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Wednesday, 20 November, 2024
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टैक्स वसूली तो खूब बढ़ी, क्या मिडिल क्लास को Budget में राहत मिलेगी

वित्त मंत्रालय ने सूचित किया है कि नवंबर तक डायरेक्ट टैक्स वसूली में आशातीत बढ़ोत्तरी हुई है. वित्त वर्ष 2022-23 में कुल वसूली पिछले साल की तुलना में 22.26 फीसदी बढ़ी. यह बजट अनुमानों का 61.79 फीसदी है.

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यह साल कोविड महामारी के बाद एक सामान्य साल रहा है और इससे उम्मीदें भी बहुत रहीं. जन-जीवन तो सामान्य हुआ, खरीदारी भी नई ऊंचाइयों तक पहुंची. सबसे बड़ी बात तो यह रही कि सरकार का खजाना लक्ष्य से ज्यादा भर गया. दोनों ही तरह के टैक्स- प्रत्यक्ष और परोक्ष में जमकर बढ़ोत्तरी हुई है. सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि इनकम टैक्स और जीएसटी दोनों में अच्छी वृद्धि हुई है और सरकार अपने घाटे के लक्ष्य के बारे में अब खुलकर बात कर रही है.

वित्त मंत्रालय ने सूचित किया है कि नवंबर तक डायरेक्ट टैक्स वसूली में आशातीत बढ़ोत्तरी हुई है. वित्त वर्ष 2022-23 में कुल वसूली पिछले साल की तुलना में 22.26 फीसदी बढ़ी. यह बजट अनुमानों का 61.79 फीसदी है. इसका मतलब है कि अभी शेष चार महीनों में यह लक्ष्य से कहीं ज्यादा हो जायेगी.

देश में इनकम टैक्स वसूली तेजी से बढ़ी है और नवंबर महीने में यह 8.77 लाख करोड़ रुपये हो गई जो पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 24.3 फीसदी ज्यादा है.

दूसरी ओर देश में जीएसटी की वसूली भी बढ़ी है. अक्टूबर महीने में यह 1,51,718 करोड़ रुपये थी जो अब तक की सबसे ज्यादा वसूली है. हालांकि नवंबर में इसमें थोड़ी गिरावट आई और यह 1,45,867 करोड़ रुपये थी. इसका कारण संभवतः यह था कि अक्टूबर महीने में सबसे बड़े-बड़े त्यौहार जैसे दशहरा, दीवाली वगैरह मनाये जा रहे थे. लेकिन एक ट्रेंड साफ दिख रहा है कि जीएसटी वसूली में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.


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क्या मिडिल क्लास को मिलेगी राहत

लेकिन टैक्स वसूली में इस अभूतपूर्व वसूली के बाद क्या मिडिल क्लास को राहत मिल पायेगी, जिसकी उम्मीद वह पिछले बजट में भी कर रहे थे? यह सवाल सभी के मन को मथ रहा है क्योंकि देश के टैक्स योगदान में उसका बहुत बड़ा योगदान है और इस समय उसे राहत चाहिए. भारत की अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है और उसे निर्यात की बजाय जनता की खरीदारी पर आश्रित रहना पड़ता है. अगर खपत बढ़ती है तो जीडीपी भी बढ़ती है क्योंकि अर्थव्यवस्था में तेजी आती है. दरअसल खपत बढ़ने से मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को सहारा मिलता है और वहां उत्पादन बढ़ता है जिससे रोजगार भी बढ़ता है.

देश में मिडिल क्लास की तादात कितनी है इस बारे में सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन जो भी आंकड़े उपलब्ध हैं उनके अनुसार देश में मिडल क्लास की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पीपल्स रिसर्च ऑन इंडियाज इकोनॉमी (प्राइस) के मुताबिक भारत में 2004-05 में जहां 14 फीसदी मिडिल क्लास के लोग थे, वहीं यह बढ़कर पिछले साल 31 फीसदी हो गए. इसके लिए रिसर्च एजेंसी ने कम से कम 5 लाख रुपए सालाना इनकम को आधार माना है. अनुमान है कि यह संख्या अगले 20 सालों में यह बढ़कर आबादी की आधी हो जायेगी. यह वह क्लास है जो अपनी आय के अनुपात में सबसे ज्यादा खपत तो करता है साथ ही विभिन्न तरीकों से बचत भी करता है जो पैसा सरकार के काम ही आता है.

