हर बसंत में जैसे ही अंजीरों के पकने का मौसम आता है, दूर-दूर तक फैले विशाल तक्लामाकन रेगिस्तान से ठग-जुआरियों और राजा-रंक से लेकर यौनकर्मियों, फल-विक्रेताओं, बेकर्स और रसोइयों तक की एक छोटी-मोटी सेना निकल पड़ती है. एक प्राचीन धार्मिक मान्यता है, ‘जो कोई जरूरतमंद है और इस सिद्ध मकबरे की तीर्थयात्रा करता है और दुआओं-प्रार्थनाओं और दीपक आदि जलाकर इस स्थान को रौशन करता है, उसकी न केवल इस जन्म की जरूरतें पूरी हो जाती हैं, बल्कि मृत्यु के बाद परलोक भी सुधर जाता है.’
इतिहासकार रियान थम एक सदी पूर्व के एक सूफी कशगर लेखक को उद्धृत करते हुए लिखते हैं, ‘वे व्यस्त हैं, लेकिन तीर्थयात्रा या धर्मस्थल की परिक्रमा करने में नहीं बल्कि अपने खुद के पेशे और कारोबार में. उनके लिए तो चाइनामैन का लबादा ओढ़ना या फिर धर्मस्थल जाना एक ही बात है.’
सदियों से ये तीर्थस्थल उइगरों यानी चीन के शिनजियांग प्रांत में बसे तुर्क मुस्लिम लोगों की पहचान को मजबूती देने में मददगार रहे हैं. फिर, इस सदी की शुरुआत में अचानक वे गायब होने लगे. 2007 के अंत में जब थम ने ओरदम पादशाह धर्मस्थल जाने की कोशिश की, तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया. उन्हें बताया गया कि रेगिस्तान में ‘कुछ रहस्य’ छिपा है. सेटेलाइट इमेजिंग से पता चलता है कि होटन के नजदीक स्थित इमाम आसिम अली दरगाह तो एकदम गायब हो गई है.
कुछ लोगों के लिए तो शिनजियांग में चीनी गणराज्य की नीतियां—जिसमें हिजाब और धार्मिक पहचान वाले अन्य चिह्नों को दर्शाने पर पाबंदी, मदरसों पर रोक, धर्मस्थल ध्वस्त करना और देशद्रोह के लिए कठोर सजा शामिल है—एक ऐसा मॉडल है जिन्हें भारत को पहचान और इस्लाम पर अपने टकरावों से निपटने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए. हालांकि, सच्चाई यही है कि चीन की नीतियों ने कोई एकरूपता लाने बजाये लोगों का जीवन तबाह कर दिया है और एक तरह की निरंकुशता को जन्म दिया है—इसने आने वाली पीढ़ियों में अभी से नफरत के बीज बो दिए हैं.
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उइगरों को मिटाया जा रहा
इस हफ्ते के शुरू में यूएन ह्यूमन राइट्स हाई कमिश्नर की एक रिपोर्ट में चीन पर उइगरों की पहचान पूरी तरह मिटाने के लिए व्यवस्थित ढंग से शासन बल का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है. हालांकि, चीन की सरकार यूएनएचसीआर से साथ आंकड़े साझा करने से इनकार कर चुकी है लेकिन इस रिपोर्ट में विशेषज्ञों के अनुमानों के आधार पर संकेत दिया गया है कि शिनजियांग में हर पांच जातीय उइगरों में से एक को 2017-2018 में हिरासत में लिया गया था. संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं को बताया गया है कि शिविरों में तथाकथित ‘टाइगर चेयर’ में कैद लोगों के साथ अत्याचार की कोई सीमा नहीं थी और उन्हें यौन हिंसा भी झेलनी पड़ी.
ये शिविर लोगों को देशभक्त बनाने के किसी कारखाने की तरह काम करते हैं. एक पूर्व कैदी ने बताया, ‘हमें हर दिन एक के बाद एक देशभक्ति गीत गाने को मजबूर किया जाता था और वो पूरी ताकत लगाकर तेज आवाज में गाना होता था, यहां तक कि जब तक हमारे चेहरे लाल न हो जाएं और हमारी नसें पूरी तरह खिंच न जाएं.’
शिनजियांग में चरमपंथियों से सहानुभूति रखने के संदिग्धों के लिए सामूहिक कैद की व्यवस्था है. लंबी दाढ़ी, टेलीविजन देखने से इनकार करना या कुछ खास तरह के कपड़े पहनने पर जेल की सजा हो सकती है. शोधकर्ता बहराम सिंतश ने संयुक्त राष्ट्र के लिए एक रिपोर्ट में एक विचित्र ही मामले का हवाला दिया है. इसके मुताबिक, बहार डिपार्टमेंटल स्टोर के इस्लामिक गुंबद को पहले तो एक अष्टकोणीय संरचना के ढका गया और फिर पूरी तरह से उसे हटा ही दिया गया.
