आप जरूर हैरान होंगे कि भाजपा सांसद बृज भूषण सिंह आखिर इतने ताकतवर कैसे हो गए हैं कि पूरा सत्तातंत्र इस तरह उनके बचाव में भिड़ा हुआ है, मानो वे कोई अमूल्य राष्ट्रीय धरोहर हों या किसी नाइंसाफी के शिकार हों? यहां मैं भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ (डब्लूएफआई) के अध्यक्ष बृज भूषण सिंह की ताकत और उनकी शख्सियत को समझाने की विनम्र कोशिश कर रहा हूं.
यह कोशिश मैं अपनी लखनऊ संवाददाता शिखा सलारिया की भारी मदद से कर रहा हूं, बृज भूषण पर जिनकी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं.
डब्लूएफआई के मुखिया पर महिला पहलवानों का यौन शोषण करने के आरोप लगाए गए हैं, जिनमें एक नाबालिग है. इन शिकायतों के आधार पर उनके खिलाफ दो एफआईआर दायर किए गए हैं. विरोध कर रहीं पहलवानों ने उन्हें पद से हटाने और गिरफ्तार किए जाने की मांग की है.
बृज भूषण 5 जून को अयोध्या में जो रैली करने वाले थे उसे शुक्रवार को रद्द कर दिया. उन्होंने पहले कहा था कि उन्हें बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के कानून ‘पॉस्को’ को नरम बनाने की वकालत करने में धार्मिक गुरुओं का समर्थन हासिल हो चुका है.
इस शख्स की ताकत, मशहूरियत और तौर-तरीके कितने खास हैं इसे समझने के लिए आप 1993 या 2008 के दौर पर नजर डाल सकते हैं.
चूंकि 1993 ज्यादा नाटकीय है, इसलिए पहले उस पर नजर डाल लें.
सीबीआई ने 24 अक्तूबर 1993 को दिल्ली में जामा मस्जिद इलाके से अहमद मंसूर और सुहेल अहमद को गिरफ्तार किया था. दोनों को दाऊद इब्राहिम गिरोह का ‘सक्रिय सदस्य’ बताया गया था.
याद रहे कि यह वह साल था जब मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे. सीबीआई ने पाया कि ‘डी-गैंग’ के ‘शूटरों’ में शामिल इन दोनों आतंकियों को नई दिल्ली के सफदरजंग डेवलपमेंट एरिया में एनटीपीसी गेस्ट हाउस में आश्रय दिया गया था.
बताया गया था कि यह कांग्रेस पार्टी के नेता कल्पनाथ राय के संरक्षण में हुआ था, जो उस समय खाद्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थे. सीबीआई का कहना था कि उनके ठहरने की व्यवस्था राय ने अपने निजी सचिव एस.पी. राय के जरिए करवाई थी. उसी जांच में यह भी ‘उजागर’ हुआ कि बृज भूषण ने, जो उस समय भाजपा सांसद थे, कथित तौर पर उसी गिरोह के कुछ आतंकियों को नई दिल्ली में अपने निवास में शरण दी
शुरू में, सीबीआई ने सीधे तौर पर उनका नाम नहीं लिया था.
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जांच चली और उनका नाम इस मामले में उभरता रहा. उन्हें पूरक आरोप पत्र में नामजद किया गया. इसके बाद सीबीआई ने कल्पनाथ राय, एस.पी. राय और बृज भूषण पर मुकदमा चलाने की इजाजत मांगी. बृज भूषण ने 1996 में गिरोंदे में आत्मसमर्पण कर दिया. उनके सचिव संजय सिंह और साबू चाको (अब बंद हो चुकी ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस के रीज़नल मैनेजर) को भी नामजद किया गया. बृज भूषण को ‘टाडा’ (आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के अंतर्गत हिरासत में बंद किया गया था.
आप हतप्रभ या दिग्भ्रमित तो नहीं हुए? मैं इसे आपके लिए कुछ और समेटने की कोशिश करता हूं. इससे एक ही साल पहले बृज भूषण पर कारसेवक के रूप में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में और ज्यादा गंभीर आपराधिक क़ानूनों के तहत आरोप दर्ज किए गए थे. और अब उन्हें एक कांग्रेस नेता के साथ ‘मिलीभगत’ करके डी-गैंग के आतंकियों को कथित रूप से संरक्षण देने के आरोप में टाडा के तहत बंद किया गया था.
और आपको बता दें कि जब वे दाऊद के आतंकी सूत्रों से जुड़े होने के आरोप में टाडा के अंतर्गत जेल में बंद थे, तब भी भाजपा ने उनसे संबंध नहीं तोड़ा था. वे भाजपा के लिए इतने अपरिहार्य थे कि उसने उनके गढ़ गोंडा से उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे दिया. वे चुनाव जीत गईं.
