आप वायरल वीडियो में साफ देख सकते हैं कि बर्च बाय रोमियो लेन में आग कैसे लगी. एक कज़ाख परफ़ॉर्मर “महबूबा ओ महबूबा” पर नाच रही थी, तभी उसके आसपास आतिशबाज़ी हो रही थी, शनिवार रात की भीड़ के लिए पायरो टेक्निक्स. अचानक चिंगारियां डीजे बूथ के ऊपर दिखाई देने वाली छप्परनुमा छत में लग जाता है, जिससे ऑर्केस्ट्रा और डांसर घबरा जाते हैं. एक नशे में धुत ग्राहक डांसर से मज़ाक करता है: “आपने तो आग लगा दी!”
दो मंज़िल नीचे माहौल बिल्कुल अलग रहा होगा. 19 साल का विनोद महतो वीडियो में नहीं है. न ही उसका 24 साल का भाई प्रदीप और 18 साल का मोहित मुंडा. झारखंड के एक ही गांव के ये तीनों युवक बेसमेंट किचन में थे, जहां कोई फायर एग्ज़िट नहीं था. उनके साथ 17 और किचन कर्मचारी थे. वे उत्तराखंड, असम और नेपाल से आए थे, ताकि नमक के मैदान पर बने एक अवैध नाइटक्लब में खाना बनाकर गुज़ारा कर सकें, जिसे एक ऐसे सिस्टम ने संभव बनाया जो अब किसी को हैरान नहीं करता. अब वे सभी मर चुके हैं.
बर्च बाय रोमियो लेन इस बात का बड़ा उदाहरण है कि दिल्ली की हिम्मत, ताकत, पैसा और कारोबारी समझ गोवा में कैसे कामयाब होती है. आप पणजी से मंद्रेम तक ड्राइव करें या नॉर्थ गोवा का कोई इलाका देखें, आपको नाइटक्लब का विज्ञापन बोर्ड ज़रूर मिलेगा. इस साल की शुरुआत में, इसे टाइम्स हॉस्पिटैलिटी आइकन्स में आइकॉनिक कॉन्सेप्ट बार अवॉर्ड मिला था. रोमियो लेन के चेयरमैन सौरभ लूथरा, “गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर जो एक उभरते और तेज़ी से बढ़ते रेस्तरां मालिक बन गए”, फोर्ब्स इंडिया में भी छप चुके थे. कई संस्थाएं और संबंधित अधिकारी नाकाम रहे, जिसके कारण बर्च एक डिमॉलिशन ऑर्डर के बावजूद चलता रहा, जिसे बाद में स्टे कर दिया गया. और ये नाकामी बेहद साफ दिखाई देती है.
भूमि पर कब्ज़ा
सबसे पहले ज़मीन की बात करें. रीजनल प्लान 2021 के अनुसार, बर्च की साइट वाले क्षेत्र को साल्ट पैन ज़ोन यानी ECO-1 घोषित किया गया है और इसे नो डेवलपमेंट ज़ोन के रूप में साफ चिह्नित किया गया है. यह खज़ान भूमि है, एक सदियों पुरानी इंजीनियरिंग प्रणाली जिसमें बांध, पानी रोकने के दरवाजे और खेत शामिल हैं, जो खारे पानी के ज्वार के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं. लेकिन यहां अचानक एक ढांचा उभर आता है और उससे भी बुरा, उसी जगह इसे कमर्शियल रूप से चलने दिया जाता है, रिसर्चर, एजुकेटर और द ग्रेट गोवा लैंड ग्रैब के लेखक सोलानो डा सिल्वा ने कहा.
इस ज़मीन पर कम से कम 2005 से मुकदमे चल रहे हैं, वर्तमान मालिक सुरिंदर कुमार खोसला के खिलाफ शिकायतें लंबित हैं. फिर भी वर्षों में, जहां कभी शादी और छोटे आयोजनों के लिए छोटा मंडप किराए पर दिया जाता था, वह बढ़कर एक बड़े नाइटक्लब में बदल गया. बर्च को लकड़ी, पाम थैच और अन्य बेहद ज्वलनशील मटीरियल से बनाया गया था, शायद इसलिए ताकि इसे “अस्थायी ढांचा” बताया जा सके. गोवा के लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिल्वेनिया के डॉक्टोरल उम्मीदवार कौस्तुभ नाइक ने कहा कि बीच-साइड एक छोटा कैज़ुअल शैक भी ऐसा ही सौंदर्य रचती हैं. “वे देहाती और पुरानेपन का एहसास देती हैं. लेकिन इन्हें इमारतों के कई नियमों को दरकिनार करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.”
