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Sunday, 22 December, 2024
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महाराष्ट्र में बच्चों ने जाना ईमानदारी का महत्त्व बनाया आनेस्टी बॉक्स, शुरू किया अनोखा उपक्रम

यदि किसी बच्चे को स्कूल परिसर में कोई चीज पड़ी मिलती है तो वह उसे आनेस्टी बॉक्स में डालता है.

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महाराष्ट्र में बुलढ़ाना जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर, खामगांव तहसील के हिवरखेड गांव का जिला परिषद केंद्रीय मराठी उच्च प्राथमिक स्कूल अपने ज्यादातर बच्चों को ईमानदारी का महत्त्व समझाने में सफल हो रहा है. यह एक शिक्षक द्वारा शिक्षण पद्धति में किए गए बदलाव और उनके विशेष प्रयासों के कारण सभंव हुआ है.

यहां के बच्चों ने स्कूल परिसर में प्रार्थना-स्थल के पक्के मंच पर एक आनेस्टी बॉक्स यानी ईमानदारी का बक्सा बनाया है. यदि किसी बच्चे को स्कूल परिसर में कोई चीज पड़ी मिलती है, तो वह उसे आनेस्टी बॉक्स में डालता है.

अगले दिन प्रार्थना-सभा में कुछ बच्चे आनेस्टी बॉक्स को खोलकर ऐसी चीजों को बारी-बारी से बाहर निकालते हैं और स्कूल के सभी बच्चों से पूछते हैं कि कौन-सी चीज किसकी है? इसके बाद, जिस बच्चे की जो चीज होती है, वह हाथ उठाकर सबके सामने आता है और चुपचाप मंच पर खड़ा हो जाता है. फिर, उसे उसकी चीज लौटा दी जाती है. इस दौरान, आनेस्टी बॉक्स में ऐसी चीजों को डालने वाले बच्चों के नाम भी पुकारे जाते हैं. इन्हें मंच में आमंत्रित भी किया जाता है और स्कूल के सारे बच्चे ताली बजाकर इनका अभिवादन करते हैं.


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बता दें कि हिवरखेड करीब साढ़े तीन हजार की जनसंख्या का धनगर (पशुपालक समुदाय) बहुल गांव है. इस समुदाय के ज्यादातर लोग साल के छह से आठ महीने अपनी बकरियां चराने सीमावर्ती क्षेत्रों में पलायन करते हैं. वहीं, वर्ष 1906 में स्थापित इस स्कूल में प्रधानाध्यापक सहित 9 शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं. इस स्कूल के कूल 265 बच्चों में 147 लड़कियां और 118 लड़के हैं. यहां सितंबर 2018 से परंपरागत धारा के विपरीत शिक्षण पद्धति और बच्चों के दृष्टिकोण में परिवर्तन के प्रयास चल रहे हैं.

पूरी व्यवस्था पारदर्शी

बच्चों द्वारा प्रदर्शित ईमानदारी की इस अभिव्यक्ति के पीछे मूल्यवर्धन के शिक्षक किशोर भागवत ने अहम भूमिका निभाई है. वे बताते हैं कि पहले जब स्कूल के किसी बच्चे को कोई चीज पड़ी मिलती थी तो वह नहीं समझता था कि ऐसी चीज किसी को दे या नहीं दे. दे भी तो किसे.

किशोर कहते हैं, ‘छोटे बच्चे अपनी मनपसंद चीजों को आसानी से लौटाते भी नहीं हैं. इसलिए, कई बच्चे स्कूल में पड़ी चीजों को घर भी ले जाते थे. ऐसे में मूल्यवर्धन सत्रों ने बच्चों के इस व्यवहार को बदलने में बड़ी मदद की. इस दौरान उन्होंने बहुत गहराई से ईमानदारी के मतलब और महत्त्व दोनों समझे. यही वजह है कि स्कूल के बच्चों ने महज कुछ महीनों में स्कूल परिसर से गुमी कई चीजें जैसे कैमरा, पढ़ाई के सामान और कुल दो हजार रुपए की नकद राशि ‘आनेस्टी बॉक्स’ में डाली है.’

