चीन के राष्ट्रपति और ‘सेंट्रल मिलिट्री कमीशन’ (सीएमसी) के अध्यक्ष शी जिनपिंग ने सैन्य सुधारों के तहत सैन्य साजोसामान के मूल्यांकन तथा परीक्षण के लिए हाल में नये नियम लागू किए. इन नियमों के कारण चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ (पीएलए) को हथियारों के विकास और खरीद के फैसले करने के लिए ज्यादा अधिकार मिल जाएंगे.
भारत की तरह चीन का डिफेंस इंडस्ट्रियल बेस (डीआईबी) सरकारी महकमा है और रक्षा उत्पादन पर एकाधिकार रखता है. नये नियमों का लक्ष्य पीएलए और डीआईबी के बीच संबंधों को बेहतर बनाना और डीआईबी को अधिक कार्यकुशल बनाना है.
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नये नियम क्यों
पहले, रक्षा प्रबंधन की जटिल व्यवस्था के कारण डीआईबी के निगम ही रक्षा तकनीक और हथियारों का विकास करने के मुख्य स्रोत थे और उन्हें बंधक जैसे ग्राहक पीएलए पर थोप दिया जाता था. फीडबैक मिलने के बाद सामान में सुधार और संशोधन किया जाता था. यूवान वांग मिलिट्री साइंस एंड टेक्नोलॉजी थिंक टैंक में एक शोधकर्ता झाउ चेनमींग ने कहा, ‘पहले, हथियार बनाने वाली कंपनियां अपना उत्पाद खरीदने के लिए पीएलए पर ज़ोर डालती थीं, चाहे उनकी जरूरत उन्हें हों या नहीं, क्योंकि सेना को कहा गया था कि वह रक्षा उद्योग में कामगारों की नौकरी बचाने के लिए उनके ऑर्डर मान लें.’
यह व्यवस्था काफी संतोषजनक ढंग से चलती रही क्योंकि अधिकतर हथियार मीडियम टेक्नोलॉजी वाले रूसी हथियारों की रिवर्स इंजीनियरिंग पर आधारित होते थे. जब पीएलए ने ‘winning informationised (sic) local wars’ के लिए बदलाव शुरू किया जिसके लिए अत्याधुनिक सैन्य तकनीक पर आधारित हथियारों और सपोर्ट सिस्टम की जरूरत थी, तब कंपनियां उम्दा जरूरतों को पूरा करने में अक्षम रहीं.
पिछले साल ‘सैन्य उपकरणों के नियम’ जारी किए गए ताकि ‘अधिक आधुनिक हथियारों और दूसरे सैन्य उपकरणों का शोध और विकास किया जा सके और उत्पादित तथा चीनी सेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे उपकरणों का बेहतर प्रबंधन और रखरखाव किया जा सके’. नये नियमों का मुख्य ज़ोर विविध तरह के इलाकों और युद्धस्थलों में युद्ध के लिए तैनात सैनी उपकरणों के परीक्षण और मूल्यांकन पर था. पीएलए ने पिछले दो दशकों में खुद को तीसरे और चौथे पीढ़ी के सैन्य हथियारों और उपकरणों से लैस किया है. अब जो सुधार किए जा रहे हैं उनका ज़ोर पांचवीं/छठी पीढ़ी के सैन्य हथियारों पर है.
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डीआईबी की हालत
चीन का डीआईबी बहुत बड़ा है. रक्षा से संबंधित दुनिया के 15 सबसे बड़ी फर्मों में से सात- नॉर्थ इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन, एविएशन इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना, चाइना शिप बिल्डिंग कॉर्पोरेशन, चाइना एरोस्पेस टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन, चाइना स्टेट इंडस्ट्री ग्रुप कॉर्पोरेशन और चाइना इलेक्ट्रोनिक टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन- चीन के सरकारी उपक्रम हैं.
2017 में इसने 4 अरब डॉलर मूल्य के हथियार निर्यात किए जिनमें जहाज, विमान, बख्तरबंद वाहन, मिसाइल, तोपें, ड्रोन और सेंसर शामिल थे.
चीन के डीआईबी को मैन्युफैक्चरिंग के विशाल आधार का सहारा हासिल है, जिसमें दुनिया का 25 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन होता है. इसमें से 50 फीसदी उत्पाद दोहरे उपयोग के लायक होते हैं. पीएलए की जरूरतें पूरी करने के अलावा इनके निर्यात की भी भारी संभावना है. चूंकि इसका वास्ता राष्ट्रपति की अध्यक्षता वाले ‘सीएमसी’ से ही है इसलिए इसे पूर्णतः सरकारी होने का लाभ भी उपलब्ध है. ‘मिलिट्री-सिविल’ मिश्रण नीति विज्ञान व तकनीक से जुड़े शोध संस्थानों/विश्वविद्यालयों से संबंध बनाने की अनुमति देती है. रक्षा उत्पादन में लगने वाले 37 खनिजों में से 18 उसके यहां उपलब्ध हैं और बाकी 19 खनिजों का आयात करने के लिए उसने राजनयिक और व्यापार समझौतों के सहारे सप्लाई-चेन तैयार कर रखा है.
