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Friday, 19 April, 2024
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मणिपुर में अपनों की लाशों का इंतजार कर रहे परिवार, सभी मरे हुए लोगों को एक साथ दफनाने की खाई कसम

चुरा चांदपुर के कुकी लोगों ने अभी तक मैतेई के साथ संघर्ष में मारे गए लोगों को दफन नहीं किया है और सभी लावारिस, अज्ञात लाशों को घर लाए जाने के बाद उन्हें एक साथ दफनाने के लिए अड़े हुए हैं.

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इंफाल: 3 मई से मणिपुर के आदिवासी कुकी और गैर-आदिवासी मैतेई के बीच शुरू हुए जातीय संघर्ष में 35 वर्षीय सेहखोहाओ किपजेन सबसे पहले हताहत हुए थे.

जिस दिन हिंसा भड़की उस दिन इंटरनेट बंद होने से पहले एक वीडियो वायरल हुआ. क्लिप में, एक कुकी पादरी किपजेन को कथित तौर पर एक भीड़ से बचने के लिए संघर्ष करते हुए देखा गया जिसने उसे इंफाल में घेर लिया था. हर दिशा से उन पर लात और घूंसों की बारिश हो रही थी जिससे बचने के लिए वह झुक गए, लेकिन इसी बीच लकड़ी के मोटे डंडे से उनके सिर पर पीछे से वार होता है और वह गिर जाते हैं.

उस अंतिम चोट ने किपगेन की जान ले ली.

मौके पर मौजूद स्थानीय कुकी लोगों ने बाद में उनके परिवार को इस बात की जानकारी दी कि उनकी लाश को एक नाले में फेंक दिया गया था, लेकिन वे इसे बाहर नहीं निकाल सकते थे क्योंकि नाला मैतेई-बहुल कॉलोनी में था.

किपजेन की हत्या को 29 दिन हो चुके हैं, लेकिन चुराचांदपुर में उनका परिवार अब भी उनके शव का इंतजार कर रहा है. हालांकि, उन्हें जिले के स्वयंसेवकों ने इस बात की पुष्टि की है कि उनका शव बरामद किया जा चुका है और इसे इंफाल के रीजनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) के मुर्दाघर (mortuary) रखा गया है.

दिप्रिंट ने रिम्स को विज़िट किया, लेकिन अस्पताल से कोई टिप्पणी प्राप्त नहीं हुई. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

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कुकी गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, 3 से 31 मई के बीच, राज्य भर में हुई झड़पों में 80 आदिवासियों की मौत हुई है. जबकि 32 शवों का अभी तक पता नहीं चल पाया है, 16 लाशें रिम्स मुर्दाघर में और अन्य 6 लाशें जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान (JNIMS) के मुर्दाघर में रखी गई हैं. अन्य 23 शव चुराचांदपुर जिला अस्पताल में रखे गए हैं, जबकि तीन और अन्य जिलों में बरामद किए गए हैं.

इंडीजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम के प्रवक्ता गिन्ज़ा वुलज़ोंग ने कहा, “जिन शवों का पता नहीं लग पाया है उनके भी रिम्स और जेएनआईएमएस के मॉर्चुरी में होने की संभावना हो सकती है, लेकिन पहले इनकी पहचान की जानी है. हमारे पास ऐसा करने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि आदिवासी लोग इंफाल नहीं जा सकते हैं,”

हिंसा की शुरुआत के बाद से चूंकि चुराचांदपुर और इंफाल के बीच संचार की लाइनें टूट गई थीं, इसलिए परिवार को इस बात का पता नहीं है कि वह कब तक मृत व्यक्तिक का अंतिम संस्कार कर पाएगा.

यहां तक कि आदिवासियों ने चुराचांदपुर जिला अस्पताल में मौजूद 23 शवों का अंतिम संस्कार भी नहीं किया है. वुलजोंग ने कहा, “हम उन सभी शवों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो इंफाल में मुर्दाघर में हैं और हमें वापस लौटाए जाएंगे. हम उन्हें एक भव्य समारोह में दफनाएंगे,”.

मुर्दाघर भरे हुए हैं

जिला अस्पताल के बगल में स्थित चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में दिन-ब-दिन सड़ते मांस की दुर्गंध बढ़ती जा रही है. 12 लाशों को रखने की क्षमता वाला अस्पताल संघर्ष के तीसरे दिन तक भर चुका था.

जिले के सीमावर्ती गांवों में गोलीबारी जारी रहने और अस्पताल में मृतकों के बढ़ते ढेर के बीच मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विज्ञान भवन (anatomy building) में ग्राउंड फ्लोर को लाशों को रखने के लिए साफ कर दिया गया है. दो स्प्लिट एयर कंडीशनर 24×7 चालू हैं और ताबूतों के चारों ओर कपूर छिड़का जाता है, लेकिन ये सब लाशों की दुर्गंध को दबाने में ज्यादा मददगार नहीं साबित हो पा रहे हैं.

