नरेंद्र मोदी के राजनीतिक विरोधी जहां ‘उरी सिंड्रोम’ दिखा रहे हैं जबकि वे पुलवामा हमले के दोषियों को मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं.
यह लक्षण एक नेता या पार्टी की सच्ची भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थता के रूप में चिह्नित किया जाता है, क्योंकि अंत में वे यही कहते हैं कि विरोधी क्या चाहता है. वे एक दूसरे से स्पष्ट रुख नहीं अपना सकते. और वे खुद को एक दलदल में पाते हैं जिसमें जितना अधिक वे संघर्ष करते हैं, उतनी ही गहराई से डूबते हैं.
पुलवामा हमले के बाद कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया देखें. अपने शोक संदेश में, प्रियंका गांधी ने एनडीए सरकार पर काफी खुलकर तंज किया कि ‘हमें भी कश्मीर में हुए हताहत के बारे में चिंतन करना चाहिए. हम मांग करते हैं कि यह सरकार भविष्य में ऐसे आतंकी हमले न हो इसे सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए.’
शनिवार को सर्वदलीय बैठक के बाद, गुलाम नबी आज़ाद ने आतंकवाद से निपटने में सरकार को पूर्ण समर्थन देने के लिए राहुल गांधी के रुख को दोहराया. लेकिन आजाद यह कहने से भी नहीं चुके कि पुलवामा में हताहतों की संख्या, 1947 के बाद, किसी भी गैर-युद्ध की स्थिति से सबसे बड़ी थी. अगर इन घटनाक्रमों पर अपनी सूक्ष्म नज़र डालें तो समझ आएगा कि विपक्षी दल आतंकवाद से निपटने में मोदी सरकार के रिकॉर्ड को कमतर करके बता रहे हैं.
इसी बीच कांग्रेस के अद्मय नेता दिग्विजय सिंह पुलवामा हमले में ‘खुफिया विफलता’ पर सवाल उठा रहे थे और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से जवाबदेही की मांग कर रहे थे.
मोदी के समय में कांग्रेस की यह गले लगाने वाली राजनीति अनूठी है. कांग्रेस ने 2016 में उरी सेना के ठिकाने पर हुए आतंकी हमले के बाद भी इसी तरह का रुख अपनाया था. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कांग्रेस ने सेना का सत्कार भी किया और उसी समय स्ट्राइक को लेकर सवाल भी उठाए. यह बाद में हुए विधानसभा चुनावों में विपक्षी पार्टियों के लिए राजनीतिक रूप से आत्मघाती रणनीति बन गया. जब सवाल पूछने का समय होता है तब उन्हें शंकायुक्त नहीं होना चाहिए और जब ताली बजाने का वक्त होता है तो वह संदेह जताने लगते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विरोधी खेमे में चल रही दुविधा के बारे में पता होना चाहिए और आप इसे फिर से समझने के लिए गलती नहीं कर सकते. पुलवामा हमले के एक दिन बाद, उन्होंने ‘राजनीतिक छींटाकशी’ या राजनीतिक दोषपूर्ण खेल के खिलाफ आगाह किया, क्योंकि दुनिया को यह पता लगना चाहिए कि भारत पूरी एकजुटता से आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है.
विपक्षी दल यह पूछने के लिए बहुत चिंतिंत थे कि इसे शुरू किसने किया. प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके डिप्टी, जितेंद्र सिंह पहले ब्लॉक से बाहर थे. पुलवामा हमले के फौरन बाद, एएनआई ने उन्हें ‘भारत में रहने वाले और खुद को कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिज्ञों के रूप में वर्णित करने वाले लोगों’ के रूप में उद्धृत किया, जो भारतीय मिट्टी से प्रायोजित इन आतंकवादी गतिविधियों के बारे में क्षमाप्रार्थी हैं.’
विभिन्न वैचारिक पृष्ठभूमि के राजनेताओं ने हमले में मरे जवानों के परिवारों के साथ शोक व्यक्त किए. क्या आपने देश के गृहमंत्री को अस्पताल के कमरे के अंदर टीवी कैमरे ले जाते हुए देखा, जब वह घायल सीआरपीएफ जवानों से मिले थे? जब जवानों के नश्वर अवशेष अभी भी कश्मीर में थे, उसी समय उत्तर प्रदेश सरकार उन मंत्रियों की सूची को सार्वजनिक कर रही थी, जो उनकी अंतिम यात्रा में उनके साथ होंगे और अखिलेश यादव अपने ट्विटर हैंडल पर एक पीड़ित परिवार के साथ बैठकर अपनी तस्वीर पोस्ट कर रहे थे. वहींं भाजपा पार्टी प्रमुख अमित शाह के निर्देशों के तहत कैलाश विजयवर्गीय पार्टी के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों को इन अंतिम संस्कारों का हिस्सा बनने का निर्देश दे रहे थे.
बहरहाल, पूरा राजनीतिक वर्ग इस विचार पर एकजुट था कि आतंकवाद पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए. भले ही शुक्रवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार इससे भटकते हुए नज़र आए. इंडियन एक्सप्रेस ने उनके बारामती, पुणे में दिए उस बयान का जिक्र किया, ‘जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो वे पूरे देश में जाते थे (जहां आतंकवादी हमले हुए थे) और कहते थे कि तब (यूपीए) की सरकार में क्षमता की कमी थी और आतंकवादियों को सबक सिखाने के लिए उनके जैसे 56 इंच के सीने की जरूरत थी.’
पवार की मोदी पर दी गई प्रतिक्रिया के बाद 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों का जिक्र किया जा सकता है. वह तब भी मुंबई पहुंचे थे, जब सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझ रहे थे और मारे गए सुरक्षाकर्मियों के परिजनों को 1 करोड़ रुपये की ‘सम्मान राशि’ देने की घोषणा की. टीवी पत्रकारों से बात करते हुए, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री ने तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना में मशगूल थे.
40 सीआरपीएफ जवानों की मौत का बदला लेने के लिए मोदी सरकार जो भी प्रयास करे, लेकिन आने वाले हफ्तों और महीनों के चुनावी बहस में राष्ट्रवादी भाषणों और रणहुंकार का होना तय है. पुलवामा हमले के बाद, प्रमुख विपक्षी दल को भी कोई संदेह नहीं है कि मोदी पुलवामा में हुए दुस्साहस के लिए पाकिस्तान को ‘उचित जवाब’ देंगे. विपक्षी दलों की ओर से प्रदर्शित किया जा रहा ‘उरी सिंड्रोम’ आगामी लोकसभा चुनावों में उनकी किस्मत के दरवाजे बंद कर सकता है.
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