scorecardresearch
शनिवार, 21 जून, 2025
होममत-विमतसाफ़ लक्ष्य, तेज़ी, सटीक वार—भारत को ईरान पर इज़रायल के हमलों से क्या कुछ सीखना चाहिए

साफ़ लक्ष्य, तेज़ी, सटीक वार—भारत को ईरान पर इज़रायल के हमलों से क्या कुछ सीखना चाहिए

ऑपरेशन राइजिंग लॉयन और स्पाइडर वेब ने यह साबित कर दिया है कि बिना पायलट वाले ड्रोन आधुनिक जंगों में बहुत ज़रूरी साबित होंगे. यह एक सस्ती तकनीक है, जो महंगे हथियारों पर होने वाले खर्च को कम कर सकती है.

Text Size:

इजरायल ने 13 जून की सुबह 5.30 बजे (ईरान के समय के अनुसार 3.30 बजे) से पहले से ही हवाई हमले शुरू कर दिए. उसने ईरान के परमाणु कार्यक्रमों, सेना और विज्ञान क्षेत्र के नेतृत्व जमात, हवाई सुरक्षा इंतज़ामों, बैलिस्टिक मिसाइल इन्फ्रास्ट्रक्चर, और दूसरे सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया. यह 1500 किमी दूर से हवाई ताकत का हैरतअंगेज़ प्रदर्शन था जिसमें 100 ठिकानों को निशाना बनाने के लिए 200 विमानों को तैनात किया गया था, 330 हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. अपना कोई नुकसान किए बिना.

इस ऑपरेशन में गुप्त अड्डे से रवाना किए गए ड्रोनों की मदद भी ली गई जिन्होंने एयर डिफेंस सिस्टम्स, संभावित जवाबी हमलों में इस्तेमाल किए जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों, और सेना और विज्ञान क्षेत्र की नेतृत्व जमात को निशाना बनाया.
यह जंग जारी है, और इसके अंतिम नतीजे का अनुमान लगाने का अभी समय नहीं आया है. शुरुआती लक्ष्य तो स्पष्ट तौर पर ईरान के परमाणु हथियार विकास कार्यक्रम और उनकी डेलीवरी सिस्टम को नाकाम करना था लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्य ईरान में सत्ता परिवर्तन करवाना ही लगता है.

यहां मैं केवल पहले छह दिनों की हवाई मुहिम के सैन्य पहलुओं और उनसे भारत के लिए उभरे सबक़ों के बारे में ही चर्चा करूंगा.

‘ऑपरेशन राइज़िंग लायन’: जोरदार शुरुआत

‘ऑपरेशन राइज़िंग लायन’ के पहले दिन ने सैन्य इतिहास में अपने लिए एक अलग ही जगह बना ली है. राजनीतिक और सैन्य लक्ष्यों के बारे में कोई अस्पष्टता नहीं थी. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस ऑपरेशन के शुरू होने के एक घंटे के भीतर इसके राजनीतिक मकसद का सार्वजनिक तौर पर खुलासा कर दिया: “अभी कुछ देर पहले इजरायल ने ‘ऑपरेशन राइज़िंग लायन’.शुरू किया है. यह निश्चित मकसद के साथ शुरू की गई फौजी कार्रवाई है जिसका लक्ष्य इजरायल के वजूद के लिए ईरानी खतरे (मतलब परमाण्विक खतरे) को खत्म करना है. यह ऑपरेशन तब तक जारी रहेगा जब तक खतरा खत्म नहीं हो जाता.”

इस हवाई मुहिम का सैन्य लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कमजोर या नष्ट करना है, चाहे वे यूरेनियम परिष्करण संयंत्र हों, या अनुसंधान केंद्र, परमाणु हथियार डिलीवरी के साधन, या परमाणु वैज्ञानिक/और उनका नेतृत्व वर्ग हो.
राष्ट्र के नाम अपने संदेश में नेतन्याहू ने स्पष्ट किया: “हमें जो नीस्त-नाबूद करना चाहते हैं और इसके लिए वे जो हथियार विकसित करना चाहते हैं उसकी उन्हें इजरायल कभी इजाजत नहीं देगा.”