अगर काफी उदारवादी वाजपेयी-आडवाणी की भाजपा ने आज के मुक़ाबले अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा भद्र राजनीति के दशक में उन्हें, टाडा के आरोप के बावजूद इतना अहम नेता पाया था, तो तीन दशक बाद आज अगर मोदी-शाह की भाजपा भी उनके बारे में यही विचार रखती है तो क्या आश्चर्य?
अब, आ जाइए जुलाई 2008 में.
लोकसभा में सरकार विश्वास मत हासिल करने की कोशिश में है. पूरा विपक्ष भारत-अमेरिका परमाणु संधि को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के खिलाफ खड़ा है. विश्वास मत पर मतदान के क्रम में कई छल-कपट होते हैं. जिस घटना की सबसे कम चर्चा होती है और जिसे बहुत कम याद किया जाता है वह घटना भाजपा के एक तत्कालीन सांसद की दुर्लभ से भी दुर्लभ ‘दलबदल’ थी. उसने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करके यूपीए के पक्ष में मतदान किया.
अब जाकर भाजपा ने अपने इस सांसद बृज भूषण सिंह को पार्टी से निकाल दिया. इतनी ही तेजी से वे मुलायम सिंह यादव की सपा में शामिल हो गए. उस समय तक तीन बार भाजपा सांसद बन चुके बृज भूषण ने अब सपा के टिकट पर अपने किले क़ैसरगंज से चुनाव लड़ा और जीते.
बृज भूषण ने तब पाला क्यों बदला, यह ज्यादा उलझी हुई कहानी है. या शायद उतनी उलझी हुई न हो. आखिर पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपराध और राजनीति में बड़ी आसानी से घालमेल होता ही है.
उनके खिलाफ कई—आखिरी गिनती तक 38— आपराधिक मामले दायर किए जा चुके हैं. उनमें से एक मामला अपने पुराने दोस्त, पार्टनर और बाद में प्रतिद्वंद्वी बने विनोद कुमार ‘पंडित’ सिंह की हत्या की कोशिश का है. उनकी गोली मार कर लगभग हत्या कर ही दी गई थी. यह मामला सबसे चुनौतीपूर्ण था. पंडित सिंह (वे इसी नाम से जाने जाते थे) की जान मुलायम सिंह ने बचाई. उन्होंने हेलिकॉप्टर भेजकर उन्हें इलाज के लिए लखनऊ भिजवाया. लेकिन आपको मालूम हो कि कुश्ती संघ के मुखिया पर इस मामले में कभी ढंग से कोई मुकदमा नहीं चला, सजा मिलना तो दूर ही रहा. इसकी वजह?
क्योंकि अभियोग पक्ष अदालत में कोई गवाह नहीं पेश कर सका. और तो और, वह शख्स पंडित सिंह भी अदालत में पेश नहीं हुआ जो अपनी जान लगभग गंवा चुका था. वह मुलायम का वफादार था और उनके मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुका था. जाहिर है, मुलायम ने इन दो राजपूत बाहुबलियों के बीच ‘मध्यस्थता’ करके कोई समझौता करवा दिया था. बृज भूषण ने वोट और दलबदल के रूप में इसकी कीमत अदा की.
अगर इससे यह जाहिर होता है कि वे कितने स्मार्ट हैं. जिंदगी भर भाजपाई रहे बृज भूषण ने सपा के टिकट पर चुनाव आसानी से जीत लिया, यह उस क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का सबूत है. इसलिए क्या आश्चर्य कि अगले, 2014 के चुनाव (मोदी-शाह के पहले) तक उन्हें वापस भाजपा में शामिल कर लिया गया. सारी गलतियां माफ? उसके बाद से वे दो बार और भाजपा सांसद बने.
इस कहानी का सार क्या है : कि ‘यूपी में केवल मुसलमानों और यादवों में अपराधी पलते हैं’ मानने वाली सबसे पवित्र भाजपा ने बृज भूषण पर जब हत्या की कोशिश के आरोप लगे तब उन्हें पार्टी से नहीं निकाला. उसे केवल तब पार्टी से निकाला जब उन्होंने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करके यूपीए सरकार के पक्ष में वोट दिया. बेशक, बाद में फिर से गले लगाया.
बृज भूषण छह बार सांसद रहे हैं, पांच बार भाजपा सदस्य के रूप में और एक बार सपा सदस्य के रूप में.
यह सब पढ़ते हुए आपको ‘दप्रिंट’ के ‘कट द क्लटर’ शो की पिछली कड़ियों की याद आ रही होगी, जो मैंने पूर्वी यूपी के अतीक अहमद से लेकर मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह से लेकर हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबलियों, दादाओं, या गिरोहबाजों पर की थी. वह राजनीति का इलाका है.
