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Sunday, 22 December, 2024
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एन वी रमन्ना के CJI बनने से क्या SC में मुकदमों की सुनवाई के सीधे प्रसारण का इंतजार अब खत्म होगा

एन वी रमन्ना के कार्यकाल में अगर शीर्ष अदालत में महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का सीधा प्रसारण शुरू हो गया तो निश्चित ही इसे न्यायपालिका के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी और पारदर्शिता लाने वाला कदम माना जायेगा.

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सुनने और पढ़ने में शायद थोड़ा अटपटा लगे लेकिन हकीकत यही है कि न्यायिक कामकाज में पारदर्शिता की हिमायत करने वाला सुप्रीम कोर्ट महत्वपूर्ण मुकदमों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने के बारे में अपने ही फैसले पर अभी तक अमल नहीं कर सका है. यह दीगर बात है कि इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि न्यायिक कार्यवाही का सीधा प्रसारण संविधान के अनुच्छेद 21 प्रदत्त न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार का हिस्सा है.

यह भी दिलचस्प है कि 2018 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय महत्व के मुकदमों की सुनवाई के सीधे प्रसारण पर सिद्धांत रूप में सहमति व्यक्त करते हुये विस्तृत फैसला सुनाया. लेकिन इसके बाद उनके उत्तराधिकारी बने दो-दो प्रधान न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (03 अक्टूबर 2018 से 17 नवंबर, 2019) और न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े (18 नवंबर, 2019 से 23 अप्रैल, 2021) ने इस फैसले पर अमल के प्रति अपेक्षित दिलचस्पी नहीं दिखाई.

कई बार यह विचार मन में आता है कि अगर शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले के बाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुकदमे की कार्यवाही का सीधा प्रसारण हुआ होता तो देश की जनता को न्यायिक प्रक्रिया, याचिकाकर्ताओं और बहस में हिस्सा लेने वाले देश के जाने माने वकीलों की भूमिका को लेकर व्याप्त उत्सुकताओं का समाधान हो सकता था.

न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण के दौरान संभव है कि कुछ अधिवक्ता विषयांतर करने या निरर्थक और अनर्गल दलीलें देकर न्यायालय का समय नष्ट करने और ज्यादा समय तक सुर्खियों में रहने का प्रयास करें लेकिन इस पर अंकुश पाया जा सकता है. न्यायालय चाहे तो संबंधित पक्षों के अधिवक्ताओं के लिये अपनी-अपनी दलीलें पेश करने का समय निर्धारित कर सकता है ताकि एक निश्चित समय के भीतर ही सारी दलीलें करीने से पेश की जा सकें. किसी मुकदमे में बहुत जरूरी होने पर मामले की सुनवाई कर रही पीठ अधिवक्ताओं को अतिरिक्त समय देने पर विचार कर सकती है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पूर्व प्रचारक और विचारक के एम गोविंदाचार्य ने राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत से अनुरोध किया था कि राष्ट्रीय महत्व के इस मुकदमे की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाये. लेकिन तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2019 में इसे समय अभाव के आधार पर अस्वीकार कर दिया था.

इसके बाद, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सितंबर, 2018 के फैसले पर अमल के लिये जनवरी, 2020 में न्यायालय में आवेदन दायर किया था लेकिन उन्हें भी इसमें सफलता नहीं मिली.


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बहरहाल, अभी भी राष्ट्रीय महत्व के ऐसे अनेक मुद्दे शीर्ष अदालत में लंबित हैं जिनका सुनवाई के दौरान सीधी प्रसारण करने पर विचार किया जा सकता है. इन मुकदमों में जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 के अंशों को खत्म करना, नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता, सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और विभिन्न धर्मों की महिलाओं के अधिकारों से जुड़े जैसे मामले हो सकते हैं.

भले ही शीर्ष अदालत के सितंबर, 2018 के फैसले पर अभी तक अमल नहीं हो सका लेकिन अब वर्तमान प्रधान न्यायाधीश एन वी रमन्ना के कथन से यह भरोसा होता है कि उनके कार्यकाल के दौरान यह प्रक्रिया मूर्तरूप ले लेगी. प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने हाल ही में कहा है कि वह न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण के प्रस्ताव पर सक्रिय रूप से विचार कर रहे हैं.

यह अजीब स्थिति है कि न्यायिक सुधारों के मामले में समूची न्यायपालिका का मार्गदर्शन करने वाली शीर्ष अदालत ही अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण की व्यवस्था सुनिश्चित करने में विफल हो गया है.

स्थिति यह है कि आज अदालत की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के मामले में गुजरात हाई कोर्ट सबसे आगे है. कोविड-19 के दौरान ही अक्टूबर, 2020 में गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ के समय होने वाली सुनवाई का यूट्यूब पर सीधा प्रसारण शुरू हो गया था.

इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने संभवत: सबसे पहले फरवरी, 2020 में पहल की थी. हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति कौशिक चंदा की पीठ ने पारसी समुदाय की एक महिला की याचिका की अंतिम सुनवाई का यूट्यूब पर सीधा प्रसारण करने का अनुरोध स्वीकार कर लिया था.

सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के मामले में देश के प्रधान न्यायाधीश एन वी रन्ना का कहना है कि इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार हो रहा है लेकिन इस दिशा में ठोस कदम उठाने से पहले वह न्यायालय के अपने सहयोगी न्यायाधीशों की आम सहमति लेना चाहते हैं.

वर्तमान प्रधान न्यायाधीश न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण के पक्ष में नज़र आते हैं जबकि कोविड-19 के दौरान देश के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे का मानना था कि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग हो सकता है. संभव है कि ऐसा हो लेकिन प्रयोग के तौर पर मुकदमों का सीधा प्रसारण करके इस प्रक्रिया की खामियों का अध्ययन किया जा सकता है.


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सुप्रीम कोर्ट में 26 सितंबर, 2018 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डॉ. धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने स्वपनिल त्रिपाठी बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया  प्रकरण में न्यायिक कार्यवाही के सीधे प्रसारण पर अपनी सहमति व्यक्त की थी. पीठ ने कहा था कि इस तरह का खुलापन ‘सूरज की रौशनी जैसा होगा जो सर्वश्रेष्ठ कीटनाशक है.’

न्यायालय का विचार था कि राष्ट्रीय महत्व के मामलों की संविधान पीठ के समक्ष होने वाली सुनवाई के सीधे प्रसारण की अनुमति दी जा सकती है और इसके लिये एक पायलट परियोजना के रूप में राष्ट्रीय महत्व के मामलों का सीधा प्रसारण किया जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने पायलट परियोजना के रूप में न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की व्यवस्था की एक रूपरेखा को भी अपने फैसले में इंगित किया था. इस फैसले में न्यायालय ने कार्यवाही के सीधे प्रसारण के दौरान कैमरों की स्थिति का जिक्र करने के साथ ही सुझाव दिया था कि कार्यवाही की रिकार्डिंग और इसके प्रसारण के बीच थोड़े समय का अंतराल रखा जा सकता है ताकि सुनवाई के दौरान की गयी किसी ऐसी टिप्पणी, जिसे नहीं दिखाया जाना चाहिए- को संपादित करके हटाया जा सके.

न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के बारे में सिद्धांत रूप में सहमति वाले शीर्ष अदालत के फैसले के बाद न्यायमूर्ति डॉ. धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी थी. इस समिति ने कोविड-19 के दौरान वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों के साथ मंत्रणा भी की थी.

लेकिन इससे पहले सितंबर,2020 में वर्चुअल कोर्ट्स के कामकाज पर संसद की संसदीय समिति ने भी अपनी 103वीं रिपोर्ट में राष्ट्रीय और संवैधानिक महत्व के मामलों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की सिफारिश की थी. संसदीय समिति का मानना था कि इससे न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता आयेगी.

कोरोना काल के दौरान पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट्स और निचली अदालतों में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से ही मुकदमों की सुनवाई हो रही है लेकिन इस संक्रमण के खतरे को देखते हुये सभी न्यायालय कक्षों में इस तरह से सुनवाई संभव नहीं है.

इसके बावजूद उम्मीद की जानी चाहिए कि कोविड-19 संक्रमण की महामारी से निजात पाने के बाद निश्चित ही न्यायपालिका, विशेषकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का सीधा प्रसारण संभव हो जायेगा.

संचार क्रांति के इस युग में न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के लिये लगातार बढ़ते दबाव के मद्देनज़र शायद शीर्ष अदालत की इस व्यवस्था पर कारगर तरीके से अमल को अब और ज्यादा समय तक अधर में रखना तरह तरह की अटकलों को जन्म देगा. ऐसी स्थिति में उचित यही होगा कि न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के दायरे में ही राष्ट्रीय महत्व के मुकदमों की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की दिशा में ठोस कदम उठाये जायें.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमन्ना के कार्यकाल के दौरान अगर शीर्ष अदालत में महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का सीधा प्रसारण शुरू हो गया तो निश्चित ही इसे न्यायपालिका के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी और पारदर्शिता लाने वाला कदम माना जायेगा. अगर ऐसा हो गया तो भारत की न्यायपालिका भी अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका सरीखे उन देशों की कतार में शामिल हो जायेगा जहां अदालतों की न्यायिक कार्यवाही की रिकॉर्डिंग या सुनवाई का सीधा प्रसारण होता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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