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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतधारणा बनाने की बजाए उम्मीद जगाना- कोविड की दूसरी लहर के बाद की राजनीति के लिए BJP तैयार

धारणा बनाने की बजाए उम्मीद जगाना- कोविड की दूसरी लहर के बाद की राजनीति के लिए BJP तैयार

राहुल गांधी वैक्सीन की कमी के लिए सरकार को भले कोस रहे हों, मोदी बस एक बात जानते हैं- चुनाव के पहले सब दुरुस्त कर देना है.

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शनिवार को दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में अध्यक्ष जे.पी. नड्डा जब पार्टी की एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे तब ऐसा लग रहा था कि सब कुछ उनके नियंत्रण में है. उनके बायीं तरफ पूर्व पार्टी अध्यक्ष व गृह मंत्री अमित शाह बैठे थे, तो दायीं तरफ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह थे. नौ वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री भी इन सबके साथ बैठे थे. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में होने वाले चुनावों की तैयारियों पर नड्डा विचार-विमर्श कर रहे थे. भाजपा नेताओं का कहना है कि नड्डा ने इन राज्यो में सामाजिक सुरक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी योजनाओं का जायजा लिया.

मीन-मेख निकालने वाले कह सकते हैं कि बैठक का दिखावा ज्यादा किया गया, काम की बातें कम ही हुईं. बात अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर की थी तो सड़क परिवहन व हाईवे और माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़ मंत्री नितिन गडकरी इस बैठक में क्यों नहीं थे? खुद प्रधानमंत्री कहां थे? और स्वास्थ्य संबंधी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बात करने वाला कोई नहीं था.

इसके अलावा, उक्त राज्यों के पार्टी प्रभारियों को इस बैठक में क्यों नहीं बुलाया गया? इन पांच में से जिन चार राज्यों में भाजपा सत्ता में है वहां की जानकारियां देने के लिए भी कोई नहीं था. बताया जाता है कि जब नड्डा इन राज्यों में कार्यक्रमों और परियोजनाओं पर बात कर रहे थे तब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री मोदी के साथ वर्चुअल बैठक कर रहे थे और अयोध्या में लागू की जा रहीं परियोजनाओं की प्रगति पर चर्चा कर रहे थे.

जो भी हो, हाल में इस तरह की कई बैठकें भाजपा मुख्यालय में हुई हैं. पिछले चार हफ्ते में सरकार और पार्टी में फटाफट कई गतिविधियां हुई हैं. प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों के कामकाज का जायजा लेने के लिए कई बैचों में मंत्रियों के साथ बैठकी की है, भाजपा के संकटमोचन नेता राज्यों के दौरे पर गए, जहां घोर आंतरिक कलह चल रही है और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों के साथ कई बैठकें की हैं.

इन सबसे यह धारणा बन रही है कि सरकार और पार्टी कोविड की दूसरी लहर के दौरान अपनी कमजोरियां उजागर होने के बाद अपने घरबार को ठीक करने में गंभीरता से जुट गई है. कुछ लोग इन बैठकों के नतीजों पर संदेह कर सकते हैं, जैसे पूर्व मंत्री अरुण शौरी ने शायर अकबर इलाहाबादी को उदधृत करते हुए किया था— ‘प्लेटों के आने की आवाज़ तो आ रही है, खाना नहीं आ रहा.’

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अपेक्षाओं का सामना

अगर मोदी से यह अपेक्षा थी कि वे ‘भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षमताओं में वृद्धि’ की खातिर अपनी टीम का पुनर्गठन करेंगे, तो ऐसा लगता है कि वे इसके लिए बहुत जल्दबाज़ी में नहीं हैं. विपक्षी दलों को बदनाम करना एनडीए सरकार की अभी भी सबसे पहली प्राथमिकता बनी हुई है. जहां तक भाजपा की बात है, उसका नेतृत्व राज्यों में भीतरी कलह को शांत करने में व्यस्त है. यहां तक कि योगी आदित्यनाथ जैसे ताकतवर नेता को भी उनके मंत्री दूसरी पारी के लिए स्वीकार नहीं कर रहे हैं.

लेकिन महामारी की दूसरी लहर कमजोर पड़ने के बाद मोदी सरकार और भाजपा के लिए एक चीज जरूर बदल गई है. वे ‘एक्शन से गायब’ रहने के लिए नहीं बल्कि एक्शन में होने के लिए जरूर सुर्खियों में हैं, चाहे उसका जो भी नतीजा निकला हो. आलोचक इसे जन धारणा या सुर्खियों पर काबू रखना कह सकते हैं लेकिन शासक हलके ने फिर सरगर्मी पैदा कर दी है और उसने महामारी की तीसरी लहर से पहले शासन के प्रति उत्सुकता जगा दी है कि वह बंगाल में मुंह की खाने के बाद क्या चुनावी रणनीति अपनाएगा.

भाजपा के रणनीतिकार अब दूसरी योजना पर काम कर रहे हैं- लोगों की अपेक्षाओं को कैसे संभाला जाए. अब जीत का जश्न नहीं मनाना है. ‘मन की बात’ में पिछले तीन सप्ताह से मोदी जो संदेश दे रहे हैं उसे सावधानी से सुनिए. वे कह रहे हैं- कोरोनावायरस के ‘तूफान’ से केवल भारत नहीं बल्कि पूरी दुनिया तबाह हुई. लोगों को कष्ट में देखकर उनका दिल टूट जाता है. लेकिन एक ‘बहुरूपिया ’ वायरस का कोई भी सरकार बहुत कुछ नहीं कर सकती. और वे सार्वजनिक स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर को जितनी भी कोशिश करें सुधार नहीं सकते, जिसे उनकी पूर्ववर्ती सरकारों ने 70 साल (उनके अपने सात साल को छोडकर) में बर्बाद कर दिया. भाजपा लोगों को यही सब यकीन दिलाना चाहती है. उन्हें इस बात पर भी विश्वास करना चाहिए कि उन्होंने खुद अपनी और अपनी मां को सुरक्षित करने के लिए जो किया है- टीकाकरण– उसे लोगों तक भी पहुंचाएंगे.