यह हमें इन कड़ियों से उभरने वाले सबक की भी याद दिलाता है, कि अपराध-राजनीति-माफिया की साठगांठ पूर्वी यूपी की राजनीति का अभिन्न अंग है. इसके लिए आप किसी खास धर्म या जाति को दोषी नहीं ठहरा सकते. इसमें सब शामिल हैं. कहा भी गया है : इस हमाम में सब नंगे हैं’.
बृज भूषण का रेकॉर्ड उन ‘दिग्गजों’ के रेकॉर्ड के आसपास भी नहीं पहुंचता लेकिन उन पर विभिन्न आरोपों के तहत 38 मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या की कोशिश का मामला भी शामिल है. टाडा के अलावा उन पर यूपी के गुंडा एक्ट, यूपी ‘गैंगस्टर्स ऐंड एंटी-सोशल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंसन) एक्ट’ के तहत भी मामला दायर किया गया है. अधिकतर मामलों में उन्हें बरी किया जा चुका है और कुछ मामले अनिश्चित काल तक घिसटते रह सकते हैं.
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बृज भूषण ने एक बार खुलासा किया था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को संदेह था कि 2004 के लोकसभा चुनाव में गोंडा से भाजपा के उम्मीदवार घनश्याम शुक्ल उस साल जिस कथित ‘हादसे’ में मारे गए थे उसमें उनका (बृज भूषण का) ही हाथ था, क्योंकि उन्हें अपने गढ़ से लड़ने के लिए टिकट नहीं दिया गया था. कई लोगों को शक था कि वह हादसा नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक हत्या थी.
जाहिर है, वह विवाद जल्दी ही ठंडा पड़ गया था.
इसके अलावा, 37 और मामले भी समय के साथ भुला दिए गए. कहा भी गया है : ‘सैयां भये कोतवाल, अब डर काहे का?’
मैं यहां उनके उस इंटरव्यू का उद्धरण भी दूंगा, जो उन्होंने हिंदी के लोकप्रिय मीडिया पोर्टल ‘लल्लनटॉप’ को 21 फरवरी 2022 को दिया था : ‘मेरे जीवन में मेरे हाथ से एक हत्या हुई है. लोग कुछ भी कहें, मैंने एक हत्या की है’.
उन्होंने कहा कि यह हत्या 1991 में एक पंचायत की बैठक के दौरान झगड़े के दौरान हुई थी, और वे जिस गुट का समर्थन कर रहे थे उस पर दूसरे गुट ने गोलीबारी की थी. वे इस गोलीबारी में शामिल हुए थे और दूसरी तरफ का एक स्थानीय गुंडा रवीन्द्र सिंह मारा गया था. उस मामले का क्या हुआ? किसी पर मुकदमा चला? ऐसे सवाल मत पूछिए, क्योंकि पूर्वी यूपी की संस्कृति में बाहुबलियों के मामले में कोई नियम-कानून नहीं लागू होता.
शिखा की रिपोर्ट के ब्यौरे आप पढ़ सकते हैं. उसमें यह भी बताया गया है कि वे बृज भूषण से बात करने की काफी कोशिश कीं. जब भी वे बात करेंगे, हम इस लेख में उसे जोड़ेंगे.
जिस भाजपा के मंत्रीगण राष्ट्रमंडल खेलों में, जिसे एशियाई खेलों से भी काफी नीचे गिना जाता है, भी किसी भारतीय खिलाड़ी के कांस्य पदक जीतने पर ही उछलने लगते हैं, वह भाजपा ओलंपिक में मेडल जीतने वाली पहलवानों के पक्ष में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. वास्तव में, उसने तो उन्हें बदनाम करने और ओछा साबित करने में ही पूरा ज़ोर लगा दिया है.
ऐसा क्यों है, यह एक रहस्य ही है. राजनीतिक दृष्टि से बृज भूषण एक थाती हो सकते हैं लेकिन केवल अपने सीमित भौगोलिक दायरे में ही. वे इतने महत्वपूर्ण नहीं हो सकते कि उनकी खातिर इतनी बड़ी इज्जत को दांव पर लगाया जाए. बशर्ते इसे आप एक दिशा का हिस्सा न मान लें. अब तक हम यह तो जान चुके हैं कि पीछे हटना, विफल होते दिखना, अपने किसी आदमी को खारिज करना इस भाजपा की फितरत कभी नहीं रही.
ठीक ऐसा ही यूपी के लखीमपुर खीरी से लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के मामले में हुआ है. बृज भूषण शरण सिंह के मामले में भी यही रुख अपनाया जा रहा है.
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