इस मुहिम के पहले छह दिन बेहद सफल रहे. खुफियागीरी और टोही कार्रवाई के अत्याधुनिक साधनों और ईरान के अंदर ‘मोस्साद’ की पैठ ने सैन्य नेतृत्व और परमाणु वैज्ञानिकों पर सटीक निशाने लगाना आसान बनाया. इजरायल ने डिजाइन के जरिए धोखा देने की कार्रवाई या अमेरिका की गुप्त मदद से ईरान को चकमे में डाला, जबकि ईरान हमले की उम्मीद नहीं कर रहा था क्योंकि परमाणु समझौते के लिए वार्ता जारी थी.

गुप्त अड्डे/अड्डों से रवाना ड्रोनों ने न केवल एयर डिफेंस सिस्टम्स, बैलिस्टिक मिसाइल अड्डों, और सैन्य/विज्ञान क्षेत्र के नेतृत्व को निशाना बनाया बल्कि जमीन से हवा में मार करने वाली स्टैंड-ऑफ मिसाइलों का इस्तेमाल करके पश्चिमी खेमे की ओर से किए जाने वाले हवाई हमलों से ध्यान भटकाने और बरगलाने का भी काम किया. ईरान की एयर डिफेंस सिस्टम्स को नष्ट करना इस हवाई मुहिम का एक मूल हिस्सा था. इजरायल ने 48 घंटे के अंदर हवाई ताकत के मामले में अपना वर्चस्व कायम कर लिया. इसी के साथ परमाणु इन्फ्रास्ट्रक्चर, बैलिस्टिक मिसाइल अड्डों, भंडारों, कारखानों, सैन्य/विज्ञान क्षेत्र के नेतृत्व, और कमांड व कंट्रोल केंद्रों को निशाना बनाया गया.

नुकसान के आकलन के ब्योरे अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन इजरायल के दावों और उपग्रह से मिले सबूत यही बताते हैं कि लगभग सारे लक्ष्यों को सटीक निशाना बनाया गया और काफी नुकसान पहुंचाया गया. ईरान के 11 वरिष्ठ सेना अधिकारी (जिनमें सेनाओं और ‘इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर’ के अध्यक्ष शामिल हैं), 9 परमाणु वैज्ञानिक/शिक्षाविद मारे गए हैं. इनमें से अधिकतर प्रमुख अधिकारी परमाणु हथियारों के उत्पादन में तेजी लाने के लिए गठित फास्ट-ट्रैक ‘वेपन्स ग्रुप’ से जुड़े थे. राजनीतिक नेताओं को अभी तक बख्शा गया है लेकिन सत्ता परिवर्तन के हालात बने तो उन्हें भी निशाना बनाया जा सकता है.

हवाई हमले पिछले छह दिनों से जारी हैं. इजरायल के लक्ष्यों में विस्तार करके ऊर्जा तथा रक्षा उद्योग के इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी जोड़ लिया गया है. ईरान में संभावित सत्ता परिवर्तन करवाने के लक्ष्य के मद्देनजर उसकी आंतरिक सुरक्षा तथा समाज नियंत्रण के भयावह संगठनों को भी निशाना बनाया गया है. आधारभूत इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहद मजबूत भूमिगत ठिकानों को नष्ट करने के लिए परमाणु अड्डों पर बार-बार हमला किया गया. गहराई तक मार करने की इजरायल की पहुंच से दूर पहाड़ों के नीची गहराई में बने महत्वपूर्ण फोर्दो ईंधन परिष्करण संयंत्र को छोड़ ईरान के प्रमुख परमाणु हथियार अड्डों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है.

हवाई हमलों ने बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों का जवाब देने की ईरान की क्षमता को काफी कमजोर कर दिया है. अनुमान है कि 50 फीसदी बैलिस्टिक मिसाइल लांचरों और मिसाइल के 35-40 फीसदी भंडार को नष्ट कर दिया गया है. ईरान ने करीब 450 बैलिस्टिक मिसाइल दागे, जिनमें केवल 5-8 फीसदी मिसाइलें ही इजरायल के एअर डिफेंस में सेंध लगा पाईं.