भाजपा कह सकती है कि वे जनता के प्रधानमंत्री हैं, उनमें, उनकी मां और 130 करोड़ भारतीयों में कोई भेद नहीं है, वे जितने सुरक्षित या असुरक्षित हैं उतनी ही जनता भी है. और अगर इस मारक वायरस से बचाव का यही एक कवच मनुष्य को उपलब्ध है, तो ‘नकारात्मक अफवाहें फैलाने वाले’ (ये कौन हैं यह आप जानते ही हैं) लोग महामारी से लड़ाई को कमजोर करते हैं.

इसके साथ ही, जो भी गलत हुआ या हो रहा है उसके लिए भाजपा विपक्ष के सिर पर ठीकरा फोड़ सकती है. उसने ऑक्सीजन की ऑडिट की एक ‘अंतरिम’ रिपोर्ट के बहाने दिल्ली की ‘आप’ सरकार पर तोहमत जड़ दी कि उसने जरूरत से कहीं ज्यादा ऑक्सीजन की मांग की जिसके चलते महामारी की दूसरी लहर के ‘पीक’ पर 12 राज्यों को ऑक्सीजन सप्लाई प्रभावित हुई. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, ‘इस ऑक्सीजन का इस्तेमाल दूसरे राज्यों में किया जाता तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी.’

इसके अगले ही दिन एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने, जो इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले उप-समूह के मुखिया थे, स्पष्ट किया कि ‘अंतिम रिपोर्ट’ का इंतजार किया जाना चाहिए और दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन की जो मांग की थी उसे बढ़ाचढ़ाकर पेश किया गया नहीं मान लेना चाहिए. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. ‘आप’ सरकार के ‘झूठे अलार्म’ के कारण कई राज्यों को ऑक्सीजन की सप्लाई प्रभावित होने की बात सुर्खियां बन गई थीं और व्हाट्सएप ग्रुप के लाखों एडमिनिस्ट्रेटरों ने इसे और आगे फैला दिया, चाहे गुलेरिया कुछ भी कह रहे हों.

वैक्सीन की बदइंतजामी के लिए विपक्ष जबकि एनडीए सरकार पर हमले कर रहा है, शासक दल ने मामले के फौरी निपटारे के लिए एक तुरुप का पत्ता चल दिया. 21 जून को मोदी ने ‘रिकॉर्ड टीकाकरण’ (86 लाख) का जश्न मनाया. इसके एक दिन बाद स्मृति ईरानी को यह बयान देने की ज़िम्मेदारी सौंप दी कि देश जबकि नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना रहा था, इस मामले में कांग्रेस शासित राज्यों का प्रदर्शन ‘बेहद खराब’ था.

सार यह कि भाजपा लोगों को फिर यह विश्वास दिला रही थी कि यह विपक्ष ही है जिसके कारण टीकाकरण में देश पिछड़ रहा है. अब आलोचक लोग शिकायत करते रहें कि भाजपा शासित राज्यों में 21 जून से पहले टीकों का भंडार किस तरह जमा कर दिया गया था और केंद्र सरकार ने किस तरह उन्हें उस दिन के लिए अतिरिक्त खुराक उपलब्ध कराई और रिकॉर्ड तोड़ने के ठीक बाद के दिनों में टीकाकरण की संख्या क्या हो गई थी. लेकिन वर्ल्ड रिकॉर्ड और कांग्रेस शासित राज्यों का प्रदर्शन तब तक व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दूसरे मंचों पर छा गया था.


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राहुल को क्या नज़र नहीं आ रहा

कोविड की दूसरी लहर के पीक पर पहुंचने के बाद से मोदी यही आख्यान बुनते रहे हैं. राहुल ने इसकी पोल खोलने के लिए उनके ‘मन की बात’ कार्यक्रम को लोगों का ध्यान भटकाने की चाल बताया और मांग की कि टीके की कमी दूर की जाए. राहुल के ये तेवर उनकी इस धारणा की- जिससे मोदी के कई प्रतिद्वंदी सहमत हैं- उपज है कि महामारी की पहली और दूसरी लहर में सरकार की नाकामियों को लोग नहीं भूलेंगे और तीसरी लहर आई तो वह लोगों को और नाराज करेगी. इस पर बहस शुरू हो चुकी है लेकिन फिलहाल ऐसा ही लगता है कि मोदी को एक बार फिर राहुल कमतर आंक रहे हैं.

मोदी ने शुरू में भारतीय वैक्सीन को तरजीह देकर और विदेशी वैक्सीन के प्रति हिचक दिखाकर महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई को भले कमजोर किया होगा और सरकार की छवि को भी चोट पहुंचाई होगी मगर वे इस तोहमत से पल्ला झाड़ चुके हैं. मोदी शासन के मॉडल को कई आधार पर दोषपूर्ण बताया जा सकता है लेकिन काम कर दिखाने के मामले में उनका रिकॉर्ड असाधारण रहा है. आज सप्लाई में अड़चनें होंगी लेकिन यकीन मानिए, चुनावों के अगले दौर से पहले वे इस सबको दुरुस्त कर सकते हैं. अगर मोदी को लगता है कि टीकाकरण ही कोविड से चोट खाई उनकी राजनीति में जान फूंक सकता है, तो राहुल को टीके की कमी के सिवा किसी और मुद्दे पर अपना दांव लगाना होगा.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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