फायर सेफ्टी घटना रिपोर्ट में कहा गया है कि बर्च बिना फायर डिपार्टमेंट की वैध एनओसी के चल रहा था. यह रिपोर्ट हादसे के बाद बनाई गई और उसमें साफ लिखा है कि निरीक्षण करने पर विभाग क्या पाता: “रेस्तरां और बार क्षेत्रों में उच्च ईंधन घनत्व. ज्वलनशील फर्नीचर और प्लास्टिक की मौजूदगी. अंदर लकड़ी के पैनल, पार्टिशन और सजावट जैसी अत्यधिक दहनशील सामग्री. बेसमेंट में खराब वेंटिलेशन और निकासी के अवरुद्ध रास्ते.”
बर्च के पास ट्रेड लाइसेंस और गोवा स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से ‘कंसेंट टू ऑपरेट’ जरूर था. “नाइटक्लब को साउंड कंट्रोल चाहिए होता है,” आर्किटेक्ट और अर्बन प्लानर ताहिर नरोन्हा ने कहा. “वहां आने-जाने के लिए सिर्फ दो संकरे पुल हैं. उन्हें ऑपरेट करने की अनुमति कैसे दी गई? ज़िम्मेदारी पंचायत और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड पर होती है, लेकिन प्लानिंग विभाग को भी दखल देना चाहिए था. 1.5 मीटर का पुल फायर सेफ नहीं है.”
‘राजनीतिक रूप से नियंत्रित गैरकानूनियां’
जैसे-जैसे बर्च के बारे में जानकारी सामने आती है, यह साफ होता जाता है कि यह कई विभागों के बीच की खामियों में फल-फूल रहा था. आग लगने से दो हफ्ते पहले, गोवा कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट अथॉरिटी ने नाइटक्लब को क्लीन चिट दे दी थी. संस्था ने कहा कि यह ढांचा “पूरी तरह कानूनी” है क्योंकि यह “कथित तौर पर कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन से बाहर आता है.” उन्होंने 1996 में अर्पोरा-नागोआ पंचायत द्वारा दिए गए एनओसी पर भरोसा किया, जिसमें रेस्तरां, स्टाफ क्वार्टर, कंपाउंड वॉल और रिटेनिंग वॉल बनाने की अनुमति थी. “कोई पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, क्योंकि क्लब और शिकायतकर्ता के बीच 2005 से नागरिक मुकदमा चल रहा है,” कहा गया.
यह गोल-गोल चलने वाली दलील, गोवा की विकास कहानी की तरह, उसी चीज़ की ओर इशारा करती है जिसे डा सिल्वा “राजनीतिक रूप से प्रबंधित गैरकानूनियां” कहते हैं. “जो ताकतवर लोग हैं, वे सरकार का एजेंडा तय करने में अपनी ताकत दिखाते हैं,” उन्होंने कहा. “और जब जांच होती है, तो यही शक्तिशाली लोग सुनिश्चित करते हैं कि कोई निर्णय न हो. अनंत देरी, ढील, अधूरी जांचें, और दोषी अपना काम जारी रखते हैं. यह सब इसलिए संभव है क्योंकि इस शासन ने नीतियां और उनका प्रवर्तन अलग-अलग गुटों में बांट दिया है, ताकि दल-बदल कर बनी गठबंधन सरकार टिक सके.”
हमेशा ऐसा नहीं था. डा सिल्वा ने बताया कि पहले गोवा में भारत के सबसे प्रभावी भूमि उपयोग नियम थे. 1980 और 90 के दशक में, राज्य ने एक रीजनल प्लान लागू किया था जिसमें हर ज़मीन के लिए ज़ोनिंग निर्धारित थी, जिसमें नॉन-डेवलपमेंट स्लोप और खज़ान संरक्षित थे. ये वे तरीके थे जो स्पष्ट रूप से “बाज़ार को कहां चलने से रोकना है” तय करते थे और कुछ जगहों को बाज़ार के लिए प्रतिबंधित रखते थे. दिल्ली जैसे शहरों के विपरीत, जिसने मास्टर प्लान शहर बनने के बाद बनाए, गोवा ने शहरीकरण बढ़ने से पहले ही योजना बना ली थी.
डा सिल्वा ने कहा कि गोवा के “बेहद प्रगतिशील भूमि कानून” कभी राज्य के प्राकृतिक आकर्षण को संरक्षित रखते थे. लेकिन हालिया वर्षों में कई संशोधन किए गए हैं—17(2), 39A, FAR में ढील, ODPs का विस्तार—जो रीजनल प्लान के नियमों से अलग छूट देते हैं. “गोवा में राजनीतिक वर्ग की भूमि बदलने की भूख इतनी ज़्यादा है कि अक्टूबर 2024 से नवंबर 2025 के बीच सेक्शन 39A के तहत 12,76,000 वर्ग मीटर से ज़्यादा पर्यावरण-संवेदनशील भूमि को परिवर्तन के लिए मंजूरी दी गई.” ये नियम कभी अनियंत्रित विकास के खिलाफ सुरक्षा थे. अब ये पास बन गए हैं.