भारत के लिए कई सबक

इजरायल ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उसके पास एक स्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति है और उसने अपने कई प्रतिद्वंद्वियों को एक साथ खौफ़जदा रखने की जरूरी सैन्य क्षमता हमेशा बनाए रखी है. भारत को भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को औपचारिक रूप देने और अपनी सेना को इतना सक्षम बनाने की जरूरत है कि वह चीन को फौजी कार्रवाई से ‘रोकने वाली प्रतिरोध क्षमता’ और पाकिस्तान के खिलाफ सजा देने वाली ‘आक्रामक प्रतिरोध क्षमता’ हासिल कर ले. उसे प्रतिरोध क्षमता असफल होने पर संघर्ष या युद्ध या दोनों के लिए तैयार होना पड़ेगा. मेरा आकलन है कि भारत को जितना सक्षम बनने की जरूरत है उसका 50-60 फीसदी तक ही तैयार है.

इजरायल की तरह भारत को भी संघर्ष या युद्ध के मामले में अपने राजनीतिक और सैन्य लक्ष्य तय कर लेने चाहिए. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का घोषित राजनीतिक लक्ष्य आतंकवादियों और उन्हें शह देने वालों (यानी पाक सेना) को दंडित करना था. बदकिस्मती से सेना ने भी यही दोहराया. ज्यादा तार्किक राजनीतिक लक्ष्य पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर करना होता, जबकि सैन्य लक्ष्य ऐसा नियंत्रित, तेज होते जाने वाले ऑपरेशन पर ज़ोर देना होता जो परमाणु युद्ध से नीचे के स्तर का हो ताकि पाकिस्तान को मनोवैज्ञानिक शिकस्त दी जा सके.

राजनीतिक और सैन्य लक्ष्य के मामले में अस्पष्टता के कारण 6-7 मई की रात केवल आतंकी ठिकानों पर ज़ोर दिया गया. इसके साथ-साथ ही जवाबी हवाई ऑपरेशन करने पर ध्यान नहीं दिया गया जिसमें एअर डिफेंस को निष्क्रिय करना अनिवार्य शर्त होती है. इसके चलते हमें कई फाइटर विमान गंवाने पड़े, और पाकिस्तान अपनी जीत का और लड़ाई बराबर रहने का दावा कर सका. किसी भी संघर्ष में सैन्य ऑपरेशन के मूलभूत सिद्धांतों की अनदेखी नहीं की जा सकती.
भारत को अपने प्रतिद्वंद्वी देशों में कहीं ज्यादा गहराई से खुफियागीरी करने की जरूरत है, जैसे मोस्साद ने ईरान में किया है. कल्पना कीजिए कि अगर हमने 15 दिन पहले चेतावनी देकर आतंकी अड्डों की खाली इमारतों को नष्ट करने की जगह हमने विमानों और ड्रोनों से हमले करके पाकिस्तान में आला आतंकवादी नेतृत्व को साफ कर दिया होता तो उसका क्या असर होता.

