भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश 17 नवंबर को कार्यमुक्त होने से पहले शायद अयोध्या मुद्दे पर अपना अंतिम और महत्वपूर्ण फैसला सुनाएंगे. फैसला कुछ भी हो, लेकिन जमीनी हकीकत बदल गई है.
अयोध्या अब ऐसा मुद्दा नहीं है जो किसी भी पार्टी को राजनीतिक लाभ दे सके, चाहे राम मंदिर आंदोलन का विरोध करे या समर्थन. जबकि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है. यह एक चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है. भाजपा के एक दिवंगत नेता ने कहा था की यह ऐसा चेक नहीं है जिसे दो बार भजाया जा सके. यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दोनों पार्टियों के अयोध्या के मुद्दे पर उदासीनता को दिखाता है.
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अयोध्या आंदोलन और भाजपा का उदय
1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के चरम पर पहुंचने के बाद भाजपा ने हर चुनावी घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया. बार-बार भारतीय जनता पार्टी ने अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर बनाने का वादा किया.
दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 1996 का लोकसभा चुनाव पहला बड़ा चुनाव था. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य ‘राम मंदिर’ के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई थी.
पार्टी ने इस मुद्दे पर वैचारिक रुख अपनाते हुए अपना दावा मजबूत किया- घोषणापत्र में कहा गया कि एक भव्य मंदिर लाखों लोगों का सपना है और ‘राम की अवधारणा उनकी चेतना के मूल में निहित है.’
1996 के चुनाव में भाजपा ने लोकसभा में 161 सीटें जीतीं और अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि, आरएसएस के स्वयंसेवक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार अल्पकालिक थी.
अयोध्या में बाबरी विध्वंस की पांचवीं वर्षगांठ से ठीक एक सप्ताह पहले अटल सरकार गिर गई.
अब तक, भाजपा के लिए यह स्पष्ट था कि पार्टी को राम मंदिर निर्माण के लिए गंभीर होना चाहिए. हिंदू संगठनों का भी काफी दबाव था, जिन्होंने भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिससे 1996 में जीत सुनिश्चित हुई थी.
1998 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, भाजपा ने इसमें एक शब्द को जोड़ा कि मंदिर पहले से ही यहां मौजूद है. राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद 1998 के चुनाव अभियान की मुख्य मुद्दा बन गया, सभी प्रमुख दलों ने किसी न किसी तरह से इसका जिक्र किया.
पहली बार भाजपा ने ‘अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सभी सहमति से, कानूनी और संवैधानिक रास्ते का पता लगाने का वादा किया.’
1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 182 सीटों के साथ वापसी की. आज तक बीजेपी-आरएसएस के कई नेता पार्टी की शानदार जीत का श्रेय वाजपेयी के करिश्मे और लाल कृष्ण आडवाणी के 1990 की रथयात्रा से मिलने वाले जमीनी स्तर के समर्थन को दिया.
हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 13 महीने तक चली. एआईएडीएमके की नेता जे जयललिता ने समर्थन वापस लेकर इसे गिरा दिया.
राम मंदिर ठंडे बस्ते में चला गया है
जैसे-जैसे भारत नई सदी में कदम रख रहा है अयोध्या अब चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है. भाजपा के घोषणापत्र में राम मंदिर का उल्लेख मिला है. लेकिन 2004, 2009, 2014 और 2019 के चुनाव अन्य मुद्दों पर लड़े गए हैं. 2004 में इंडिया शाइनिंग बनाम आम आदमी अभियान, 2009 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, 2014 में ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ और 2019 में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा गया है.
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राम मंदिर का मुद्दा धीरे-धीरे पीछे चला गया है. इसलिए नहीं कि यह अब एक भावनात्मक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसलिए कि बहुसंख्यक हिंदू अब आश्वस्त है कि कोई भी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण नहीं रोक सकता है. यह केवल समय की बात थी और अब वह समय जा चुका है. अयोध्या को 6 दिसंबर को एक उत्सव के रूप में देखा जा सकता है.
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(लेखक ऑर्गनाइज़र के पूर्व संपादक हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)