब्दकोश में गहरे राज्य को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: एक कथित गुप्त नेटवर्क, जिसमें विशेष रूप से गैर निर्वाचित सरकारी अधिकारी और कभी-कभी निजी संस्थाएं शामिल होती हैं, जो गैरकानूनी तरीके से सरकारी नीति को प्रभावित करने और लागू करने के लिए काम करती हैं.

गहरे राज्य ने बांग्लादेश में शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और एक कठपुतली सरकार स्थापित की है, जो लोकतंत्र के नाम पर कांटा बन गई है. यह बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न और मुकदमा चलाने की कोशिश कर रहा है.

जॉर्ज सोरोस की फाउंडेशन ने कथित तौर पर सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राजीव गांधी फाउंडेशन के साथ साझेदारी की है. ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के उपाध्यक्ष सलील शेट्टी को राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तस्वीरों में देखा गया है. सोनिया गांधी को एफडीएल-एपी फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष पद पर भी कहा जाता है, जिसे कथित तौर पर सोरोस द्वारा वित्त पोषित किया जाता है. इस संगठन ने अक्सर एक ऐसे कश्मीर को बढ़ावा दिया है जो भारत से अलग हों. 

ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP), जिसके दानदाता में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और अमेरिकी राज्य विभाग शामिल हैं, भी राजीव गांधी फाउंडेशन के साथ साझेदार है.

और जब परिवार की मुखिया डंडी उठाती है, तो संतान कूद पड़ती है. जब भारत का वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम अपने चरम पर था, तब राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने स्वदेशी रूप से विकसित कोवैक्सिन की निंदा की, हालांकि यह साबित हो चुका था कि यह असिंप्टोमेटिक कोविड-19 से बचाव में 63 प्रतिशत प्रभावी है. इस घटना का समय और विषय देखकर हैरानी होती है.

लोकतंत्र का मज़ाक

यह जानना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी लोकतंत्र का मजाक क्यों उड़ाते हैं और ऐसा करने से उन्हें अगर कुछ हासिल होता है तो क्या मिलता है. हम जानते हैं कि गहरे राज्य का इस मामले में हाथ है और यह भारत जोड़ो यात्रा से भी जुड़ा हुआ है.

2024 के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह में, जो 25 नवंबर 2024 से शुरू हुआ, संसद में कोई काम नहीं हुआ. राहुल गांधी के नेतृत्व वाले विपक्ष ने लगातार हंगामा किया, जैसा कि नीचे दी गई तालिका से देखा जा सकता है.

ग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट
ग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

भारतीय जनता को अब उन लोगों से जवाब मांगना शुरू करना चाहिए, जिन्हें ‘जनता के सेवक’ के रूप में चुना गया है और जो उन्हें सेवा देने के लिए जिम्मेदार हैं.

यहां यह जोड़ना ज़रूरी है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है और दिल्ली सरकार ने 2022 में विधानसभा के कामकाज के लिए औसतन केवल आठ दिन ही निर्धारित किए, जो राष्ट्रीय औसत 21 दिनों से बहुत कम है. वंशवादी और अरविंद केजरीवाल, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. यह एक राष्ट्रीय बर्बादी है, जो विशाल पैमाने पर और माफ करने के काबिल नहीं है. संसदीय बहस एक सभ्य और शिक्षित संवाद होना चाहिए, जिसे गरिमा और शालीनता के साथ किया जाए. 

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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