लेकिन इस क्लास के सामने समस्या खड़ी रही है कि यह टैक्स की मार से बच नहीं पाता. जहां तक मिडिल क्लास बिज़नेस मैन या छोटे कारोबारियों की बात है तो वे टैक्स के जाल से अपने को काफी हद तक बचा लेते हैं लेकिन नौकरी पेशा लोग टैक्स के जाल में हर हालत में फंस जाते हैं. इससे न केवल उनके रहन-सहन पर असर पड़ता है बल्कि उनकी खर्च करने की क्षमता भी प्रभावित होती है. यह वह मिडल क्लास है जिनकी परचेजिंग पॉवर देखकर भारत में कंज्यूमर सामान बनाने वाली विदेशी कंपनियां आकर्षित हुईं और यहां उन्होंने अपने प्लांट लगाये.

आज भी भारत का मिडल क्लास विदेशी कंपनियों के लिए एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग है. इनकी खरीदारी से न केवल रोजगार बढ़ता है बल्कि सरकार के रेवेन्यू में भी वृद्धि होती है. सरकार रेवेन्यू तो ले लेती है लेकिन इस मिडिल क्लास के लिए कुछ करती नहीं है क्योंकि इस क्लास की लॉबीइंग करने वाला कोई नहीं है. बड़े-बड़े उद्योग, कारोबारियों के चैम्बर्स, वगैरह टैक्स में कटौती से लेकर अन्य उपाय की चर्चा सरकार से देश की प्रगति के नाम पर करते हैं लेकिन जो वर्ग उनके लक्ष्यों को पूरा करता है वह उपेक्षित रहता है और कभी-कभी टैक्स की मार भी खाने को बाध्य हो जाता है.

इस समय देश में न्यूनतम इनकम टैक्स की सीमा आज भी ढाई लाख रुपये प्रति वर्ष है. यानी ढाई लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की आय वालों को 5 फीसदी टैक्स देना ही होगा. और पांच लाख रुपये से साढ़े सात लाख रुपये तक आय वालों को 10 फीसदी टैक्स देना ही होगा.

यह मिडल क्लास के लिए चुभने वाली बात है और इस दर से सरकार को क्या ही प्राप्ति होती होगी. लेकिन एक ज़िद है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स नेट में लाया जाये. यहां पर यह यह बताना जरूरी है कि बीजेपी ने हमेशा यह कहा है कि आय कर की न्यूनतम सीमा पांच लाख रुपए सालाना हो. पिछले लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में पार्टी ने कहा था कि इनकम टैक्स के स्लैब में बदलाव करके मध्य वर्ग को राहत दी जायेगी. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. थोड़े बहुत कॉस्मेटिक बदलाव के साथ बीजेपी सरकार ने नई दरों की घोषणा की जो मिडिल क्लास की उम्मीदों से दूर है.

अगर मिडिल क्लास को इनकम टैक्स में राहत मिलती है तो उसके लिए यह बहुत बड़ा सुकून होगा. कोविड महामारी के कारण लगभग एक करोड़ लोगों की नौकरी जाती रही. इनमें से बहुत कम ही अब वापस आ पाये हैं. और अब फिर से अफवाह फैल गई है कि मंदी आ रही है. इसके नाम पर लाखों की छंटनी तय है. मतलब यह है कि देश को सशक्त बनाने वाला मिडिल क्लास आज सबसे ज्यादा अशक्त है क्योंकि उसके पास कोई सामूहिक वोट बैंक नहीं है.

अब सरकार से यह उम्मीद तो लगाई जा सकती ही है कि वह इनकम टैक्स में राहत देकर मिडल क्लास के नीचे के तबके को मजबूत करे. उसका खजाना भरा-पूरा है और जिस तरह से जीएसटी की वसूली बढ़ रही है उसे देखते हुए सरकार को राजस्व की चिंता नहीं होनी चाहिए. कंपनियों के सालाना रिजल्ट को देखते हुए सरकार को ऐसा कदम उठाना चाहिए. वित्त वर्ष 2022 में 500 कंपनियों के लाभ में 4.3 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई थी जो 11 सालों का एक रिकॉर्ड है. यानी सरकार के लिए कुछ गुंजाइश तो है. वह चाहे तो कॉर्पोरेट टैक्स में बदलाव कर सकती है या फिर उसमें कुछ एडजस्टमेंट कर ही सकती है.

अब बजट बनाने का काम जोर-शोर से शुरू भी हो गया है और फरवरी आने में देर भी नहीं है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार निजी हैं.)


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