भले ही चीनी सरकार दावा करती हो कि वह द्विभाषी शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, यूएनएचसीआर के जांचकर्ताओं ने ऐसे दस्तावेज पाए हैं जिनमें स्कूलों से प्राइमरी, एलीमेंट्री और मिडिल स्कूल के स्तर पर सिर्फ मंदारिन में ही पढ़ाने को कहा गया है.
चीन की सरकार ने यूएनएचसीआर रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में आरोपों को ‘झूठा और मनगढ़ंत’ बताकर खारिज कर दिया है. इस प्रतिक्रिया में दावा किया गया है कि इन असाधारण उपायों की जरूरत थी क्योंकि आतंकवादियों ने ‘1990 से 2016 के बीच शिनजियांग में हजारों की संख्या में आतंकवादी हमले’ किए थे, जिसमें ‘बड़ी संख्या में निर्दोष लोग मारे गए और सैकड़ों पुलिस अधिकारियों ने भी अपनी जवान गंवाई.’
चीन का तर्क है कि बढ़ते जिहादी आंदोलनों से निपटने के लिए उसके पास अपनी धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रीय संस्कृति को फिर से ढालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
आधुनिकता में छिपी शिनजियांग की सच्चाई
तमाम दुष्प्रचार की तरह इस कहानी के भी कई अनजान पहलुओं को जानना जरूरी है. 1950 के दशक के उत्तरार्ध से लाखों जातीय हान श्रमिक शिनजियांग पहुंचने लगे, जिन्हें खासकर सड़कों और रणनीतिक महत्व के बुनियादी ढांचे का निर्माण करना था. चीन के तीव्र आर्थिक विकास ने 1990 के दशक में सरकार की पहल पर आधुनिकीकरण की योजनाओं के तहत शिनजियांग में बड़े पैमाने पर निवेश की राह खोली. अकेले 2000 से 2009 तक शिनजियांग में फिक्स्ड इनवेस्टमेंट 1.4 ट्रिलियन युआन यानी करीब 200 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया जो सरकार की तरफ से मुहैया कराई गई राशि की तुलना में 80 प्रतिशत अधिक था.
नकदी का प्रवाह बढ़ने के साथ जातीय-धार्मिक तनाव भी बढ़ा. शिनजियांग में फलते-फूलते कपास उद्योग ने उन जलस्रोतों को सुखा दिया, जिन पर स्थानीय किसान निर्भर थे. शिक्षित प्रवासियों के लिए उच्च वेतन वाली नौकरियां पाना आसान हो गया. नए-नए आकर बसे लोगों ने स्थानीय कारोबारियों को अभिजात्य वर्ग को पीछे छोड़ दिया. उइगर यहां पर अल्पसंख्यक हो गए.
जैसा विशेषज्ञ ग्राहम फुलर ने अपने विश्लेषण में पाया कि उनमें से तमाम लोगों के लिए उरुमची की नई गगनचुंबी इमारतें ‘राष्ट्रीय गौरव की पहचान नहीं बल्कि उनके जातीय और धार्मिक अपमान का प्रतीक थी, और यही अंतत: उनके विस्थापन का स्मारक बनने वाली थीं.’
20वीं सदी की शुरुआत से ही शिनजियांग प्रांत दक्षिणी और पश्चिमी एशिया के इस्लामवादी आंदोलनों से प्रभावित रहा है, जिसका नेतृत्व अन्य लोगों के साथ-साथ भारत में पढ़े हान वेइलंग ने किया. उइगरों ने जो जनसांख्यिकीय और आर्थिक संकट देखा-झेला, वही मजहबी चरमपंथियों के मजबूत होने का आधार बना. 2009 में बड़े पैमाने पर जातीय दंगे भड़क उठे, जिसमें चाकुओं से हमले करने वाली भीड़ ने 197 लोगों की जान ले ली. इसके बाद 2014 में एक आत्मघाती हमला भी हुआ.
मई 2014 में सरकार ने उइगरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की शुरुआत कर दी. इससे पहले राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गोपनीय स्तर पर एक स्पीच दी, जिसमें उन्होंने अधिकारियों से कहा कि कोई भी उदारता बरते बिना कार्रवाई करें.
