सोनिया गांधी ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में बृहस्पतिवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने पेश होने वाली हैं. उनसे पहले, ईडी राहुल गांधी से पिछले महीने कई घंटों तक पूछताछ कर चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा ने 2014 के बाद से, अपने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ मिशन के तहत कांग्रेस पार्टी का काफी सफाया कर दिया है. तो कई लोग यह सवाल कर रहे हैं कि मरणासन्न घोड़े पर क्या चाबुक फटकारना?
शारीरिक रूप से कमजोर सोनिया गांधी को ईडी के दफ्तर में जाते देख कई लोगों में उतनी सहानुभूति जगा सकती है, जितनी राहुल के लिए नहीं पैदा हुई होगी. क्या भाजपा इस भावना को कहीं ज्यादा उकसाना चाहती है?
यह एक ऐसे समय में एक अल्पकालिक चाल हो सकती है, जब क्षेत्रीय नेता मजबूत होते दिख रहे हैं. इसे आप ‘शेष का उभार’ कह सकते हैं. मोदी की भाजपा तो यही चाहेगी कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में सड़क पर उतरकर संघर्ष करने वाले राजनीतिक रूप से चुस्त-चतुर क्षेत्रीय नेताओं की जगह कांग्रेस ही उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरे.
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सोनिया पर फिर हमलावर
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब मोदी ने सोनिया का नाम लेना या उनका परोक्ष रूप से जिक्र तक करना बंद कर दिया था. राहुल को तो वे ‘शाहजादा‘ कहते ही रहे हैं. 2018 में, राजस्थान में एक जनसभा में मोदी ने विधवा पेंशन योजना के सिलसिले में सोनिया का परोक्ष जिक्र ‘कांग्रेस की विधवा‘ कहकर किया था. यह एक परोक्ष उपहास था. इसके कारण मोदी की काफी आलोचना हुई थी और सोनिया को सहानुभूति मिली थी क्योंकि उनके पति राजीव गांधी की हत्या की गई थी.
सोनिया करीब 10 वर्षों से अस्वस्थ हैं. 2011 में खबर आई थी कि उन्हें कैंसर हो गया है, जिसका ऑपरेशन उन्होंने अमेरिका में करवाया. इसके बाद से उनकी चुप्पी उनके गिरते स्वास्थ्य का ही संकेत देती रही है. इस वजह से कांग्रेस की चुनावी प्रगति भी थम गई. वास्तव में, सोनिया को इतालवी मूल का होने के कारण भारत में नेतृत्व के लिए अयोग्य बताना भाजपा का पुराना कटाक्ष रहा है मगर 2014 के बाद से इसे भुला दिया गया है. वे इतनी बीमार रही हैं कि उन पर हमला करना किसी को भी अनैतिक लग सकता है. इसलिए हमला या तो दिवंगत नेहरू-गांधी परिवार पर किया जाता रहा या रॉबर्ट वाड्रा या सिर्फ राहुल गांधी पर.
लेकिन एक महीने के अंदर ही मामला बदल गया है. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्र अचानक सोनिया गांधी पर आरोप लगाने लगे हैं कि वे 2002 के गुजरात दंगे में मोदी का हाथ बताने की साजिश कर रही थीं. इसके अलावा, ईडी ने ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में सोनिया को पेशी के लिए समन, उन्हें कोविड होने के कारण टालते रहने के बाद अंततः भेजने का फैसला कर ही लिया. राहुल से वह दो बार 10-10 घंटे तक पूछताछ कर चुका था.
भाजपा ने कोई शिकार करने का फैसला नहीं कर लिया है. सुन ज़ू की एक उक्ति है— ‘इसलिए, युद्ध में कायदा यही है कि मजबूत जो है उससे बचो, और कमजोर है उस पर धावा बोल दो’.
शेष का उभार, भाजपा परेशान
अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, और अब के. चंद्रशेखर राव के उभार को हल्के में नहीं लिया जा सकता. इस साल फरवरी और मई में राव ने मोदी के तेलंगाना दौरे के समय उनकी जिस तरह उपेक्षा की उस पर गौर करने की जरूरत है. कांग्रेस ने अपने कमजोर नेतृत्व के कारण जो जगह खाली की है, उसके कई दावेदार उभर आए हैं. इसलिए, जाना-पहचाना शैतान अनजाने शैतान से बेहतर ही होता है. और मोदी के सामने तो कई शैतान हैं.
ऐसे मुकाम पर, मोदी के राजनीतिक सलाहकार कांग्रेस पर उतना जोरदार हमला करने के लिए अब अफसोस कर रहे होंगे. जनमत गांधी परिवार के इतना खिलाफ था कि उसे अपना मुख्य विरोधी बनाना हर चुनाव में जादू का काम करता. लेकिन कांग्रेस और गांधी परिवार की महत्वहीनता पर जरूरत से ज्यादा ज़ोर देने का फल यह हुआ है कि भाजपा का सामना क्षेत्रीय रूप से मजबूत प्रतिद्वद्वियों से गया है. ये सारे नेता जमीन से उठकर ऊपर आए हैं. कांग्रेस को भ्रष्टाचार और परिवारवाद की जिस लाठी से पीटा जाता था वह लाठी भाजपा के दावों को ज्यादा विश्वसनीय नहीं बनाएगी.
इसलिए भाजपा अब फिर कांग्रेस रूपी अपना तुरुप का पत्ता खेलने लगी है ताकि क्षेत्रीय नेताओं को अहमियत न मिले. यह चाल उसने पंजाब में चली और प्रधानमंत्री सुरक्षा में बहुप्रचारित कथित चूक के बहाने उन्होंने कांग्रेस तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर आरोप लगाया कि वे मोदी को ‘शारीरिक नुकसान’ पहुंचाना चाहते थे. भाजपा ने केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) को कमतर बताया जबकि वह बड़ी बढ़त ले चुकी थी. नतीजे सबने देखे. आप ने भारी बहुमत से पंजाब जीत लिया. और चूंकि भाजपा के पास उनके खिलाफ कहने को बहुत कुछ था नहीं इसलिए उसने उनका यह कहकर मज़ाक उड़ाने की कोशिश की उन्होंने एक ‘शराबी’ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया. दूसरी ओर, कांग्रेस के बारे में अमित शाह ने यह कहा कि ‘बार-बार जनता द्वारा खारिज किए जाने के कारण’ वह ‘विक्षिप्त’ हो रही है.
ऐसा लगता है कि भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति का फाटक क्षेत्रीय नेताओं के लिए खोल कर भारी भूल कर दी है. कांग्रेस के जैविक क्षरण की प्रक्रिया तेज हो गई है. अगर गुजरात का मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बन सकता है, तो वह दिन दूर नहीं जब किसी और राज्य का मुख्यमंत्री उस सिंहासन पर बैठ जाए.
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(लेखक एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं जो @zainabsikander से ट्वीट करते हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)
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