कोविड-19 ने वह किया जो द्वितीय विश्व युद्ध और चीन-पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध भी नहीं कर सका. इसने भारत के जनगणना चक्र को रोक दिया जो 1881 के बाद से कभी नहीं रूका था. लेकिन तीन साल की देरी के बाद अब सरकार ने कहा है कि जनगणना 2024 में पूरी की जाएगी, जो 2021 में होनी थी.
लेकिन पहले चीजें पहले. जनगणना है क्या? इसे जानकारी का खजाना कहा जाता है, जनगणना देश में साक्षरता दर, शिक्षा, आवास, घरेलू सुविधाओं, प्रवासन, शहरीकरण, प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर, भाषा, धर्म और विकलांगता से लेकर अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय डेटा जैसे उम्र, लिंग और वैवाहिक स्थिति का संग्रह करता है. यह देश के लोगों के डेटा का सबसे बड़ा भंडार होने के साथ-साथ गांव, कस्बे और वार्ड स्तरों पर प्राथमिक डेटा का स्रोत भी है.
स्वतंत्रता के बाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल (तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री) ने 1948 की जनगणना अधिनियम, अनुच्छेद 246 के तहत एक केंद्रीय विषय और संविधान की सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध किया. दरअसल, यह अधिनियम केंद्र को किसी विशेष तिथि पर जनगणना करने या एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर अपना डेटा जारी करने के लिए बाध्य नहीं करता है. हालांकि, गृह मंत्रालय के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) के कार्यालय ने इन सभी वर्षों में सावधानीपूर्वक इसके विभिन्न चरणों की योजना बनाई है. इन चरणों में पहचान, चयन और प्रशिक्षण, हाउस लिस्टिंग और वास्तविक डेटा संग्रह, और विस्तृत रिपोर्ट को संसाधित करना और जमा करना शामिल है.
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भारत की पहली डिजिटल जनगणना
आरजीआई ने अपनी 2021 की जनगणना योजनाओं को 2019 की शुरुआत में ही शुरू कर दिया था, जिसमें लगभग 9,000 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान था और देश की पहली डिजिटल जनगणना के लिए डेटा एकत्र करने के लिए 3.3 मिलियन से अधिक जनसंख्या करनेवाले अधिकारियों को जुटाया गया था. इस जनगणना के लिए सभी डेटा केंद्रीय रूप से जनगणना प्रबंधन और निगरानी पोर्टल पर फीड किए जाएंगे, जिसमें जनसंख्या करने वाले और पर्यवेक्षकों को कई भाषाओं में सपोर्ट मिलेगा. इस बार जनगणना फॉर्म में ट्रांसजेंडर लोगों को अलग श्रेणी में दर्ज किया जाएगा. 2011 तक, केवल पुरुष और महिला लिंग को मान्यता दी गई थी.
आरजीआई के कार्यालय ने अब राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए लिखा है कि प्रशासनिक सीमाओं (राजस्व गांवों, विकास खंडों, उप-मंडलों और जिलों) में परिवर्तन को 30 जून 2023 तक पूरा किया जाना चाहिए. क्योंकि अक्टूबर में जनगनणा शुरू होगी इसलिए सीमाओं के पुनर्गठन और जनगणना शुरू होने के बीच सिर्फ तीन महीने का अंतर है. यह न केवल क्षेत्र में परिचालन संबंधी कठिनाइयों को कम करेगा बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि इससे मिलने वाला डाटा अधिक वैध होगा.
हाउस लिस्टिंग (एचएल) प्रक्रिया से पहले प्रशासनिक सीमाओं को स्थिर करना पहली शर्त है. यह जनगणना का पहला कदम माना जा सकता है.
एचएल के तहत, सभी भवनों (स्थायी या अस्थायी) का विवरण, उनके प्रकार, सुविधाओं और संपत्तियों के साथ नोट किया जाता है. एचएल भारत के लिए एक चुनौती है क्योंकि देश के पास मजबूत एड्रेस सिस्टम नहीं है. अगला कदम जनसंख्या गणना है, जहां देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति, भारतीय नागरिक या अन्यथा के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी दर्ज की जाती है. पहले जनगणना को पूरा करने में लगभग एक वर्ष का समय लगता था, लेकिन अब जबकि भारत अपनी पहली डिजिटल जनगणना की ओर बढ़ रहा है, इस प्रक्रिया को तेजी से किया जा सकेगा.
शुरुआत के लिए, जनगणना करने वाले टैबलेट या स्मार्टफोन के साथ हर घर जाएंगे और सीधे पोर्टल में जानकारी दर्ज करेंगे. स्व-गणना के लिए भी एक प्रावधान होगा, जहां एक व्यक्ति खुद ‘जनगणना फार्म को भर सकता है, और जमा कर सकता है’.
हालांकि, चल रही पूर्व-जनगणना गतिविधियां आगामी 2024 लोकसभा चुनावों में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को प्रभावित नहीं करेंगी.
2026 के बाद की जनगणना के आंकड़े प्रकाशित होने तक संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर जारी रहेगा. न ही सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए सीटों की संख्या में बदलाव होगा. हालांकि, यह निश्चित रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा) के लाभार्थियों और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत भोजन के हकदार लोगों में सुधार की ओर ले जाएगा.
जाति और जनगणना
आज यह एक बड़ा ‘राजनीतिक प्रश्न’ है कि क्या भाषा, धर्म, व्यवसाय, आय और व्यावसायिक योग्यता की जानकारी के अलावा जाति की जानकारी भी शामिल की जाएगी. यह महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा सहित कई राज्यों ने अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किया है कि 2021 की जनगणना में जाति को शामिल किया जाना चाहिए.
बिहार सरकार ने हाल ही में जातिगत जनगणना शुरू किया है, लेकर एक स्वतंत्र अभ्यास के रूप में. यह याद किया जा सकता है कि प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लीडरशिप में भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 2001 में जातिगत जनगणना करने से इनकार कर दिया था. यह भी रिकॉर्ड पर रखा जाना चाहिए कि 2018 में, नरेंद्र मोदी सरकार ने यह कहा था 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले एक ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की जनगणना होगी, लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि जातिगत जनगणना संभव नहीं है. केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया था, ‘जनगणना में जातिवार गणना को 1951 से नीति के रूप में छोड़ दिया गया है, और इस प्रकार, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जातियों को 1951 से आज तक किसी भी जनगणना में शामिल नहीं किया गया है.’
अब जाकर जब जनगणना की प्रक्रिया चालू है, दूसरी बातों के साथ-साथ यह भारत को दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश होने की आधिकारिक पुष्टि करेगा.
(संजीव चोपड़ा पूर्व आइएएस अधिकारी और वैली ऑफ वड्र्स के फेस्टीवल डायरेक्टर हैं. हाल तक वे लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के डारेक्टर थे. उनका ट्विटर हैंडल @ChopraSanjeev. है. विचार निजी हैं.)
(संपादन: ऋषभ राज)
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