चुराचंदपुर जिला अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी ज़म लियान मंग हत्ज़ॉ ने कहा, “केवल 12 शव फ्रीजर में हैं. गर्मी में शव सड़ने लगेंगे. हमने उनमें से कुछ पर लेप लगाया है लेकिन सभी पर नहीं.”

लेकिन आदिवासी अड़े हुए हैं. वे इंफाल से सभी शवों को लाए जाने तक इंतजार करेंगे और फिर उन्हें एक साथ दफनाएंगे – इसमें चाहे कितना ही समय क्यों न लगे.


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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मंगलवार को चुराचांदपुर विजिट के दौरान आदिवासी नेताओं ने जिन मुद्दों पर चर्चा की, उनमें यह पहला मुद्दा था.

आदिवासी नेताओं द्वारा गृहमंत्री अमित शाह को सौंपे गए मेमोरेंडम में कहा गया,“हमारे शवों की पहचान की जानी चाहिए और बिना किसी और देरी के उचित तरीके से अंतिम संस्कार के लिए घर लाया जाना चाहिए. हम अपने शहीदों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार देना चाहते हैं,”  इस मेमोरेंडम को दिप्रिंट ने देखा है.

गुमशुदा का पता लगाने के लिए जीरो FIR

मैतेई और कुकी के बीच हुए दंगों ने दोनों समुदायों के बीच की दूरियों को उजागर कर दिया है. कुकी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में, मैतेई के घरों और व्यवसायों को जला दिया गया और जमीन पर गिरा दिया गया और मैतेई-बहुल क्षेत्रों में, कुकी को बाहर निकाल दिया गया, उनकी संपत्तियों को लूट लिया गया और जला दिया गया.

चुराचांदपुर को इंफाल से जोड़ने वाली सड़क युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो गई. दिप्रिंट ने पहले बताया था कि कैसे मैतेई महिलाएं पहाड़ी जिले की सड़क को अवरुद्ध कर रही थीं और केंद्रीय सुरक्षा बलों को पार करने से रोक रही थीं.

उसी 64 किलोमीटर की सड़क पर, कंगवई गांव तक मैतेई स्थानीय लोगों द्वारा वाहनों की जांच की जाती है, यह देखने के लिए कि कुकी जनजाति का कोई व्यक्ति पार तो नहीं कर रहा है. इसी तरह, कुकी स्वयंसेवक चुराचंदपुर की सीमा पर किसी मैतेई की जांच के लिए पहरा देते हैं. लोगों को कथित तौर पर भीड़ द्वारा घसीटा और पीटा गया है.

दिप्रिंट ने बताया था कि जब संघर्ष अपने चरम पर था तो कितने घायलों को इंफाल से चुराचांदपुर ले जाया गया, लेकिन केवल सुरक्षा बलों की सुरक्षा में.

इस बीच, चुराचंदपुर में वकील जीरो एफआईआर के रूप में लापता लोगों की शिकायत दर्ज करने में स्थानीय निवासियों की मदद कर रहे हैं. ‘जीरो एफआईआर’ किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज की जा सकती है बाद में वह उपयुक्त पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर दी जाती है.

जब अधिकांश विस्थापित कुकी इंफाल और अन्य क्षेत्रों से चुराचांदपुर पहुंचे तो उन्होंने 15 मई से ही एफआईआर दर्ज कराना शुरू कर दिया है.

करीब 1,000 जीरो एफआईआर पहले ही दर्ज की जा चुकी हैं. इनमें से काफी एफआईआर लापता लोगों पर है, लेकिन अन्य अधिकांश इंफाल में लूटपाट और संपत्ति को जलाने के बारे में हैं.

चुराचांदपुर पुलिस के अनुसार, लगभग 100 प्राथमिकी प्रतिदिन दर्ज की जाती हैं, लेकिन सड़क मार्ग से इंफाल की यात्रा करना कठिन होता जा रहा है और जिले में सारे बचे हुए कुकी पुलिसकर्मी – मैतेई पुलिसकर्मी इंफाल भाग गए हैं – एफआईआर फाइलों में जमा हो रहे हैं और अपने अंतिम गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. इनमें से अधिकांश प्राथमिकी इंफाल से हैं, जिसमें आदिवासियों के जीवन और संपत्ति को सबसे अधिक नुकसान हुआ है.