अतीत में सबसे बड़ी खामी यह थी कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ बहुत सख्त थी और साम्यवादी व्यवस्था में प्रोत्साहनों का अभाव था. इसे 2015 के सुधारों के बाद आंशिक रूप से ठीक कर लिया गया और नये सीएमसी को ज्यादा अधिकार मिले. लोकतांत्रिक देशों की तरह वहां कोई वैधानिक, न्यायिक और मीडिया निगरानी नहीं है और सीएमसी के किसी गलत फैसले के गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि डीआईबी को जो कल-पुर्जे चाहिए उनके लिए चीन बहुत हद तक अमेरिका और उसके मित्र देशों और रूस पर निर्भर है. ‘आरएएनडी’ के मुताबिक, ‘2019 में, सेंटर फॉर एड्वान्स्ड डिफेंस स्टडीज़ (सी4एडीएस) ने पाया कि रूस नहीं बल्कि अमेरिका ही चीन के डीआईबी का सबसे बड़ा सप्लायर है और उसके आयातों में 20 फीसदी हिस्सा उसी का होता है.’ वह विमान और नौसेना के लिए इंजन समेत पूरा का पूरा सैन्य उपकरण आयात करता है.
तकनीकी शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए वह पश्चिमी देशों पर निर्भर है लेकिन विकसित देश भी चीन पर इतने निर्भर हैं कि इस निर्भरता का निकट भविष्य में लाभ उठाने की संभावना नहीं है.
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निरंतर जारी सैन्य सुधार
चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को सीएमसी द्वारा जारी ‘सैन्य रणनीतिक दिशानिर्देश’ के रूप में रखा जाता रहा है और यह वर्गीकृत होता है. लेकिन ‘रक्षा श्वेतपत्र’ में इसके कुछ ब्योरे जारी किए जाते हैं, जो कि सार्वजनिक दायरे में होता है. चीन में सैन्य सुधार खाड़ी युद्ध-1 के बाद 1993 से शुरू हुए, जब उसने ‘local wars under modern conditions’ के लिए तैयारी की रणनीति अपनाई.
2004 में इस रणनीति में संशोधन किया गया और इसे ‘winning local wars under conditions of informationisation (sic)’ की रणनीति बना दिया गया. चीन ने समझ लिया कि अत्याधुनिक तकनीक वाले युद्ध के लिए सूचना की जंग की तैयारी बुनियादी शर्त है.
चीन में सैन्य सुधार निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है. राष्ट्रपति शी ने उसे अधिक प्रोत्साहित किया है और लक्ष्य स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिए हैं. उन्होंने समझ लिया है कि ‘2049 तक एक महाशक्ति की हैसियत’ वाला एक ‘शक्तिशाली और समृद्ध’ राष्ट्र बनने के ‘चीनी सपने’ को साकार करने के लिए सैन्य सुधार बेहद महत्वपूर्ण हैं. उनके रणनीतिक दिशनिर्देश 2015 के रक्षा श्वेतपत्र में दर्ज किए गए और 2019 के इस श्वेतपत्र में इसे और मजबूती दी गई.
2015 में उन्होंने पीएलए के रूपांतरण को आकार देने के लिए ‘विस्तृत सुधारों’ की घोषणा की. सीएमसी को ज्यादा स्वायत्तता दी गई और इसके चार सामान्य विभागों की जगह 15 उप-विभागों वाले संयुक्त स्टाफ विभाग का गठन किया गया. पीएलए को पूरी तरह समेकित किया गया और इसके सात सैन्य क्षेत्रों को तीन सेनाओं वाले पांच थिएटर कमांडों में बदल दिया गया. तीन नई सेनाओं का गठन किया गया- पीएलए ग्राउंड फोर्सेज, पीएलए रॉकेट फोर्सेज, पीएलए स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फोर्सेज. स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फोर्सेज में इलेक्ट्रोनिक युद्ध, साइबर युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध, अंतरिक्ष युद्ध के रणनीतिक भ्रम एवं संचार/इलेक्ट्रोनिक पहलू शामिल हैं.
इस बदलाव की समयसीमा स्पष्ट कर दी गई. मशीनीकरण 2020 तक पूरा कर दिया जाना था और इसके साथ अहम ‘informationisation’ भी करना था, 2027 तक मशीनीकरण, ‘informatisation’ और ‘intelligentisation’ के एकीकृत विकास को गति दी जानी है, 2035 तक नेशनल डिफेंस का व्यापक आधुनिकीकरण करना है और 2049 तक पीएलए को विश्व स्तरीय सेना में बदल डालना है.
पिछले 10 वर्षों में राष्ट्रपति शी ने सैन्य सुधारों को मिशन वाले जोश से आगे बढ़ाया है और पीएलए अपने लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर है. यहीं भारत के लिए भी एक सबक है. 2000 से 2014 तक जो निष्क्रियता रही है उसे भूल जाएं लेकिन हमने पिछले आठ साल में भी सैन्य सुधारों के मामले में कोई प्रगति नहीं की है. वक्त आ गया है कि राजनीतिक तथा सैन्य नेतृत्व इस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आए.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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