भारत के लिए प्रतिद्वंद्वी को चकमा देने के लिए ऑपरेशन संबंधी पहल करने या रोकथाम की रणनीति बनाने के विकल्प खुले होने चाहिए. ताकि जवाबी कार्रवाई करने की मजबूरी हो तो यह 24 से 48 घंटे के अंदर की जा सके. हवाई ताकत और मानव रहित एरियल सिस्टम (यूएएस) प्रमुख भूमिका निभाने जा रही है. और भारत के संदर्भ में तो यह भावी संघर्षों और युद्धों में बढ़चढ़करभूमिका निभाएगी. चीन अपने फ़िफ्थ जेनरेशन वाले जे-20 और जे-35 फाइटर जेटों का इस्तेमाल कर रहा है. पाकिस्तान जल्दी ही 40 जे-35 विमान और तुर्क ‘केएएएन’ भी हासिल करने जा रहा है. भारत क्के ‘एड्वांस्ड मीडियम कंबैट विमान (एएमसीए) अभी भी विकास के चरण में है और 2035 से पहले उन्हें वायुसेना में शामिल किए जाने की उम्मीद नहीं है. जे-35 में इसमें गुप्त उड़ान भरने की क्षमता तो है ही, इसमें पीएल-17 एयर-टु-एयर मिसाइल फिट की जा सकती है जो 400 किमी तक मार कर सकती है और यह ऐसी ही दूसरी मिसाइलों को पीछे छोड़ सकती है. इसी तरह, भारतीय वायुसेना दुश्मन की एयर-टु-एयर मिसाइल से पिछड़ना गवारा नहीं कर सकती.

ऑपरेशन सिंदूर में यूएएस की भावी ऑपरेशनों में प्रकट होने वाली क्षमता की 25-30 फीसदी का ही इस्तेमाल किया गया. ऑपरेशन राइज़िंग लायन, ऑपरेशन स्पाइडर वेब, और यूक्रेन युद्ध ने दिखा दिया है कि यूएएस आधुनिक युद्धों में बड़ी भूमिका निभाएगी. यह लागत का पूरा लाभ देने वाली तकनीक है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती और यह दूसरी महंगी वेपन सिस्टम्स में निवेश को गैरज़रूरी बना सकती है.

एयर डिफेंस अब हवाई ताकत का अनिवार्य हिस्सा बन गई है, चाहे आक्रमण का ऑपरेशन करना हो या बचाव का. जरा गौर कीजिए कि ईरान की एअर डिफेंस को दबाकर इजरायल ने अपनी बेहतर हवाई ताकत का किस तरह प्रदर्शन किया है, और उसने बैलिस्टिक मिसाइलों तथा ड्रोनों के हमलों से अपना बचाव करने में अपने एअर डिफेंस की ताकत भी जता दी है. भारत के लिए भी अपने महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों के बचाव के लिए विस्तृत एअर डिफेंस तैयार करने और दुश्मन के क्षेत्र में घुसकर जवाबी हवाई कार्रवाई की क्षमता विकसित करने के सिवा कोई उपाय नहीं है.

लंबी दूरी वाली सरफेस-टु-सरफेस मिसाइलें भी भविष्य में बड़ी भूमिका निभाएगी. परमाणु विकल्प ने बैलिस्टिक मिसाइलों के इस्तेमाल में सावधानी बरतने की शर्त जोड़ दी है लेकिन यह बहुत आगे तक नहीं चल सकता. प्रतिकूलताओं के बावजूद ईरान इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों से हमले कर रहा है. इस मामले में भारत के पास पाकिस्तान की पहुंच से दूर रहने और चीन का मुक़ाबला करने वाले हथियार बनाने का हुनर मौजूद है.

इलेक्ट्रोनिक और साइबर युद्ध सबसे अत्याधुनिक वेपन सिस्टम्स और प्रीसीजन गाइडेड गोला-बारूद को भी नाकाम कर सकता है. कोई भी आधुनिक सेना इस ‘फोर्स मल्टीप्लायर’ के बिना काम नहीं कर सकती, जो युद्धक्षेत्र के सभी मोर्चों पर विद्यमान रह सकता है.

ऑपरेशन राइज़िंग लायन ने भविष्य के युद्धों के लिए निश्चित ही एयक नया पैमाना तय कर दिया है. भारत का रणनीतिक माहौल इजरायल के इस माहौल से बेशक भिन्न है, लेकिन जो सबक उभरे हैं उन्हें सेनाओं के तत्काल आधुनिकीकरण और दीर्घकालिक दृष्टि से बदलाव के लिए जरूर लागू किया जाना चाहिए.

लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: चीन का सामना करने के लिए भारतीय सेना को अंडरग्राउंड युद्ध अपनाना चाहिए, सैन्य इतिहास से लें सबक


 

share & View comments