चुराचांदपुर के प्रभारी अधिकारी एन. थंगज़मुआन ने कहा, “हालांकि हम यहां एफआईआर दर्ज कर रहे हैं, लड़ाई खत्म होने के बाद इन्हें ले जाया जाएगा. अभी, सड़क मार्ग से प्राथमिकी भेजना बहुत जोखिम भरा है,”

लगभग दो हफ्ते पहले, चुराचांदपुर और इंफाल पुलिस स्टेशनों ने चुराचांदपुर और बिष्णुपुर की सीमा पर स्थित कंगवई गांव – चुराचांदपुर और बिष्णुपुर के बॉर्डर पर स्थित – तक संदेशवाहक भेजा था, जहां चुराचांदपुर के एक मुस्लिम पुलिसकर्मी और इंफाल के एक मेतेई पुलिसकर्मी ने लगभग 200 एफआईआर का आदान-प्रदान किया था.

हालांकि दोनों ने सादे कपड़े पहने थे, फिर भी लेन-देन को बहुत जोखिम भरा माना गया और तब से इसे दोहराया नहीं गया है.

चुराचंदपुर पुलिस स्टेशन के हेड कांस्टेबल खेंथांग नगेटे ने कहा, “मैतेई महिलाएं सड़कों को अवरुद्ध कर रही हैं और वे लोगों के सामानों की जांच कर रही हैं. यदि वे एफआईआर की सामग्री देखेंगे, तो वे उन्हें नष्ट कर देंगे क्योंकि इन एफआईआर में अधिकांश आरोपी मैतेई हैं. हम जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि प्राथमिकी से जुड़े महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो सकते हैं,”

इस बीच, एक अन्य पुलिसकर्मी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, ने कहा कि महिलाओं के अलावा, मैतेई आर्म्ड ग्रुप आरामबाई तेंगगोल के पुरुष भी बिष्णुपुर जिले के मैतेई बहुल इलाके मोइरांग में संपत्ति और दस्तावेजों की जांच करते हैं और उसे नष्ट कर देते हैं. यहां पहले भी हिंसा देखी गई थी और यह अभी भी अस्थिर बना हुआ है.

नगाते ने कहा, “हमें डर है कि आरामबाई तेंगगोल हमारे पुलिसकर्मियों पर हमला कर सकती है,”

हालांकि, मणिपुर इंटिग्रिटी (COCOMI) पर समन्वय समिति के कार्यकारी सदस्य खुरैजाम अथौबा ने दिप्रिंट को बताया: “वाहनों की जांच कुकी लोगों के बारे में नहीं थी. यह आम तौर पर भारतीय सेना के काफिले के लिए था, खासकर असम राइफल्स के लिए. लोग उन पर विश्वास खो रहे थे और आरोप लगा रहे थे कि वे विभिन्न तलहटी इलाकों में कुकी का पक्ष ले रहे हैं.”

अपनों के खो जाने का अंतहीन इंतजार

हालांकि, यह वही सड़क है जिससे इंफाल से शवों को ले जाया जा सकता है. कुकी लोगों के लिए इंफाल जाने और अपने मृतकों की पहचान करने के लिए इस सड़क को पार करना वर्तमान में असंभव प्रतीत होता है.

सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार को प्रस्ताव दिया जा रहा है कि परिवारों को सेना की सुरक्षा में इंफाल के अस्पतालों में ले जाया जाए, या किसी तरह वीडियो कॉल के जरिए लोगों को अपने प्रियजनों के शवों की पहचान करने में सक्षम बनाया जाए, लेकिन मामला अभी आगे नहीं बढ़ा है.

अपनी सास और अपने तीन बच्चों के साथ 3 मई से चुराचांदपुर में एक राहत शिविर में रह रही सेहखोहा किपगेन की पत्नी नेंगजहोई ने कहा, “मेरे पति की मृत्यु गांव के इतने करीब हुई थी, फिर भी उनका शव इंफाल ले जाया गया. हम उन्हें अंतिम बार देखना चाहते हैं और उन्हें उचित विदाई देना चाहते हैं.” उनके एक बच्चे की उम्र 4 साल दूसरे की 2.5 साल है, और तीसरी सिर्फ 11 महीने की है.

नेंगजहोई अभी भी अपने पति पर हुए हमले का वीडियो देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाई हैं. उनके मन में दुःख और राज्य सरकार प्रति क्रोध से भरा हुआ है.

उन्होंने कहा, ‘मैं उनकी मौत के लिए मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को जिम्मेदार ठहराती हूं. वह शांति बनाए रखने में विफल रहे. वह एकतरफा है.’

(यह मणिपुर में दिप्रिंट के ग्राउंड कवरेज का हिस्सा है. इस रिपोर्टर द्वारा हिंसा प्रभावित राज्य के विभिन्न हिस्सों की यात्रा के दौरान अलग-अलग पक्षों को किस तरह से नुकसान उठाना पड़ा है, इस बारे में और कहानियां प्रकाशित की जाएंगी.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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