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Sunday, 17 November, 2024
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हरियाणा में BJP के लिये नया सिर दर्द, पार्टी अगर सत्ता में लौटी भी, तो छवि पर रहेंगे दाग

जबकि पीएम मोदी की छवि पार्टी को लाभ दिलाने का काम कर रही है और खट्टर को गैर-भ्रष्ट नेता की तरह देखा जाता है, ये कारक अकेले काफी नहीं हो सकते हैं.

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2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक बीच में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हरियाणा में अजीब स्थिति में फंसती नज़र आ रही है. 90-सदस्यीय सदन के तीन निर्दलीय सदस्यों — सोमवीर सांगवान, रणधीर गोलन और धर्म पाल गोंदर ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. इन सदस्यों के बाहर निकलने के बाद, भाजपा के पूर्व गठबंधन सहयोगी, दुष्यन्त चौटाला के नेतृत्व वाली 10-सदस्यीय जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने कांग्रेस को अपना समर्थन देने की घोषणा की है, बशर्ते पार्टी मौजूदा सरकार को गिराने का फैसला करती है.

इसकी संभावना नहीं है कि कांग्रेस भाजपा सरकार को गिराने के लिए कोई कदम उठाएगी, क्योंकि यह आसान नहीं है. 90-सदस्यीय सदन में भाजपा को अपनी ताकत स्थापित करने के लिए 45 सदस्यों की ज़रूरत है, लेकिन 88 सदस्यों के साथ, दो सदस्यों के इस्तीफे के बाद, जो कि लोकसभा के उम्मीदवार हैं, भाजपा को केवल 44 सदस्यों की ज़रूरत है. अगर वो उन तीन जेजेपी सदस्यों को अयोग्य ठहराने में सफल हो जाती है, जिन्हें पार्टी ने “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए नोटिस दिया है, तो सदन की प्रभावी ताकत 85 होगी और बहुमत का आंकड़ा 43 पर सिमट जाएगा, जिसका दावा भाजपा करती है. वास्तव में भले ही कांग्रेस BJP सरकार को तुरंत न गिराए, CM सैनी को सरकार को अपने नियंत्रण में रखने और सदन में समीकरणों को प्रबंधित करने मे उलझा कर रखनेकी  ताकत रखती है और यह कारक भाजपा की छवि को दागी बनाने के लिए काफी होंगे.

बीजेपी के दो सिरदर्द

मार्च 2024 में पूर्व सीएम और भाजपा के वरिष्ठ नेता मनोहर लाल खट्टर की जगह लेने वाले मुख्यमंत्री, जो करनाल लोकसभा सीट से उम्मीदवार हैं, को भरोसा है कि उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी. हालांकि, उनके मंत्रालय को तत्काल कोई खतरा नहीं है — सरकार को फ्लोर टेस्ट देने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मार्च में ही अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था और छह महीने तक दूसरा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता — लेकिन भाजपा सरकार इससे सहज नहीं दिख रही है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इन इस्तीफों का तत्काल असर 25 मई को छठे चरण में 10 लोकसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान में दिखाई देगा.

सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की कोई संभावना नहीं होने और बहुमत साबित करने की ज़रूरत नहीं होने के कारण, मुख्यमंत्री का अपनी सरकार के खतरे में होने की चर्चा को खारिज करना सही है, लेकिन भाजपा को दो प्रमुख सिरदर्दों का समाधान करना है. एक तो मौजूदा लोकसभा चुनाव और दूसरी चिंता इस साल अक्टूबर में होने वाले संभावित राज्य विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी को तैयार करना है.

अब तक, भाजपा को 2019 में जीती गई सभी 10 सीटों को बरकरार रखने का भरोसा है. 2019 में पार्टी को कांग्रेस के खिलाफ 58.21 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 28.51 प्रतिशत वोट पर सिमट गई थी. अन्य सभी पार्टियों का वोट प्रतिशत एक अंक में था और उनके पास कोई सीट नहीं थी, जहां भाजपा अपनी लड़ाई में एकजुट दिख रही है और स्थानीय स्तर के असंतुष्टों को बड़ा आकार लेने नहीं दे रही है, वहीं कांग्रेस अलग-अलग खेमों में बंटी हुई दिख रही है. ऐसा माना जाता है कि दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उम्मीदवारों के फैसले में शीर्ष नेतृत्व को प्रभावित किया है, क्योंकि राज्य में खासकर जाट समुदाय के बीच उनका प्रभाव पार्टी के पक्ष में वोटों को मोड़ने के लिए काफी मजबूत है. उन्हें अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा का कद पार्टी के बड़े नेता के तौर पर करके अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेतृत्व को भी सुनिश्चित करना है. जाट वोटों को एकजुट करने पर कांग्रेस के जोर से भाजपा को गैर-जाट वोट हासिल करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि अभियान जाट बनाम गैर-जाट चुनाव की ओर मुड़ जाएगा.


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BJP की छवि को लग सकता है दाग

खट्टर को सैनी के लिए सीट खाली करने के लिए कहा गया था, जो कुरूक्षेत्र से मौजूदा सांसद थे और दलित और ओबीसी वोट हासिल करने के लिए काफी लोकप्रिय माने जाते थे, जिनकी आबादी राज्य में लगभग 44 प्रतिशत है. अपने मतदाता आधार को मजबूत करने के लिए भाजपा ने जनवरी 2024 में कांग्रेस की राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर को शामिल किया. तंवर ने अपनी पार्टी बनाई, कुछ समय के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में समय बिताया और फिर आम आदमी पार्टी (आप) में चले गए थे. माना जाता है कि दल-बदलू होने के बावजूद उन्होंने हरियाणा में लगभग 20 प्रतिशत दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाई हुई है.

इन सभी वोट बैंक समीकरणों के बावजूद, अगर भाजपा 2019 में जीती गई सभी 10 सीटें जीतने में असमर्थ रही तो उसकी छवि को दाग लग सकता है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पार्टी को लाभ दिलाने का काम कर रही है और खट्टर को गैर-भ्रष्ट और कुशल प्रशासक के तौर पर देखा जाता है, ये कारक अकेले चुनावों में जाति संयोजन के प्रभाव को खत्म करने के लिए काफी नहीं हो सकते हैं. लोकसभा नतीजों में कोई भी झटका आने वाले विधानसभा चुनावों पर असर डालेगा और यही एक कारण है कि बीजेपी इस बार फिर से सभी 10 सीटें जीतना चाहेगी. फिर भी, यह जीत अकेले हरियाणा में भाजपा की परेशानियों के अंत की गारंटी नहीं दे सकती.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका एक्स हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त विचार निजी है)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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