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Monday, 18 November, 2024
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यूपी के लिए ब्राह्मण उम्मीदवार बीजेपी की प्राथमिकता नहीं. सवर्ण जाति के टिकट राजपूतों के लिए हैं

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जातिवार प्रतिनिधित्व के मामले में लगता है आखिरकार बीजेपी ने पिछली गलतियों की ओर ध्यान दिया.

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर वोटरों के बीच हिंदू-मुसलमान ध्रुवीकरण कराने का आरोप लंबे समय से लगता रहा है, जो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट न देने में भी साफ दिखता है. लेकिन उत्तर प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनावों में जातिवार प्रतिनिधित्व के मामले में लगता है पार्टी ने आखिरकार अपनी पुरानी गलतियों की ओर ध्यान दिया है. हालांकि काफी कुछ करना बाकी है.

बीजेपी ने अपने सहयोगियों अपना दल (एस) और निषाद पार्टी (एनपी) के साथ उत्तर प्रदेश के कुल 403 विधानसभा क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप दिया. असीम राय, राज प्रसाद उपाध्याय, ऋषि त्रिपाठी जैसे कई बीजेपी नेता सहयोगियों के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि उनके जीतने की संभावना अच्छी है. अपना दल (एस) और एनपी के उम्मीदवार भी बीजेपी के चिन्ह पर लड़ रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी पार्टी की कुछ क्षेत्रों में कमजोर स्थिति है.

मैं उत्तर प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों के उम्मीदवारों का विस्तृत जातिवार विश्लेषण मुहैया करा रहा हूं. मैंने ये आंकड़े स्थानीय पार्टी पदाधिकारियों और स्थानीय वोटरों से फोन कॉल और बातचीत से हासिल किया है.


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टिकट बंटवारे की ब्यौरा

नीचे दिए गए आंकड़े बीजेपी और उसके सहयोगियों के उम्मीदवारों का श्रेणीबद्ध ब्यौरा है. उन्हें चार व्यापक श्रेणियों में बांटा गया है -सवर्ण जातियां, पिछड़ी जातियां, अनुसूचित जातियां/अनुसूचित जनजाति और मुसलमान. एनडीए ने सिर्फ एक मुसलमान उम्मीदवार को टिकट दिया है और वह अपना दल (एस) से रामपुर जिले की स्वार टांडा सीट से दिया गया. न तो बीजेपी, न ही निषाद पार्टी ने कोई मुसलमान उतारा.

ग्राफिक : रमनदीप कौर के द्वारा/डाटा। : अरविंद कुमार/ दिप्रिंट

ऊपर के आंकड़ों से खुलासा होता है कि दबंग जातियों को बीजेपी और उसके सहयोगियों ने उम्मीदवार बनाया. सवर्ण जातियों से 173 और 143 पिछड़ी जातियों से उम्मीदवार उतारे गए. 86 उम्मीदवार एससी/एसटी वर्ग से उतारे गए. सभी एससी/एसटी उम्मीदवार आरक्षित क्षेत्रों से ही उतारे गए.

सवर्ण जातियों में किसको कितने टिकट

कुल 173 सवर्ण जातियों के उम्मीदवारों में सबसे अधिक 71 टिकट राजपूत या ठाकुरों को दिए गए. राजपूतों के बाद 68 टिकट ब्राह्मणों को दिए गए. इस तरह ब्राह्मण टिकट के मामले में दूसरे नंबर पर हैं. कहा जाता है कि बीजेपी सरकार के पिछले दो साल में ब्राह्मणों को दरकिनार किया गया. इस वजह से योगी सरकार में राजपूतों के वर्चस्व के खिलाफ ब्राह्मणों में नाराजगी बढ़ रही थी. कैबिनेट मंत्रियों में ब्राह्मण से ज्यादा राजपूत रहे हैं. अब आंकड़े ये बताते हैं कि उम्मीदवारों के मामले में राजपूतों ने ब्राह्मणों को पीछे कर दिया.

ग्राफिक : रमनदीप कौर के द्वारा/डाटा। : अरविंद कुमार/ दिप्रिंट

टिकटों के मामले में बनिया जाति तीसरे नंबर पर है. उन्हें 28 सीटें मिली हैं. इस बीच भूमिहारों के छह उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनका पूर्वी और पश्चिम के कुछ इलाकों में ही मौजूदगी है.

पिछड़ी जातियों की सोशल इंजीनियरिंग

बीजेपी और उसके सहयोगियों की पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों की फेहरिस्त से पता चलता है कि गठजोड़ ने कुर्मी जाति को तरजीह दी है. इस बार 34 उम्मीदवार कुर्मी और 25 मौर्य, कुशवाहा और सैनी जातियों से हैं. यह संभव है कि इन समुदायों के दो प्रमुख नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद मौर्य, शाक्य, कुशवाहा और सैनी जाति के उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट दिए गए हैं.

ग्राफिक : रमनदीप कौर के द्वारा/डाटा। : अरविंद कुमार/ दिप्रिंट

बीजेपी गठजोड़ ने खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 17 जाट उम्मीदवार उतारे. उधर, कल्याण सिंह के दौर से ही बीजेपी के कट्टर समर्थक रही लोध जाति के भी खाते में 17 टिकट मिले. बीजेपी-अपना दल-एनपी गठजोड़ ने 10 टिकट निषाद, कश्यप और बिंद जातियों को दिए. कलवार और तेलियों को नौ टिकट मिले, जबकि सिर्फ आठ सीटें यादवों को मिलीं. सात टिकट गुर्जरों को और पांच राजभर को मिले. बाकी 11 सीटों पर संख्यालघु छोटी पिछड़ी जातियों को टिकट दिया गया.

आरक्षित क्षेत्रों का हिसाब

लगता है, भाजपा और उसके सहयोगियों ने 86 आरक्षित सीटों पर काफी होमवर्क किया है. गठजोड़ ने 27 सीटें चमार और जाटव जाति को दिए, जिनकी एससी/एसटी आबादी में हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है. पासी जाति को 25 टिकट मिले. हालांकि उनकी आबादी चमार/जाटवों की संख्या जितनी बड़ी नहीं है. धोबी जाति के सात उम्मीदवार उतारे गए, जबकि छह-छह उम्मीदवार खटिक और कोरी जाति के हैं. तीन टिकट वाल्मीकि समुदाय को दिए गए. बाकियों को 11 टिकट दिए गए.

ग्राफिक : रमनदीप कौर के द्वारा/डाटा। : अरविंद कुमार/ दिप्रिंट

बीजेपी और उसके सहयोगियों के उम्मीदवारों की फेहरिस्त से पता चलता है कि कुल टिकटों में बड़ा हिस्सा राजपूतों के खाते में गया, ब्राह्मण दूसरे नंबर पर रहे. गठजोड़ पिछड़ी और अनुसूचित जातियों की सोशल इंजीनियरिंग में काफी गहरे उतरा है और ज्यादा से ज्यादा जातियों को टिकट देने की कोशिश की है, ताकि वे राज्य भर के वोटरों को गोलबंद कर सकें.

(अरविंद कुमार @arvind_kumar__, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के के रॉयल हॉलोवे के राजनीति एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग में पीएचडी स्कॉलर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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