scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतउत्तर प्रदेश के नाराज ब्राह्मण इस बार किस पार्टी के साथ?

उत्तर प्रदेश के नाराज ब्राह्मण इस बार किस पार्टी के साथ?

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के पास तीन विकल्प हैं. या तो बीजेपी के साथ बनें रहें या कांग्रेस में विकल्प तलाशें. तीसरा विकल्प है कि जिस भी पार्टी का मजबूत ब्राह्मण कैंडिडेट हो, उसका समर्थन करें.

Text Size:

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सहयोगी दल के साथ 80 में से 73 सीटें जीतकर विपक्षी दलों के पैर के नीचे से जमीन खींच ली थी. 5 साल बाद अब यूपी में पार्टी की जमीन दरकती नजर आ रही है. एक तरफ समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से छिटककर भाजपा के पाले में गया ओबीसी तबका नाराज है, तो वहीं पार्टी का कोर मतदाता कहा जाने वाला ब्राह्मण मतदाता अपनी स्थिति को लेकर आशंकित है. वो इस चुनाव में बेशक बीजेपी का साथ न छोड़े, लेकिन बीजेपी को लेकर उसका उत्साह कम हो चुका है.

भाजपा ने लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के नजदीकी रहे कलराज मिश्र का देवरिया से और मुरली मनोहर जोशी का टिकट कानपुर से काट दिया है. यह दोनों नेता उत्तर प्रदेश में भाजपा के स्तंभ रहे हैं, जिन्होंने सत्ता में रहने पर ब्राह्मण समाज का बहुत भला किया है. इन नेताओं की जमीनी स्तर पर ब्राह्मणों में पकड़ रही है. ब्राह्मणों को कोई दिक्कत होने पर यह उम्मीद रहती है कि कलराज और जोशी जी काम करा देंगे.


यह भी पढ़ेंः वादों की पड़ताल: मोदी सरकार में चारों खाने चित हुआ सामाजिक न्याय


इसी तरह से मध्य उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण चेहरा केशरीनाथ त्रिपाठी भी हाशिये पर हैं. त्रिपाठी जाने-माने वकील रहे हैं और ब्राह्मणों की नौकरियों से जुड़े मुकदमे लड़ने के कारण वह अपनी जाति में बेहद लोकप्रिय रहे हैं. त्रिपाठी ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में ओबीसी को त्रिस्तरीय आरक्षण दिए जाने के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाई थी और अखिलेश यादव की सरकार के दौरान उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील कर इस पर रोक लगवाई थी. इसकी वजह से त्रिपाठी की ब्राह्मण मतदाताओं में अच्छी खासी धमक है. त्रिपाठी खासकर इलाहाबाद में परीक्षाओं की तैयारी करने वाले ब्राह्मण युवाओं में खासे लोकप्रिय रहे हैं, जहां पूरे प्रदेश से हजारों की संख्या में छात्र विभिन्न प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं.

मुरली मनोहर जोशी ने तो टिकट काटे जाने पर कानपुर के अपने समर्थकों को पत्र लिखकर सूचना दी थी जिसमें उनकी नाराजगी साफ साफ झलक रही थी. कलराज मिश्र भी गुस्से में हैं, जिनका गुस्सा सीधे तो नहीं निकल रहा है, बल्कि पार्टी के कार्यक्रमों में उनके उखड़ पड़ने की खबरें आ रही हैं.

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों व क्षत्रियों की प्रतिस्पर्धा छिपी हुई नहीं है. यह न सिर्फ राजनीति में चलती है, बल्कि अपराध जगत में भी दोनों जातियों में जमकर स्पर्धा चलती है. दोनों जातियों के नेता अपनी जाति के अपराधियों को कथित तौर पर संरक्षण देते हैं. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने से भी ब्राह्मण समुदाय में नाराजगी है. इसका चरम स्वरूप तब नजर आया, जब प्रदेश के मंत्री की समीक्षा बैठक में संत कबीर नगर के सांसद और आरएसएस-भाजपा के वरिष्ठ नेता रमापति राम त्रिपाठी के पुत्र शरद त्रिपाठी ने हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े और योगी के खास माने जाने वाले क्षत्रिय जाति के मेहदावल से विधायक राकेश बघेल को भरी सभा में ताबड़तोड़ जूते मारे.

ब्राह्मणों का दर्द है कि भाजपा सरकार में उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया. ब्राह्मणों को बोलने नहीं दिया गया. उनका दर्द यह है कि सरकार ने किसी का कुछ नहीं चलने दिया. अंबेडकर नगर के भाजपा सांसद हरिओम पांडेय टिकट कटने से नाराज हैं. टिकट कटने को लेकर उनका गुस्सा अपने स्वजातीय बसपा नेता राकेश पांडेय पर फूटता ही है, लेकिन वह अंबेडकर नगर संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाए गए मुकुट बिहारी वर्मा से खासे नाराज नजर आते हैं और कुर्मियों पर तमाम तरह के आरोप लगाते दिखते हैं. पार्टी मंच पर यह न कहने को लेकर पांडेय का कहना है कि उनको चुनाव लड़ना था, इसलिए बोल नहीं पाए और एससी-एसटी एक्ट में 18 प्रतिशत बनाम 72 प्रतिशत का मुद्दा उठाने पर उनको सजा दी गई, अगर दूसरी सरकार बनी तो 72 प्रतिशत आबादी पर झूठे मुकदमे लगाए जाएंगे.


यह भी पढे़ंः कांग्रेस की नीतियां बदल रही हैं, लेकिन चुपके-चुपके


अब सवाल यह है कि ब्राह्मण मतदाता किधर जाएगा. भाजपा से गुस्साए ब्राह्मण मतदाताओं के सामने एक विकल्प यह है कि वह नोटा का इस्तेमाल करे. भाजपा व आरएसएस इस विकल्प से इस कदर खौफजदा हैं कि संघ प्रमुख मोहन भागवत को खुद नोटा के खिलाफ मैदान में उतरना पड़ा है और उन्होंने कहा कि उपलब्ध विकल्पों में से ही बेहतर चुनना लोकतंत्र है. जाहिर है कि नोटा का इस्तेमाल पढ़े-लिखे शहरी लोग ही करते हैं, जिन्हें बीजेपी अपना वोटर मानती है.

ब्राह्मणों के सामने कांग्रेस एक बेहतर विकल्प है, जो स्वतंत्रता के बाद से ही उनकी प्रिय पार्टी रही है. लेकिन राज्य में कांग्रेस हाशिये पर है और कुछ सीटों को छोड़कर पार्टी की जीत की संभावना नहीं है, जिससे कि समूह में वह ब्राह्मण मतदाताओं को लुभा सके. तीसरा विकल्प यह है कि जिन सीटों पर किसी भी दल से ब्राह्मण प्रत्याशी हों, ब्राह्मण मतदाता उन्हें वोट दें और पार्टी की परवाह न करें. संभवतः उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण तीसरा विकल्प आजमाने की तैयारी में हैं.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.)

share & View comments

4 टिप्पणी

  1. उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत ही जटिल है आज ब्राह्मणों की निरंतर हत्या हो रही है सभी पार्टियां चुप चाप मौन है सभी ब्राह्मणों से विनम्र प्रार्थना है कि आज देश को चलाने वाले नेता ईमानदार है मुख्यमंत्री भले ही जातिवादी या ब्राह्मण विरोधी है मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी ना ही जातिवादी है ना ही बेईमान हमे इनका साथ देना है पुरातन काल से राजपूत ब्राह्मण एक है एक रहेंगे तभी इस समाज का भला हो सकता है

Comments are closed.