दूसरी तरफ, बच्चों में आ रहे इस तरह के बदलाव से प्रधानाध्यापक रामदास नामदेव संतुष्ट नजर आते हैं. वे बताते हैं कि उनके स्कूल में ढाई सौ से ज्यादा बच्चे हैं. लिहाजा पहले स्कूल परिसर से मिली चीजों के बारे में यह पता लगाना बहुत मुश्किल होता था कि कौन-सी चीज किसकी है. लेकिन, अब आनेस्टी बॉक्स नाम से जो व्यवस्था है, उसमें प्रतिदिन एक छोटा कार्यक्रम आयोजित होता है. यह कार्यक्रम सार्वजनिक होता है. इसलिए इसका एक फायदा यह भी है कि कोई भी बच्चा पूरे स्कूल के सामने खड़ा होकर झूठ नहीं बोल सकता. यदि आनेस्टी बॉक्स से निकली कोई चीज उसकी नहीं है, तो वह नहीं कह सकता कि यह चीज उसकी है. हालांकि, अभी तक ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है, जिसमें आनेस्टी बॉक्स से निकली किसी एक चीज के दो दावेदार हों.


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क्यों बनाया आनेस्टी बॉक्स

प्रश्न है कि स्कूल परिसर में आनेस्टी बॉक्स जैसा दिलचस्प विचार कैसे आया? इस बारे में किशोर एक पुरानी घटना बताते हैं. वे कहते हैं, ‘एक बार तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले प्रशांत मानकर को चांदी का सिक्का मिला. उसने वह मुझे दिया. अगले दिन मैंने प्रार्थना-सभा में स्कूल के सभी बच्चों से पूछा कि क्या किसी का चांदी का सिक्का गुम हुआ है. तब मंगेश सातव नाम का बच्चा बोला कि उसका चांदी का सिक्का गुम हुआ है. उसने जब सिक्के का सही वर्णन करके बताया और कोई दूसरा दावेदार नहीं आया, तो मैंने वह सिक्का उसे दे दिया. उस दिन हमने सभी बच्चों के साथ मिलकर आनेस्टी बॉक्स बनाने का निर्णय लिया.’

आनेस्टी बॉक्स बनाने के इस निर्णय के पीछे मूल्यों को लेकर लगाए विशेष सत्रों में ईमानदारी से जुड़ी गतिविधियों का भी प्रभाव था. किशोर बताते हैं कि कक्षा चौथी में ‘ईमानदारी का बीज’ और ‘न्याय करो’ जैसी गतिविधियां महत्त्वपूर्ण रहीं. इस दौरान आयोजित चर्चा में बच्चों ने बताया कि यदि किसी व्यक्ति की कोई चीज गुम हो जाए और उसे किसी दूसरे व्यक्ति पर शक हो कि उसने वह चीज चुराई है, तो पहले व्यक्ति को चाहिए कि वह दूसरे व्यक्ति को अपनी बात रखने का मौका दे. बच्चों ने यह भी बताया कि उन्हें यदि कोई चीज पड़ी मिली तो वे उसे लौटाएंगे.

बच्चों की इस पहल को स्कूल प्रबंधन किस तरह से देखता है? इस बारे में शिक्षिका सोनाली डांगे बताती हैं कि यदि किसी बच्चे की कोई चीज खो जाती थी तो पूरी कक्षा की पढ़ाई बाधित हो जाती थी. कई बार बच्चे आपस में झगड़ने भी लगते थे. पर, अब ऐसी नौबत कम ही देखने को मिलती है.


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शिक्षिका छाया दलवी कहती हैं कि ज्यादातर बच्चों में ईमानदारी की भावना बढ़ाने में मूल्यवर्धन की ये अन्य गतिविधियां सहयोगी सिद्ध हुईं, ‘उचित व अनुचित’, ‘अच्छा या बुरा व्यवहार’, ‘अच्छा मित्र कौन?’, ‘आपको क्या लगता है?’ और ‘मेरे अच्छे गुण’ आदि.

यहां अहम बात यह भी है कि कुछ बच्चे ईमानदारी के महत्त्व को अच्छी तरह बता भी रहे हैं. कक्षा चौथी की राशि हटकर बताती है कि वह अपने से छोटे बच्चों को भी दूसरे की चीजें लौटाने के लिए बोलती है. इसी कक्षा की अक्षरा वाडकर कहती है कि वह ईमानदारी से जुड़ी और भी कहानियां पढ़ना चाहती है और उन पर चर्चा करना चाहती है. इस बारे में उसने अपने कक्षा-शिक्षक को बताया भी है.

अंत में, किशोर कहते हैं कि वे बच्चों को मूल्यों पर आधारित साहित्य उपलब्ध कराएंगे. ताकि, विभिन्न मुद्दों पर वे चर्चा करें और उनकी सोच स्पष्ट हो सके.

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं.)

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