चीनी सरकार का दावा है कि उसकी नीतियां सफल रही हैं. 2016 के बाद से शिनजियांग में कोई आतंकवादी हिंसा नहीं हुई है, और सरकार का दावा है कि इसके तीन बाद अंतिम प्रशिक्षुओं ने पुनर्शिक्षा में ‘स्नातक’ किया. हालांकि, शिनजियांग में बड़े पैमाने पर दमन जारी रहना दर्शाता है कि शासन की चिंताएं अभी खत्म नहीं हुई हैं. सीरिया से लेकर अफगानिस्तान तक तमाम जिहादी युद्धों में बड़ी संख्या में उइगरों की भागीदारी दिखी है, और चीन जानता है कि वे कभी भी लौट सकते हैं.
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आस्था को लेकर तनाव
शिया धर्म के पहले इमाम अली इब्न अबी तालिब की शहादत का मातम मनाने के लिए हर साल ओरदम पादशाह में हजारों की संख्या में जुलूस पहुंचते हैं, जिसने अगुआई ढोल बजाने वाले कर रहे होते हैं. अपने गृहनगर से जुलूस की शक्ल में यह भीड़ लहराते झंडों और तेज संगीत के बीच मातमी नारे लगाते हुए इस धर्मस्थल तक पहुंचती है. स्वीडिश राजनयिक गुन्नार जारिंग ने ‘अपने इमाम की शहादत की याद में इस तरह रोने-चीखने’ को कुछ तिरस्कृत अंदाज में ‘धार्मिक उन्माद’ बताया है.
वहीं, स्कॉलर राहिल दाउत इस पर कुछ दूसरी ही राय रखती है. वह लिखती हैं, सूखा और तमाम अन्य चुनौतियां झेल रहे परेशानहाल किसानों के लिए यह धर्मस्थल ही एक ऐसी जगह है ‘जिससे वह उन्हें आपदा से बचाने की उम्मीद कर सकते हैं, जहां अपनी भावनाएं पूरी तरह उजागर कर सकते हैं, जहां बीमारियों से बचाने की गुहार लगा सकते हैं, अपनी आत्मा का बोझ उतार सकते हैं, और सबसे बड़ी बात कुछ समय के लिए ही सही लेकिन अपनी सारी चिंताएं छोड़ आनंद के भाव में रह सकते हैं.’
हालांकि, इस बारे में बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है कि चीनी अधिकारियों ने धर्मस्थलों के खिलाफ अपना अभियान क्यों शुरू किया. पत्रकार एलिस सु ने उल्लेख किया है कि हालांकि, जातीय हुई मुसलमानों के बीच राजनीतिक इस्लाम को नजरअंदाज ही किया गया है, जो कि नव-कट्टरपंथी पत्र-पत्रिकाएं और शिक्षण क्षेत्र के जरिये फल-फूल रहा है. इसका कारण राजनीति में निहित हो सकता है. दरअसल उइगरों के विपरीत हुई मुस्लिमों ने कभी भी स्वतंत्रता की मांग नहीं की और उनका नेतृत्व गैर-राजनीतिक रहा है.
एक एक्टिविस्ट ने सु को बताया, कुछ हुई मौलवी जिहाद को लेकर चिंतित हैं और उनके लिए ये सवाल ज्यादा मायने रखते हैं कि ‘आपके पास आईफोन 6 है या 6-एस है? आप किस तरह की कार चला रहे हैं?’
रियान थम की राय में, हो सकता है कि शिनजियांग के धर्मस्थलों और मस्जिदों को किसी विशिष्ट वैचारिक संकट की वजह से नहीं, बल्कि इस वजह से चीनी शासन का कोप भाजना बनना पड़ा हो क्योंकि उनमें बड़े जनसमूहों को संगठित करने की क्षमता रही है.
जैसा तिब्बत में हुआ, उसी तरह शिनजियांग के दमन में भी चीनी शासन को सफल कहा सकता है: जनसांख्यिकी और पुलिस बल के क्रूर चेहरे के आगे सत्ता के खिलाफ कोई वास्तविक खतरा उभरने की संभावना नहीं है. हालांकि, यह सफलता गंभीर नतीजों की कीमत पर हासिल की गई है. चीनी शासन ने शिनजियांग में तौर-तरीके अपनाए, उसका असर देश के सभी नागरिकों पर पड़ेगा. साथ ही, उइगरों की पहचान को मिटा देने के प्रयास एकीकरण या समानता लाने की दिशा में नहीं ले जाते हैं.
रोमन इतिहासकार टैसिटस ने ब्रिटेन पर शाही शासन की जीत पर लिखा था, ‘उन्होंने सब कुछ उजाड़ दिया और इसे शांति की संज्ञा देते हैं.’ शिनजियांग में शी की सफलता को भी कुछ इसी तरह से याद किया जाएगा.
लेखक दिप्रिंट के नेशनल स्कियोरिटी एडिटर हैं. वह @praveenswami ट्वीट करते हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.
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