डा सिल्वा ने कहा कि कानून का मकसद आखिरकार सबसे कमजोर और आवाज़हीन लोगों की रक्षा करना है. “लेकिन गोवा में अमीर और प्रभावशाली लोगों के लिए ‘राजनीतिक समाधान’ उपलब्ध है, जिसके ज़रिए वे नियमों को दरकिनार कर लेते हैं. इसकी कीमत सबसे कमजोर लोग चुकाते हैं, जैसे वे मज़दूर जिन्होंने भ्रष्टाचार और भारी लापरवाही वाले राजनीतिक-नौकरशाही तंत्र के कारण अपनी जान गंवाई. और इसकी कीमत गोवा की पारिस्थितिकी भी चुकाती है, जो इस शासन की चालों और योजनाओं की मूक शिकार है.”
अर्पोरा-नागोआ पंचायत ने इसे रोकने की कोशिश की थी. उसने साइट पर बने अवैध ढांचों को गिराने का आदेश दिया था. लेकिन मालिक ने पंचायतों के अतिरिक्त निदेशक के पास अपील की, जिसने बाद में नाइटक्लब को स्टे दे दिया. वरिष्ठ वकील अरुण ब्राज़ डी सा ने भी यह खतरा पहले ही देख लिया था. 4 नवंबर को जारी कानूनी नोटिस में, आग से एक महीने पहले, उन्होंने सरकारी अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि अगर बर्च का संचालन ऐसे ही चलता रहा, तो “विनाशकारी हादसे और बड़े पैमाने पर जनहानि” का खतरा है.
सिस्टम की एक विशेषता
यह दंड से बचने वाली संस्कृति सिर्फ बर्च तक सीमित नहीं है. नरोन्हा बताते हैं कि कैलंगुट के विधायक माइकल लोबो से जुड़े नज़री रिज़ॉर्ट पर सात साल पहले जारी किए गए डिमॉलिशन ऑर्डर के बावजूद आज भी बुकिंग ली जा रही है. उन्होंने कहा, “जब स्थिरता, पहुंच और बाहर निकलने के रास्तों को लेकर बड़े चिंताएं हों, और इमारत CRZ क्षेत्र में बनी हो, तो सरकार की पहली प्रतिक्रिया संपत्ति को सील करने की होनी चाहिए. वाणिज्यिक इमारतों के लिए ‘सबूत साबित होने तक निर्दोष’ का सिद्धांत लागू नहीं किया जाना चाहिए.”
लेकिन यह सिद्धांत हमेशा लागू होता है. नाइक का कहना है कि सिस्टम को इस तरह डिजाइन किया गया है कि उसमें अनियमितताएं पैदा हों और लोग उनसे फायदा उठाएं. “यह कोई खामी नहीं है—यह सिस्टम की एक विशेषता है.”
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और राजनीतिक स्पेक्ट्रम के कई नेताओं ने जनहानि पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए बयान जारी किए हैं. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मृतकों के लिए मुआवजा पैकेज की भी घोषणा की है. डा सिल्वा बताते हैं कि ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्होंने क्या नहीं कहा. उन्होंने पूछा, “प्रधानमंत्री ने हर मंत्री और सरकारी विभाग से जवाबदेही की मांग क्यों नहीं की? मुआवजा देने के लिए करदाताओं के पैसे का उपयोग करना बहुत आसान है. हालांकि, अगर इस सरकार में नैतिक ताकत है, तो उसे हर उस मंत्री, विधायक और अफसर को उजागर करना चाहिए जो इन सामूहिक गैरकानूनी कामों को मंजूरी देने में शामिल थे, और उनसे मुआवजा वसूलना चाहिए.”
इसी बीच, पिछले दो दिनों में तेजी से गतिविधियां बढ़ी हैं. चार मैनेजरों को गिरफ्तार किया गया है, और तीन मध्य-स्तरीय नौकरशाहों को निलंबित किया गया है. मालिकों को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली में एक पुलिस टीम भेजी गई है. नाइक ने कहा, “मुझे यकीन है कि किसी एक को बलि का बकरा बनाया जाएगा, लेकिन अंततः ये बातें न्यूज साइकिल में खत्म हो जाएंगी.” जैसे मई 2025 के शिरगांव भगदड़ की घटना अब यादों से मिट गई है. अगले हफ्ते, पर्यटक फिर तीन हजार रुपये कवर चार्ज देकर लौट आएंगे. और हम सब ऐसा दिखावा कर पाएंगे कि यह बस सीजन की एक छोटी-सी रुकावट थी.
यह आर्टिकल गोवा लाइफ सीरीज़ का हिस्सा है, जो गोवा की नई और पुरानी संस्कृति को साझा करता है.
करनजीत कौर पत्रकार हैं. वे TWO Design में पार्टनर हैं. उनका एक्स हैंडल @Kaju_Katri है. व्यक्त विचार निजी हैं.
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